अनु जैन राेहतगी
लगता है कि मोदी को हराने की मुहिम में विपक्षी दलों के छोटे- बड़े
नेताओं ने अपना मान-सम्मान, राजनीतिक मर्यादाओं को ताक पर ही रख दिया है।
पांच राज्यों में चुनावों की जबरदस्त गहमागहमी हैं और इन सब के बीच शायद
ही कोई दिन ऐसा बीतता होगा जब राज्यों में अलग-अलग दलों के नेता राज्यों
में अपनी सरकार बनाने के चक्कर में एक-दूसरे पर टीका-टिप्पणी ना करते हो,
अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं करते हों। लेकिन आश्चर्य तो तब होता है कि
इतना सब होने के बाद भी इन दलों के नेशनल लेवल के नेता कहते हैं कि
विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया का इन सबसे कुछ लेना-देना नहीं है। वहां
हम सब एक हैं क्योंकि हमें मिलकर ही मोदी को हराना है। आज का जो माहौल है
उससे साफ नजर आ रहा है कि राजनीति में स्वाभिमान, गरिमा का जैसे शब्दों
का कोई मोल नहीं रहा गया , बड़े तो बड़े छोटे दल के नेता भी अपने फायदे
के लिए किसी का अपमान करने में पीछे नहीं हैं।
पिछले कुछ समय की घटनाओं पर नजर डालें तो साफ लगता है कि दूसरे दलों के
नेताओं का अपमान करने में कांग्रेस सबसे आगे खड़ी है। ताजा उदाहरण तो
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के अपमान का ही है। किस तरह से
उन्हें ना तो मध्यप्रदेश में सीटें नहीं दी और अपमान अलग से कर दिया। यह
बात अलग है कि अपमान सहने को अखिलेश भी तैयार नहीं तो और उन्होंने और
उनके नेताओं ने जिस भाषा का प्रयोग किया वो राजनीति को बिल्कुल निचले
स्तर पर ले जाता प्रतीत होता है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच जिन
शब्दों का प्रयोग हुआ उसमें चिरकुट , छुटभैया, मंदबुद्धि, पागल,
अखिलेश-वखिलेश जैसे शब्द शामिल हैं जो राजनीति का स्तर नीचे गिराने के
लिए काफी हैं, लेकिन इससे भी बड़ी हैरानी जब होती है , जब पता चलता है कि
राहुल ने अखिलेश ये बात की और फिर सब शांत हो गया, जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
दो बड़े नेताओं ने बात की और बस मोदी को हराने की दुहाई देकर सब कुछ
भूलने की डील हो गई। इससे पहले आपको याद होगा कि अभी कुछ दिन पहले ही
कांग्रेस , आम आदमी पार्टी के साथ बीच पंजाब में जो लड़ाई हुई थी। जिस
तरह से दोनों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला लगा कि ये कैसे एक
गठबंधन में साथ रह सकते हैं, लेकिन बड़ी सफाई से केजरीवाल ने मैदान
संभाला लिया और कहा कि राज्य स्तर पर जो हो उसका असर हमारे गठबंधन पर
नहीं पड़ेगा , और शायद यही बात रही होगी कि मोदी को हराना है तो अपमान
सहना है और आगे बढ़ते रहना है।
अपने तेज तर्रार व्यवहार के कारण ममता बनर्जी तो मशहूर हैं , कोई उनके
खिलाफ बोल तो दे वो दस बार पलट कर जवाब देती हैं लेकिन हाल ही में पश्चिम
बंगाल की धरती पर ही कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने जमकर ममता
बनर्जी को कोसा, उनके खिलाफ कई अपमानजनक टिप्पणियां की । पर ममता के तो
जैसे मुंह ही सिल गया हो उसके विरोध में वह ज्यादा कुछ बोल ही ना सकी
क्योंकि उन्हें भी अपने गठबंधन के लिए वफादारी दिखाई थी और वह भी अपमान
का घूंट पीकर बैठ गई। वैसे ममता को कोसने में सीपीएआई नेता वृंदा करात
ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी, कानून व्यवस्था को लेकर ममता को खूब लताड़ा,
पर ममता दीदी की तरफ से कोई जवाब नहीं आया। ऐसे बहुत से किस्से घट रहे
हैं जिनका जिक्र करेंगे तो लंबी फेयर लिस्ट जारी करनी पड़ेगी। बस सवाल
यही है कि क्या ये मोदी को हराने के लिए विपक्ष का एक फामूर्ला है कि
राज्य स्तर पर खूब लड़ो, एक दूसरे को जमकर गालियां दो, पर नेशनल स्तर पर
दोस्ती कायम रखनी है। पर यहां एक बात विपक्ष को जरूर समझ लेनी चाहिए कि
उनकी इस कवायद में एक तरफ तो राजनीति का स्तर नीचे गिरता जा रहा है और
दूसरी तरफ आम जनता भी हैरान-परेशान है कि अगर विपक्षी दलों में अभी से ये
लड़ाई है तो नेशनल लेवल पर क्या ये सरकार बना पाएंगे और अगर बन भी जाएगी
तो कितने दिन की सरकार होगी। यहां एक बात समझने वाली है कि जब किसी
पार्टी, किसी दल, किसी संगठन में नीचे के स्तर पर ही तालमेल नहीं हैं तो
ऊपर तक वह तालमेल कैसे रह सकता है।