
डॉ. सत्यवान सौरभ
बहुत समय पहले की बात है, जब धरती इतनी गर्म नहीं होती थी और आकाश में बादल आराम से तैरते थे। उन्हीं बादलों में से सात खास बादल थे — गोलू, भोलू, झोलू, मटुक, नटखट, फुसफुस और सबसे छोटा, सबसे चंचल — टपकू।
टपकू का नाम टपकू इसलिए पड़ा, क्योंकि वह कभी सही समय पर नहीं बरसता था। जहाँ सब बादल खेतों की प्यास बुझाने, तालाब भरने या पेड़-पौधों को नहाने जाते, वहीं टपकू अचानक किसी की छतरी, खिड़की या तकिये पर टपक पड़ता। उसकी शरारतों से बच्चे हँसते भी थे और परेशान भी हो जाते थे।
आकाश की बैठक
एक दिन सूरज मामा ने सभी बादलों को बुलाया और कहा,
“बच्चों, अब धरती पर बहुत गर्मी है। खेत सूख रहे हैं, तालाब खाली हैं और जानवर प्यासे हैं। अब तुम सबको बरसने जाना होगा।”
सब बादलों ने अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी ली।
गोलू गया पहाड़ों की ओर,
भोलू चला दक्षिण भारत की तरफ,
झोलू उड़ गया रेगिस्तान की तरफ,
मटुक और नटखट बड़े शहरों के पास गए,
फुसफुस झीलों और जंगलों में बारिश करने चला।
अब बारी थी टपकू की। सूरज मामा ने पूछा,
“और तुम, टपकू?”
टपकू मुस्कराकर बोला,
“मैं उस गाँव में जाऊँगा जहाँ बच्चे मुझे बहुत याद करते हैं!”
टपकू की टप-टप बारिश
टपकू झूमता-गाता गाँव की ओर चला। नीचे धूल उड़ रही थी, बच्चे पसीने से तर थे, बकरियाँ चुपचाप बैठी थीं। टपकू ने सोचा, “अब मज़ा आएगा!” और वह एक घर की छत पर टपक पड़ा — टप! टप! टप!
एक बच्चा चिल्लाया,
“अरे! टपकू आ गया!”
सब बच्चे दौड़कर बाहर आ गए। टपकू ने उनके ऊपर बूँदें टपकाईं, कभी तेज, कभी धीरे। बच्चे नाचे, गाए, लेकिन तभी टपकू फिर उड़ गया। सब बोले,
“अरे, रुक जा ना! ये क्या बारिश हुई?”
टपकू हँसता रहा, “बस हल्की-फुल्की बारिश है, मज़ा लो!”
मीरा की कॉपी भीग गई
दूसरे दिन गाँव की एक बच्ची मीरा स्कूल जा रही थी। उसके पास छाता नहीं था। तभी टपकू ने उसकी कॉपी पर बूँदें टपका दीं। स्याही फैल गई, पन्ने भीग गए।
मीरा रोती हुई बोली,
“टपकू भैया, तुम तो सबकी मदद करते हो, लेकिन मेरी कॉपी खराब कर दी। क्या बारिश का यही काम है?”
टपकू एकदम चुप हो गया। पहली बार किसी ने उसकी बारिश से दुखी होकर बात की थी। वह ऊपर उड़ गया और सोचने लगा —
“क्या मैं सिर्फ शरारतों के लिए हूँ? क्या बारिश सिर्फ खेलने की चीज़ है?”
बादलों की सलाह
टपकू अपने बड़े भाइयों गोलू और भोलू के पास गया और सारी बात बताई। भोलू ने प्यार से कहा,
“देखो टपकू, बच्चों को हँसाना अच्छा है, लेकिन अगर कोई दुखी हो जाए तो सोचना पड़ता है। बारिश सिर्फ मस्ती नहीं, जिम्मेदारी भी है।”
गोलू ने थपकी दी,
“अगर तुम चाहो, तो तुम भी पक्के बादल बन सकते हो। खेतों को पानी दो, तालाब भरो, जानवरों की प्यास बुझाओ।”
टपकू ने सिर हिलाया,
“हाँ भैया, अब मैं जिम्मेदारी निभाऊँगा!”
टपकू का रूपांतरण
अगले दिन आकाश में टपकू कुछ बदला-बदला सा दिखा। वह और मोटा हो गया था, उसकी गरज तेज हो रही थी और वह सीधा गाँव की ओर बढ़ रहा था।
बच्चों ने देखा, “अरे! टपकू फिर आया है!”
लेकिन इस बार वह झमाझम बरसा! चारों ओर पानी ही पानी — खेत हरे हो गए, बगीचे महक उठे, तालाब भर गए और बच्चों ने कागज़ की नावें तैराईं।
मीरा ने छतरी लेकर आसमान की ओर देखा और मुस्कराकर बोली,
“अब टपकू भैया नहीं, झमाझम राजा आ गए हैं!”
नया नाम
अब गाँव के बच्चे उसे “टपक रहे बादल” नहीं कहते थे। उन्होंने उसका नया नाम रखा — झमाझम टपकू।
और टपकू? वह अब भी हँसता, खेलता, पर जब भी धरती प्यासी होती — वह सबसे पहले आ जाता।
कहानी की सीख:
मस्ती करना अच्छा है, लेकिन जब किसी को ज़रूरत हो, तो जिम्मेदारी निभाना सबसे बड़ा काम होता है।