भारत-चीन सीमा पर परिंदा भी पर न मार पाए : शाह

इंद्र वशिष्ठ

केंद्र सरकार ने हवाई जहाज और रेल यात्रा में सेना की तर्ज़ पर केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के लिए भी कोटा तय कर दिया है।
भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के 62 वें स्थापना दिवस पर देहरादून में आयोजित समारोह को शुक्रवार, 10 अक्टूबर को गृहमंत्री अमित शाह ने संबोधित किया।

जवानों के लिए खास बैरक –
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि आज हुई कई नई शुरुआतों में से एक जवानों के लिए सेल्फ सस्टेनेबल एनर्जी बिल्डिंग है और दुर्गम क्षेत्रों में ड्रोन सेवा की शुरुआत महत्वपूर्ण है।

लद्दाख़ के जुरसूर में 17 हजार फीट की ऊंचाई पर अत्याधुनिक तकनीक से बनी यह खास बैरक/इमारत ठंडे मरुस्थल में एक आत्म निर्भर भारत का प्रतीक बनेगी। जब यहां पर बाहर का तापमान शून्य से 40-45 डिग्री नीचे चला जाता है। डीज़ल, केरोसीन का इस्तेमाल नहीं हो पाता, ऐसे में यह भवन 18 से 19 डिग्री तापमान में जवानों को सुरक्षित, आरामदायक वातावरण उपलब्ध कराएगा। पैंतालीस दिन में बना यह एक स्थाई भवन/ बैरक है जो स्वयं कार्य करने के लिए सौर ऊर्जा, वायु ऊर्जा और भूतापीय ऊर्जा का उपयोग करता है।

ड्रोन सेवा शुरू-
ऊंचाई वाले और दुर्गम क्षेत्रों में आईटीबीपी जवानों और सीमावर्ती गांव वालों के लिए दवाओं , खाद्य सामग्री और अन्य जरुरी वस्तुओं आदि की आपूर्ति के लिए ड्रोन के इस्तेमाल की शुरुआत शुक्रवार से हो गई। पहला ड्रोन 15 किलो दवाईयां/ सब्जियां लेकर दुर्गम क्षेत्रों में पहुंचा।

कोई कब्जा नहीं कर सकता-
गृहमंत्री ने कहा कि हिमालय सीमा क्षेत्र की सुरक्षा की जिम्मेदारी हिमवीरों की है। 19 हजार फीट तक की ऊंचाई तक, माइनस 45 डिग्री तक तापमान, कम ऑक्सीजन में पैदल जा कर जवान बखूबी अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं। जरुरत पड़ने पर सर्वोच्च बलिदान देने से भी पीछे न हटना आईटीबीपी की परंपरा रही है। आईटीबीपी और सेना के जवान जब तक सीमा पर तैनात हैं तब तक देश की एक इंच भूमि को भी कोई कब्जा नहीं कर सकता। अब हिम वीरांगनाएं /बेटियां भी देश की सीमा की सुरक्षा में कंधे से कंधा मिलाकर शामिल हो रही हैं।

परिंदा भी पर न मार पाए-
अमित शाह ने कहा भारत विश्व का नेतृत्व करे, अमृत काल के दौरान ऐसा भारत साल 2047 तक बनाना है। भारत- चीन सीमा किस तरह से ज्यादा से ज्यादा सुरक्षित हो हिमवीर इसके लिए लक्ष्य गढे। साल 2047 तक परिंदा भी पर न मार पाए, इस प्रकार की सुरक्षा व्यवस्था खड़ी करें।

तीन गुना ज्यादा खर्च-
भारत- चीन सीमा पर अनेक प्रकार की दिक्कतें थी। साल 2014 से पहले भारत-चीन सीमा पर औसतन खर्च चार हज़ार करोड़ रुपये सालाना होता था। साल 2022-2023 में ये खर्च बढ़ कर तीन गुना (12340 करोड़ रुपये) हो गया। पिछले 9 साल में भारत-चीन सीमा पर औसतन खर्च तीन गुना सालाना बढ़ाया गया है। सीमा पर सड़क, सीमा चौकियां , जवानों की सुविधाएं बनाने के लिए और गांवों को संपूर्ण सुविधा युक्त गांव बनाने के लिए औसतन खर्च तीन गुना सालाना बढ़ाया गया है। इससे हेलिपैड, सीमा चौकियां, सड़क, दुर्गम क्षेत्रों में 350 से ज्यादा पुल, पुलिया आदि बनाने का काम किया है।

आतंकवाद पर काबू-
गृहमंत्री ने कहा कि विगत 9 साल में देश की आतंरिक सुरक्षा की स्थिति में ढेर सारे बदलाव आए हैं। देश में तीन हॉट स्पॉट कश्मीर, उत्तर पूर्वी राज्य और वामपंथी उग्रवादी क्षेत्र माने जाते थे। धारा 370 हटाने के बाद अब कश्मीर में आतंकवाद को पूर्णतया काबू में लेने में भारत को सफलता मिली है। कश्मीर पुलिस भी ढंग से आतंकवाद का सामना कर रही है। सभी प्रकार के आंकड़ों में और मृत्यु के मामलों में भी 72 फीसदी की गिरावट आई है। उत्तर पूर्वी क्षेत्र में भी सफलता मिली है। वहां पर भी हिंसक घटनाओं में और मृत्यु के मामलों में 65 फीसदी की कमी हुई है। वामपंथी उग्रवाद में भी 80 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। देश की आंतरिक सुरक्षा का दृश्य बहुत मजबूत हो रहा है।

आईटीबीपी का इतिहास-
गृहमंत्री ने जवानों से कहा कि आप देश की चिंता करिए, आप के परिवार की चिंता भारत सरकार करेगी। आईटीबीपी के हिमवीरों ने शौर्य, दृढ़ता और कर्मनिष्ठा के ध्येय वाक्य के साथ भारत की दुर्गम सीमाओं को सुरक्षित रखने का काम किया है। 62 साल पहले 7 वाहिनियों (बटालियन) के साथ शुरू हुआ आईटीबीपी आज एक लाख हिमवीरों, 60 वाहिनियों, 17 प्रशिक्षण केंद्रों, 16 सेक्टर, 5 फ्रंटियर और दो कमांड मुख्यालयों के साथ एक मजबूत बल के रूप में उभर कर आया है। भारत की 7516 किलोमीटर लंबी तटीय और 15000 किलोमीटर से अधिक भूमि सीमा है। भारत अपनी भूमि सीमा 7 देशों के साथ साझा करता है। हिमालयी क्षेत्र में सीमाओं की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी आईटीबीपी को दी गई है। आईटीबीपी ने 6 दशकों की अपनी अनवरत सेवा में 7 पदम श्री, 02 कीर्ति चक्र, 6 शौर्य चक्र, 19 राष्ट्रपति पुलिस पदक, 14 तेनजिंग नोर्गे एडवेंचर पदक और कई अन्य पदक प्राप्त किए हैं, जो इस बल के शौर्य और बलिदान के प्रतीक हैं।

(इंद्र वशिष्ठ दिल्ली में 1990 से पत्रकारिता कर रहे हैं। दैनिक भास्कर में विशेष संवाददाता और सांध्य टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप) में वरिष्ठ संवाददाता रहे हैं।)