नये विश्व एवं विश्वास के लिये दावोस से उम्मीदें

ललित गर्ग

स्विट्जरलैंड के पूर्वी आल्पस क्षेत्र के दावोस में अगले सप्ताह 54वीं वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की सालाना बैठक दुनिया को नये विश्वास एवं नवीन संभावनाओं से सराबोर करने के लिये आयोजित हो रही है। इससे नये विश्व एवं नये मानव समाज की संरचना का आकार उभर कर सामने आना चाहिए। इस महत्वपूर्ण एवं दुनिया को नयी दिशा देने वाली बैठक की थीम है विश्वास का पुनर्निर्माण। मौजूदा दौर में सर्वथा प्रासंगिक विषय एवं सन्दर्भ में आयोजित हो रही यह बैठक इसलिये खास है क्योंकि आज दुनिया अनेक मोर्चों पर बिखरी हुई है, मानवता के सामने नित नयी चुनौतियां खड़ी हो रही है, किसी को किसी पर विश्वास नहीं है, स्वार्थ एवं संकीर्णताओं ने मानवता का गला घोट रखा है। युद्ध, हिंसा, आतंकवाद एवं पर्यावरण की चुनौतियों से विश्व मानवता कहरा रही है। दुनिया के विभिन्न देशों के बीच आपसी तनाव एवं द्वंद्व की फेहरिस्त तो खासी लंबी है। सभी का नुकसान हो रहा है, यह कहीं तो रुकना चाहिए।

हर देश केवल खुद के बारे में ही सोच रहा है। ऐसा करते हुए वह अपने लिए नुकसानदायक पहलुओं का भी अहसास नहीं कर पा रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध दो साल से नहीं थमा है और इधर इजरायल-फिलिस्तीन आपस में लड़ रहे हैं। ताइवान के मुद्दे पर अमरीका और उसके समर्थक अन्य यूरोपीय देशों से चीन का लगातार टकराव हो रहा है। दावोस की बैठक में इस संबंध में कुछ ठोस पहल का मार्ग प्रशस्त होगा, इसकी उम्मीद की जा सकती है।

दावोस की इस बैठक के जो बड़े मुद्दंे हैं, जिनमें पहला खंडित दुनिया में सहयोग और सुरक्षा का वातावरण निर्मित करना है। इस बैठक का दूसरा बड़ा मुद्दा जलवायु परिवर्तन का है, जो लगातार जटिल होता जा रहा है। दुनिया एवं हिमालय में बर्फ कम हो रही है, ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं, कार्बन उत्सर्जन निरंतर विनाशकारी स्तर तक बढ़ता जा रहा है। पूरी दुनिया इन विनाशकारी स्थितियों से अवगत है। इसके बावजूद दुनिया के ज्यादातर देश इसे लेकर ज्यादा गंभीर नहीं हैं। जो देश इसके लिए बहुत ज्यादा जिम्मेदार हैं, उनको तो इस दिशा में गंभीरता दिखानी चाहिए। जो शक्ति एवं साधन सम्पन्न देश है उन्हें आगे आकर इन समस्याओं के निदान हेतु आर्थिक मदद करनी चाहिए, लेकिन वे इससे मुंह मोड़ रहे हैं।

दावोस की इस बैठक में दुनिया की ज्वलंत समस्याओं के समाधान की दिशा में ठोस होगा। चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं पर नियंत्रण जरूरी है, वही पाकिस्तान के द्वारा आतंकवाद को बल देना भी दुनिया की बड़ी समस्या है। इसके लिये बढ़ते साइबर अपराध, आर्थिक अपराधीकरण, साम्प्रदायिक संकीर्णताएं भी बढ़ते व्यापार एवं आर्थिक उन्नति की बड़ी बाधाएं हैं। बेरोजगारी, महिलाओं पर हो रहे अपराध एवं अत्याचार, युवाओं में बढ़ती निराशा आदि समस्याओं पर भी ठोस चिन्तन एवं मंथन जरूरी है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआइ की तकनीक की व्यापक चर्चा दुनियाभर में सुनने को मिल रही है, चिकित्सा एवं अन्य तकनीकी क्षेत्रों में जहां इसकी उपयोगिता है, वहीं इसके खतरे भी कम नहीं है। एआइ इस बैठक के अहम मुद्दों में शामिल है। सकारात्मक परिणामों के साथ इसके नकारात्मक प्रभावों की झलक हमें बड़ी-बड़ी कंपनियों में छंटनी, साइबर अपराधों में बढ़ोतरी, संवेदनशील क्षेत्रों में दुरुपयोग व जोखिम के रूप में देखने को मिल रही है। इसके बावजूद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता। कुछ ऐसे रास्तों और उपायों की तलाश इस बैठक का मकसद होना चाहिए, जिनकी मदद से इस तरह की तकनीक का दुरुपयोग रोका जा सके। यह भी संभव है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कुछ खास किस्म के रोजगारों को खत्म या कम कर दे।

दावोस की बैठक में ये सभी चिंताएं भी सामने आएंगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि हालात को कुछ बेहतर बनाने का रास्ता निकलेगा और सभी देश अपने-अपने हिस्से की जिम्मेदारी का निर्वहन ईमानदारी के साथ करेंगे। खासतौर पर विकसित देशों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।

दावोस की बैठक में विश्व राजनीति, वैश्विक व्यापार, नागरिक समाज और विभिन्न सांस्कृतिक क्षेत्रों से सावधानीपूर्वक चुने गए 2000 दूत शामिल हैं, जिनमें विविध क्षेत्रों के प्रभावी हस्तियां दुनिया की स्थिति के बारे में सार्थक चर्चा को प्रोत्साहित करेगी और वैश्विक चिंताओं को दबाने के लिए सहयोगात्मक रूप से समाधान प्रस्तुत करेगी। यह बैठक प्रतिनिधियों के लिए एकजुट होने, प्रयासों में तालमेल बिठाने और अपनी श्रेष्ठता प्रदर्शित करते हुए महत्वपूर्ण मुद्दों को एकजुट होकर संबोधित करने का एक अवसर है। ध्यान दें कि कम सहयोग, भू-राजनीतिक तनाव और व्यापक सामाजिक अशांति, निम्न-विकास, जलवायु परिवर्तन और 2050 तक कार्बन तटस्थता प्राप्त करने के लिए एक मजबूत और टिकाऊ नींव रखते हुए उद्योगों को फिर से आकार देने एवं संगठित करने, एआई का प्रभाव इस वर्ष के लिए कुछ मजबूत केंद्र बिंदु हैं। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठकों में आर्थिक उन्नति की चर्चाओं के साथ विश्वशांति, अहिंसा एवं युद्धमुक्ति पर व्यापक चर्चाएं होनी चाहिए। आर्थिक उन्नति एवं शांति एक दूसरे के पूरक हैं। एकांगी दृष्टिकोण ही सारी समस्याओं का मूल हैं। मैं जो सोचता हूं, वह सच है और तुम जो सोचते हो, वह भी सच हो सकता है, ऐसा दृष्टिकोण जब तक नहीं बनेगा, दुनिया की समस्याओं का समाधान नहीं होगा। समस्या यह है कि हम दूसरों को सीमा में देखना चाहते हैं किन्तु अपनी सीमा नहीं करते। यह समय और विवेक का तकाजा है कि हर देश स्वयं अपनी सीमा करें तभी जलवायु परिवर्तन, युद्ध, आतंक एवं अतिश्योक्तिपूर्ण आर्थिक महत्वाकांक्षाओं से जुड़ी समस्याओं का अंत होगा। ऐसा होना ही दावोस की बैठक को सार्थकता एवं नया आयाम दे पायेगा।

खूबसूरत स्विस आल्प्स पहाड़ों के बीच आयोजित इस बैठक में भारत से भी कई बड़े नाम शामिल हो रहे हैं, जिनका मकसद सुस्त अर्थव्यवस्था और दो जंगों से जूझ रही दुनिया में भारत की मजबूती, प्रगति और अहमियत को दर्शाना है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत की आर्थिक प्रगति के साथ, औद्योगिक उन्नति, व्यापारिक उत्थान, सफल एवं सार्थक शासन-व्यवस्था, हिंसा एवं आतंकवाद पर नियंत्रण जैसी उपलब्धियां हासिल हुई है, उन विशेष स्थितियों पर भी चर्चा होगी। फोरम में हिस्सा लेने जा रहे गोदरेज इंडस्ट्रीज के चेयरमैन नादिर गोदरेज कहते हैं, ‘भूराजनीतिक चुनौतियां तो हैं मगर भारत पर उनका उतना असर नहीं है।

भारत तेजी से बढ़ रहा है।’ रेल, संचार और इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास और गौतम अदाणी, सुनील मित्तल तथा सज्जन जिंदल जैसे उद्योगपति के अलावा अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति इरानी, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी भी जाएंगे और दावोस में भारत की आर्थिक उन्नति, शांतिपूर्ण व्यवस्था एवं व्यापार की व्यापक संभावनाओं की झांकी दिखाएंगे। सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग से विप्रो के कार्यकारी चेयरमैन रिशद प्रेमजी, टाटा समूह के चेयरमैन और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) के चेयर एन चंद्रशेखरन समेत कई बड़े नाम भारत का परचम फहरायेंगे।

ऐसा लगता है दावोस में भारत छाने वाला है। दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत की अनेक चुनौतियांे पर भी दावोस में चर्चा होगी। जिनमें मानव पूंजी और टिकाऊ संसाधनों को भारत के लिये दो सर्वप्रमुख चुनौतियों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। इसके समाधान के लिये भारत को अपने अपेक्षाकृत युवा और तेजी से बढ़ते श्रमिक बल की क्षमताओं को बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके लिये शिक्षा पाठ्यक्रम को उन्नत करने, व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सुधार लाने और डिजिटल कौशल में सुधार की जरूरत है। भारत को अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने और उत्सर्जन स्तर को कम करने हेतु प्रयास जारी रखने होंगे क्योंकि इसके विनिर्माण क्षेत्र का विस्तार आगे जारी रहेगा। भारत की ही भांति हर देश ऐसी चुनौतियों का सामना कर रहा है जो अकेले निजी क्षेत्र या सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा हल नहीं की जा सकती। इसमें सरकार की सहायता हेतु सार्वजनिक-निजी सहभागिता के परंपरागत मॉडल के पूरक के रूप में नवीन और नवाचारी दृष्टिकोणों को विकसित करने की आवश्यकता है ताकि सरकार नए मानको को अपना सके।