मनोहर मनोज
इपीएफओ यानी कर्मचारी भविष्य निधि संगठन बजट में बेरोजगारी दूर करने के लिए घोषित अनेकानेक योजनाओं के जरिये तेजी से सुर्खियों में आई है। बजट में बेरोजगारी को लेकर घोषित तीन प्रमुख योजनाए जो देश के निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित कर लागू की जाएँगी उसका मुख्य करता धर्ता ईपीएफओ होगा। जैसा कि भारत सरकार ने देश में बेरोजगारों की बड़ी फोज और रिजर्व बैंक द्वारा हर साल 80 लाख रोजगार पैदा करने के लक्ष्य हासिल करने के लिए अपने विभागों की रिक्तियों को भरने से ज्यादा अब निजी क्षेत्र को तवज्जो देने जा रही है। इस बाबत सरकार ने अपना इरादा साफ साफ प्रदर्शित कर दिया है की भारत में रोजगार सृजन का भावी स्वरूप अब निजी क्षेत्र के कंधे पर होगा। इसे लेकर सरकार उन्हें श्रमिको के सामाजिक सुरक्षा की अपनी सर्वोच्च संस्था इपीएफओ के जरिये कई प्रोत्साहन देने का बस काम करेगी । अभी घोषित बजट में सरकार ने एक तरफ बड़े पैमाने पर पहले प्रशिक्षण व कौशल विकास तथा इंटर्नशिप प्रदान करने तो दूसरी तरफ इन प्रशिक्षुओं को निजी क्षेत्र में रोजगार मुहैय्या कराने वास्ते इपीएफओ को अपना सबसे बड़ा वाया मीडिया बनाया है। रोजगार के अधिकाधिक इच्छुकों और रोजगार आफर देने वाली कंपनियों दोनो को इपीएफओ के जरिये कई प्रोत्साहन देने हेतू बजट में कम से कम तीन रोजगार योजनाएं ऐसी घोषित की गई हैं जिसमे 1.07 लाख करोड़ की प्रोत्साहन राशि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन द्वारा व्यय की जाएगी।
गौरतलब है कि भारत में श्रम कल्याण व बेहतर कार्य परिस्थितियों का एक बड़ा निर्देशांक कर्मचारियों को मिलने वाली पीएफ सुविधा मानी जाती है। श्रम कानूनों के मुताबिक 20 से ज्यादा कामगार नियोजित करने वाली कंपनी को अपने कामगारों को भविष्य निधि संगठन का सब्सक्राइबर बनाना जरूरी है। इस संगठन मे अधिकतम 15 हजार प्रति माह पाने वाले श्रमिकों व उनके नियोक्ताओं द्वारा अंशदान दिया जाता है जिसमे कर्मचारी के मूल वेतन व महंगाई भत्ते का 12 फीसदी और नियोक्ता की तरफ से भी 12 फीसदी जिसमे 3.67 फीसदी इपीएफ कोष में और शेष 8.33 फीसदी इपीएस कोष में योगदान दी जाती है और यह राशि अधिकतम 1250 रुपये होती है।
इस बजट में निजी क्षेत्र व बाजार के जरिये रोजगार प्रोत्साहन व सृजन के लिए तीन योजना वित्त मंत्री ने घोषित की है। इसमें पहली योजना के तहत इपीएफओ द्वारा औपचारिक रोजगार क्षेत्र में पहली बार रोजगार प्राप्त कामगारों को एक माह की अधिकतम 15 हजार की वेतन राशि तीन किश्तों में डीबीटी माध्यम से प्रदान की जाएगी । इस पर कुल 23 हजार करोड रुपये की राशि व्यय होगी। मतलब साफ है कि कंपनियां इस स्कीम से नये कामगारों की नियुक्ति के लिए प्रोत्साहित होंगी। इस स्कीम की पात्रता एक लाख प्रति माह तक पाने वाले कु ल 210 लाख युवाओं को हासिल होगी।
इफीएफओ से जुड़ी दूसरी रोजगार योजना के तहत पहली बार रोजगार प्राप्त लोगों के हक में नियोक्ता की तरफ से इपीएफ की रकम का स्वयं सरकार द्वारा भुगतान किया जाएगा। इसके तहत सरकार मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में पहली बार नियुक्त कर्मचारी और उसके नियोक्ता संगठन दोनो को शुरू के चार साल तक इपीएफओ सदस्य के रूप में कुल 52 हजार करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि प्रदान करेगी जिससे करीब तीस लाख कामगार लाभान्वित होंगे।
इपीएफओ से जुड़ी तीसरी रोजगार योजना है जिसके तहत कंपनियों को उपरोक्त दोनो योजनाओं से इतर अतिरिक्त नियुक्तियों या भर्तियों के लिए प्रति कर्मचारी तीन हजार रुपये प्रतिमाह अगले दो वर्ष तक भुगतान की जाएगी। इस योजना मे सरकार की कुल 32 हज़ार करोड़ रुपये की राशि व्यय होगी। जाहिर है कंपनियां इस राशि से अपने नवनियुक्त कर्मचारी के भविष्य निधि राशि का भुगतान करेंगी ना कि अपने खाते से। अनुमान लगाया जाता है इस प्रोत्साहन राशि से देश में करीब पचास लाख लोगों को अतिरिक्त रोजगार सृजन का प्रोत्साहन मिलेगा। जाहिर है केंद्र सरकार ने देश में बेरोजगारी पर काबू पाने को लेकर निजी क्षेत्र को उत्प्रेरित करने के लिए अपनी सबसे बड़ी श्रमिक सामाजिक सुरक्षा संस्था को आगे किया है और इसी के मार्फ़त निजी कंपनियों को प्रोत्साहन राशि की अदायगी की जाएगी।
जाहिर है कि सरकार निजी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन की आस लगाए हुए है जिसके लिए इफीएफओ को वह एक उत्तोलक यानी कैटेलिस्ट की भूमिका प्रदान कर रही है। इसमें देश में आने वाले दिनों श्रमिक वर्ग के सामाजिक सुरक्षा का नेटवर्क काफी व्यापक होगा और ईपीएफओ की वित्तीय संरचना का भी विस्तार होगा। गौरतलब है कि इपीएफओ को नयी रोजगार योजनाओं का प्रोत्साहक बनाये जाने की प्रेरणा पिछले मई महीने में ईपीएफओ के रिकार्ड 19.5 लाख नये सब्सक्राइबर बनने से मिली। गौरतलब है कि इफीएफओ द्वारा मुद्रा बाजार में जमाओं पर सर्वाधिक ब्याज दर का भुगतान किया जाता है जो समय समय पर इपीएफओ के ट्रस्टी बोर्ड व सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है। वर्तमान में ईपीएफओ द्वारा अपने खाताधारकों को 8.25 फीसदी व्याज किया जाता है। यह कोष कर्मचारी के भविष्य या उसके अवकाश प्राप्ति के बाद एक वित्तीय सुरक्षा का कवच भी प्रदान करता है।
गौरतलब है कि भारत में कर्मचारी भविष्य निधि संगठन में करीब 1 करोड चालीस लाख श्रमशक्ति के खाते हैं। पिछले दस सालों से भविष्य निधि खाता धारकों की संखया करीब दोगुनी हो गई है। 1951 से शुरू कर्मचारी भविष्य निधि संगठन भारत में श्रमिकों के सामाजिक सुरक्षा की सबसे बड़ी संस्था मानी जाती है। गौरतलब है कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन की कुल कारपस फंड अभी करीब 15 लाख करोड़ रुपये की है और भारत सरकार की यह सबसे बड़ी पूंजी प्रदाता संस्था भी है। संगठन अपनी कुल जमा का करीब दस फीसदी हिस्सा इक्विटी मार्केट और ओवरसीज मार्केट में निवेश करता है। इस क्रम में सरकार द्वारा बजट में घोषित रोजगार योजनाओं में इपीएफओ का जमकर उपयोग किया गया है। अनुमान है की नयी योजनाओं से ईपीएफओ के खाताधारकों की संख्या 5 करोड़ को पार कर जाएगी। चूंकि इपीएफओ कर्मचारियों व नियोक्ताओं के अंशदान से अपना एक तरह से वित्तीय व्यवसाय भी करता है और उसी से श्रम कल्याण व सामाजिक सुरक्षा भी प्रदान करता है। सरकार ने कही न कही इपीएफओ के जमा फंड का उपयोग कर एक तीर से तीन शिकार किये है, पहला इपीएफओ के सब्सक्राइबर बेस को बढाना और दूसरा निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित कर बेरोजगारों को रोजगार प्रदान करना तथा तीसरा सरकार द्वारा भारी लागत वाली अनुत्पादक नौकरी देने के बोझ से बचना।
एक लंबे अरसे तक जो यह धारणा बनी थी कि अर्थव्यवस्था में सरकार कई बातों के अलावा सबसे बड़ी नियोक्ता की भी भूमिका निभाती है। इस धारणा को सरकार अब खारिज कर रही है और थोड़ा नहीं बल्कि उपरोक्त तीन योजनाओं के जरिये करीब चार करोड़ रोजगार सृजित कराना चाहती है। इसी क्रम में सरकार ने देश के पांच सौ बड़ी कंपनियों में पांच हजार प्रति माह स्टाइपेंड राशि पर अगले पांच साल तक देश के एक करोड युवाओं को इंटर्नशिप देने की योजना भी घोषित की है। इस स्टाइपेंड राशि मे दस फीसदी राशि कंपनियों को अपने सीएसआर फंड से वहन करना होगा ।
अब सवाल ये है की देश की मौजूदा आर्थिक वृद्धि दर और उसमे बाजार व निजी क्षेत्र की आर्थिक गतिशीलता की हिस्सेदारी क्या इतनी पर्याप्त मात्रा में प्रदर्शित होगी जिससे ये देश में अगले पांच सालों तक चार करोड रोजगार दे पाने में सक्षम हो पाएंगे? नवघोषित योजनाओं से अभी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल होगा। पर भारत की प्रगति दर अभी 7 फीसदी है यदि यह अगले पांच साल 8 फीसदी लगातार बरक़रार रही तो यह लक्ष्य संभव भी है।