योगी की सख्ती से यूपी छोड़ रहे हैं दिग्गज ब्यूरोक्रेट्स

Due to Yogi's strictness, big bureaucrats are leaving UP

अजय कुमार

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में प्रशासनिक तंत्र हमेशा चर्चा में रहा है। योगी सरकार की कार्यशैली, जिसमें सख्ती और जवाबदेही पर जोर है, ने न केवल नीतिगत फैसलों को प्रभावित किया, बल्कि ब्यूरोक्रेसी के ढांचे और अधिकारियों की भूमिका को भी नया आकार दिया। पिछले कुछ वर्षों में कई दिग्गज भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारियों को महत्वपूर्ण पदों से हटाकर कम प्रभावशाली भूमिकाओं में भेजा गया, जिसे नौकरशाही हलकों में हाशिए पर धकेलने के रूप में देखा जा रहा है। इसके साथ ही, सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति और लगातार प्रशासनिक फेरबदल ने यूपी की ब्यूरोक्रेसी को एक नया चेहरा दिया है।

गौरतलब हो 2022 में सत्ता हासिल करते ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रशासनिक अधिकारियों पर सख्त नजर आये थे और यह सिलसिला आज तक जारी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली में नौकरशाहों से त्वरित परिणाम और पारदर्शिता की अपेक्षा रही है। इस कारण कई वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों से हटाया गया। उदाहरण के लिए, 2006 बैच के आईएएस अधिकारी अभिषेक प्रकाश को 2025 में भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते निलंबित कर दिया गया। यह कार्रवाई योगी सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त नीति का हिस्सा थी। अभिषेक प्रकाश जैसे अधिकारियों का निलंबन न केवल उनके करियर पर प्रभाव डालता है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि सरकार किसी भी स्तर पर अनियमितता बर्दाश्त नहीं करेगी। इसी तरह, 2011 बैच के आईएएस अधिकारी देवेंद्र कुमार पांडेय, जो उन्नाव में जिलाधिकारी के रूप में कार्यरत थे, को वित्तीय अनियमितताओं के आरोप में निलंबित किया गया। हालांकि, बाद में उनकी बहाली हुई, लेकिन इस तरह की कार्रवाइयों ने उनकी प्रशासनिक छवि को प्रभावित किया।वैसे प्रशासनिक हलकों में यह भी चर्चा छिड़ी रहती है कि योगी जी के राज में एक खास बिरादरी के अधिकारियों पर ज्यारा विश्वास जताया जा रहा है,भले ही उनकी छवि साफ सुथरी नहीं हो। वैसे ऐसे ही आरोप विपक्ष के नेताओं खास कर सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी लगाते रहे हैं कि योगी सरकार में क्षत्रियवाद बुरी तरह से हावी है।

वैसे यहां यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यूपी की ब्यूरोक्रेसी में वरिष्ठ अधिकारियों की कमी भी एक बड़ा मुद्दा रहा है। पिछले साल एक समाचार पत्र में रिपोर्ट आई थी,जिसके अनुसार यूपी में अपर मुख्य सचिव (एसीएस) स्तर के 16 स्वीकृत पदों में से केवल 11 पर ही अधिकारी तैनात थे। इसी तरह, प्रमुख सचिव स्तर पर 36 में से 29 और सचिव स्तर पर 96 में से 58 अधिकारी ही कार्यरत थे। कुल मिलाकर, यूपी में 652 आईएएस अधिकारियों की जरूरत के मुकाबले केवल 560 अधिकारी उपलब्ध हैं। इस कमी का एक कारण यह भी माना जाता है कि कई वरिष्ठ अधिकारी केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर चले गए हैं। 1989 बैच के भुवनेश कुमार चतुर्वेदी केंद्रीय कृषि विभाग में सचिव बनकर चले गए, जबकि 1991 बैच के कामरान रिजवी और निवेदिता केंद्र में अतिरिक्त सचिव के पद पर हैं। कुछ नौकरशाही हलकों में यह चर्चा है कि योगी सरकार की सख्त कार्यशैली के कारण कई अधिकारी केंद्र की नौकरी को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिससे यूपी में वरिष्ठ अधिकारियों की कमी और गहरा रही है।

प्रशासनिक फेरबदल योगी सरकार की एक और विशेषता रही है। हाल के वर्षों में सैकड़ों आईएएस और पीसीएस अधिकारियों के तबादले हुए हैं। इसी वर्ष 22 पीसीएस अधिकारियों को प्रोन्नति देकर आईएएस बनाया गया, जिन्हें जल्द ही नई जिम्मेदारियां सौंपी जाएंगी। इनमें से कुछ को जिलाधिकारी के पद पर तैनात किया जा सकता है। इसके अलावा, 2024 और 2025 में कई बड़े पैमाने पर तबादले हुए, जिनमें 5 से 15 आईएएस अधिकारियों को एक साथ बदला गया। सितंबर 2024 में प्रनत ऐश्वर्य को मुख्य विकास अधिकारी अंबेडकरनगर से विशेष सचिव नमामि गंगे और संयुक्त प्रबंध निदेशक जल निगम ग्रामीण बनाया गया। इसी तरह, उमेश प्रताप सिंह को भूतत्व खनिकर्म विभाग से पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग में स्थानांतरित किया गया। इन तबादलों को सरकार की कार्यकुशलता बढ़ाने की रणनीति के तौर पर देखा जाता है, लेकिन कई बार इन्हें अधिकारियों को हाशिए पर धकेलने के रूप में भी व्याख्या की जाती है।

कई मामलों में, अधिकारियों को कम महत्वपूर्ण विभागों या पदों पर भेजा गया, जिसे नौकरशाही में डिमोशन के रूप में देखा जाता है। लखीमपुर खीरी में खेत की पैमाइश में देरी के एक पुराने मामले में 2024 में आईएएस अधिकारी घनश्याम सिंह सहित तीन पीसीएस अधिकारियों को निलंबित किया गया। हालांकि, घनश्याम सिंह को बाद में बहाल कर लिया गया, लेकिन इस तरह की कार्रवाइयां अधिकारियों की छवि और प्रभाव को कम करती हैं। इसी तरह, 2015 बैच के कुछ अधिकारियों को जिलाधिकारी जैसे महत्वपूर्ण पदों की रेस में शामिल होने के बावजूद कम प्रभावशाली भूमिकाओं में रखा गया। सूत्रों के अनुसार, प्रणय सिंह, अमनदीप डुली और आलोक यादव जैसे अधिकारियों को जल्द ही जिलाधिकारी बनाया जा सकता है, लेकिन अभी तक उनकी तैनाती अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण पदों पर ही रही है।

योगी सरकार की नीतियों ने ब्यूरोक्रेसी में जवाबदेही को बढ़ावा दिया है, लेकिन इस प्रक्रिया में कई दिग्गज अधिकारियों को हाशिए पर जाने का सामना करना पड़ा है। भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाइयां, जैसे 11 आईएएस अधिकारियों का निलंबन, और लगातार तबादले, ने नौकरशाही में एक तरह का दबाव बनाया है। कुछ अधिकारी इसे सरकार की सख्ती के रूप में देखते हैं, जबकि कुछ इसे प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त करने की रणनीति मानते हैं। इसके बावजूद, यह स्पष्ट है कि योगी सरकार की प्राथमिकता कार्यकुशलता और पारदर्शिता है, जिसके लिए वह किसी भी स्तर पर समझौता करने को तैयार नहीं है।

दूसरी ओर, सरकार की योजनाओं को लागू करने में ब्यूरोक्रेसी की भूमिका अहम रही है। मुख्यमंत्री कन्या सुमंगला योजना, गेहूं की न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि, और मुफ्त बस सेवा जैसी पहलें नौकरशाही के सहयोग से ही संभव हुई हैं। लेकिन इन योजनाओं को लागू करने में विफलता या देरी ने कई अधिकारियों को सरकार की नाराजगी का सामना करना पड़ा। कुंभ मेला 2025 की तैयारियों के लिए विजय किरन आनंद जैसे अधिकारियों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी गईं, जबकि कुछ अन्य को कम प्रभावशाली भूमिकाओं में रखा गया।बहरहाल, यूपी की ब्यूरोक्रेसी में बदलाव का यह दौर न केवल प्रशासनिक ढांचे को प्रभावित कर रहा है, बल्कि अधिकारियों के करियर पथ को भी नया आकार दे रहा है। योगी सरकार की सख्ती और लगातार फेरबदल ने कई दिग्गज आईएएस अधिकारियों को हाशिए पर धकेल दिया है, लेकिन यह भी सच है कि इस प्रक्रिया ने नए और ऊर्जावान अधिकारियों को मौका दिया है। कुल मिलाकर, यूपी की ब्यूरोक्रेसी एक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है, जहां जवाबदेही और परिणाम सरकार की प्राथमिकता बने हुए हैं।