डॉ. राजेंद्र विजय मुनि — वह मुनि जिन्होंने मासिक धर्म को एक आंदोलन बना दिया

Dr. Rajendra Vijay Muni – The Muni Who Turned Menstruation into a Movement

निलेश शुक्ला

जब कोई समाज अपनी महिलाओं की रक्षा और सशक्तिकरण को प्राथमिकता देता है, तो वह एक ऐसे भविष्य का निर्माण करता है जो अधिक स्वस्थ, अधिक उत्पादक और अधिक न्यायपूर्ण होता है। भारत के आदिवासी अंचलों में — जहां नीति और परोपकार अक्सर पहुँचने में चूक जाते हैं — एक साधु की नैतिक दृष्टि और सतत प्रयास आज एक नए सामाजिक विमर्श को जन्म दे रहे हैं। जैन मुनि और सामाजिक सुधारक डॉ. राजेंद्र विजय मुनि ने सुखी परिवार फाउंडेशन और उससे जुड़े सामुदायिक उपक्रमों के माध्यम से आदिवासी महिलाओं में मासिक धर्म स्वास्थ्य, शिक्षा और समग्र कल्याण को लेकर एक ऐतिहासिक परिवर्तन की शुरुआत की है। यह केवल दान का कार्य नहीं है — यह मानव गरिमा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और राष्ट्र के भविष्य में निवेश है।

सिर्फ परोपकार नहीं — गरिमा ही आधार
सामान्यतः समाज कल्याण को संख्या में मापा जाता है — कितने पैड वितरित हुए, कितनी क्लीनिकें खुलीं, कितने बच्चों का नामांकन हुआ। परंतु डॉ. राजेंद्र विजय मुनि का कार्य एक गहरी और अनदेखी इकाई से शुरू होता है — गरिमा।

अनगिनत आदिवासी महिलाओं के लिए आज भी मासिक धर्म शर्म, चुप्पी और असुरक्षित प्रथाओं से बंधा विषय है। इसके शारीरिक परिणाम — संक्रमण, स्कूल से अनुपस्थिति, आर्थिक भागीदारी में कमी — तो होते ही हैं, लेकिन भावनात्मक चोट और सामाजिक बहिष्कार इसे और गंभीर बना देते हैं।

सुखी परिवार फाउंडेशन मासिक धर्म स्वास्थ्य को एक राहत कार्यक्रम नहीं बल्कि गरिमा पुनर्स्थापना का प्रवेश द्वार मानता है। सुरक्षित मासिक धर्म उत्पादों के साथ-साथ शिक्षा, सामुदायिक संवाद और स्थानीय तथा आध्यात्मिक नेतृत्व के साथ साझेदारी — यह समग्र मॉडल सामाजिक सोच और व्यवहार में वास्तविक बदलाव लाता है।

शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक सशक्तिकरण — एक सदाचक्र
जब महिलाएँ मासिक धर्म को सुरक्षित और सम्मानजनक तरीके से प्रबंधित कर पाती हैं, तो उसके प्रभाव व्यापक होते हैं।
— बेटियाँ स्कूल कम छोड़ती हैं,
— माताएँ आजीविका में अधिक योगदान देती हैं,
— परिवारों का स्वास्थ्य सुधरता है।

मासिक धर्म स्वास्थ्य को शिक्षा, कौशल विकास और माइक्रो-एंटरप्राइज से जोड़कर यह बदलाव कई गुना बढ़ाया जाता है। इससे महिलाएँ स्वास्थ्य से सशक्तिकरण और फिर आर्थिक स्वतंत्रता की यात्रा तय करती हैं।

आदिवासी महिलाओं का सशक्तिकरण सिर्फ सामाजिक सुधार नहीं — यह सार्वजनिक स्वास्थ्य, आय वृद्धि और मानव पूंजी विस्तार तीनों को एकसाथ मजबूत करता है।

हर एक रुपये का निवेश पूरे समुदाय के सामाजिक-आर्थिक ढाँचे को स्थायी रूप से मजबूत करता है।

अंतरधार्मिक संवाद और नैतिक नेतृत्व
डॉ. राजेंद्र विजय मुनि की विशिष्टता उनके आध्यात्मिक प्रभाव और व्यावहारिक सामाजिक कार्य के अद्वितीय संयोजन में है। विभिन्न धर्मों और परंपराओं के धार्मिक नेताओं को मासिक धर्म स्वास्थ्य के मुद्दे पर साथ लाकर उन्होंने ऐसी नैतिक विश्वसनीयता स्थापित की है जिसे ग्रामीण और आदिवासी समाज सहजता से स्वीकार करते हैं।

यह नेतृत्व संप्रदाय विस्तार का नहीं बल्कि सामाजिक विश्वास निर्माण का है। जब धर्मगुरु, ग्राम प्रमुख, शिक्षक और स्वास्थ्य कार्यकर्ता एक स्वर में बात करते हैं, तो कलंक धीरे-धीरे सामूहिक जिम्मेदारी में बदल जाता है।

स्थानीय साझेदारियाँ — टिकाऊ बदलाव
स्थायी विकास तभी संभव है जब समुदाय उसकी अगुवाई करें। इसलिए सुखी परिवार फाउंडेशन ग्राम पंचायतों, स्थानीय NGOs, स्वयं सहायता समूहों, स्कूलों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के साथ साझेदारी को प्राथमिकता देता है।

महिलाओं के सहकार समूह, स्थानीय रूप से निर्मित सैनिटरी उत्पाद, पीयर एजुकेटर नेटवर्क — ये पहलें बाहरी सहायता पर निर्भरता कम करते हुए स्थायी स्वावलंबी संरचना तैयार करती हैं।

प्रभाव स्पष्ट है — अब इसे विस्तार देना नैतिक कर्तव्य
मैदान स्तर के आँकड़े स्पष्ट लाभ दिखाते हैं —
• विद्यालय से अनुपस्थिति कम,
• मासिक धर्म स्वच्छता को लेकर जागरूकता बढ़ी,
• सैनिटरी उत्पादों की स्वीकृति तेज़ी से बढ़ी।
लेकिन चुनौती विशाल है — आदिवासी आबादी भौगोलिक रूप से विस्तृत और बिखरी हुई है। इसलिए डॉ. राजेंद्र विजय मुनि के मॉडल को विस्तार देना नैतिक और व्यावहारिक दोनों दृष्टि से अनिवार्य है।

दाता और कॉर्पोरेट जगत को क्यों आगे आना चाहिए
परोपकार की दृष्टि से यह कार्य पीड़ा कम करता है, गरिमा लौटाता है और इसलिए अत्यावश्यक है।
विकास की दृष्टि से — यह शिक्षा सुधारता है, श्रम भागीदारी बढ़ाता है और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाता है
CSR व कॉर्पोरेट निवेश के लिए यह एक रणनीतिक अवसर है —
• स्पष्ट सामाजिक प्रभाव
• समुदाय में विश्वसनीयता
• राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों के अनुरूप योगदान
और यह योगदान सिर्फ धन तक सीमित नहीं —
सप्लाई चेन, कौशल प्रशिक्षण और बाज़ार संपर्क जैसे सहयोग प्रभाव को कई गुना बढ़ा सकते हैं।

दीर्घकालिक और जिम्मेदार परोपकार का समय
एक बार का दान उपयोगी है, लेकिन स्थायी बदलाव के लिए दीर्घकालिक साझेदारी आवश्यक है।
फंडिंग का ध्यान सिस्टम और क्षमता निर्माण पर होना चाहिए —
• स्थानीय उत्पादन इकाइयों का समर्थन
• पीयर एजुकेटर प्रशिक्षण
• स्वच्छता अवसंरचना निर्माण
सबसे महत्वपूर्ण — समुदाय की नेतृत्व भूमिका बनी रहनी चाहिए।
योजनाएँ आदिवासी महिलाओं की भाषा, संस्कृति और अनुभव से निर्देशित होनी चाहिए।

सरकार और नीतियों की भूमिका
NGO-नेतृत्व वाले मॉडलों से प्रेरणा लेकर सरकार यदि इसे अपने स्वास्थ्य, स्कूल और स्वच्छता कार्यक्रमों में सम्मिलित कर दे तो प्रभाव कई गुना हो सकता है।

फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कर्मियों का प्रशिक्षण, स्कूल पाठ्यक्रमों में संवेदनशील मासिक धर्म शिक्षा और गुणवत्तापूर्ण उत्पादों की सुनिश्चित उपलब्धता भी इसमें सहयोग कर सकती है।

हर नागरिक की भूमिका
डॉ. राजेंद्र विजय मुनि और सुखी परिवार फाउंडेशन ने इस दिशा में एक नैतिक आंदोलन शुरू कर दिया है — एक ऐसा आंदोलन जो भारत के नैतिक स्वास्थ्य और मानवीय चरित्र की परीक्षा है।