विलुप्त होती प्रजातियां: जीवन के अस्तित्व पर संकट की दस्तक

Extinct species: A threat to the existence of life

पेड़-पौधों की संख्या पृथ्वी पर जिस तेज गति से घट रही है, उसने न केवल पर्यावरण का संतुलन बिगाड़ रहा है बल्कि अनेक जीव-जंतुओं और पक्षियों को उनके प्राकृतिक घरों से भी वंचित होना पड़ रहा है। इसी को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस एक खास विषय के साथ मनाया जाता है।

अतुल गोयल

मनुष्यों की ही भांति जीव-जंतु और पेड़-पौधे भी इस धरती के अभिन्न अंग हैं लेकिन विडंबना यह है कि मनुष्य ने अपने स्वार्थों और तथाकथित विकास की दौड़ में इनके अस्तित्व पर ही संकट खड़ा कर दिया है। जंगलों की अंधाधुंध कटाई, शहरीकरण, औद्योगीकरण और अनियंत्रित मानवीय गतिविधियों के चलते वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास उजड़ चुके हैं और वनस्पतियों की कई प्रजातियां लगभग समाप्ति की कगार पर हैं। पारिस्थितिकी तंत्र, जिसमें सभी जैविक और अजैविक तत्व एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं, अब असंतुलित होता जा रहा है। यह असंतुलन न केवल जीव-जंतुओं के जीवन चक्र को प्रभावित कर रहा है बल्कि मनुष्य के अस्तित्व के लिए भी गंभीर खतरा बन चुका है। दुनियाभर में हजारों वन्य प्रजातियां या तो पूरी तरह विलुप्त हो चुकी हैं या विलुप्त होने के कगार पर हैं। वनस्पतियों की स्थिति भी कुछ अलग नहीं है। जब किसी पारिस्थितिकी तंत्र से एक भी प्रजाति लुप्त होती है तो उससे जुड़ी कई अन्य प्रजातियों की कड़ी भी प्रभावित होती है, जिससे पूरी जैव श्रृंखला खतरे में पड़ जाती है। इस जैव विविधता की क्षति का असर सीधे-सीधे मानव जीवन पर भी पड़ रहा है, जिसे अब नजरअंदाज करना आत्मघाती सिद्ध हो सकता है।

वन्य जीव-जंतु और उनकी विविधता धरती पर अरबों वर्षों से हो रहे जीवन के सतत् विकास की प्रक्रिया का आधार रहे हैं। वन्य जीवन में ऐसी वनस्पति और जीव-जंतु सम्मिलित होते हैं, जिनका पालन-पोषण मनुष्यों द्वारा नहीं किया जाता। आज मानवीय क्रियाकलापों तथा अतिक्रमण के अलावा प्रदूषिण वातावरण और प्रकृति के बदलते मिजाज के कारण भी दुनियाभर में जीव-जंतुओं तथा वनस्पतियों की अनेक प्रजातियों के अस्तित्व पर दुनियाभर में संकट के बादल मंडरा रहे हैं। ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ पुस्तक में विस्तार से यह उल्लेख है कि विभिन्न वनस्पतियों और जीव-जंतुओं की संख्या में कमी आने से समग्र पर्यावरण किस प्रकार असंतुलित होता है। दरअसल विभिन्न वनस्पतियों और जीव-जंतुओं की संख्या में कमी आने से समग्र पर्यावरण जिस प्रकार असंतुलित हो रहा है, वह पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बना है। पर्यावरण के इसी असंतुलन का परिणाम पूरी दुनिया पिछले कुछ दशकों से गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं और प्राकृतिक आपदाओं के रूप में देख और भुगत भी रही है।

लगभग हर देश में कुछ ऐसे जीव-जंतु और पेड़-पौधे पाए जाते हैं, जो उस देश की जलवायु की विशेष पहचान होते हैं लेकिन जंगलों की अंधाधुंध कटाई तथा अन्य मानवीय गतिविधियों के चलते जीव-जंतुओं के आशियाने लगातार बड़े पैमाने पर उजड़ रहे हैं, वहीं वनस्पतियों की कई प्रजातियों का भी अस्तित्व मिट रहा है। हालांकि जीव-जंतुओं तथा पेड़-पौधों की विविधता से ही पृथ्वी का प्राकृतिक सौन्दर्य है, इसलिए भी लुप्तप्रायः पौधों और जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियों की उनके प्राकृतिक निवास स्थान के साथ रक्षा करना पर्यावरण संतुलन के लिए भी बेहद जरूरी है। इसीलिए पृथ्वी पर मौजूद जीव-जंतुओं तथा पेड़-पौधों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए तथा जैव विविधता के मुद्दों के बारे में लोगों में जागरूकता और समझ बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया जाता है। 20 दिसम्बर 2000 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा प्रस्ताव पारित करके इसे मनाने की शुरूआत की गई थी। इस प्रस्ताव पर 193 देशों द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे। दरअसल 22 मई 1992 को नैरोबी एक्ट में जैव विविधता पर अभिसमय के पाठ को स्वीकार किया गया था, इसीलिए यह दिवस मनाने के लिए 22 मई का दिन ही निर्धारित किया गया। अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस इस वर्ष ‘प्रकृति के साथ सामंजस्य और सतत विकास’ विषय के साथ मनाया जा रहा है।

पेड़-पौधों की संख्या पृथ्वी पर जिस तेज गति के साथ घट रही है, उसने न केवल पर्यावरण का संतुलन बिगाड़ रहा है बल्कि अनेक जीव-जंतुओं और पक्षियों को उनके प्राकृतिक घरों से भी वंचित होना पड़ रहा है। परिणामस्वरूप, अनेक प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों की स्पष्ट चेतावनी है कि यदि अब भी इस संकट की अनदेखी की गई तो निकट भविष्य में ऐसी भयावह स्थिति उत्पन्न होगी कि न केवल पेड़-पौधों की दुर्लभ प्रजातियां समाप्त हो जाएंगी बल्कि अनेक पशु-पक्षी भी धरती से सदा के लिए मिट जाएंगे। माना कि विकास आवश्यक है लेकिन वह ऐसा हो, जो प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखे। ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ पुस्तक में यह गंभीर चेतावनी दी गई है कि यदि विकास की दौड़ में जंगलों की कटाई और जीव-जंतुओं के आवासों का विनाश जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब मनुष्य स्वयं अपने अस्तित्व को खतरे में डाल देगा।
तेजी से बढ़ती आबादी और शहरीकरण ने मनुष्य को इस हद तक स्वार्थी बना दिया है कि उसने यह तक भूलना शुरू कर दिया है कि उसका जीवन भी प्रकृति के सहारे ही संभव है। खेतों में कीटों को नियंत्रित करने वाले चिड़िया, तीतर, कौआ, गिद्ध, मोर जैसे पक्षी भी आज विलुप्ति के कगार पर हैं। ये पक्षी न केवल किसानों के मित्र माने जाते रहे हैं बल्कि जैव विविधता की श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं। धरती पर जीवन को सुचारु और संतुलित बनाए रखने में जैव विविधता की बहुत अहम भूमिका है, इसलिए यदि हम आज ही सजग नहीं हुए और इन दुर्लभ प्रजातियों तथा उनके प्राकृतिक निवास की रक्षा नहीं की तो आने वाले समय में न केवल पर्यावरणीय संकट और तेजी से गहराएगा बल्कि मानव जीवन भी संकट में पड़ जाएगा। अब समय आ गया है कि हम विकास और संरक्षण के बीच संतुलन साधें।
(लेखक न्यूयॉर्क की कंपनी में सॉफ्टवेयर डवलपमेंट इंजीनियर हैं)