योगेश कुमार गोयल
तेलंगाना विधानसभा चुनाव की मतदान प्रक्रिया के समापन के साथ ही पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव को लेकर तमाम सर्वे एजेंसियों ने अपने-अपने एग्जिट पोल्स का प्रसारण कर दिया था। मिजोरम में 7 नवम्बर, छत्तीसगढ़ में 7 और 17 नवम्बर, मध्य प्रदेश में 17 नवम्बर, राजस्थान में 25 नवम्बर और तेलंगाना में 30 नवम्बर को मतदान हुआ था। अधिकांश एग्जिट पोल में राजस्थान और मध्य प्रदेश में सत्ता के लिए कांटे की टक्कर होने का अनुमान लगाया था लेकिन कुछ एग्जिट पोल ऐसे भी थे, जिनमें किसी में कांग्रेस की एकतरफा जीत का अनुमान व्यक्त किया गया था तो किसी में भाजपा की। राजस्थान में आज तक-एक्सिस माय इंडिया के एग्जिट पोल में कांग्रेस के 86-106 जबकि भाजपा के 80-100 सीटें जीतने का अनुमान लगाया था, वहीं जन की बात के एग्जिट पोल के अनुसार कांग्रेस को केवल 62-85 सीटें और भाजपा को 100-122 सीटें मिलने का अनुमान था।
इंडिया टीवी-सीएनएक्स के एग्जिट पोल में कांग्रेस को 94-104 सीटें मिलने का अनुमान था जबकि भाजपा के 80-90 सीटों पर ही सिमटने की भविष्यवाणी भी थी जबकि दैनिक भास्कर के एग्जिट पोल के मुताबिक भाजपा को 95-115 और कांग्रेस को 105-120 सीटें मिलने की संभावना व्यक्त की गई थी। जन की बात के एग्जिट पोल में भाजपा को 100-123 और कांग्रेस को 102-125 सीटें मिलने का अनुमान था। टीवी-9 पोलस्ट्रैट के एग्जिट पोल में कहा गया था कि भाजपा को 106 और कांग्रेस को 111-121 सीटें मिल सकती हैं। छत्तीसगढ़ में तो लगभग सभी एग्जिट पोल कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिलने की बात कही गई थी। राजस्थान में न्यूज 24-टुडेज चाणक्य ने भाजपा को 77-101, कांग्रेस को 89-113 और अन्य को 2-16 सीटें मिलने का अनुमान व्यक्त किया था। इसी प्रकार भाजपा, कांग्रेस तथा अन्य को इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया ने क्रमशः 80-100, 86-106 तथा 9-18, टीवी9-पोलस्टार ने 100-110, 90-100 तथा 5-15, दैनिक भास्कर ने 95-115, 105-120 तथा 0-15 सीटें मिलने की संभावना व्यक्त की थी। वहीं एबीपी-सी वोटर ने भाजपा, कांग्रेस तथा अन्य को क्रमशः 94-114, 71-91 सीटें मिलने का अनुमान जताया था। चुनावी नतीजे देखें तो राजस्थान में भाजपा को 115, कांग्रेस को 69 तथा अन्य को 15 सीटें मिली हैं जबकि मध्य प्रदेश में भाजपा को 164, कांग्रेस को 65 और अन्य को 1 सीट मिली हैं, वहीं छत्तीसगढ़ में भी भाजपा तमाम एग्जिट पोल के अनुमानों से परे 54 सीटें हासिल कर पूर्ण बहुमत हासिल करने में सफल रही है। विभिन्न एग्जिट के मुताबिक मिजोरम में एमएनएफ को 14 से 18, कांग्रेस को 8 से 10, जेपीएम को 12 से 16 सीटें मिलने के अनुमान था और त्रिशंकु विधानसभा होने की भविष्यवाणी की गई थी। हालांकि चुनावी नतीजों में जेपीएम को पूर्ण बहुमत के साथ 27 सीटें मिली जबकि एमएनएफ को 10, भाजपा को 2 और कांग्रेस को महज 1 सीट ही मिली यानी मिजोरम में भी तमाम एग्जिट पोल औंधे मुंह गिरे।
देखने वाली बात यह है कि कई एग्जिट पोल के आंकड़ों में बड़ा अंतर था और साथ ही इनमें हमेशा प्लस-माइनस का भी बड़ा खेल शामिल रहता है। यही कारण है कि एग्जिट पोल में किए जाने वाले दावों पर अब आंख मूंदकर भरोसा नहीं किया जाता क्योंकि ये केवल चुनाव परिणामों का पूर्वानुमान ही होते हैं और अभी तक कई बार ऐसा हो चुका है, जब विभिन्न एग्जिट पोल में किए गए पूर्वानुमान से चुनाव परिणाम बिल्कुल उलट रहे। वैसे चुनावी सर्वे कराए जाने का इतिहास बहुत पुराना है और दुनिया के कई देशों में ऐसे सर्वे कराए जाते हैं। चुनावी प्रक्रिया के दौरान जब तक अंतिम वोट नहीं पड़ जाता, तब तक किसी भी रूप में एग्जिट पोल का प्रकाशन या प्रसारण नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि एग्जिट पोल मतदान प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही दिखाए जाते हैं। मतदान खत्म होने के कम से कम आधे घंटे बाद तक एग्जिट पोल का प्रसारण नहीं किया जा सकता। इनका प्रसारण तभी हो सकता है, जब चुनावों की अंतिम दौर की वोटिंग खत्म हो चुकी हो। यह नियम तोड़ने पर दो वर्ष की सजा या जुर्माना अथवा दोनों हो सकते हैं। यदि कोई चुनाव कई चरणों में भी सम्पन्न होता है तो एग्जिट पोल का प्रसारण अंतिम चरण के मतदान के बाद ही किया जा सकता है लेकिन उससे पहले प्रत्येक चरण के मतदान के दिन डेटा एकत्रित किया जाता है।
एग्जिट पोल से पहले चुनावी सर्वे किए जाते हैं और सर्वे में बहुत से मतदान क्षेत्रों में मतदान करके निकले मतदाताओं से बातचीत कर विभिन्न राजनीतिक दलों तथा प्रत्याशियों की हार-जीत का आकलन किया जाता है। अधिकांश मीडिया संस्थान कुछ प्रोफैशनल एजेंसियों के साथ मिलकर एग्जिट पोल करते हैं। ये एजेंसियां मतदान के तुरंत बाद मतदाताओं से यह जानने का प्रयास करती हैं कि उन्होंने अपने मत का प्रयोग किसके लिए किया। उन्हीं आंकड़ों के गुणा-भाग के आधार पर हार-जीत का अनुमान लगाया जाता है। इस आधार पर किए गए सर्वेक्षण से जो व्यापक नतीजे निकाले जाते हैं, उसे ही ‘एग्जिट पोल’ कहा जाता है। चूंकि इस प्रकार के सर्वे मतदाताओं की एक निश्चित संख्या तक ही सीमित रहते हैं, इसलिए एग्जिट पोल के अनुमान हमेशा सही साबित नहीं होते। एग्जिट पोल वास्तव में कुछ और नहीं बल्कि वोटर का केवल रूझान होता है, जिसके जरिये अनुमान लगाया जाता है कि नतीजों का झुकाव किस ओर हो सकता है। एग्जिट पोल के दावों का ज्यादा वैज्ञानिक आधार इसलिए भी नहीं माना जाता क्योंकि ये कुछ हजार लोगों से बातचीत करके उसी के आधार पर तैयार किए जाते हैं। वास्तव में ये सिर्फ अनुमानित आंकड़े होते हैं और कोई जरूरी नहीं कि मतदाता ने सर्वेकर्ताओं को अपने मन की सही बात ही बताई हो। यही कारण है कि एग्जिट पोल की विश्वसनीयता को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं।