मनरेगा के सालाना बजट में जबरदस्त कटौती से ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार संकट गहराया

संदीप ठाकुर

पश्चिम बंगाल के सांसदों ने आज ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज
मंत्री.गिरिराज सिंह के शास्त्री भवन स्थित दफ्तर के बाहर धरना दिया।
सांसद मनरेगा की राशि आवंटन में हुए विलंब काे लेकर नाराज थे। उनका आरोप
था कि केंद्र सरकार जानबूझकर बंगाल काे राशि आवंटन में देरी कर रही है।
इससे गरीब,मजदूर लाेगाें के काम धंधे पर असर पड़ रहा है। वैसे भी सरकार
ने इस बार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना यानी
मनरेगा के बजट में जबरदस्त कटौती कर दी है। इसके चलते से ग्रामीण क्षेत्र
में रोजगार संकट गहराता जा रहा है। मनरेगा के बजट में कटौती पर संसदीय
समिति ने भी चिंता जताई है। समिति की रिपोर्ट संसद में पेश की गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना काल में मनरेगा की भूमिका बेहद अहम रही
और यह जरूरतमंद लोगों के लिए संकट काल में बेहद मददगार रही। अभी भी देश
खास ताैर से ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार की स्थित अच्छी नहीं है।

साल 2023-24 के बजट में मनरेगा के लिए बजट आवंटन महज 60 हजार करोड़ रुपये
का है। यह पिछले साल के मुकाबले 18 फीसदी कम है। इससे उलट एक साल पहले इस
योजना के लिए बजट में 73 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। बाद
में इसे रिवाइज कर 89,400 करोड़ रुपये कर दिया गया था। इससे एक साल पहले
मतलब 2021-22 में इस योजना को 98,468 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। साल
2020-21 में तो इसके लिए बजट में तो 61,500 करोड़ रुपये का आवंटन किया
गया था, पर बाद में इसे रिवाइज कर 1,11,500 करोड़ रुपये कर दिया गया था।
मनरेगा काे लेकर भाजपा सरकार का रवैया शुरू से ही उत्साहजनक नहीं रहा है।
साल 2015 का बजट सत्र। इसी सत्र के दौरान नरेंद्र मोदी सरकार ने अपना
पहला पूर्ण बजट संसद में पेश किया था। प्रधानमंत्री ने मनरेगा को
कांग्रेस की विफलताओं का स्मारक बताया था। उन्हाेंने कहा था कि मनरेगा
कांग्रेस के 60 सालों के पापों का नतीजा है। यह उसकी विफलता का स्मारक
है। ऐसे में इसे बंद करने की गलती करने के बजाय इसे पूरे तामझाम और
गाजे-बाजे के साथ चलाते रहेंगे जिससे लोगों को पता चलता रहे कि आजादी के
60 साल बाद भी कौन लोगों से गड्ढे भरवा रहा है। खैर ,इतना कुछ कहने के
बावजूद मनरेगा चलता रहा । तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने पहले
पूर्ण बजट में मनरेगा के लिए 34,699 करोड़ रुपए आवंटित किया था। उन्होंने
अपने बजट में मनरेगा के मद में पिछले वर्ष आवंटित बजट से 699 करोड़
ज्यादा दिया था। तब जेटली ने यह भी कहा था कि उस साल टैक्स कलेक्शन बेहतर
रहा तो मनरेगा का पांच हजार करोड़ रुपए अतिरिक्त दिए जाएंगे। उल्लेखनीय
है कि साल 2014-15 के बजट में मनरेगा के मद ने 30 हजार करोड़ रुपए आवंटित
किया गया था। मंत्रालय से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ग्रामीण
क्षेत्र के लिए रकम में कटौती इसलिए
की गई है क्योंकि इस समय चाहे गांव हो या शहर, सब जगह गरीबों को फ्री
राशन दिया जा रहा है। ऐसे में उनके लिए अलग से कोई और योजना पर खर्च
करने की आवश्यकता उतनी नहीं रह जाती है जितनी पहले हुआ करती थी। मनरेगा
के आवंटन घटाने के पीछे शायद यही वजह है। उधर मंत्रालय का कहना है कि रकम
घटाने से कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा। मनरेगा एक मांग आधारित योजना ह।
रोजगार की मांग करने वाले किसी भी परिवार को योजना के अनुसार एक वित्तीय
वर्ष में कम से कम 100 दिनों का अकुशल शारीरिक श्रम प्रदान किए जाने का
प्रावधान है। वह आज भी किया जाता है।