स्वामी देवेन्द्र ब्रह्मचारी
अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस प्रत्येक वर्ष 2 अक्टूबर को मनाया जाता है। यह दिवस सभी देशों और लोगों के बीच स्वतंत्रता, सह-अस्तित्व, शांति और खुशी का एक आदर्श माना जाता है। भारत अहिंसा एवं शांति को सर्वाधिक बल देने वाला देश है, यहां की रत्नगर्भा माटी में अनेक संतपुरुषों, ऋषि-मनीषियों को जन्म लिया है, जिन्होंने अपने त्याग एवं साधनामय जीवन से दुनिया को अहिंसा एवं शांति का सन्देश दिया। भगवान महावीर ने अहिंसा पर सर्वाधिक बल दिया, अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस की सार्थकता महावीर की अहिंसा को विश्वव्यापी बनाकर ही पायी जा सकता है। महावीर की अहिंसा में जहां संयम की प्रधानता है वही महात्मा बुद्ध की अहिंसा में करुणा है। संयम और करुणा की चेतना ही विश्व शांति एवं अहिंसा का आधार हो सकती है। वर्तमान सन्दर्भों में अतीत से चली आ रही अहिंसा की विरासत को महात्मा गांधी ने नया आयाम दिया, उन्होंने आजादी पाने के लिये इसे सशक्त हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। अहिंसा की प्रतिष्ठा प्रत्येक व्यक्ति चाहता है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच से भी आज अहिंसा की प्रतिष्ठा पर सर्वसहमति बनती जा रही है, तभी अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस को स्वीकार्यकता मिली है। अहिंसा को तेजस्वी और शक्तिशाली बनाए बिना उसकी प्रतिष्ठा की बात आकाश-कुसुम की भांति व्यर्थ है। इसको स्थापित करने के लिए भावनात्मक परिवर्तन, हृदय-परिवर्तन या मस्तिष्कीय प्रशिक्षण एवं प्रयोग अनिवार्य हैं।
शांति के लिए सब कुछ हो रहा है- ऐसा सुना जा रहा है। युद्ध भी शंाति के लिए, स्पर्धा भी शांति के लिए, अशांति के जितने बीज हैं, वे सब शांति के लिए- यह मानसिक झुकाव स्वयं में एक बड़ी भंयकर भूल है। बात चले विश्वशांति की और कार्य हो अशांति के तो शांति कैसे संभव है? विश्वशांति के लिए अणुबम आवश्यक है, यह घोषणा करने वालों ने यह नहीं सोचा कि यदि यह उनके शत्रु के पास होता तो? संसार में अन्याय, शोषण एवं अनाचार के विरूद्ध समय-समय पर क्रांतियां होती रही हैं पर उनका साधन विशुद्ध नहीं रहने से उनका दीर्घकालीन परिणाम संदिग्ध हो गया। अहिंसा है स्वयं के साथ सम्पूर्ण मानवता को ऊपर उठाने में, आत्मपतन से बचने में और उससे किसी को बचाने में। हिंसा अंधेरा है और अहिंसा उजाला है। आंखें बंद करके अंधेरे को नहीं देखा जा सकता। इसी प्रकार हिंसा से अहिंसा को नहीं देखा जा सकता। विश्वशांति, सह-अस्तित्व एवं मैत्रीपूर्ण वातावरण को देखने के लिए आंखों में अहिंसा का उजाला आंजने की अपेक्षा है। पृथ्वी, आकाश व सागर सभी अशांत हैं। स्वार्थ और घृणा ने मानव समाज को विखंडित कर दिया है। यूँ तो ‘अहिंसा’ का संदेश हर युग, हर धर्म और हर दौर में दिया गया है, लेकिन विश्व युद्ध की संभावनाओं के बीच इसकी आज अधिक प्रासंगिकता है।
दुनिया गांधी को न केवल अहिंसा और सर्वोच्च मानवतावाद के अभ्यास के प्रति उनके भावुक पालन के लिए याद करती है, बल्कि उस मानदंड के रूप में भी याद करती है जिसके खिलाफ हम सार्वजनिक जीवन, राजनीतिक विचारों और सरकारी नीतियों में पुरुषों और महिलाओं और हमारे साझा लोगों की आशाओं और इच्छाओं का परीक्षण करते हैं। हमें अहिंसा को अधिक प्रासंगिक एवं कारगर बनाने के लिये महावीर की अहिंसा को जीवंत करना होगा। गांधी भी लिखते हैं कि ‘महावीर स्वामी का नाम किसी भी सिद्धांत के लिये यदि पूजा जाता है तो वह अहिंसा ही है। प्रत्येक धर्म की महत्ता इसी बात में है कि उस धर्म में अहिंसा का तत्त्व कितने प्रमाण में है। और इस तत्त्व को यदि किसी ने अधिक-से-अधिक विकसित किया है तो वह भगवान् महावीर ही थे।’ निश्चित ही महावीर वाणी-अहिंसा सव्वभूयखेमंकरी-विश्व के समस्त प्राणियों का कल्याण करने वाली है। इस तेजोमयी अहिंसा की ज्योति पर जो राख आ गई, उसे दूर करने के लिए तथा अहिंसा की शक्ति पर लगे जंग को उतार कर उसकी धार को तेज करने के लिए अहिंसक समाज रचना की जरूरत है।
विगत अनेक माह से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है, और इस युद्ध की तमाम आशंकाओं और संभावनाओं के बीच शांति वार्ता की कोशिशें लगातार निस्तेज होती जा रही है। इन स्थितियों में भारत ने लगातार युद्ध विराम की कोशिशें की हैं, इस तरह के प्रयासों में एक बार महावीर की अहिंसा को आधार बनाया जाये तो युद्ध के बादल छंट सकते हैं। वास्तव में विश्व युद्ध की ओर बढ़ रही दुनिया को अयुद्ध, शांति एवं अहिंसा के पुनर्निर्माण की ज़रूरत है। और अगर ये पुनर्निर्माण नहीं किया गया तो यूक्रेन में धधकता उबाल सिर्फ़ यूक्रेन को ही नहीं बल्कि कई अन्य देशों को अपनी चपेट में लेगा। ज़ाहिर है कि रणनीतिक दृष्टि में एक ग़हरी खामी थी जिसके कारण यह स्थिति पैदा हुई। यह उन त्रुटिपूर्ण सुरक्षा विचारों पर फिर से विचार करने का समय है। यदि ऐसा नहीं किया जाता है, तो अकेले यूक्रेन में शांति से समस्या का समाधान नहीं होगा। यह आग आगे भी यूं ही सुलगती रहेगी। सम्पूर्ण विश्व में शांति कायम करना आज संयुक्त राष्ट्र का मुख्य लक्ष्य है। संयुक्त राष्ट्र चार्टर में भी इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि अंतरराष्ट्रीय संघर्ष को रोकने और शांति की संस्कृति विकसित करने के लिए ही यूएन का जन्म हुआ है। संघर्ष, आतंक और अशांति के इस दौर में अमन की अहमियत का प्रचार-प्रसार करना बेहद जरूरी और प्रासंगिक हो गया है।
महावीर की अहिंसा की परिभाषा में मात्र जीवहत्या ही हिंसा नहीं है, बल्कि किसी के प्रति नकारात्मक सोचना भी हिंसा है। अहिंसा के महानायक महावीर ने जल, वृक्ष अग्नि, वायु और मिट्टी तक में जीवत्व स्वीकार किया है। उन्होंने अहिंसा की व्याख्या करते हुए जल और वनस्पति के संरक्षण का भी उद्घोष किया। उनके सिद्धांतों पर चलकर हमें ‘वृक्ष बचाओ संसार बचाओ’ की उक्ति को अमल में लाना होगा। प्रकृति और पर्यावरण के विरुद्ध चलने से भूकंप, सुनामी, बाढ़ आदि प्राकृतिक प्रकोपों का हमें सामना करना पड़ रहा है। आज समूचा विश्व पर्यावरण की अपेक्षा एवं हिंसा के दुष्परिणाम देख रहा है। ऐसे में भगवान महावीर याद आते हैं, जिनका प्रमुख सूत्र वाक्य था – जियो और जीने दो। शांति के लिए इस प्रकार की अहिंसक जीवन शैली अत्यंत आवश्यक है। विश्व में आतंकवाद की समस्या का हल महावीर द्वारा प्रतिपादित अहिंसा एवं अनेकांत के सिद्धांतों में ढूंढ़ा जा सकता है। भगवान महावीर के 2550वां निर्वाण महोत्सव हम अगाध श्रद्धा-आस्था के साथ जरूर मनाएं, पर उनके उपदेशों को अपने जीवन में भी उतारें।
महावीर की शिक्षा का मूल अहिंसा है। जैन धर्मग्रंथों में अहिंसा को ‘धम्मो मंगल मुक्किट्ठं’ के रूप में वर्णित किया गया है, जो सबसे शुभ और सर्वोच्च धर्म है। महावीर ने अनेकांत के द्वारा वैचारिक अहिंसा को प्रतिष्ठित करने का प्रयत्न किया। अनेकांत के माध्यम से उन्होंने मानव जाति को प्रतिबोध दिया कि स्वयं को समझने के साथ दूसरों को भी समझने की चेष्टा करो। अनेकांत के बिना संपूर्ण सत्य का साक्षात्कार नहीं किया जा सकता। महावीर की अहिंसा इतनी विशाल है कि इसमें दुनिया की सभी समस्याओं के समाधान निहित हैं। मनुष्य, पशु, पक्षी, कीड़े, मकोड़े आदि सभी जीना चाहते हैं। कोई मरने की इच्छा नहीं रखता। जब कोई मृत्यु चाहता ही नहीं, तो उस पर मृत्यु को, हिंसा को थोपना कहां का न्याय है। शांति एवं अहिंसा में विश्वास रखने वाले लोग किसी प्राणी को सताते नहीं, मारते नहीं, मर्माहत करते नहीं, इसी में से अहिंसा एवं शांति का तत्त्व निकला है। अहिंसा वह सुरक्षा कवच है, जो घृणा, वैमनस्य, प्रतिशोध, भय, आसक्ति, हिंसा आदि घातक अस्त्रों के प्रहार को निरस्त कर देता है तथा समाज में शंाति, सह-अस्तित्व एवं मैत्रीपूर्ण वातावरण बनाए रख सकता है।
लोकतंत्र में अहिंसा के विकास की सर्वाधिक संभावनाएं होती हैं। यदि लोकतंत्र में अच्छाइयों का विकास न हो तो इससे अधिक आश्चर्य की बात क्या होगी? अहिंसक लोकतंत्र की कल्पना गांधीजी ने रामराज्य के रूप में की पर वह साकार नहीं हो सकी क्योंकि गांधीवाद के सिद्धांतों एवं आदर्शों ने वाद का रूप तो धारण कर लिया पर उनका जीवन में सक्रिय प्रशिक्षण नहीं हो सका। इसलिये लोकतंत्र की मजबूती के लिये अहिंसा के प्रशिक्षण पर सर्वाधिक बल देना होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दुनिया में विश्वशांति एवं अहिंसा की स्थापना के लिये प्रयत्नशील है, समूची दुनिया भारत की ओर आशाभरी नजरों से देख रही है कि एक बार फिर शांति एवं अहिंसा का उजाला भारत करें। अहिंसा दिवस बनाने की बहुत सार्थकता है, उपयोगिता है, इससे अंतर-वृत्तियां उद्बुद्ध होंगी, अंतरमन से अहिंसा-शांति को अपनाने की आवाज उठेगी और हिंसा-अशांति में लिप्त मानवीय वृत्तियों में अहिंसा एवं शांति आएगी।