सतीश उपाध्याय
रामायण कालीन संदर्भों के अनुसार छत्तीसगढ़ के एमसीबी जिले के प्रवेश द्वार हरचौका -सीतामढी में प्रभु श्री राम अपने 14 साल के वनवास के दौरान माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ छत्तीसगढ़ के भरतपुर विकासखंड के ग्राम हरचौका के मवई नदी के किनारे अपना समय व्यतीत किए थे।
बताया जाता है कि श्री राम इसी तट पर माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ रुके थे। इसीलिए इस जगह को सीतामढ़ी के नाम से जाना जाता है। एमसीबी जिला मुख्यालय मनेद्रगढ़ से लगभग 150 किलोमीटर दूर वनांचल क्षेत्र मवई नदी किनारे स्थित सीतामढ़ी हर चौका की इस गुफा में 17 कमरे हैं।इस दिव्य अलौकिक शक्ति पुंज से भरे स्थान को सीता की रसोई भी कहा जाता है। गुफा में 12 शिवलिंग हैं। जन श्रुति के अनुसार इसी , गुफा में रहते हुए प्रभु श्री राम इसी शिव लिंग की पूजा किया करते थे। मवई नदी के किनारे एक प्राचीन मंदिर भी है।जिसका एक पट मध्य प्रदेश की सीमा की ओर खुलता है। प्रभु श्री राम के आगमन से जुड़ी दंत कथाओं के कारण मवई नदी को स्थानीय जन गंगा की तरह पवित्र मानते हैं। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा इस क्षेत्र को पर्यटन का विशिष्ट पावन क्षेत्र का दर्जा दिया गया है। मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा ने श्री राम के लिए गुफा का निर्माण किया था। सीतामढ़ी हर चौका में 25 फीट ऊंची प्रतिमा भी स्थापित है। छत्तीसगढ़ के महानदी के तट पर बसी पुरा नगरी सिरपुर में 6वी शताब्दी का लक्ष्मण मंदिर भी रामायणकालीन प्रसंगों से जुड़ा हुआ है। 6वी शताब्दी में लाल ईंटों से बना लक्ष्मण मंदिर के सामने का परिसर भगवान विष्णु को समर्पित है। सिरपुर पुरातात्विक और ऐतिहासिक साक्ष्यों का जीवंत उदाहरण है। यहां खुदाई के दौरान प्राचीन बर्तनों के साथ तीन भूमिगत कमरे भी मिले हैं। सिरपुर में सर्वाधिक सुरक्षित मंदिर लक्ष्मण देवालय है। दंडकारण्य कहे जाने वाले बस्तर के माचकोट में घने जंगलों में राम लक्ष्मण ,भरत, शत्रुघ्न नामक विशाल चार सागौन के सैकड़ों साल पुराने वृक्ष हैं। इतिहासकारों का यह भी कहना है कि यहां बौद्ध अनुयायियों के अलावा शैव, वैष्णव अनुयायियों का कभी यह प्रमुख मंदिर रहा होगा। छत्तीसगढ़ की पावन धरा शिवरीनारायण को प्रभु राम को श्रद्धा से झूठे बेर खिलाने वाली माता शबरी का जन्मभूमि माना जाता है। मान्यता के अनुसार त्रेता युग में जब प्रभु राम माता सीता की खोज में यहां आए थे ,तो शबरी ने भगवान श्री राम को यहीं जूठे बेर खिलायें थे। शिवरीनारायण को छत्तीसगढ़ प्रदेश में को गुप्त धाम के नाम से भी जाना जाता है। यहां कभी मतंग ऋषि का भी आश्रम हुआ करता था। शिवरीनारायण को शबरी माता की साधना स्थली भी कहा जाता है। शबरी की स्मृति को चिरस्थाई बनाने के लिए शबरी नारायण नामकरण किया गया था। यहां के मंदिर के गर्भ गृह में श्री राम और लक्ष्मण की दिव्य प्रतिमा , धनुष बाण के साथ विराजमान हैं।
पौराणिक कथाओं के बिल्कुल करीब छत्तीसगढ़ में मिल रहे अवशेषों से भी इस बात की पुष्टि होती है कि आज से हजारों वर्ष पूर्व भगवान राम इसी वनांचल क्षेत्र से होते हुए लंका गये थे। सुकमा जिले के अंतिम छोर पर स्थित इंजरम जिसका प्राचीन नाम सिंगनगुड़ा था, यहीं भगवान राम आए थे और शिव जी पूजा की और प्रतिमा की स्थापना भी की उसके बाद गांव का नाम बदल कर इंजरम कर दिया गया।इंजरम को स्थानीय दोगली भाषा में इंजेराम वतोड़ मतलब “अभी राम आए थे-” होता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान राम यहां वनवास काल में आए थे। शबरी नदी में स्नान के बाद यहां भगवान शिव की अराधना की और प्रतिमा स्थापित किया। उसके बाद वे दक्षिण की ओर बढ़े। यहां आज भी इस ग्राम में प्राचीन मूर्ति स्थापित है जो भगवान राम ,सीता,शिव ,नंदी,व सप्त ऋषि की है ये सभी प्रतिमाएं भूमि से निकली है। सुकमा जिले के रामाराम नामक स्थान के बाद राम का अगला पड़ाव मुलाकिसोली होते हुए इंजरम ही था। श्री राम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास नई दिल्ली ने राम वन गमन पथ में इसका उल्लेख किया है। गांव से लगभग 150 मीटर दूर शबरी नदी है ये गांव एन एच 30 पर स्थित है। यहां आज भी रामायण कालीन प्रतिमाएं स्थापित है। प्रभु राम का बस्तर से पौराणिक संबंध रहा है।बताते हैं कि वनवास के समय भगवान राम का ज्यादातर समय दंडकारण्य (बस्तर) के जंगलों में ही बीता था। वे उस समय जिन- जिन जगहों में गये थे उनसे जुड़ी किंवदंतियां – स्मृति को मूर्तियों और चित्रों के माध्यम से उकेरने का यहां प्रयास किया जा रहा है,ताकि नई पीढ़ी के लिए प्रभु राम से जुड़ी इस साक्ष्य को जीवंत रखा जा सके।इसी प्रकार से छत्तीसगढ़ के गरियाबंद के मैनपुरी विकासखंड के घने जंगल और कांदाडोंगर की पहाड़ी भी अलौकिक स्थान है। यहां माता सीता की खोज करते हुए प्रभु श्री राम,और भाई लक्ष्मण आए थे जिसका प्रमाण आज भी इस पहाड़ी पर स्थित है।यह धार्मिक आस्था का केंद्र रहा है।कांदा डोंगर की पहाड़ियों में ्ऋषि मुनियों की तपस्थली है जो जोशीमठ के नाम से प्रसिद्ध है। जैन श्रुति के अनुसार त्रेता युग में जब रावण ने माता सीता का हरण कर लिया था तब भगवान श्री राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ माता सीता की खोज में कांदाडोंगर की पहाड़ी पर पहुंचे थे, यहां गुफा में तपस्या रत ऋषि -मुनियों से भेंट कर माता सीता के संबंध में जानकारी लिया था भगवान श्री राम और लक्ष्मण ने इसी जंगल से कंदमूल फल खाए थे जिसके कारण इस पहाड़ी का नाम कांदाडोंगर पड़ गया। यह पूरा क्षेत्र आध्यात्मिक केंद्र के रूप में जाना जाता है। पौराणिक संदर्भों के अनुसार कांदाडोंगर की पहाड़ी शरभंग ऋषि की तपस्थली भी रही है। यहां आज भी यज्ञ की राख मौजूद है। भगवान राम इसी मार्ग से होते हुए भद्राचलम होते हुए लंका की ओर प्रस्थान किए थे। बताया जाता है कि जब प्रभु राम लंका पर विजय प्राप्त कर लिये थे तब कांदा डोंगर में विराजमान देवी मां कुलेश्वरी एवं मां खम्बेश्वरी और देवी देवताओं ने विजय पताका फहराते हुए विजयादशमी का पर्व मनाया था।
युगो युगो से गाए जाने वाली राम कथा एवं राम काव्य की समृद्ध परंपरा छत्तीसगढ़ राज्य में समाई हई है। दक्षिण कोसल कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ के सरगुजा अंचल में अनेक जगहों में प्राचीन मूर्ति धरोहरों एवं अमूर्त स्वरुप में रामकथा के विभिन्न प्रसंग इस धरती से जुड़ी हुई है। शोध पत्रों के अनुसार सरगुजा संभाग के 30 से अधिक स्थल प्रभु राम की दिव्य उपस्थिति प्रमाणित करते हैं। जिसमें बलरामपुर , जशपुर, सरगुजा , मनेंद्रगढ़ एमसीबी, कोरिया,आदि प्रमुख हैं। सूरजपुर जिले में लक्ष्मण पंजा, रक्सगंडा ,सारासोर, बिल द्वार गुफा यमदग्नि ऋषि आश्रम, तपोभूमि देवगढ़,सतमहला,धान जमाली,मंगलेरगढ, सीताचुंआ, रामचौरा पहाड़ी आदि उल्लेखनीय है।
जनश्रुति के अनुसार भगवान राम सरगुजा से घने जंगलों से होते हुए दंडकारण्य में प्रवेश किए थे। सरगुजा के रामगढ़ में चौमासा बिताने की कथा भी पौराणिक कथाओं में वर्णित की जाती है। सरगुजा के अधिकांश गांवों के नाम रामायण कालीन समय के हैं सरगुजा की विशेष आदिम जनजातियां के लोकगीतों में रामकथा का ही केंद्रीय भाव समाया हुआ है। छत्तीसगढ़ के अन्य स्थलों में भी भगवान राम की मौजूदगी के स्पष्ट प्रमाण हैं जिसमें कबीरधाम का पचराही , राजिम, सिहावा, मानपुर, चित्रकोट, भद्रकाली,आदि दिव्य एवं धार्मिक स्थल है। छत्तीसगढ़ के इन स्थलों में ,भी भगवान राम के प्रवास के ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं। इतिहासकारों के अनुसार भगवान राम छत्तीसगढ़ या कौशल प्रदेश की भूमि पर प्रवास करने वाले पहले पर्यटक माने जाते है। छत्तीसगढ़ में ऐसे पौराणिक एवं ऐतिहासिक संदर्भों से जुड़े बहुत से स्थल हैं जो छत्तीसगढ़ को भगवान राम के वनवास काल से जोड़ते हैं। बस्तर के राम-राम में तो भगवान राम द्वारा भूदेवी की पूजा किए जाने के साक्ष्य हैं। यहां 608 साल से मेला का भी आयोजन किया जा रहा है।
राज्य के पर्यटन विभाग के द्वारा वनगमन पथो को चिन्हित किया गया है। छत्तीसगढ़ के कुदरगढ़, चंद्रहासिनी, महामाया मंदिर, बम्लेश्वरी मंदिर, दंतेश्वरी मंदिर, भूतेश्वर महादेव, आदि धार्मिक एवं पर्यटन स्थलों का भी चरणबद्घ तरीके से विकास किया जा रहा है। राम के दिव्य उपस्थिति के कारण ही छत्तीसगढ़ में सद्भाव एवं समरसता का राममय वातावरण सदा विद्यमान रहता है। पूरे देश में केवल छत्तीसगढ़ में ही राम नामी समुदाय निवास करता है। राम नामी समुदाय के राम को सत्य स्वरूप में स्वीकार करते हैं।इस समुदाय के लोगो की यह मान्यता है कि सत्य स्वरूप रामनाम ही हमारे लिए साक्षात ईश्वर है।
यह परंपरा 200. सालों से जारी है। करीब 2260 किमी लंबे वनगमन पथ के विकास के लिए शासन के द्वारा करोड़ों रुपए व्यय प्रस्तावित है।जिला मुख्यालय से 18 किमी दूर रामपाल गांव में एक शिवालय है ,इस मंदिर को लेकर यह किंवदंती है कि जब भगवान वनवास काल के दौरान यहां पहुंचे तो उन्होंने शिवलिंग की स्थापना कर इसकी पूजा -अर्चना की थी। इस मंदिर को बस्तर का रामेश्वर भी कहा जाता है। उत्तर से दक्षिण भारत में प्रवेश से पहले उन्होंने बस्तर के रामपाल में भी शिव की अराधना की। दक्षिण प्रवेश से पहले प्रभु राम ने रामपाल के बाद सुकमा जिले के रामाराम के चिटपिट्टीन माता मंदिर में भी अराधना किया था। रामपाल का शिवलिंग रामायण कालीन होने की पुष्टि शोध संस्थानो ने भी की है। ग्रामीण जनों का कहना है कि इस मंदिर से भगवान राम का सीधा संबंध है क्योंकि मंदिर का शिवलिंग 30 फीट ऊंचा है बाहर 5 फीट का हिस्सा दिखता है ,बाकी धरती में समाया हुआ है।ऐसा शिवलिंग रामायण कालीन ही हो सकता है।इस मंदिर को पूर्ववर्ती सरकार ने रामपथ वनगमन प्रोजेक्ट में शामिल किया था।इस प्रोजेक्ट में ऐसे 75 स्थान हैं जहां से भगवान राम का संबंध है।
रामचरित मानस के अनुसार बहृमऋषि वशिष्ठ के निर्देश पर अयोध्या के राजा दशरथ ,पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने दंडकारण्य स्थित महेंद्रगिरी पर्वत पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। यही ं महेन्द्रगिरी पर्वत है।इस पर्वत में श्रृंगी ऋषि का आश्रम और उनकी पत्नी शांता का भी मंदिर है। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में भगवान हनुमान का भी अनोखा मंदिर है। यहां सीता राम नाम से बैंक का भी संचालन होता है इस बैंक में सिर्फ सीता राम लिखी हुई पर्ची जमा होती है ।यहां हर सप्ताह लगभग डेढ़ लाख पर्ची जमा होती है जिसे अयोध्या भेज दिया जाता है। छत्तीसगढ़ में ही देश का एकमात्र माता कौशल्या का प्राचीन मंदिर भी है।जो चंद्रवंशीय राजाओं के नाम से प्रेरित चंदखुरी में स्थित है। इसी स्थल के कारण छत्तीसगढ़ को प्रभु श्री राम का ननिहाल भी कहा जाता है।
छत्तीसगढ़ प्राकृतिक सुंदरता , प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण समृद्ध राज्य है। यहां के लोगों में प्रभु राम तो रग- रग और धड़कन में बसे हैं। प्रभु राम के वनवास काल से जुड़ी पौराणिक एवं रामायण कालीन साक्ष्य जितना छत्तीसगढ़ में विद्यमान है उतनी और किसी राज्यों में नहीं है। श्री राम के दिव्य दर्शन एवं, दंडकारण्य सहित समूचे राज्य में उनकी अलौकिक आभा यहां कण–कण में विराजमान है।