दिल्ली की भाजपा सरकार का चुनावी जश्न

Election celebration of Delhi's BJP government

मनोज कुमार मिश्र

दिल्ली में 27 साल के लंबे इंतजार के बाद इस 20 फरवरी को भाजपा की सरकार बनी। 31 मई, 2025 को दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में सरकार के सौ दिन पूरे होने का जश्न मनाया गया। इतना ही नहीं कहा गया कि भाजपा कार्यकर्ता सरकार का उपलब्धियों को घर-घर ले जाएंगे। उस आयोजन में सरकार ने अपना वर्कबुक जारी किया गया। दावा किया गया कि रेखा गुप्ता के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने दिल्ली के सुनहरे भविष्य की नींव रखी है। विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल की नेता और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री का आऱोप है कि भाजपा सरकार ने अपना एक भी चुनावी वायदा नहीं पूरा किया। महिलाओं को पेंशन देने से लेकर सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को बेहतर करना अभी तक पूरा नहीं हुआ। सौ दिन में ही दिल्ली सरकार पटरी से उतर गई। विपक्ष के आऱोप भले ही राजनीतिक हों लेकिन वास्तव में इस सरकार ने 25 मार्च को एक लाख करोड़ का बजट ला कर जो वातावरण बनाया था, वह धरातल पर अभी उतरता नहीं दिख रहा है। केन्द्र में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार है ही, दिल्ली में भाजपा सरकार बनते ही दिल्ली नगर निगम में भी भाजपा का मेयर बन गया। अब तो निगम के 15 निगम पार्षद आम आदमी पार्टी(आप) से अलग होकर अलग गल ही बना लिए। इक्का-दुक्का पार्षद तो साल भर से ही आप से अलग होकर भाजपा के साथ आते रहे हैं। कायदे में तो काफी दिन से ही भाजपा निगम में भी बहुमत में आ गई थी। यानि दिल्ली में हर स्तर पर शासन में भाजपा के होने के बावजूद सरकार की पहचान दिल्ली में न दिखाई देना लोगों को अखरने लगा है। जिस आप पर भाजपा हर समय चुनावी मोड में होने का आऱोप लगाती रही है, वही आरोप आप और हाशिए पर चली गई कांग्रेस लगा रही है।

मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता मंत्रिमंडल के सदस्यों के साथ 30 मई को और सार्वजनिक समारोह में 31 मई को दावे किए गए, वे चुनावी सभाओं जैसे ही लगते थे। दिल्ली सरकार की पहली मंत्रिमंडल की बैठक में दिल्ली में भी आयुष्मान योजना लागू करने का फैसला लिया गया। बताया गया कि अब तक तीन लाख दस हजार पात्र लोगों का इस योजना में पंजीकरण कर दिया गया है।

महिलाओं को पेंशन देना यानि महिला समृधि योजना के लिए 5100 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं, पात्र लोगों को चिह्नित करने का काम शुरू हो गया है। सड़कों के मरम्मत के लिए बजट आवंटित कर दिए गए हैं। मानसून से पहले 250 किलो मीटर सड़क के मरम्मत का काम पूरा हो जाएगा। भले ही भाजपा चुनाव में आप को हराने में कामयाब हो गई लेकिन उसके कुछ काम के अभी भी भारी संख्या में समर्थक मिल जाएंगे। आप सरकार ने दिल्ली की मूल ढांचे की बेहतरी के लिए भले ही ठोस काम नहीं किए लेकिन प्राइवेट स्कूलों के फीस पर नियंत्रण रखा। आप सरकार जाते ही प्राइवेट स्कूलों ने बेहिसाब फीस बढ़ा दिए। लोग सड़कों पर आ गए। सरकार को मजबूरन कठोर कदम उठाने पड़े। सरकार फीस रेगुलेटरी बिल लेकर आई। तब जाकर माहौल बदला। कुछ काम निश्चित रूप से दिल्ली की ठोस बुनियाद के लिए शुरू हुए। सीएम श्री योजना के तहत 70 विश्वस्तरीय स्कूल खोला जाएगा और आप सरकार के 500 मोहल्ला क्लीनिक के बदले 1100 से ज्यादा आयुष्मान आरोग्य मंदिर बनाए जाएंगे।

लेकिन इस सरकार के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है। सबसे बड़ी चुनौती तो दिल्ली में बड़ी लकीर खींचने की है। अभी भी 15 साल के शासन में जो उपलब्धि कांग्रेस शासन में शीला दीक्षित हासिल कर ली, वह किसी और नेता के लिए चुनौती है। इतना ही नहीं दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने वाला नेता जब भी मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटा, उसकी राजनीतिक हैसियत बड़ी ही बनी। पहली बार विधायक बनकर मुख्यमंत्री बनी रेखा गुप्ता के लिए यह चुनौती काफी बड़ी है। उनकी टीम में उनसे वरिष्ठ नेता को हैं ही, ऐसे अनेक नेता हैं जिनको हर मामले में उसे ज्यादा अनुभव है। भ्रष्टाचार के आरोप में जेल रहने वाले अरविंद केजरीवाल इसके अपवाद हैं। बावजूद इसके वे और उनकी पार्टी अगर अभी की तरह दिल्ली की राजनीति में डटी रही को आने वाले दिनों में उनको हाशिए पर लाना संभव न होगा। भाजपा दिल्ली में विधानसभा बनने के बाद हुए पहले चुनाव यानि 1993 में सत्ता में आई थी। आपसी विवाद आदि के चलते पांच साल में भाजपा को तीन मुख्यमंत्री बदलना पड़ा। 1998 में दिल्ली की सत्ता से बेदखल होने के बाद इस बार वह सत्ता में लौट पाई है। इस बार भाजपा बिना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किए चुनाव लड़ी और 70 सदस्यों वाली विधानसभा में 45.86 फीसद वोट और 48 सीटों के साथ सत्ता में वापसी की। दल साल से दिल्ली में सत्ता में बैठी आम आदमी पार्टी(आप) का वैसे तो वोट औसत काफी(करीब दस फीसद) घटा लेकिन भाजपा के मुकाबले दो फीसद कम यानि 43.57 फीसद पर रह गई। उसकी सीटें केवल 22 रह गई।

केजरीवाल समेत आप के कई नेता बार-बार कह चुके हैं कि वे सत्ता की राजनीति करने के लिए बने हैं।2014 में वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ लोक सभा चुनाव लड़ने बनारस पहुंच गए। वे खुद बूरी तरह से हारे और उनकी पार्टी देश भर में हारी। परेशान होकर वे जमानत तुड़वाकर तिहाड़ जेल चले गए थे। माना जाता है कि अगर तब भाजपा कांग्रेस के आठ में से छह विधायकों के साथ मिलकर सरकार बना लेती तो आप का कहीं पता भी नहीं होता। अब तक की आप की राजनीति में यही दिखा है कि उसके नेता अरविंद केजरीवाल के पास धैर्य ज्यादा नहीं है। वे आसानी से किसी पर उबल पड़ते हैं। अभी आप की सरकार पंजाब में है और उसके विधायक गुजरात में भी हैं। इसी के चलते आप अपने स्थापना के दल साल में ही राष्ट्रीय पार्टी बन गई। चुनाव नतीजों के बाद अरविंद केजरीवाल काफी संभलकर बोल रहे हैं। इतना ही नहीं उन्होंने दिल्ली को पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी को विपक्ष का नेता बना कर और सौरभ भारद्वाज को दिल्ली का अध्यक्ष बनाकर सौंप दिया है। वे ज्यादा समय पंजाब आदि राज्यों में दे रहे हैं। केजरीवाल समेत पार्टी के बड़े नेता शराब घोटाले समेत कई मामले चल रहे हैं। उन्हें सुप्रीम कोर्ट से सशर्त जमानत मिली है। यानि आने वाले समय में उनको या मनीष सिसोदिया आदि को जेल जाना पड़ सकता है। आप कोई कार्यकर्ता आधारित पार्टी नहीं है और न ही कई राज्यों के दलों की तरह जाति या वंशवादी भी नहीं है। यह तो केजरीवाल , उनके कुछ करीबियों और लाभार्थियों की पार्टी बनकर रह गई थी। इसलिए केजरीवाल पर बहुत कुछ झेलने का दबाव है। अगर वे साल भर इसे झेल लेते हैं तो पार्टी बचेगी, अन्यथा उसके बिखरने का खतरा है।

इससे बड़ी चुनौती भाजपा के सामने है। लोकसभा के चुनाव में दिल्ली की सभी सातों सीटें और लंबे समय तक दिल्ली नगर निगम चुनाव जीतने के बावजूद बार-बार विधानसभा चुनाव भाजपा हारती रही है। शायद इसीलिए भाजपा में बड़ी तादात में इस बार चुनावी वायदे किए। चुनावी वायदे पूरी करना बड़ी चुनौती तो है ही इन सभी से बड़ी चुनौती गंदा नाला बन गई यमुना को साफ करने का वायदा है। भाजपा सरकार बनने के साथ ही यमुना की सफाई को प्राथमिकता पर करने की शुरुवात भी कर दी। दिल्ली का खराब सीवर प्रणाली, बड़ी संख्या में बस गई अनधिकृत कालोनियों की गंदगी आदि को तो सालों से यमुना ही झेल रही है। एक तिहाई दिल्ली में आज भी सीवर लाइन नहीं डली है। उसकी गंदगी सीधे यमुना में जाती है। यमुना नदी को साफ करने के लिए सबसे पहली जरूरत है कि ऐसी व्यवस्था बने कि एक बूंद भी सीवर , गंदगी या गंदा पानी यमुना में न जाए। सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च करके सालों से यमुना को साफ करने के नाम पर सरकारी लूट चलती रही है और यमुना पहले से ज्यादा गंदी होती जा रही है। आप के नेता अरविंद केजरीवाल ने भी यमुना साफ करने का वायदा किया था। ईमानदारी से उसे न पूरा करने और इसके लिए पांच साल और देने का समय मांगा था। माना जाता है कि उनके ऊपर और उनके नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के मामलों के अलावा आप की हार में उनकी तीन मुद्दों पर माफी मांगना(आत्म स्वीकृति) भी कारण बने। उन्होंने कहा कि वे सभी दिल्लीवालों को साफ पीने का पानी नहीं दे पाए। दिल्ली की सड़कें ठीक नहीं करा पाए और यमुना को भी साफ नहीं करा पाए। यही मुद्दे भाजपा सरकार के भी सामने रहने वाले हैं। इसी से जुड़ा है साफ हवा या प्रदूषण का मुद्दा। वह भी आम दिल्ली वालों को प्रभावित कर रहा है और इससे देश की राजधानी दिल्ली की छवि काफी प्रभावित हुई है।

आने वाले समय में इस सरकार के लिए यही मुद्दे इम्तहान बनने वाले हैं। दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में मैट्रो रेल बेहतरीन योगदान कर रही है लेकिन दिल्ली की ढाई करोड़ और एनसीआर(राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की कुल साढ़े चार करोड़ आबादी) के लिए अकेले मैट्रो रेल नाकाफी है। जर्जर हो चुकि डीटीसी की बसों और परिवहन विभाग के अधीन चलने वाली बसों की संख्या को बढाकर कम से कम 15 हजार करनी होगी, लोकल रेल सेवा यानि रिंग रेल को मजबूत बनाना होगा। उसका दायरा बढाना होगा। इससे पहले दिल्ली की करीब चालीस हजार किलोमीटर की सड़कों को ठीक कराना होगा। केन्द्र सरकार ने लाखों करोड़ की लागत से दिल्ली के बाहर पेरिफेरियर और दूसरी सड़के बनाकर दिल्ली अनावश्यक रूप से आने वाले वाहनों को दिल्ली आने पर रोक लगाई लेकिन दिल्ली को अपनी सड़कें को ठीक करनी होगी। बसों की सेवा ठीक होने से कम से कम दुपहिया वाहनों की भीड़ सड़कों से कम होगी। अब तो यह बहाने भी नहीं चलेंगे कि पड़ोसी राज्य दिल्ली में प्रदूषण बढने के कारण हैं। अब तो दिल्ली के हर तरफ भाजपा की ही सरकार है। दिल्ली में पानी की जरूरत डेढ हजार एमजीडी(मिलियन गैलन डेली) और दिल्ली में पानी सौ एमजीडी ही पैदा हो पाता है। गंगा और यमुना पर पूरी निर्भरता है। अगर यमुना दिल्ली में साफ हो पाई और बड़े जलाशय के रूप में विकसित हो पाई तो इस संकट का समाधान एक संभव तक हो पाएगा।

नई सरकार के सामने साफ हवा, पानी ही चुनौती तो है ही इसके साथ शिक्षा, स्वास्थ्य से लेकर आवास, कूड़ा निबटान, साफ-सफाई इत्यादि अनेक मुद्दे भी सरकार की परीक्षा लेंगे। ट्रीपल ईंजन यानि केन्द्र और राज्य दोनों में भाजपा सरकार बनने के बाद निगम में सत्ता मिलने का लाभ तो होगा ही, सरकार में आपसी तालमेल रखना भी एक बड़ी चुनौती है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की छवि साफ सुथरी है लेकिन वे भी बाकी मंत्रियों के समान वरिष्टता वाली हैं। चुनाव परिणामों ने अनेक नेताओं में मुख्यमंत्री बनने की महत्वकांक्षा जगा दी। कुछ ने तो अप्रत्यक्ष ढंग से उसे प्रकट भी कर दिया। पार्टी नेतृत्व का फैसला मानकर सभी ने स्वीकार लिया लेकिन सभी सरकार को या यूं कहें मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को कब तक सहयोग करेंगे, यह आसानी से कहा नहीं जा सकता है। सौ दिन का जश्न तो मीडिया में विज्ञापन देकर और समारोह करके मनाया जाएगा। असली जश्न तो जनता मनाएगी, जब उसे सरकार की ठोस उपलब्धि दिखेगी।