विनोद कुमार विक्की
प्रभात प्रकाशन से सद्य प्रकाशित युवा साहित्यकार डॉ. वीरेंद्र प्रसाद द्वारा रचित ‘शेष कितना तमस’ लोक जीवन की नैतिक, मानसिक,सामाजिक और सांस्कृतिक ताना-बाना से जुड़ी पहलूओं का काव्य संग्रह है।इस संग्रह में मानवीय जीवन से सरोकार रखने वाली घटनाओं, विचारों, अनुभूतियों और संवेदनाओं का समावेश है।
पुस्तक की कविताएं जिनका प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष संबंध नैतिकता से है, वास्तविकता से है,प्रेम से है, प्रेरणा से है,विषय से है,विषाद से है, हर्ष से है ,उत्कर्ष से है।कुल साठ रचनाओं वाले उम्दा नवीन संग्रह की अधिकांश रचनाएं एक से बढ़कर एक है।
इसमें अतिश्योक्ति नहीं कि वर्तमान भागदौड़ भरी तनावपूर्ण जिंदगी में आमजन को मानसिक रूप से सबल और मजबूत बनाने में प्रखर काव्य धार की अहम् भूमिका होती है।
आत्म निर्णय स्वीकार्यता के पोषक डॉ.वीरेंद्र प्रसाद की रचनाओं यथा- जीने का वरदान, पंथी अकेला, शेष कितना तमस, मुझसे आज चांद ने कहा, संघर्ष, मुझको स्व से प्यार है, स्वाभिमान आदि में सकारात्मक संदेश का भाव स्पष्ट परिलक्षित होता है।राह पर पंथी अकेला की पंक्तियां
“मंजिलें है दूर मगर, संग हौसलों का मेला
राह पर पंथी अकेला। “
इन प्रेरक कविताओं की पंक्तियांँ जीवन अथवा प्रेम पथ से विचलित नैराश्य मन में आस और आत्मीय ऊर्जा उत्पन्न करने में सक्षम प्रतीत होता है। दूसरी ओर “तेरा दिल खोल के हँसना,मेरा बंधन खोल रहा है, सोना तेरी इन आंखों में,मेरा जीवन बोल रहा है।”अथाह प्रेम को परिभाषित करते हुए कवि मानसिक अभिव्यक्तियों को शब्दों का रूप देने में सफल साबित होते दिख रहे हैं।
संग्रह की कई कविताओं में प्रेम की प्रारंभिक अवस्था एवं इश्क में फ़ना हो जाने की स्थिति का शब्द चित्रण देखते ही बनता है।
“छोड़ जगत के रस्में सारे, बैठ पास मेरे चेहरे पर, तुम देते निमंत्रण मुझको मौन,मिल जाए मुझे आप , जब आया तेरे देश में,आ गए हो इतने करीब” आदि सहित कई रचनाओं में प्रेम के अनछुए पहलुओं को शब्द भाव के माध्यम से उकेरा गया है । बातें यदि प्रेम में डूबकर रूह से एकाकार की हो,तो “उस रात नहीं मैं रोया, सोना तुमको ख्वाबों में देखा है, तुम और मैं, प्रियवर तुमको कैसे पाऊं, मैं चांद में तुमको निहारू” आदि रचनाएं उम्र विशेष की बंधन से इतर हर उम्र हृदय की स्वत: उद्गार को रेखांकित करता है।”त्रिपथगा के सैकत पर, लिखना तेरा नाम। हर शाम यही था काम, लिखना तेरा नाम।, “सूर्य किरण की उलझन में बन आभा, मिट क्षण में,आतप ढूंँढूँ कण-कण में,नयनों को दिखा न पाऊंँ,तुमको भुला न पाऊंँ।” आदि पंक्तियां मन को छू जाती है।
लेखक ने जिस मर्म से हर्षित प्रेम को परिभाषित किया गया है, उतनी ही वेदना से विरह को अभिव्यक्त किया है। “जिसके लिए सपने सजाए,आज भी हो तुम, फिर उदास ये दिल, प्यार तेरा रूहानी” आदि रचनाओं में कवि का हृदय प्रेम अनुराग पर जबकि कुछ रचनाओं में करुण स्वर से भाव विह्वल हो जाता है।
कुल मिलाकर काव्य में रूचि रखने वाले पाठकों के लिए प्रकृति, प्रेम और प्रेरणा से अभिप्रेरित डॉ. वीरेन्द्र प्रसाद की पुस्तक शेष कितना तमस को वर्तमान साहित्य जगत में एक अच्छा साहित्यिक उपहार माना जा सकता है।
कृति – शेष कितना तमस
लेखक- डॉ. वीरेन्द्र प्रसाद
समीक्षक -विनोद कुमार विक्की
प्रकाशक -प्रभात प्रकाशन, दिल्ली
मूल्य – 200 ₹