रावेल पुष्प
कोलकाता : गीतेश शर्मा जी जहां भी जरूरत होती, निर्भीक होकर उसकी खुलकर आलोचना करते थे। जनसंसार में वे आखिरी दम तक नियमित साहित्यिक अड्डे लगाया करते थे। इसलिए जनसंसार तो साहित्य का मंदिर है।
ये विचार व्यक्त कर रहे थे दिवंगत पत्रकार, लेखक गीतेश शर्मा जी की द्वितीय पुण्यतिथि पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए उनके अंतरंग मित्र और आईसीसीआर के भूतपूर्व निदेशक श्री गौतम दे।
इस मौके पर उनके साथ लंबे समय के साथी रहे रंग समीक्षक और अनुवादक प्रेम कपूर ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए उनके बेबाक अंदाज से संबंधित कई घटनाओं का जिक्र किया और कहा कि उनका परिवार तो साहित्यकार ही थे। गीतेश शर्मा जी के कोलकाता में शुरुआती दौर से मित्रों की सूची में शामिल रहे और ताजा टीवी के निदेशक विश्वंभर नेवर ने कहा कि वे स्वयं एक व्यवसायिक परिवार का होते हुए भी पत्रकारिता के क्षेत्र में आए तो इसके पीछे गीतेश शर्मा जी का ही हाथ रहा और उन्होंने उनके कुछ प्रसंगों को याद करते हुए उन्हें औघड़दानी भी कहा। इस मौके पर बांग्ला लेखक अमिताभ चक्रवर्ती ने जहां उनके साथ की दो घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि वे बड़े हिम्मती थे और जिनके मेहमान होते,उसकी भी जरूरी समझते तो खुली आलोचना कर देते, वहीं वैचारिकी के संपादक डॉ बाबूलाल शर्मा ने कहा कि वे अपने बेबाकीपन का जोखिम उठा सकते थे और अपने तर्क को सही साबित करने में भी पीछे नहीं हटते थे ।
प्रो. गीता दुबे ने कहा कि तमाम असहमतियों के बावजूद वे मेल मिलाप से कभी गुरेज नहीं करते थे। जन संसार के कण कण में उनकी सांसें बसी हुई हैं।
कोलकाता ट्रांसलेटर्स फ़ोरम के अध्यक्ष तथा कवि रावेल पुष्प ने उनके साथ रानीगंज में रहते हुए 70 के दशक से अपने संबंधों को याद किया और उनके बचपन की उस घटना का खासतौर से जिक्र किया कि कैसे उस घटना ने उन्हें आस्तिक से पूर्ण नास्तिक बना दिया। उनके सबके बीच अभी भी जीवंत होने के एहसास को उन्होंने एक शेर के माध्यम से व्यक्त किया-
कौन कहता है कि मैं मर जाऊंगा
मैं तो दरिया हूं समंदर में उतर जाऊंगा ।
इसके अलावा उनके साथ अपने संस्मरणों के माध्यम से यादें ताजा कर रहे थे- सर्वश्री दिनेश वढेरा,ज़रीना ज़रीन, अशोक झा, प्रदीप जवारिका, विमल शर्मा, प्रीतम मजूमदार, अमलेश दासगुप्ता, शाहिद हुसैन शाहिद, शाहिद फ़रोगी, बाबूलाल दूगड़, आफताब आलम, हेमेन भट्टाचार्य, शर्मीली दास, सीमा गुप्ता, प्रताप जायसवाल, खुर्शीद एकराम मान्ना, नुरुल हुदा,रमेश शर्मा, बाबूलाल दूगड़, गीताजी तथा अन्य ।
उपस्थित सभी की ये दिली मंशा रही कि- जनसंसार के साहित्यिक अड्डे गीतेश जी की यादों में गुलजार रहें!