प्रधानमंत्री मोदी के घरेलू मैदान गुजरात में चुनाव

संदीप ठाकुर

गुजरात की 182 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा की सीटें विगत 21 सालों में हर
चुनाव में कम होती आईं हैं। 2002 में भाजपा काे 127 सीटें थीं जबकि
कांग्रेस काे 51 सीटें । 2007 में भाजपा के पास 117 सीटें थीं जबकि
प्रमुख प्रतिद्वंदी कांग्रेस के पास 59। 2012 में भाजपा काे 115 सीटें
मिली थीं और कांग्रेस काे 61। और 2017 में भाजपा और कांग्रेस के पास
क्रमश:99 और 77 सीटें थीं। यानी भाजपा की सीटें गुजरात में लगातार घटती
जा रही है। वो भी तब जबकि उसे टक्कर देने वाला कोई राजनीतिक दल वहां नहीं
था । लेकिन इस बार स्थिति बदली हुई नजर आ रही है। क्योंकि प्रदेश में आम
आदमी पार्टी (आप) पूरी तरह एक्टिव नजर आ रही है। पहले प्रदेश में भाजपा
पूरी तरह से मजबूत दिख रही थी लेकिन ‘आप’ के चुनावी मैदान में कूदने से
पहले किए गए वादों से मुकाबला रोचक हो चुका है। कांग्रेस भी गुजरात
चुनाव में दमखम के साथ ताल ठोक रही है। यानी इस बार गुजरात में मुकाबला
त्रिकोणीय है।

आप के कर्ताघर्ता केजरीवाल ने गुजरातियाें के सामने वादाें का ऐसा दाना
फेंका है जिससे बताैर मतदाता खुद काे बचा पाना मुश्किल लग रहा है। सभी को
मुफ्त और अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं, हर घर को प्रति माह 300 यूनिट तक मुफ्त
बिजली, हर युवा को नौकरी, बेरोजगारों को 3,000 रुपये का मासिक बेरोजगारी
भत्ता और 18 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं को 1,000 रुपये का मासिक भत्ता
देने का भी वादा ताे केजरीवाल कर चुके हैं। पहले प्रदेश में भाजपा पूरी
तरह से मजबूत दिख रही थी क्याेंकि कांग्रेस कमजाेर दिख रही थी। लेकिन
‘आप’ के चुनावी मैदान में आ जाने से अब मुकाबला रोचक हो चुका है। सवाल यह
है कि इस त्रिकाेणीय मुकाबले में आखिर किसका नुकसान हाेगा कांग्रेस या
भाजपा। राजनीतिक विश्लेषकाें का मानना है कि नुकसान का आकलन प्रत्याशी
घाेषित हाेने के बाद ही हाे पाएगा। वैसे भी सभी सीटाें पर ताे
त्रिकाेणात्मक मुकाबला हाेगा नहीं। लेकिन फिलहाल भाजपा के पेशानी पर बल
ताे साफ देखे जा सकते हैं। वैसे गुजरात में 27 साल के अपने शासन के लिए
बीजेपी ने भी आप को एक गंभीर खतरे के रूप में लेना शुरू कर दिया है।
पार्टी के नीतिकाराें काे लगता है कि यदि आप की ‘मुफ्त सुविधाएं’ वाला
फॉर्मूला काम कर गया ताे उन्हें लेने के देने पड़ जाएं।

गुजरात चुनाव आम आदमी पार्टी के लिए एसिड टेस्ट साबित होने जा रहा है,
खास तौर पर इसलिए नहीं कि महज एक दशक पुराना यह राजनीतिक दल पहली बार
बीजेपी से भिड़ रहा है। दिल्ली में पार्टी ने शीला दीक्षित के नेतृत्व
वाली कांग्रेस सरकार को हराकर अपनी पहली जीत का परीक्षण किया था। पंजाब
में आम आदमी पार्टी को गुटबाजी से पीड़ित कांग्रेस से कड़ी चुनौती का
सामना करना पड़। दोनों राज्यों में आप पार्टी चुनावी मैदान में प्रवेश
करते ही एक ठोस समर्थन आधार बनाने में सफल रही। जाे वादे केजरीवाल कर रहे
हैं वाे शहरी मतदाताओं के लिए ताे ठीक है लेकिन ग्रामीण मतदाओं पर यह
उतना प्रभाव नहीं छाेड़ पाएगा। आम आदमी पार्टी शहरी इलाकों में बीजेपी के
मजबूत गढ़ों में कदम रख रही है। गुजरात के ग्रामीण इलाकों में अभी भी
कांग्रेस का जनाधार है। ऐसे में त्रिशंकु विधानसभा की संभावना से इनकार
नहीं किया जा सकता है।