दरकता जोशीमठ: कुदरत से छेड़छाड़ का नतीजा

नवीन गौतम

उत्तराखंड के जोशीमठ में आज जो हो रहा है वह इंसान की स्वार्थ पूर्ति के लिए प्रकृति से खिलवाड़ का नतीजा है । जिस विकास का दम हम भर रहे हैं वास्तव में उससे आगे विनाश चल रहा है। प्रकृति प्रेमियों का तर्क कि विकास और विनाश साथ – साथ चलते हैं लेकिन देश के विभिन्न हिस्सों में आई प्राकृतिक आपदा के अध्ययन से पता चलता है विकास से आगे विनाश चल रहा है जो इंसान और जानवरों पर महंगा पङ रहा है।

उत्तराखंड में पैदा हुए और वर्तमान में दिल्ली में रह रहे उत्तराखंड कुदरत की बारीकियों को समझने हरीश अवस्थी की इस बात में पूरा दम है जोशीमठ में जो कुछ हो रहा है वह कुदरत से छेड़छाड़ का नतीजा है। उनकी इस बात में भी पूरा दम नजर आता है कि विकास के नाम पर आए दिन उत्तराखंड में किए जा रहे ब्लास्ट पहाड़ों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

आज ज्योतिष पीठ जोशीमठ शहर के कम से कम हजार घरों में खतरनाक दरारें पड़ चुकी हैं। कारण, सरकार की All Weather रोड तथा Hydro power project । रोज ब्लास्ट होगा तो पहाड़ कमजोर होगा ही।

देश के किसी हिस्से के किसी भी कथित विकास पर नजर डालें तो विनाश विकास से आगे चलता नजर आता है। उन क्षेत्रों में पक्षियों की बहुत सारी प्रजातियां विलुप्त हो गई, जीव जंतु विलुप्त हो गए। आज इंसान की औसत उम्र पहले की तुलना में कितनी घट गई है, कैंसर जैसी भयानक बीमारियां भी कथित विकास का नतीजा है। हवा में दौड़ती तरंगें भले ही हमें इंटरनेट क्रांति का एहसास कराती हों लेकिन हकीकत यह है कि यह हमारे जीवन को लील रही है।

बात अब हम सबसे प्रदूषित शहर दिल्ली की करें तो दिल्ली में रहने वाले लोग भी कहने लगे कि दिल्ली अब रहने लायक नहीं रह गई है। यह निश्चित ही तथाकथित विकास का नतीजा है जो सरकारी सीएनसीओ के अलावा व्यक्तिगत स्तर पर किया जा रहा है। गाड़ियों की भरमार, दरख़्तों की जड़ों पर सीमेंट लेपन विनाश का ही प्रतीक है।

यह सच है कि दिल्ली की बढ़ती आबादी को मूलभूत सुविधा मुहैया कराना भी आवश्यक है लेकिन ध्यान इस बात पर भी रखना चाहिए कि जो चीजें हमें धरोहर में अपने पूर्वजों से मिली उन्होंने तो इन्हें संजोकर हमें सौंप दिया। लेकिन कहीं हम विकास की कथित आंधी में आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ भी ना छोड़ पाएं।

विनाश कैसे विकास से आगे चल रहा है इसका एक उदाहरण हमने दिल्ली में रहते हुए कड़ाके की ठंड का एहसास किया। मौसम विभाग ने भी दिल्ली के मौसम को पहाड़ी इलाकों से भी ठंडा बताया था। निश्चित ही पहाड़ों में दिल्ली की तुलना में तापमान अधिक था यह सब पर्यावरण से खिलवाड़ का ही नतीजा है।

दिल्ली आज क्यों प्रदूषित है ? वास्तव में कुदरत से छेड़छाड़ का ही नतीजा है। पुरातत्व के वैज्ञानिकों की खोज का हम गंभीरता के साथ अध्ययन करें तो पता चलता है एक समय में दिल्ली में बर्फ से ढके पहाड़ होते थे। कड़ाके की ठंड के कारण यहां कुछ नहीं हुआ करता था, ऐसा मौसम शायद हजारों साल तक रहा फिर धीरे-धीरे मौसम बदलना शुरू हुआ। बर्फ से ढके पहाड़ों की जगह हल्की गर्मी की शुरुआत हुई ।

आजादी के बाद की दिल्ली में प्रकृति द्वारा नदी के रूप में प्रदान की गई अमूल्य निधि यमुना को हम संरक्षित नहीं कर पाए। विकास के इस कठिन दौर में हमने इस संपदा के महत्व को नहीं पहचाना बल्कि नदी को सीवर की गंदगी बहाने का एक माध्यम बना कर छोड़ दिया। उसके किनारों को शहर के कूड़ेदान के रूप में इस्तेमाल किया गया। यही वजह है कि कथित विकास की रफ्तार पर चलती दिल्ली आज समस्याओं का मकड़जाल बनकर रह गई है।

पुरातत्व वैज्ञानिकों की खोज पर नजर डालें तो यह भी पता चलता है कि दिल्ली में रहने वाले लोग निश्चय ही हमसे ज्यादा समझदार थे । बोली भाषा, रहन-सहन और आज की स्टाइलिश जिंदगी की तुलना में वह भले ही हम से पीछे रह गए लेकिन शायद वह हमसे कहीं ज्यादा समझदार थे। भले ही उनकी बोली भाषा आज की तरह हाईटेक नहीं रही हो लेकिन उन्होंने अपने समय में प्रकृति के साथ ऐसा खिलवाड़ नहीं किया था। वह तो प्रकृति के साथ शांत और सहयोग का जीवन बिताते रहे लेकिन कथित विकास की दौड़ में जोशीमठ जैसा शहर दरक रहा है। अब चुनौती जोशीमठ को बचाने की है ही। साथ ही आवश्यकता इस बात की है इससे सबक लेकर पूरे देश में प्रकृति से खिलवाड़ बंद करना पड़ेगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व स्तंभकार हैं)