सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एवं राष्ट्रीय एकता का पर्व दशहरा

योगेश कुमार गोयल

दशहरा समस्त भारत में भगवान श्रीराम द्वारा लंकापति रावण के वध के रूप में अर्थात् बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में तथा आदि शक्ति दुर्गा द्वारा महाबलशाली राक्षसों महिषासुर व चण्ड-मुण्ड का वध किए जाने के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय पाने के लिए इसी दिन प्रस्थान किया था। इतिहास में कई ऐसे उदाहरण हैं, जिनसे पता चलता है कि हिन्दू राजा अक्सर इसी दिन विजय के लिए प्रस्थान किया करते थे। इसी कारण इस पर्व को विजय के लिए प्रस्थान का दिन भी कहा जाता है और इसे क्षत्रियों का त्यौहार भी माना गया है। इस दिन अपराजिता देवी की पूजा भी होती है। मान्यता है कि सर्वप्रथम श्रीराम ने समुद्र तट पर शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ किया था और तत्पश्चात् दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान करते हुए विजय प्राप्त की थी। तभी से दशहरे को असत्य पर सत्य तथा अधर्म पर धर्म की जीत के पर्व के रूप में मनाया जा रहा है।

दशहरे को रावण पर राम की विजय अर्थात् आसुरी शक्तियों पर सात्विक शक्तियों की विजय तथा अन्याय पर न्याय की, बुराई पर अच्छाई की, असत्य पर सत्य की, दानवता पर मानवता की, अधर्म पर धर्म की, पाप पर पुण्य की और घृणा पर प्रेम की जीत के रूप में मनाया जाता है। दशहरे का धार्मिक के साथ सांस्कृतिक महत्व भी कम नहीं है। यह पर्व देश की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एवं राष्ट्रीय एकता का पर्व है, जो राष्ट्रीय एकता, भाईचारे और सत्यमेव जयते का मंत्र देता है। पश्चिम बंगाल तथा मध्य भारत के अलावा यह त्यौहार अन्य राज्यों में भी क्षेत्रीय विषमता के बावजूद पूर्ण उमंग, उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। देशभर में जगह-जगह पर दशहरे के दिन रावण, कुम्भकर्ण, मेघनाद के पुतलों का दहन किया जाता है, जिसका उद्देश्य एक ही है कि हम अपने जीवन में मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम के महान् आदर्शों को आत्मसात करते हुए अपनी सभी दसों इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर जितेन्द्रिय बनने का प्रयास करें। सही अर्थों में यह पर्व अपने भीतर छिपे दुर्गुणों रूपी रावण को मारकर तमाम अवगुणों पर विजय प्राप्त करने का शुभकाल है।

दशहरे के उत्सव का संबंध नवरात्रों से भी जोड़कर देखा जाता रहा है। शक्ति की उपायना का यह पर्व सनातन काल से ही शारदीय नवरात्र प्रतिपदा से शुरू होकर नवमी तक नौ तिथि, नौ नक्षत्र और नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ मनाया जाता है। माना जाता है कि नवरात्रों में देवी की शक्ति से दसों दिशाएं प्रभावित होती हैं और देवी दुर्गा की कृपा से ही दसों दिशाओं पर विजय प्राप्त होती है, इसलिए भी नवरात्रों के बाद आने वाली दशमी को ‘विजयादशमी’ कहा जाता है। दशहरा को आसुरी शक्तियों पर नारी शक्ति की विजय का त्यौहार माना जाता है। आदि शक्ति दुर्गा को ‘शक्ति’ का रूप मानकर शारीरिक एवं मानसिक शक्ति प्राप्त करने के लिए नौ दिनों तक देवी के नौ अलग-अलग रूपों की व्रत, अनुष्ठान करके पूजा की जाती है। जगह-जगह मां दुर्गा की विशाल प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं और माता के जागरण भी किए जाते हैं। माना जाता है कि दुर्गा पूजा से सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य, धन-सम्पदा, आरोग्य, संतान सुख एवं आत्मिक शांति की प्राप्ति होती है। अंतिम नवरात्र पर कुंवारी कन्याओं को भोजन कराकर नवरात्रों का समापन किया जाता है। नवरात्रों के नौ दिनों में हम देवी के नौ रूपों की पूजा करते हैं लेकिन ऐसा करते हुए हमें यह भी समझना चाहिए कि हमारे समाज में सभी नारियां दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती या काली का ही रूप हैं, इसलिए इन पर्वों की सार्थकता सही मायनों में तभी सिद्ध हो सकती है, जब हम अपने समाज में देवी स्वरूपा नारी को उचित मान-सम्मान दें, उसे गर्भ में ही मौत की नींद सुलाने से बचाएं, शिक्षित करके उन्हें उनका हक दिलाएं, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाएं और सम्मानित जीवन जीने का अधिकार प्रदान करें।

शारदीय नवरात्रों का अहम अंग बनकर प्रतिवर्ष दुर्गोत्सव को पूर्णता प्रदान करता बुराई पर अच्छाई तथा असत्य पर सत्य की जीत को परिभाषित करता यह पावन पर्व हमें मानवीय मूल्यों के संरक्षण में सर्वत्र विजयी होने का संदेश देता है। मान्यता है कि आदि शक्ति दुर्गा ने दशहरे के ही दिन महाबलशाली असुर सम्राट महिषासुर का वध किया था। जब महिषासुर के अत्याचारों से भूलोक और देवलोक त्राहि-त्राहि कर उठे थे, तब आदि शक्ति मां दुर्गा ने 9 दिनों तक महिषासुर के साथ बहुत भयंकर युद्ध किया था और दसवें दिन उसका वध करते हुए उस पर विजय हासिल की थी। दशहरे और शक्ति पूजा के आपसी संबंध के बारे में कहा जाता है कि जिन दिनों में राम ने शक्ति की उपासना की थी, उसी समय रावण और मेघनाद ने भी शक्ति उपासना की थी। आदि शक्ति ने दोनों पक्षों की पूजा-उपासना से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिए लेकिन विजय राम की ही हुई क्योंकि उनके साथ धर्म, मानवता, सत्य, निष्ठा, पुण्य इत्यादि गुण थे जबकि रावण भले ही बहुत बड़ा विद्वान था लेकिन उस समय उसके पास घमंड, वासना, क्रोध इत्यादि तमाम बुराईयां ही बुराईयां थी। दशहरे के दिन रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद के काम, क्रोध, मद, लोभ व वासना रूपी पुतलों का दहन कर लोग अपने आगामी वर्ष की सफलता की कामना करते हैं। वास्तव में इस पर्व की सार्थकता तभी सुनिश्चित हो सकती है, जब हम इस अवसर पर आत्मचिंतन करते हुए अपने भीतर की बुराईयों रूपी रावण पर ध्यान केन्द्रित करते हुए उनका विनाश करने का प्रयास करें।
(लेखक 32 वर्षों से पत्रकारिता में निरन्तर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं)