धरातल पर नहीं उतर पा रही पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना

अजेश कुमार

वैसे तो राजनीतिक पार्टियां जनता के हितों की बात करती हैं, लेकिन अपने राजनीतिक हितों के आगे राजनीतिक पार्टियां जनता के हितों की तिलांजलि देने में बिल्‍कुल भी देर नहीं करती हैं। चाहे किसी परियोजना को धरातल पर उतारने की बात ही क्‍यों न हो। राजनीतिक पार्टियों के पास उस परियोजना को धरातल पर नहीं उतार पाने को लेकर तमाम तरह के तर्क होते हैं, जिससे जनता सही बात को समझ ही नहीं पाती है, बल्कि वह इस बात को लेकर संशय में रहती है कि आखिर परियोजना के
ईआरसीपी) जैसी महत्‍वपूर्ण परियोजना को लेकर भी ऐसा ही हो रहा है। इस परियोजना को धरातल पर लागू करने को लेकर राजस्‍थान की कांग्रेस सरकार की उदासीनता चरम पर है। यही वजह है कि कई वर्षों से यह परियोजना परवान नहीं चढ़ पा रही है, जिसकी वजह से पूर्वी राजस्‍थान के लोगों की पेयजल और सिंचाई के लिए पानी की आवश्‍यकता कब पूर्ण हो पाएगी, इस संबंध में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। इस मुद्दे पर राजस्‍थान की अशोक गहलोत सरकार केन्‍द्र और मध्‍यप्रदेश सरकार से सहमति बनाने के बजाय केवल अपने राजनीतिक हित साधने की मंशा से काम कर रही है और परियोजना के धरातल पर नहीं उतर पाने के लिए केन्‍द्र को जिम्‍मेदार ठहरा रही है, लेकिन उनका यह तर्क किसी भी रूप में उचित नहीं लगता है, क्‍योंकि अशोक गहलोत सरकार केन्‍द्रीय जल आयोग के मानकों की अनदेखी कर इस परियोजना को अटकाने के सबसे अधिक जिम्‍मेदार हैं। वह इसीलिए, क्‍योंकि अशोक गहलोत सरकार ईआरसीपी को राष्‍ट्रीय परियोजना का दर्जा तो दिलाना चाहती है, लेकिन वह राष्‍ट्रीय परियोजना के लिए केन्‍द्रीय जल आयोग द्वारा तय मानकों को पूरा करने में कोई भी दिलचस्‍पी नहीं ले रही है, जिससे यह परियोजना धरातल पर नहीं उतर पा रही है। ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने के लिए इसके डीपीआर को केंद्रीय जल आयोग के तय दिशा-निर्देशों के तहत मंजूरी मिलना अति-आवश्‍यक है। इन दिशा-निर्देशों की अनदेखी करके इसे राष्‍ट्रीय परियोजना घोषित नहीं किया जा सकता है। राजस्‍थान सरकार खुद तो इन मानकों को अनदेखा करने पर अड़ी हुई है और आरोप केन्‍द्र पर मढ़ रही है कि केन्‍द्र ईआरसीपी को राष्‍ट्रीय परियोजना का दर्जा नहीं दे रही है, जबकि राजस्‍थान सरकार को 75 फीसद निर्भरता के साथ डीपीआर में संशोधन करना चाहिए, जिसे उसके द्वारा अभी तक नहीं किया गया है। वहीं, राजस्‍थान सरकार ने वर्ष 2018 से अब तक मध्य प्रदेश से एनओसी भी हासिल नहीं की है। इसीलिए इस परियोजना को धरातल पर उतारने को लेकर राजस्‍थान की अशोक गहलोत सरकार की मंशा पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं।

दरअसल, यह परियोजना बेहद महत्‍वपूर्ण है। इस परियोजना के धरातल पर उतरने से पूर्वी राजस्‍थान के सभी 13 जिलों के लोगों की पेयजल और सिंचाई की समस्‍या खत्‍म हो जाती। 2016 में बसुंधरा राजे के नेतृत्‍व वाली राजस्‍थान सरकार पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों को पीने का पानी मुहैया कराने के साथ ही नए कमांड एरिया के करीब दो लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई और लगभग 80,000 हेक्टेयर के स्थिरीकरण की परिकल्पना के साथ इस परियोजना को लाई थी। इसके अगले ही वर्ष यानि 2017 में इसका डीपीआर तैयार हो गया था और 2018 में इसे केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) को मंजूरी के लिए भेजा गया। करीब 40,000 करोड़ रुपये की इस परियोजना को राजस्थान ने इसकी डीपीआर 50 फीसद निर्भरता के साथ तैयार किया, जबकि अंतरराज्यीय नदियों से जुड़ी किसी भी परियोजना के लिए तय दिशा-निर्देशों के मुताबिक इसे 75 फीसद निर्भरता के साथ योजनाबद्ध होना चाहिए। सीडब्ल्यूसी ने राजस्थान को दो कंडीशन दी थी कि या तो मध्य प्रदेश से अनापत्ति प्रमाण-पत्र (एनओसी) हासिल करे या 75 फीसद निर्भरता मानदंड के साथ परियोजना के डीपीआर को संशोधित करे, लेकिन राजस्‍थान सरकार इन दोनों में से किसी भी शर्त को मानने को तैयार नहीं है।

वर्ष 2019 में गजेन्‍द्र सिंह शेखावत के केन्‍द्रीय जल शक्ति मंत्री बनने के बाद ईआरसीपी को धरातल पर उतारने के प्रयासों को तेज कर दिया गया था। श्री शेखावत की पहल पर केन्‍द्रीय जल आयोग (सीडब्‍ल्‍यूसी) और जल शक्ति मंत्रालय के अधिकारियों ने ईआरसीपी पर राजस्‍थान और मध्‍यप्रदेश के बीच सहमति के लिए करीब 10 बैठकें आयोजित कीं। स्‍वयं केन्‍द्रीय मंत्री श्री शेखावत ने मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ दो-दो बैठकें कीं। उन्‍होंने जयपुर में भी 08 अप्रैल, 2022 को इस मुद्दे पर एक बैठक बुलाईं और राजस्‍थान के मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत को भी आमंत्रित किया, लेकिन गहलोत के लिए प्रदेश के 13 जिलों के लोगों की प्‍यास बुझाने और सूबे के किसानों की खुशहाली से ज्‍यादा राजनीति ज्‍यादा अहम हो गई। यही वजह रही कि न तो वे स्‍वयं इस बैठक में उपस्थित हुए और न ही उन्‍होंने अपने मंत्री और मुख्‍य सचिव को ही इस बैठक में शामिल होने दिया। इस साफ जाहिर होता है कि मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत केन्‍द्र के प्रयासों पर रोड़े अटकाने में लगे रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि ईआरसीपी के नाम पर सियासत करने वाले गहलोत मध्‍यप्रदेश में अपने कांग्रेसी मुख्‍यमंत्री कमलनाथ तक की सहमति नहीं ले पाए। वर्ष 2020 में कमलनाथ जब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, उस समय राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के परियोजना को एनओसी देने के अनुरोध को उन्होंने अस्वीकार कर दिया था। इससे ऐसा लगता है कि स्‍वयं कांग्रेस ही इस परियोजना को धरातल नहीं उतारना चाहती है। अगर, ऐसा होता तो निश्चित ही उस समय मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री रहे कमलनाथ राजस्‍थान के मुख्‍यमंत्री को धरातल पर उतारने को लेकर किए गए एनओसी के अनुरोध को स्‍वीकार कर लेते।

अपनी कमी को छुपाने के लिए मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत यह कहते रहे कि प्रधानमंत्री ने राजस्‍थान की अपनी सभाओं में ईआरसीपी को राष्‍ट्रीय परियोजना का दर्जा देने की बात कही थी। मुख्‍यमंत्री की यह बात इसीलिए तर्कसंगत नहीं है, क्‍योंकि अंतरराज्‍यीय परियोजनाओं को राष्‍ट्रीय दर्जा देने के लिए यह जरूरी है कि संबंधित राज्‍यों की इसमें सहमति हो और उनका निर्माण 75 प्रतिशत निर्भरता पर हो। इसी कारण मध्‍य प्रदेश सरकार ने इस परियोजना पर कभी भी अपनी सहमति नहीं जताई। निर्भरता बढ़ाने और मध्‍यप्रदेश की सहमति लेने के बजाय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनी राजनीति साधने के लिए एक नया शिगूफा छोड़ा। उन्‍होंने ईआरसीपी के ही एक हिस्से को नया नाम देते हुए नवनेरा-बीसलपुर लिंक परियोजना की घोषणा कर दी। इस परियोजना के लिए राजस्थान सरकार ने मध्य प्रदेश की सहमति भी नहीं ली। इस कारण मध्य प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई। अभी तक यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है। इधर, गहलोत सरकार बकायदा एक कॉरपोरेशन बनाकर इस परियोजना के नाम पर प्रदेश की बेशकीमती जमीन बेचकर मोटी कमाई की साजिश में जुटी हुई है। साथ ही, इस लिंक परियोजना की लागत राशि 15,000 करोड़ रुपये है, जो काफी ज्यादा है। ईआरसीपी में जहां प्रदेश के 13 जिलों को पेयजल उपलब्ध कराने की योजना है, वहीं इतनी बड़ी रकम खर्च कर इस परियोजना से महज तीन जिलों को ही पीने का पानी उपलब्ध हो पाएगा। साथ ही, इस परियोजना में सिंचाई के लिए जल के प्रावधान की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में, ईआरसीपी से इस लिंक परियोजना की तुलना करें तो साफ होता है कि राजस्थान के लोगों के लिए इस परियोजना की कोई प्रासंगिकता नहीं है और इससे उन्हें ज्यादा लाभ भी नहीं मिल सकेगा।

राजस्‍थान सरकार के ईआरसीपी परियोजना को धरातल पर अड़गा लगाए जाने के बाद केन्‍द्रीय जलशक्ति मंत्रालय ने इस मुद्दे का एक बेहतरीन समाधान निकाला। मंत्रालय ने एकीकृत ईआरसीपी और पीकेसी परियोजना का विकल्‍प सामने रखा। इस परियोजना को नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी (एनडब्ल्यूडीए) के साथ जोड़ा गया और आईएलआर (नदियों को जोड़ने) परियोजना भी घोषित किया गया। एकीकृत ईआरसीपी और पीकेसी परियोजना से राजस्थान के 13 जिलों की पेयजल मांग पूरी होगी, साथ ही दो लाख हेक्टेयर के नए कमांड क्षेत्र का भी निर्माण होगा। 9 जिलों में लगभग 80,000 हेक्टेयर का स्थिरीकरण भी होगा और मध्य प्रदेश अपने जलग्रहण क्षेत्र से लगभग 1300 एमसीएम जल का उपयोग भी कर सकेगा। इस परियोजना की सबसे खास बात यह है कि राजस्थान के लोगों को ईआरसीपी के तहत मिलने वाले सभी लाभ इसमें शामिल किए गए हैं।