दुष्प्रभावों की गिरफ्त में पर्यावरण

Environment in the grip of adverse effects

शिशिर शुक्ला

मानवीय गतिविधियों की अति का नतीजा आज हम सबके सामने दृष्टिगोचर हो रहा है। हमारा पर्यावरण जोकि हमारे जीवन का आधार है, आज विनाश की गिरफ्त में जकड़ता जा रहा है। स्थितियां और परिस्थितियां इस कदर बिगड़ चुकी हैं कि शनैःशनैः हम ऐसी दशा की ओर बढ़ते जा रहे हैं जबकि जीवन के अस्तित्व को बचा पाने का लक्ष्य एक बहुत बड़ी चुनौती के रूप में हमारे सामने मौजूद होगा। देखा जाए तो आज पर्यावरण का कोई भी घटक ऐसा नहीं है जो मानव की प्रकृतिविरुद्ध गतिविधियों एवं क्रियाकलापों से अछूता रह गया हो। चाहे वह मिट्टी हो, जल हो, हवा हो, और तो और, ध्वनि एवं प्रकाश जोकि ऊर्जा के प्रमुखतम स्वरूप हैं, प्रदूषण में एक अच्छा खासा योगदान कर रहे हैं। हाल ही में स्विस वायु गुणवत्ता प्रौद्योगिकी कंपनी “आईक्यू एयर” ने वार्षिक विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली वर्ष 2018 से लगातार चौथी बार दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी बनी हुई है। इसके अतिरिक्त भारत वर्ष 2023 में बांग्लादेश एवं पाकिस्तान के बाद विश्व का तीसरा सबसे प्रदूषित देश रहा है। विश्व के दस सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से नौ शहर भारत में स्थित हैं जबकि अगर शीर्ष 100 पायदानों की बात की जाए तो 83 पायदानों पर भारत का कब्जा है। वायु प्रदूषण से संबंधित ये रिपोर्टें बिल्कुल चौंकाने वाली हैं।

रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1.36 अरब लोग पर्टिकुलेट मैटर 2.5 की उच्च सांद्रता की चपेट में आ चुके हैं जोकि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित वार्षिक स्तर 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की अपेक्षा बहुत ज्यादा है। पर्टिकुलेट मैटर का आकार माइक्रोन की कोटि का होने के कारण यह बड़ी आसानी से शरीर के अंदर जा सकता है।

वायु प्रदूषण का यह स्तर आखिरकार कैसे उत्पन्न हुआ। इस भयंकर स्थिति के लिए मानव की स्वार्थपूर्ण गतिविधियां ही पूर्णतया जिम्मेदार हैं। हम सबको भली भांति पता है कि वृक्ष वायु को शुद्ध करने की दिशा में एक महत्वपूर्णतम भूमिका का निर्वहन करता है, लेकिन हमने अपने स्वार्थ को साधने के लिए एक बड़ी संख्या में और अनियंत्रित ढंग से वृक्षों को काट डाला है। रिपोर्ट बताती है कि साल में एक करोड़ हेक्टेयर जंगल कटाई से खत्म हो रहे हैं। वनों के खत्म होने से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ता जा रहा है और इस वजह से वैश्विक तापन जैसी समस्या आज अपनी चरम स्थिति को प्राप्त कर चुकी है। रिपोर्ट बताती है कि विगत 30 वर्षों में 42 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र मैदान में परिवर्तित हो चुका है। यह कितनी चिंताजनक बात है कि हम उस ढाल को बराबर नुकसान पहुंचाते जा रहे हैं जो हमारे शरीर एवं जीवन की रक्षा के लिए नितांत आवश्यक है। इसके अलावा हम अपने क्रियाकलापों से प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने में सक्रिय योगदान भी कर रहे हैं। इस बारे में भी एक अहम रिपोर्ट यह बताती है कि भारत हर साल 34 लाख टन प्लास्टिक कचरा पैदा कर रहा है जबकि पूरी दुनिया में 30 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा प्रतिवर्ष पैदा हो रहा है। आज हम सब विकास के नाम पर एक अंधी दौड़ में शामिल हो चुके हैं।

लेकिन शायद हम यह भूल गए हैं कि हम जिस विकास की धारा में बहना चाहते हैं, वह विकास तो वास्तव में विनाश की नींव पर जन्म ले रहा है। एक उदाहरण के तौर पर, सड़कों के चौड़ीकरण के उद्देश्य को पूरा करने के लिए अनगिनत पेड़ पौधों की कुर्बानी दे दी जाती है। चिंता करने योग्य बात तो यह है कि कितने पेड़ कट रहे हैं इसका कोई हिसाब किताब अथवा लेखा-जोखा नहीं है, और अगर है भी तो जिस दर से कटान हो रहा है उस दर से नए पेड़ पौधे कदापि नहीं लगाए जा रहे हैं। वनों का अनियंत्रित कटान, जल का दुरुपयोग, उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों को जल में प्रवाहित करना, कृषि योग्य भूमि को लगातार आवासीय भूमि में तब्दील करते जाना, प्रकृति के संसाधनों का अतिदोहन, और भी न जाने कैसी कैसी गतिविधियां हैं जो पर्यावरण को एक गंभीर संकट की ओर धकेलती ही जा रही हैं। दरअसल हम तनिक विज्ञान और तकनीकी को अपना मित्र क्या बना पाए, हमने प्रकृति पर विजय पाने के बारे में सोचना शुरू कर दिया, और इसी के साथ आरंभ हो गई -अनियंत्रित गतिविधियों की एक गंभीर अन्धाधुन्धी। अगर गौर से देखा जाए तो हमारे इन स्वार्थपूर्ण क्रियाकलापों का बहुत गंभीर दुष्परिणाम संपूर्ण विश्व के सामने लगातार आता ही जा रहा है। कभी बादल फटता है, कभी जंगलों में आग लगती है, कभी अतिवृष्टि होती है तो कभी सूखा पड़ जाता है, कभी गर्मी एक सीमा को पार कर जाती है, और भी ऐसे न जाने कितने दुष्प्रभाव हैं जिनका सीधा सा असर हमारे जीवन पर पड़ता है। रिपोर्टें बताती हैं कि प्रदूषण का बेहद गंभीर असर गर्भावस्था पर भी पड़ रहा है। गर्मी और पर्यावरण में तीव्र परिवर्तन की वजह से 15.6 प्रतिशत बच्चे कम वजन के साथ तथा 35 प्रतिशत बच्चे समय से पूर्व पैदा हुए हैं।

वर्ष 2020 में भारत में समय से पूर्व जन्म लेने वाले बच्चे सर्वाधिक थे। इसके अलावा वर्ष 2020 में वायु प्रदूषण के कारण पूरी दुनिया में 20 प्रतिशत नवजात शिशुओं की भी मौत हो गई।पर्यावरण के साथ खिलवाड़ का नतीजा बताते हुए एक ताजा शोध यह कहता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण अंटार्कटिका से विशाल सुनामी आ सकती है। इसका कारण यह है कि अंटार्कटिक सागर का पानी तेजी से गर्म हो रहा है एवं समुद्र के भीतर भूस्खलन की प्रक्रिया भी जारी है। ये दोनों कारक मिलकर तीव्र सुनामी को जन्म दे सकते हैं। सवाल यह उठता है कि यदि स्थितियां इसी गति से बिगड़ती रहीं तो हमारा भविष्य कैसा होगा। हमारे द्वारा वर्तमान में बिल्कुल उसी तरह की बेवकूफी का परिचय दिया जा रहा है, जैसे कि एक कहानी में एक व्यक्ति जिस डाल पर बैठा था उसी डाल को काट रहा था। हमें यह भली-भांति समझ लेना चाहिए कि पर्यावरण हमारे शरीर एवं जीवन के लिए एक सुरक्षा कवच है। इस सुरक्षा कवच को भेदने का प्रयास तमाम बाहरी कारक वैसे ही कर रहे हैं। अगर हम खुद भी इसके महत्व को न समझते हुए स्वयं ही इसे तोड़ने का प्रयास करेंगे तो जाहिर सी बात है कि हमारा यह कदम हमारे बाहरी शत्रुओं को हमें नुकसान पहुंचाने के लिए एक मौका दे देगा। इस विकराल समस्या से बचने के लिए केवल यही उपाय कारगर हो सकता है कि हम सर्वप्रथम पर्यावरण के महत्व को समझे एवं स्वीकार करें। हमें यह गलतफहमी अपने दिमाग से निकाल फेकनी होगी कि विज्ञान और तकनीकी के बल पर हम इस संपूर्ण सृष्टि के मालिक बन चुके हैं और हम जो भी चाहेंगे वो करके रहेंगे। हमें अपने पुराने भारतीय दर्शन को अपनाते हुए प्रकृति एवं पर्यावरण के प्रत्येक घटक में ईश्वर के दर्शन करना होगा, तभी हम अपनी अनियंत्रित गतिविधियों पर लगाम लगा पाने में सक्षम हो सकेंगे। ये मानव की स्वार्थपूर्ण गतिविधियां ही है जिनके कारण आज हवा, पानी और मिट्टी तीनों में जहर घुल चुका है। हमें प्रत्येक स्तर पर जागरूकता का परिचय देते हुए पर्यावरण के प्रत्येक घटक जोकि हमारे लिए एक बहुमूल्य संसाधन की तरह है, को संरक्षित करने का दृढ़ संकल्प लेना होगा एवं अपनी उन सभी गतिविधियों पर लगाम लगानी होगी जिनकी वजह से दिन-ब-दिन हमारा पर्यावरण खतरे के घेरे में आता जा रहा है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो निश्चित रूप से एक दिन ऐसा आएगा जब हम अपने जीवन की रक्षा के लिए गिड़गिड़ा रहे होंगे और कहीं कोई हमारी सुनने वाला नहीं होगा।