चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर कन्फ्यूज्ड , चले केजरीवाल की राह

संदीप ठाकुर

चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने गत 2 मई की शाम किए अपने ट्वीट में
लिखा है कि, ” अब जनता के बीच जाने का समय आ गया है और इसकी शुरुआत
बिहार से होगी।” इसका क्या मतलब निकाला जाए ?
मेरा मानना है कि प्रशांत बुरी तरह कन्फ्यूज्ड हैं । उन्हें समझ नहीं आ
रहा कि करना क्या है ? उधर मीडिया ने इसका मतलब यह निकाला है कि प्रशांत
की योजना अपनी राजनीतिक पार्टी बना चुनाव मैदान में उतरने की है। और भी
कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। कयासों का दौर जारी है। कयासों से यह
अंदाजा लग रहा है कि जिस मॉडल पर आम आदमी पार्टी का गठन हुआ था उसी तरह
का कोई मॉडल जिसमें आम लोगों के साथ साथ सिविल सोसायटी को जोड़ा कर चला
जाए पर मंथन हो रहा है। पिछले कुछ समय से उनकी टीम इस थीम पर काम कर रही
थी। आगामी लोकसभा चुनाव से पहले उनका अपना एक मजबूत संगठन खड़ा करने की
योजना है।

गौरतलब है कि पिछले दिनों प्रशांत किशोर के कांग्रेस से जुड़ने की प्रबल
संभावना थी लेकिन अंत में बात नहीं बनी और वे अलग हो गए। बहरहाल, भाजपा,
कांग्रेस, सपा, राजद, जदयू, डीएमके, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना जैसी कई
पार्टियों के लिए चुनावी रणनीति बना चुके प्रशांत किशोर अब अपने लिए
रणनीति बनाएंगे। उन्होंने इसका इशारा करते हुए ट्वीट किया और कहा कि जनता
के बीच जाने का समय आ गया है। इसकी शुरुआत बिहार से होगी। सूत्रों की
मानें तो पीके तुरंत किसी राजनीतिक दल के गठन या चुनाव लड़ने की घोषणा
नहीं करेंगे। उनके कामकाज करने के रंग ढंग पर गौर किया जाए ताे वे किसी
भी दल के असफल मुद्दे काे किसी और दल का सफल मुद्दा बनाने का प्रयास करते
हैं। अपने साथ भी वे कुछ ऐसा ही कर सकते हैं। उन्होंने शुरुआत बिहार से
करने की बात कही है। और बिहार में बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है। यह वह
मुद्दा है जिस पर लाेगाें खास कर यूथ काे लामबंद किया जा सकता है। बिहार
विधानसभा के बीते चुनाव में रोजगार मुद्दा बना था। राजद ने 10 लाख लोगों
को नौकरी देने की घोषणा की तो जवाब में एनडीए ने 20 लाख लोगों को रोजगार
देने का वादा कर दिया। लेकिन, विधानसभा चुनाव के डेढ़ साल गुजर जाने के
बाद भी रोजगार के साधन उपलब्ध नहीं कराए गए। समझा जाता है कि पीके इसी को
मुद्दा बनाएंगे। क्योंकि जाति और धर्म पर बंटी बिहार की राजनीति में यही
एक मुद्दा है, जिस पर समाज के बड़े हिस्से, खास कर युवाओं को आकर्षित
किया जा सकता है। उनके संगठन का स्वरूप कुछ कुछ वीपी सिंह के जनमोर्चा की
तरह हो सकता है, जिसमें अलग-अलग राजनीतिक विचारधारा के लोगों के जुड़ने
की गुंजाइश रहेगी। पीके को राज्य में सक्रिय सभी बड़े दलों के साथ काम
करने का अवसर मिला है। सो, अन्य दलों के उपेक्षित कार्यकर्ता भी उनके
अभियान से यकीनन जुड़ेगे। यानी उबे युवाओं को प्रशांत किशोर नए बिहार का
सपना दिखाएंगे।

प्रशांत किशोर ने अपनी चुनावी रणनीति की शुरुआत 2014 के लोकसभा चुनाव से
की थी जब उन्होंने भाजपा और नरेंद्र मोदी के लिए रणनीति बनाए थे। उसके
बाद उनकी भाजपा से दूरी हुई और वह मोदी के उस वक्त धुर विरोधी रहे नीतीश
कुमार के साथ हो लिए। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने नीतीश
और लालू यादव के लिए रणनीति बनाई और महागठबंधन को बिहार में जीत दिलवाई।
उसके बाद कई राजनीतिक दलों के लिए प्रशांत किशोर लगातार रणनीति बनाते रहे
हैं। हाल में ही हुए बंगाल चुनाव के समय वह ममता बनर्जी के साथ थे।
उन्होंने तृणमूल कांग्रेस के लिए बंगाल में रणनीति बनाई थी। इसके अलावा
वे कांग्रेस से भी संपर्क में रहे और 2024 को लेकर विपक्षी दलों से
मुलाकात भी कर रहे हैं। लेकिन बात बन नहीं पा रही है।