ओम प्रकाश उनियाल
विश्व में हर पल कहीं न कहीं कोई न कोई आपदा घटती ही रहती है। आपदाएं कई प्रकार की होती हैं। कुछ आपदाएं मानवजनित होती हैं तो कुछ प्राकृतिक। मानवजनित आपदाएं मनुष्य की छोटी-सी भूल-चूक व लापरवाही के कारण घटित होती हैं। वहीं प्राकृतिक आपदाएं अधिकतर मौसमानुकूल। जैसे, बरसात के मौसम में बाढ़ (जल-प्रलय), भू-कटाव, गर्मियों में सूखा, तेज धूलभरी आंधी, सर्दियों में अधिक बर्फबारी, हिमखंड स्खलन आदि। प्रकृति कब रुष्ट हो जाए कुछ पता नहीं चलता। लेकिन एक आपदा ऐसी है जो जहां भी आती है वहां की धरती को थर्रा कर ही छोड़ती है। इस आपदा को ‘भूकंप’ कहा जाता है। इसके बारे में कुछ पता नहीं चलता किस समय अपना जलवा दिखा दे। ना तो इसका समय तय है और ना ही तिथि। फर्क इतना है कि भूकंप की तीव्रता केवल रिएक्टर स्केल पर मापी जाती है। पृथ्वी की सतह में जब भी बदलाव होता है टेक्टोनिक प्लेट आपस में टकराती हैं। यदि उनके टकराने की गति हल्की होगी तो भूकंप का झटका भी हल्का ही होगा। तेज गति होगी तो धरती का कंपन भी तेज होगा। और बर्बादी भी अधिक। जमीन के भीतर तरह-तरह की ऊर्जा का भंडार है। विश्व के जापान, इंडोनेशिया देश ऐसे हैं जहां सबसे अधिक भूकंप आते हैं। अन्य भी कुछ देश भूकंप से होने वाली विनाशलीला को झेल चुके हैं। भारत में भूकंप को पांच जोन में बांटा गया है। जोन-एक सबसे कम खतरे वाला जोन है। जोन-दो कम तीव्रता वाला 6 रिएक्टर या इससे कम। जोन-तीन सामान्य तीव्रता वाला 7 रिएक्टर के झटके आते ही रहते हैं। जोन-चार अधिक तीव्रता वाला जोन होने के कारण रुक-रुककर लगातार भूकंप के झटके आते हैं। जोन-पांच सबसे अधिक खतरनाक जोन माना जाता है। भारत का हिमालयी क्षेत्र उत्तराखंड, गुजरात का कच्छ क्षेत्र एवं पूर्वोत्तर भारत के कुछ क्षेत्र काफी संवेदनशील हैं। भारत की राजधानी और एनसीआर क्षेत्र में भी समय-समय पर भूकंप के झटके आते ही रहते हैं। दिल्ली-एनसीआर हिमालय की तलहटी में बसा हुआ है। यदि कभी आठ या नौ रिएक्टर का भूकंप आया तो यहां सबसे ज्यादा खतरा उन हाईराइजिंग टावर को होगा जिनके निर्माण में घटिया सामग्री का उपयोग हुआ है या जो प्राधिकरण के मानकों पर खरे नहीं उतरे हुए हैं। विगत 6 फरवरी को तुर्किए एवं आस-पास आए भूंकप ने दिल्ली-एनसीआर में रह रहे लोगों की चिंता बढ़ा दी है।