विनोद तकिया वाला
विश्व की सबसे बडे़ प्रजातंत्र भारत।भारत की राजधानी दिल्ली,जी हाँ वही दिल्ली । जिसकी पहचान दिलवालों की शहर दिल्ली के नाम से जाता है। इन दिनों सबकी नजर इसी शहर पर टिकी हुई है।खास राजनीतिक में रुचि रखने वाले की ! क्योंकि दिल्ली में कई राजनीति गतिविधि एक साथ हो रही है।पहला देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद राष्ट्रपति का चुनाव होने वाला है ‘ उप राष्ट्रपति की चुनाव की प्रकिया चालु हो रही है।वही 18 अगस्त 22 से संसद का मानसून सत्र प्रारम्भ हो रहा है।संसद का मानसून सत्र सोमवार 18 जुलाई से शुरू होने जा रहा है. जिसमें 24 नए बिल पेश किये जायेगा।
मोदी सरकार इस मानसून सत्र में कई नए बिल लेकर आ रही है। साथ ही कोशिश होगी कि इसी सत्र में सभी को पास कराया जाए. इन बिलों में सहकारिता क्षेत्र में सुधार और डिजिटल मीडिया से जुड़ेअहम बिल भी शामिल हैं ।हालांकि कुछ बिल ऐसे हैं भी हैं,जिन पर संसद में बवाल हो सकता है।
इन बिलों पर हो सकता है हंगामा
दे मल्टी स्टेट कापरेटिव सोसाईटी बिल 2022 एक बेहद अहम बिल माना जा रहा है ।सहकारिता मंत्रालय की अतिरिक्त कमान संभालने के बाद से ही अमित शाह ने इस पर काम करना शुरू कर दिया था. बिल का मुख्य उद्देश्य एक से अधिक राज्यों में काम कर रहे क़रीब 1500 कोऑपरेटिव संस्थाओं के कामकाज में पारदर्शिता लाना और उन्हें सशक्त बनाने के लिए साधन जुटाने की शक्ति देना है.
प्रेस एण्ड रजिस्ट्रेशन ऑफ प्रेडिक्लस बिल 2022 भी बेहद अहम है,क्योंकि पहली बार इस बिल के ज़रिए डिजिटल मीडिया को भी मीडिया के एक अंग के रूप में शामिल करने का प्रावधान किया गया है।नया बिल 1867 के पुराने क़ानून की जगह नया कानून बनाने के लिए लाया गया है। इस नये बिल में डिजिटल मीडिया के भी रजिस्ट्रेशन का प्रावधान किया गया है Iसंसद के इस मानसून सत्र में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस भी तमाम मुद्दों पर सरकार को घेरने की तैयारी कर चुकी है।कांग्रेस ने कहा है कि वो संसद के आगामी मानसून सत्र के दौरान महंगाई,बेरोजगारी,सेना में भर्ती की नई ‘अग्निपथ’ योजना, जांच एजेंसियों के कथित दुरुपयोग और जनहित के कई अन्य मुद्दे दोनों सदनों में उठाएगी. पार्टी के संसद मामलों के रणनीतिक समूह की बैठक में यह फैसला लिया गया था।इस बैठक की अध्यक्षता कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने की थी।आप को बता दें कि संसद का मानसून सत्र 18 जुलाई को शुरू होकर 12 अगस्त तक चलेगा. इसमें कुल 26 दिनों की अवधि में 18 बैठकें होंगी।राजनीति के जानकार की नजर में संसद का यह सत्र खास रहने वाला है,क्योंकि 18 जुलाई को राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए मतदान भी होना है वही दूसरी ओर उपराष्ट्रपति का चुनाव 6 अगस्त को होगा।उपराष्ट्रपति पद के लिए अगर निर्विरोध निर्वाचन नहीं हुआ तो उसी दिन मतों की गणना भी होगी ।
सरकार के द्वारा लिये गये फैसले पर कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दलों ने संसद परिसर में धरना, हड़ताल और धार्मिक समारोहों की मनाही से जुड़े एक बुलेटिन पर कड़ी आपत्ति जताई है और इसे तुगलकी फरमान करार दिया है।इसके बाद लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा है कि इसमें कुछ भी नया नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘ये पहले से चली आ रही प्रक्रिया है. मेरी प्रार्थना है कि बिना तथ्यों के जानकारी के आरोप प्रत्यारोप से बचना चाहिए. सभी राजनीतिक दलों से आग्रह है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं पर बिना तथ्यों के आरोप प्रत्यारोप नहीं करना चाहिए.”।
संसद भवन परिसर का इस्तेमाल धरना, प्रदर्शन, हड़ताल, अनशन या धार्मिक समारोहों के लिये नहीं किया जा सकता. धरना, प्रदर्शन को लेकर यह बुलेटिन ऐसे समय में सामने आया है जब एक दिन पहले ही लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी असंसदीय शब्दों के संकलन को लेकर कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने सरकार पर निशाना साधा था।
कांग्रेस महासचिव और राज्यसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक जयराम रमेश ने राज्यसभा के इस बुलेटिन को लेकर सरकार पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया,‘विषगुरू का ताजा प्रहार…धरना मना है . ’’ उन्होंने इसके साथ 14 जुलाई का बुलेटिन भी साझा किया .
राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता और राज्यसभा सदस्य मनोज झा ने आरोप लगाया,‘‘असंसदीय शब्दों की नई सूची के माध्यम से संसदीय विमर्श पर बुलडोज़र चलाने के पश्चात अब नया तुगलकी फरमान आया कि आप संसद परिसर में किसी प्रकार का धरना, प्रदर्शन या अनशन आदि नहीं कर सकते.’’उन्होंने यह भी कहा,‘‘आज़ादी के 75वें वर्ष में यह हो क्या रहा है ? पड़ोस के श्रीलंका से सीखिए हुजूर…जय हिंद.’’शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने इस बुलेटिन को लेकर सरकार पर तंज कसते हुए ट्वीट किया, ‘‘ क्या अब वे संसद में पूछे जाने वाले प्रश्नों को लेकर भी ऐसा करेंगे? आशा करती हूं कि यह पूछना असंसदीय प्रश्न नहीं है.’
मानसून सत्र से पहले राज्यसभा के महासचिव पी सी मोदी द्वारा जारी बुलेटिन में कहा गया है कि, ‘‘ सदस्य संसद भवन परिसर का इस्तेमाल धरना, प्रदर्शन,हड़ताल, अनशन या धार्मिक समारोहों के लिये नहीं कर सकते ’’।एक दिन पहले ही संसद में चर्चा आदि के दौरान सदस्यों द्वारा बोले जाने वाले कुछ शब्दों को असंसदीय शब्दों की श्रेणी में रखे जाने के मुद्दे पर विपक्षी दलों ने सरकार को घेरते हुए कहा था कि सरकार की सच्चाई दिखाने के लिए विपक्ष द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सभी शब्द अब ‘असंसदीय’ माने जाएंगे हालांकि,लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने स्पष्ट किया कि संसदीय कार्यवाही के दौरान किसी शब्द के प्रयोग को प्रतिबंधित नहीं किया गया है बल्कि उन्हें संदर्भ के आधार पर कार्यवाही से हटाया जाता है तथा सभी सदस्य सदन की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र है ।
फिलहाल आपसे यह कहते हुए विदा लेते है कि ‘ ना ही काहूँ से दोस्ती , ना ही काहूँ से बैर । खबरी लाल तो माँगे, सबकी खैर