सुशील दीक्षित विचित्र
भारत जोड़ों यात्रा के बीच हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है । जबकि गुजरात विधानसभा के लिए मतदान की घोषणा होना महज वक्त की बात है | यात्रा जनवरी में समाप्त होगी और जब यह समाप्त होगी तब तक गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव हो चुके होंगे और नौ विधानसभाओं के चुनाव सिर पर आ जायेंगे | इन चुनावों में भारत जोड़ों यात्रा की सफलता की असलियत भी सामने आ जाएगी और यह भी पता चल जाएगा कि हासिये पर जा चुकी पार्टी कितने राज्यों में कामयाब प्रदर्शन करती हैं | चौदह महीने के अंतराल में ग्यारह राज्यों के चुनाव 2024 के लोकसभा चुनावों की झांकी होंगे और आधा दर्जन राज्यों में भाजपा की भी प्रतिष्ठा दांव पर लगेगी | इनमें भाजपा के सामने अपनी सत्ता बचाने की चुनौती होगी और उसे यह भी साबित करना होगा कि अभी उसकी साख बरकरार है |
हिमाचल प्रदेश वह पहला राज्य है जहाँ चुनाव की तारीख घोषित हो चुकी है | यहां 12 नबंवर को मतदान होगा और आठ दिसंबर को नतीजे आयेंगे | यहाँ भी भाजपा की सरकार है और किसी भी हालत में उसे वह गंवाना नहीं चाहेगी | जैसे कि संकेत मिल रहे हैं वहां वीरभद्र की अगुआई में कांग्रेस चुनाव लड़ सकती है | हिमाचल प्रदेश के लिए माना जाता है कि यहाँ हर पांच साल सत्ता परिवर्तन होता है | एक बार कांग्रेस और दूसरी बार भाजपा सरकार बनाती रही है लेकिन उत्तराखंड में भाजपा ने दोबारा सरकार बना कर जैसे यहां का मिथक तोड़ा वैसे वह 68 विधानसभा सीटों वाले हिमाचल प्रदेश का मिथक तोड़कर अपना प्रदर्शन दोहराने की कोशिश करेगी | अधिकतर भाजपा शासित राज्यों में ही चुनावी ताल ठोंकने वाले अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी हिमाचल प्रदेश में भी घुसपैठ की कोशिश कर रही है जो भाजपा के लिए कम लेकिन कांग्रेस के लिए अधिक खतरनाक है | दिल्ली और पंजाब में उसने ही कांग्रेस को हासिये पर धकेल दिया | यहाँ भी उसकी कोशिश ऐसी ही होगी | वह भाजपा के साथ कांग्रेस को भी लपेटने की कोशिश करेगी | यह अलग बात है कि अभी तक जिन भाजपा शासित राज्यों में आप ने चुनाव लड़ा वहां उसके सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गयी और एक तरह से वह भाजपा की मददगार ही साबित हुई | कांग्रेस के लिए हिमाचल में भी स्थित मजबूत नहीं कही जा सकती | पार्टी के अंदर ही न केवल कई तरह का असंतोष है बल्कि पार्टी के कद्दावर नेता कांग्रेस वर्किंग कमेटी के हर्ष महाजन और पूर्व अध्यक्ष पवन काजल भाजपा में शामिल हो गए जिससे पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल भी गिरा हुआ है | टिकट आवंटन प्रक्रिया से भी भारी असंतोष है | पार्टी को नये सिरे से खड़ा करके भाजपा को चुनौती देना आसान नहीं होगा लेकिन आप और कांग्रेस के बीच से सत्ता तक फिर पहुँचने की राह निकालना भाजपा के लिए असम्भव नहीं तो मुश्किल अवश्य हो सकता है |
जिन छह राज्यों में भाजपा के सामने अपना पुराना प्रदर्शन करके सत्ता में वापसी करने का लक्ष्य होगा उनमें दूसरा नंबर गुजरात का है | गुजरात की 182 सीटों के लिए दिसंबर 2022 में चुनाव कराये जाने हैं | भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले गुजरात में उसे कांग्रेस सीधी टक्कर देगी अथवा आम आदमी पार्टी भाजपा की वापसी की राह में दीवार बनेगी । यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा लेकिन चुनाव प्रबंधन में आप पार्टी ने कांग्रेस से बाजी मार ली है | पिछली बार कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी टक्कर देकर उसे सौ के अंदर समेट दिया लेकिन इस बार कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व अभी राजस्थान में ही उलझा है । जबकि आप के केजरीवाल समेत तमाम नेताओं ने गुजरात में डेरा डालकर चरणबद्ध ढंग से अपना चुनाव प्रचार शुरू भी कर दिया है | पिछले सत्ताइस साल से सत्ता पर काबिज भाजपा के सामने कांग्रेस कोई बड़ी रेखा खींच पायेगी या नहीं या भविष्य की बात है लेकिन यह तय है कि आम आदमी पार्टी उसकी राह में भाजपा से भी बड़ा रोड़ा साबित हो सकती है | आप का वहां अभी जनाधार नहीं के बराबर है जबकि कांग्रेस के पास अभी भी काफी जमीन है | भाजपा का अपना कॉडर है और मतदाताओं का एक बड़ा समूह उसका स्वाभाविक वोट बैंक है | आप के लिए इसमें सेंध लगाना आसान नहीं होगा लेकिन कांग्रेस के वोट बैंक को वह प्रभावित कर सकती है | कांग्रेस के लिए आप गुजरात में वोट कटवा जैसी स्थिति पैदा कर सकती ही | इसका सीधा फायदा भाजपा को होगा | तीस्ता सीतलवाड़ द्वारा मोदी खिलाफ रचे गए षड्यंत्र में कांग्रेस का सहयोग उजागर होना भी कांग्रेस के लिए मुसीबत बन सकता है | भाजपा मोदी और गुजरात को बदनाम करने की कोशिश को मुद्दा बनाकर यदि कांग्रेस पर हमलावर हुई तो कांग्रेस के पास इसका कोई जबाब होगा |
कांग्रेस के लिए गुजरात में सबसे बड़ा संकट पायेदार नेताओं का अभाव है | उसके पास ऐसा कोई चेहरा नहीं जिसको आगे कर के वह चुनाव लड़ सके | कहने को भाजपा मुख्यमंत्री विजय रूपानी को आगे कर के चुनाव लड़ेगी लेकिन असल में मोदी ही असली चेहरा होंगे और वहीं तय करेंगे की भाजपा का स्थानीय अगुआ कौन होगा | आप की स्थिति वहां कोई ख़ास मजबूत नहीं है | उसे अपनी जमीन तैयार करनी है | पंजाब की जीत से वह उत्साहित भी है लेकिन केवल उत्साह के बलबूते भाजपा को गुजरात से धक्का दे कर नहीं हटाया जा सकता | इसके लिए उसे वहां के मतदाताओं का दिल जीतना होगा और मुफ्त या विभाजनकारी घोषणाओं से वह समृद्ध गुजरातियों को प्रभावित कर सकेगी यह हाल फिलहाल आसान नहीं लगता |
दिसंबर 2022 में चुनाव अभी निपटे ही होंगे कि अगले महीने जनवरी 2023 में मध्यप्रदेश में चुनावी बिगुल बज चुका होगा | मध्य प्रदेश में इस समय भाजपा की सरकार है और शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री हैं | एमपी के 2018 के चुनाव में भाजपा हार गयी थी | 230 में से उसे 109 सीटें ही मिली थीं और कांग्रेस 114 सीटें पाकर सब से बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी | पंद्रह साल बाद कांग्रेस ने एमपी की सत्ता में वापसी की थी लेकिन मुख्यमंत्री कमलनाथ सरकार को पंद्रह महीने भी नहीं चला पाये | तेरह महीने के अंदर कांग्रेस पार्टी में भारी टूट हुई | राहुल गांधी की टीम के महत्वपूर्ण चेहरे ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से अलग होकर अपने गुट के विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए | कमलनाथ की सरकार गिर गयी और भाजपा फिर शिवराज सिंह चौहान को आगे कर के सत्ता पर काबिज हो गयी | कमलनाथ की सरकार गिरना पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की असफलता थी | सिंधिया एमपी के बहुत कद्दावर नेता मनाए जाते हैं | उनके भाजपा ज्वाइन कर लेने से कांग्रेस मध्य प्रदेश में कमजोर पड़ गयी है | राज्य के कई क्षेत्रों से तो पार्टी का बजूद ही समाप्त हो गया | मध्य प्रदेश वह राज्य है जहाँ कांग्रेस अकेले दम पर भाजपा से लड़ सकती है | कहने को तो राज्य विधानसभा में दो बसपा और एक सपा विधायक भी है लेकिन दोनों पार्टियों का राज्य में कोई ख़ास जनाधार नहीं है | अन्य पार्टियों की अनुपस्थति में कांग्रेस और भाजपा ही बचती है जिनमें सीधा मुकाबला होना है | निसंदेह टक्कर कांटे की होगी | जोरदार होगी | कांग्रेस हर वह कोशिश करेगी जो उसे फिर सत्ता तक पहुंचा सके और भाजपा उसकी कोशिश को विफल कर फिर सत्ता सुख भोगना चाहेगी | इस जंग में वह ही जीतेगा जिसका का प्रबंधन अला दर्जे का होगा और इस मामले में भाजपा कांग्रेस से कहीं आगे है |
यहां से निपटकर चुनाव आयोग पूर्वोत्तर भारत की ओर रुख करेगा | पूर्वोत्तर में मेघालय , नागालैंड और त्रिपुरा में 2023 की मार्च में मतदान होगा | किसी समय पूर्वोत्तर भारत के इन तीनों राज्यों समेत सातों राज्यों में कांग्रेस की सरकारें थी | बाद में त्रिपुरा कम्युनिस्ट पार्टी ने छीन लिया तब भी छह राज्य कांग्रेस के पास लम्बे समय तक रहे | पिछले आठ साल पहले तक सातों राज्यों में अपना वर्चस्व बना पाना भी सपना था लेकिन भाजपा का काम आसान कर दिया राहुल गांधी ने | उन्होंने असम में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हेमंत शर्मा विस्वा को अपने आवास पर कुत्ते वाली प्लेट में कुत्ते वाले बिस्किट ऑफर कर के अपने पैरों पर खुद व खुद कुल्हाड़ी मार ली | विस्वा पूर्वोत्तर के बड़े नेताओं में शुमार रहे | वे भाजपा में शामिल हो गये और उन्होंने धीरे-धीरे पूर्वोत्तर से कांग्रेस को बाहर करना शुरू कर दिया | साठ विधानसभा सीटों वाले त्रिपुरा में पहले कांग्रेस और फिर कम्युनिस्ट पार्टी का वर्चस्व रहा | 2018 के चुनाव से पहले भाजपा वहां परिदृश्य तक में नहीं थी | 2018 में मिथक टूटा और पहली बार भाजपा की सरकार बनी | 2023 के चुनाव में उसके सामने अपनी सत्ता का रिन्युअल कराने की भारी चुनौती होगी | यह चुनौती उसे कांग्रेस से ही नहीं कम्युनिस्ट पार्टी से भी मिलेगी बल्कि कम्युनिस्ट पार्टी से अधिक कड़ी चुनौती मिलेगी | यह देखना बहुत दिलचस्प होगा कि त्रिकोणात्मक मुकाबले में भाजपा अपनी सत्ता बचा पाती है या नहीं | कम्युनिस्ट वापसी कर सकते हैं या नहीं और यह कि कांग्रेस अस्तित्व की लड़ाई जीत पाती है या नहीं |
मेघालय में भी विधानसभा के लिए साठ विधानसभा सीटें है | यह उन राज्यों में से भी है जहां पिछले चुनाव कांग्रेस का प्रबंधन फेल हो गया | 21 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद भी कांग्रेस सरकार बनाने में असफल रही और मात्र दो सीटें जीतने वाली भाजपा ने प्रबंधन के बलबूते कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया | यहाँ अजब खेल हुआ | भाजपा के रणनीतिकारों ने चुनाव परिणाम अपने विरुद्ध जाते देखकर बहुत चतुरता से 19 विधायकों वाली नेशनल पीपुल्स पार्टी , 6 सीटों वाली यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी दो विधायकों वाली एचएसपीडीपी , चार विधायकों वाली पीडीएफ और एक निर्दलीय विधायक को मिलाकर एक गठबंधन बनाया |
एनपीपी के नेता और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी संगमा के पुत्र कोनराड संगमा को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस के मंसूबों पर पानी फेर दिया | कांग्रेस का लेटलतीफ और अनुभवहीन नेतृत्व मुगालते में जीती हुयी बाजे हार गया और उसके विरोधी हार कर भी जीत गये | इस बार भी कुछ इसी तरह के समीकरण है | फर्क यह है कि इस बार भी भाजपा भले बहुमत का आकड़ा नहीं पा सके लेकिन अपनी सीटें बढ़ाने का जरूर प्रयास करेगी | कांग्रेस की उलझन का यहां भी वही कारण है जो हर जगह हैं कि संगठन कमजोर है , कोई बड़ा चेहरा पास नहीं हैं , कई विधायक पाला बदलकर उसके ही खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं और शीर्ष नेतृत्व राजस्थान , गहलोत और भारत जोड़ों यात्रा में उलझा हुआ है |
नागालैंड की स्थति थोड़ा अलग है | 2018 में एनडीपीपी और भाजपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था | दोनों पार्टियों के गठबंधन पीपल्स डेमोक्रेटिक एलायंस (पीडीए ) को 28 सीटें मिली थी | बाद में एनपीपी के दो , एक-एक जेडीयू और निर्दलीय विधायक ने समर्थन दे दिया | इस सरकार में एनडीपीपी के नेफ्यू रियो मुख्यमंत्री बने | बाद में कांग्रेस के आठ विधायक पीडीए में शामिल हो गये | जिससे कांग्रेस नागालैंड में हाशिये से भी गायब हो गयी | 2021 में एक अजीबो गरीब राजनीतिक घटना घटी | शेष विपक्ष ने भी सरकार को समर्थन दे दिया जिससे वहां पहली विपक्षहीन सरकार बनी | यहां मार्च में सरकार 2018 में बनी थी | इसके मतलब फरवरी में यहां चुनावी प्रक्रिया शुरू हो जाएगी | आगे क्या हालत होंगे , क्या सभी दल चुनाव में अपने -अपने प्रत्याशी उतारेंगे अथवा आपस में सीटों का बंटबारा कर के हर प्रत्याशी को निर्विरोध जिता कर विपक्ष हीं सरकार की दूसरी पारी शुरू करेंगे , यह अभी स्पष्ट नहीं है लेकिन जो स्पष्ट है वह है कांग्रेस की स्थिति जो किसी स्थिति में नहीं रह गयी है । जबकि एक समय उसने लम्बे समय तक राज किया | कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की असफलता ही है कि नागालैंड इस समय कांग्रेस मुक्त है |
कर्नाटक वह अगला राज्य होगा जहां अप्रेल 2023 में चुनाव आयोग सक्रिय हो जाएगा | 224 विधानसभा सीटों के लिए मई में चुनाव होने हैं | यहां भी भाजपा की सरकार है और उसको टक्कर कांग्रेस और क्षेत्रीय जनता दल सेक्युलर से होगी | हिजाब विवाद को लेकर राज्य में काफी समय से साम्प्रदायिक तनाव का वातावरण बना हुआ है | सभी राजनीतिक दल निश्चित रूप से इसे मुद्दा बनाकर अपने-अपने तय दृष्टिकोण से उसे भुनाने का प्रयास करेंगे | वोट बैंक और ध्रुवीकरण दोनों तरह के दांव पेंच चले जायेंगे | बाजी वह मारेगा जो दल एक जुट होकर लड़ेगा | पहले सत्तारूढ़ भाजपा की बात करें | पिछले दिनों अफवाह उड़ी थी कि भाजपा राज्य में नेतृत्व परिवर्तन करने जा रही हैं | काफी समय तक ऐसी खबरे हवा में तैरती रहीं लेकिन भाजपा के कर्नाटक प्रभारी अरुण सिंह ने यह कहकर अटकलों को समाप्त कर दिया कि पार्टी ऐसा कुछ करने नहीं जा रही है | चुनाव बोम्मई के नेतृत्व में लड़ा जायेगा |
भाजपा और जेडीएस चुनाव तैयारियों में लग भी चुके हैं लेकिन यहां भी पार्टी में घमासान मचा हुआ है | पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और पार्टी अध्यक्ष के बीच इतने मतभेद हैं कि अध्यक्ष ने घोषित कर दिया कि चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाएगा और मुख्यमंत्री का चयन बाद में होगा | दोनों के बीच मनमुटाव का असर पार्टी कैडर पर भी है जो बंट चुका है | पार्टी की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि उसका शीर्ष नेतृत्व हमेशा ऐसी चुनाव हराऊ स्थितियों में हमेशा नाकाम रहा है | जेडीएस का असर तो है लेकिन इतना नहीं कि वह भाजपा को सभी सीटों पर टक्कर दे सके | अंत में दोनों ही पार्टियां एक दूसरे को हानि पहुंचाकर भाजपा का रास्ता आसान कर सकती हैं |
इसके बाद चुनाव आयोग साल के अंत में चार राज्यों छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान और तेलंगाना की 449 सीटों के लिए अधिसूचना जारी करेगा | इन सभी राज्य सरकारों का कार्यकाल दिसंबर 2023 समाप्त हो जायेगा | इसलिए सम्भव है की चारों चुनाव एक साथ करा लिए जायें | यह वे राज्य है जहां भाजपा की सरकार नहीं है | 2018 के चुनाव में क्षेत्रीय दल मिजो नेशनल फ्रंट ने 40 में से 22 सीटें जीत कर जोरमथंगा के नेतृत्व में सरकार बनाई थी | इस चुनाव में दस साल तक लगातार राज करने वाली कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला | भाजपा भी शून्य पर आउट हो गयी जबकि निर्दलीय विधायकों की संख्या 18 थी | मिजोरम की हार ने कांग्रेस को पूर्वोत्तर भारत से बाहर कर दिया | भाजपा के पास यहाँ खोने के लिए न पहले कुछ था न अब है | कांग्रेस को जरूर खोई जमीन पानी होगी लेकिन वह ऐसा कर पायेगी इसमें संदेह की काफी गुंजाइश है | छत्तीसगढ़ में 90 सीटों पर मतदान होना है | यहाँ कांग्रेस की सरकार है और भूपेश बघेला मुख्यमंत्री हैं | यहाँ भी पार्टी अंदरूनी कलह की शिकार है और वैसी एकजुटता का अभाव है जैसी भाजपा में दीखती है | इस असंतोष को थामने का कभी कोई प्रयास शीर्ष नेतृत्व ने नहीं किया इसलिए भी पार्टी संकट गहराता जा रहा है | भाजपा पूरी कोशिश में है कि वह इस बार सत्ता तक पहुँच जाये | इसके लिए उसने संगठन को मजबूत करने के साथ-साथ मतदाताओं तक पहुँचने की रणनीति भी बना ली है | यह उन राज्यों में से हैं जहाँ भाजपा और कांग्रेस की सीधी टक्कर होनी है | यहाँ भी प्रबंधन का स्तर सार्थक हो सकता है | राजस्थान अकेला ऐसा बड़ा राज्य है जो कांग्रेस के पास है | वर्तमान में छत्तीसगढ़ और राजस्थान ही कांग्रेस के कब्जे वाले राज्य हैं | राजस्थान में अशोक गहलोत मुख्यमंत्री है | उन्होंने राज्य में विकास और रोजगार के मुद्दे पर अच्छा काम किया | पुरानी पेंशन बहाल करके राज्य कर्मचारियों को भी जोड़ा | सब कुछ ठीक-ठाक था लेकिन साम्प्रदायिक दंगों और सिर तन से जुदा जैसे नारों और कृत्यों के खिलाफ जो रीति-नीति गहलोत सरकार ने अपनायी उससे बहुसंख्यकों में कांग्रेस के प्रति अच्छी धारणा नहीं रही | उधर सचिन पायलट और गहलोत के बीच तनाव भी कांग्रेस के लिए अच्छा नहीं माना जा रहा है | ऐसे में कांग्रेस को यह राज्य बचाने के लिए कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है | चुनौती इसलिए भी कड़ी होगी कि भाजपा घात लगाए बैठी है और वह सत्ता की वापसी के लिए सारे जतन करेगी |
तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्र समिति की सरकार है जिसके मुखिया के चंद्रशेखर राव हैं | वे ही पार्टी अध्यक्ष भी हैं | अब वे तेलंगाना के सरहद से निकलकर दिल्ली और प्रधानमंत्री पद तक पहुंचना चाहते हैं इसलिए उन्होंने अपनी पार्टी का नाम भारत राष्ट्र समिति कर लिया है | चंद्रशेखर राव सत्ता बचाने का हर सम्भव प्रयास करेंगे क्योंकि ऐसा करके ही वे अपने को केंद्रीय सत्ता में स्थापित होने का दावेदार साबित कर सकते हैं | 2018 के चुनाव में कांग्रेस को 119 मे से कुल 19 और भाजपा को 4 सीटें मिली थीं | इस बार भाजपा ने अपना पूरा फोकस तेलंगाना में कर दिया है | अमित शाह के दौरे शुरू हो चुके हैं और मोदी के भी चक्कर लगने वाले होंगे| मिजोरम की तरह यहां भी भाजपा के पास खोने के लिए कुछ नहीं है जबकि कांग्रेस को अपनी साख बचाने के लिए जूझना होगा | लड़ाई किसी के लिए आसान नहीं होगी | सत्ता बचेगी या नहीं यह तो दिसंबर 2023 में ही पता चलेगा लेकिन चंद्रशेखर राव को बहुत पसीना बहाना पड़ेगा और भाजपा को कुछ अभिनव प्रयोग करने होंगे | कांग्रेस की रणनीति एक रहस्य होती है इसलिए कहना मुश्किल है कि वह साख बचाने के लिए क्या करेगी लेकिन यह फिर भी कहा जा सकता है कि यदि कांग्रेस अपने संगठन को साध सकी तो ठीक से लड़ पायेगी और शीर्ष नेतृत्व संगठन को साध पायेगा , इसमें संदेह ही संदेह है |