अशोक भाटिया
भारत के प्रधान मंत्री के रूप में अपने समय के दौरान, नरेंद्र मोदी ने एक साहसिक विदेश नीति लागू की है जिसका उद्देश्य विभिन्न आकार के देशों के साथ भारत के संबंधों को बढ़ाना है। मोदी की व्यक्तिगत कूटनीति, जो अक्सर उनके गतिशील और करिश्माई नेतृत्व के माध्यम से प्रदर्शित होती है, भारत के विदेशी संबंधों को बदलने में महत्वपूर्ण रही है। अपनी विदेश यात्राओं में छोटे देशों को वरीयता देने का विचार एक बहुध्रुवीय दुनिया की स्थापना के एक बड़े लक्ष्य पर आधारित है जहां भारत महत्वपूर्ण शक्ति रखता है।
इसी तरह, श्रीलंका और नेपाल जैसे देशों की मोदी की नियमित यात्राओं ने सीमा विवाद और जातीय मतभेदों जैसे मामलों पर उत्पन्न होने वाले तनाव को कम करने में भूमिका निभाई है। नेतृत्व के साथ सीधे जुड़ने के मोदी के प्रयासों ने संबंधों को स्थिर करने और व्यापार, बुनियादी ढांचे के विकास और सुरक्षा मुद्दों पर सहयोग बढ़ाने की नींव रखने में योगदान दिया है।
छोटे देशों के साथ बातचीत करने का मोदी का तरीका दक्षिण एशिया में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहां चीन की बढ़ती उपस्थिति अक्सर भारत के प्रभाव के लिए एक चुनौती बन जाती है। मोदी का लक्ष्य चीन के बढ़ते बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को संतुलित करना और छोटे पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में सुधार करके क्षेत्र में भारत के प्रभुत्व को बनाए रखना है। छोटे देशों पर भारत का ध्यान “नेबरहुड फर्स्ट” नीति के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को भी उजागर करता है, जो पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को बढ़ाने को प्राथमिकता देता है।
मोदी की छोटे देशों की यात्राओं का एक अन्य महत्वपूर्ण लाभ आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहित करना है। भारत अक्सर बुनियादी ढांचे के निर्माण, व्यापार गठबंधन बनाने और छोटे देशों के साथ निवेश को सुविधाजनक बनाने पर केंद्रित पहलों में संलग्न रहता है। इन बैठकों के परिणामस्वरूप अन्य क्षेत्रों के अलावा कृषि, प्रौद्योगिकी, नवीकरणीय ऊर्जा और शिक्षा में व्यापार सौदे और साझेदारी स्थापित हुई।
इसके अतिरिक्त, छोटे देशों के साथ व्यापार संबंधों को मजबूत करने के लिए मोदी का समर्पण अपने व्यापार गठबंधनों का विस्तार करने के भारत के समग्र लक्ष्य का समर्थन करता है। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत का लक्ष्य संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ और चीन जैसे पारंपरिक व्यापार सहयोगियों पर अपनी निर्भरता कम करना और नए बाजारों की खोज करना है। हालांकि आर्थिक आकार में छोटे, छोटे देश अक्सर विशिष्ट बाजारों और नए क्षेत्रों में सहयोग के अवसर प्रदान करते हैं।
2014 में मोदी की फिजी यात्रा न केवल राजनयिक उद्देश्यों के लिए, बल्कि प्रशांत द्वीप समूह में भारतीय समुदाय के साथ संबंधों को बढ़ाने में इसके प्रतीकात्मक मूल्य के लिए भी एक महत्वपूर्ण अवसर था। इस यात्रा ने प्रशांत द्वीप देशों के प्रति भारत के समर्पण पर जोर दिया और एक रणनीतिक क्षेत्र के रूप में हिंद-प्रशांत के महत्व की पुष्टि की। मोदी ने साझा सांस्कृतिक संबंधों के महत्व पर प्रकाश डालकर स्थानीय समुदायों के साथ भारत के संबंधों को मजबूत किया है, जिसमें इन देशों के सांस्कृतिक विकास पर भारतीय प्रवासियों का प्रभाव भी शामिल है।
शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और आपदा राहत में भारत की भागीदारी ने एक सहायक अंतरराष्ट्रीय भागीदार के रूप में अपनी छवि को मजबूत किया है। छोटे द्वीपीय देशों की अपनी यात्रा के दौरान मोदी ने आपदा प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों के लिए सहायता का वादा किया। भारत छात्रवृत्ति और कौशल विकास कार्यक्रम प्रदान करके उन देशों में क्षमता निर्माण के प्रयासों में भी संलग्न रहा है, जिसके परिणामस्वरूप दुनिया भर में सकारात्मक प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 15 से 18 दिसंबर तक जॉर्डन, इथियोपिया और ओमान की यात्रा पर निकले हुए हैं। पीएम मोदी की इस यात्रा का पहला पड़ाव छोटा सा मुस्लिम देश जॉर्डन है। जॉर्डन के राजा किंग अब्दुल्ला के निमंत्रण पर जॉर्डन की 75 साल पूरे होने पर पीएम मोदी वहां पहुचे है । इजराइल और सऊदी के बीच बसा एक छोटा सा देश जॉर्डन, जिसके पास न तो तेल का भंडार हैं और न ही दुर्लभ खनिज, जिस देश का हथियारों से भी कोई लेना-देना है, आखिर उस देश पीएम मोदी की इस यात्रा के मायने क्या है। मुस्लिम देश जॉर्डन का शाही परिवार हाशमी राजवंश का हिस्सा है, जो दुनिया के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित शाही घरानों में से एक है, जिसकी जड़ें पैगंबर मोहम्मद से जुड़ी हैं। आज जानेंगे उस शाही परिवार से लेकर पीएम मोदी के इस दौरे के मायने और भारत के लिए इस देश की जरूरत के बारे में जानना जरुरी है ।
दरअसल 89,342 वर्ग किमी वाला देश जॉर्डन भारत का चौथा सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है। भारत इसी देश से अपनी जरूरत का 40% खाद खरीदता है। दोनों देशों के बीच का रिश्ता 75 साल पुराना है। भारत के साथ इससे संबंधों से पहले यहां से शाही परिवार के बारे में जानते हैं। जॉर्डन की राजशाही और वहां का राज परिवार पैंगबर मोहम्मद के वंश से आते हैं। मौजूदा राजा अब्दुल्ला द्वितीय साल बीते 25 सालों से जॉर्डन के राजा बने हुए हैं। साल 1999 में उन्होंने राज गद्दी संभाली और अब पैगंबर मुहम्मद की 41वीं पीढ़ी के वंशज हैं। ब्रिटेन और अमेरिका में पढ़ाई करने वाले अब्दुल्ला ने एक आम लड़की से शादी की। राज परिवार करीब 99 एकड़ में फैले महल अल-मकार में रहता है। अल-मकार राजधानी अम्मान में है, जिसे 1918 में बनाया गया था।
2018 में किंग अब्दुल्ला द्वितीय भारत यात्रा पर आए थे। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोबाल और कई मंत्री भी जॉर्डन जाते रहे हैं। अप्रैल 2025 में दोनों देशों के बीच चौथे दौर की फॉरेन ऑफिस कंसल्टेशन भी हुई। भारत जॉर्डन का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। 2023 से लेकर 2024 में दोनों देशों का व्यापार 2।875 अरब अमेरिकी डॉलर यानी कि 25858 करोड़ का रहा है। भारत ने जॉर्डन को ₹1465 मिलियन यानी कि 13 करोड़ का निर्यात किया था। भारत मुख्यत इलेक्ट्रिकल उपकरण, अनाज, केमिकल, पेट्रोलियम और ऑटो पार्ट्स भेजता है। जॉर्डन से उर्वरक, फास्फेट और फास्फेरिक एसिड आयात किए जाते हैं। दोनों देशों की कंपनियों के बीच बड़े निवेश भी हैं। फास्फेट और टेक्सटाइल क्षेत्रों में 1।5 अरब डॉलर का महत्वपूर्ण भारतीय निवेश है। वहीं इफको जेपीएमसी का 860 मिलियन डॉलर वाला ज़िफको प्रोजेक्ट फॉरेस्फेरिक एसिड उत्पादन में अहम है। 15 से अधिक भारतीय मूल की गवर्नमेंट कंपनियां भी जॉर्डन में काम करती हैं। 2025 में हेल्थ पर जॉइंट वर्किंग ग्रुप की बैठक में मेडिसिन रेगुलेशन, मेडिसिन डिवाइस और डिजिटल हेल्थ मिशन पर अहम चर्चा हुई।
कोविड-19 के दौरान दोनों देशों ने आपसी मदद की। भारत ने जॉर्डन को 5 मिलियन डॉलर की दवाइयां और वैक्सीन भी भेजी। शिक्षा दोनों देशों के लोगों को जोड़ने का बड़ा माध्यम है। 2500 से अधिक जॉर्डेनियन भारतीय विश्वविद्यालयों के पूर्व छात्र हैं। हर साल लगभग 500 छात्र भारत में पढ़ते हैं। भारत ने जॉर्डन में आईटी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित किया है। जहां साइबर सिक्योरिटी, मशीन लर्निंग और बिग डाटा में ट्रेनिंग दी जाती है। बॉलीवुड फिल्में जॉर्डन में बहुत लोकप्रिय हैं। कई हिंदी फिल्मों की शूटिंग जॉर्डन में हुई है। ज़ेरश फेस्टिवल जैसे बड़े सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भारत की प्रस्तुतियां नियमित रूप से शामिल होती हैं। योग दिवस 2025 में जॉर्डन की राजकुमारी बस्मा बिंत अली ने हिस्सा लिया था। यहां भारतीय समुदाय अपने सांस्कृतिक कार्यक्रमों और त्यौहार मनाता है। यानी दोनों के देश दोनों देशों में अच्छी खासी पकड़ है और अच्छी खासी पकड़ का मतलब अच्छे खासे रुशते हैं। अब दूसरी बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गए हैं।
गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी की कम ज्ञात देशों की यात्राएं अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर एक परिष्कृत और दूरदर्शी रुख को प्रदर्शित करती हैं। इन देशों के साथ बातचीत करके, मोदी ने न केवल भारत के आमने-सामने के संबंधों को मजबूत किया है, बल्कि भारत के रणनीतिक और आर्थिक लक्ष्यों को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन यात्राओं के कई लाभ विविध हैं: भारत के प्रभाव को बढ़ाने और क्षेत्रीय सुरक्षा में सुधार से लेकर आर्थिक साझेदारी को बढ़ावा देने और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने तक।
कई ध्रुवों वाली दुनिया में, वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को परिभाषित करने के लिए बड़े और छोटे दोनों देशों के साथ महत्वपूर्ण संबंध विकसित करने की भारत की क्षमता आवश्यक होगी। छोटे देशों के साथ जुड़ने के मोदी के प्रयास अधिक विविध, न्यायसंगत और सामंजस्यपूर्ण दुनिया में नेतृत्व करने की भारत की आकांक्षा को दर्शाते हैं। जैसे-जैसे भारत वैश्विक मंच पर अपनी उपस्थिति बढ़ाएगा, ये साझेदारियां अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में भविष्य की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।





