दिलीप कुमार पाठक
आम जनता और कुछ क्षेत्रों में ऊर्जा संरक्षण के महत्व और तरीकों के बारे में जागरूकता की कमी है, जिससे व्यवहारिक बदलाव मुश्किल हो जाता है। सबसे आम ऊर्जा बर्बादी में से एक है जब लोग कमरे से बाहर निकलते समय पंखे, लाइट और अन्य बिजली के उपकरण बंद नहीं करते हैं, कई घरों में अभी भी पुरानी तकनीक वाले बल्ब और कम ऊर्जा-कुशल उपकरण का उपयोग किया जाता है, जो अधिक बिजली खाते हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स को बंद करने के बाद भी प्लग में लगा छोड़ देना, जैसे टीवी, कंप्यूटर, और चार्जर, ऊर्जा की खपत जारी रखते हैं जिसे “फैंटम पावर” कहा जाता है, और ऐसा नहीं है कि ये गलतियां शिक्षित लोग नहीं करते बल्कि वे भी करते हैं, चूंकि ये गैर जिम्मेदारी अधिकांश लोगों में है l यही कारण है कि हर साल 14 दिसंबर को भारत में ‘ऊर्जा संरक्षण दिवस’ मनाया जाता है । 2001 में सरकार ने ‘ऊर्जा दक्षता ब्यूरो’ बनाया था जो लोगों को जागरूक करे और लेखा -जोखा रखे l
भारत में राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस लोगों को ऊर्जा के महत्व के साथ ऊर्जा की बचत के माध्यम से संरक्षण बारे में जागरुक करना है। कुशलता से ऊर्जा का उपयोग भविष्य में उपयोग के लिए इसे बचाने के लिए बहुत आवश्यक है। ऊर्जा संरक्षण की योजना की दिशा में अधिक प्रभावशाली परिणाम प्राप्त करने के लिए हर इंसान के व्यवहार में ऊर्जा संरक्षण निहित होना चाहिए। कोई भी ऊर्जा की बचत इसकी गंभीरता से देखभाल करके कर सकता है, दैनिक उपयोग के बहुत-से विद्युत उपकरणों को, जैसे: बिना उपयोग के चलते हुये पंखों, बल्बों, समरसेविलों, हीटर को बंद करके आदि। यह अतिरिक्त उपयोग की ऊर्जा की बचत करने का सबसे कुशल तरीका है, जो ऊर्जा संरक्षण अभियान में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
जीवाश्म ईंधन, कच्चे तेल, कोयला, प्राकृतिक गैस आदि, दैनिक जीवन में उपयोग के लिए पर्याप्त ऊर्जा उत्पन्न करते हैं लेकिन दिनों-दिन इनकी बढ़ती मांग प्राकृतिक संसाधनों के कम होने का भय पैदा करता है। ऊर्जा संरक्षण ही केवल एक ऐसा रास्ता है, जो ऊर्जा के गैर- नवीनीकृत साधनों के स्थान पर नवीनीकृत साधनों को प्रतिस्थापित करता है। ऊर्जा उपयोगकर्ताओं को ऊर्जा की कम खपत करने के साथ ही कुशल ऊर्जा संरक्षण के लिये जागरुक करने के उद्देश्य से विभिन्न देशों की सरकारों ने ऊर्जा और कार्बन के उपयोग पर कर लगा रखा है। उच्च ऊर्जा उपभोग पर कर ऊर्जा के प्रयोग को कम करने के साथ ही उपभोक्ताओं को एक सीमा के अन्दर ही ऊर्जा का प्रयोग करने के लिये प्रोत्साहित करता है। लोगों को इस विषय पर अधिक जागरुक होना चाहिए कि कार्यस्थलों पर तेज रोशनी विभिन्न परेशानियों, बीमारियों को लाती है, जैसे: तनाव, सिर दर्द, रक्तचाप, थकान और कार्यक्षमता को कम करती है। जबकि, प्राकृतिक प्रकाश कार्यकर्ताओं के उत्पादकता के स्तर को बढ़ाता है और ऊर्जा की खपत को कम करता है। भारत में ‘पेट्रोलियम संरक्षण अनुसंधान एसोसिएशन’ वर्ष 1977 में भारत सरकार द्वारा भारतीय लोगों के बीच ऊर्जा संरक्षण और कुशलता को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया था। ये ऊर्जा का संरक्षण महान स्तर पर करने के लिए भारत सरकार द्वारा उठाया गया बहुत बड़ा कदम है l थर्मल पर्दें, स्मार्ट खिड़कियों के अलावा खिड़कियाँ ऊर्जा का संरक्षण करने में सबसे बड़ा कारक है। ऊर्जा की एक बड़ी मात्रा को प्राकृतिक रोशनी और कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लैंप या सीएफएल से फ्लोरोसेंट बल्ब, रैखिक फ्लोरोसेंट, सौर स्मार्ट टॉर्च, स्काई लाइट, खिड़कियों से प्रकाश व्यवस्था और सौर लाइट का प्रयोग करके हम बचा सकते हैं l
जल संरक्षण भी बेहतर ऊर्जा संरक्षण का नेतृत्व करता है। लोगों के द्वारा हर साल लगभग हजारों गैलन पानी बर्बाद किया जाता है जिसकी विभिन्न संरक्षण के साधनों, जैसे: 6 जीपीएम या कम से कम प्रवाह वाले फव्वारों, बहुत कम फ्लश वाले शौचालय, नल जलवाहक, खाद शौचालयों का प्रयोग करके बचत की जा सकती है। पृथक्करण सर्दी के मौसम में थर्मल को कम करने के साथ ही गर्मियों में थर्मल प्राप्त करके भी ऊर्जा के संरक्षण में बहुत अहम भूमिका निभाता है l भारत के अधिकांश नागरिक कुशलतापूर्वक ऊर्जा के उपयोग और भविष्य के लिये ऊर्जा की बचत के बहुत से तरीकों के बारे में जानते हैं। वो सभी नियमों, विनियमों और ऊर्जा दक्षता का समर्थन करने के लिए भारत सरकार द्वारा लागू की गई नीतियों का पालन करते हैं। भारत के नागरिक पंचवर्षीय योजना अवधि के दौरान ऊर्जा के उपयोग को कम करने के अभियान में प्रत्यक्ष अंशदान का भुगतान कर रहे हैं। देश में सकारात्मक बदलाव लाने और आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए नई पीढ़ी से बहुत आशाएं हैं l





