नरेंद्र तिवारी
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव की दस्तक के मद्देनजर सियासी माहौल में गर्मी है। भोपाल-दिल्ली से निकली हर खबर पर दावेदारों की नजर है। राजधानी के गलियारों से प्रतिदिन निकलकर आने वाली चर्चाओं से विधानसभा के दावेदारों उनके समर्थकों के चेहरे खिलने और मुरझाने का दौर अनवरत चल रहा है। सियासत के अपने रंग है। यह रंग सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में एकसा है। इन रंगों से एमपी में निमाड़ अंचल के आदिवासी बाहुल्य जिले बड़वानी की सबसे बड़ी विधानसभा सेंधवा भी रँगी दिखाई दे रही है। इस विधानसभा क्षेत्र में इससे पूर्व किसी भी विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों को लेकर इतना संशय नहीं रहा है जो 2023 के अंत मे होने जा रहे विधानसभा चुनाव को लेकर दिखाई दे रहा है। यहां दोनों ही प्रमुख दलों में टिकिट को लेकर असमंजस का वातावरण बना हुआ है। पुराने स्थापित चेहरों को भी अपनी उम्मीदवारी का विश्वास दिखाई नहीं दे रहा है। 6 से अधिक विधानसभा चुनावों में भाजपा ने जहां अंतरसिंह आर्य को अपना उम्मीदवार बनाया है वहीं दो चुनाव छोड़कर काँग्रेस भी ग्यारसीलाल रावत को विधानसभा चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाती रही है। इस लिहाज से 2023 के अंत मे होने जा रहे विधानसभा चुनाव में संशय का निर्मित होना इस विधानसभा क्षेत्र में परंपरागत मुकाबलों से कुछ हटकर होने की स्थिति बयाँ करता दिखाई दे रहा है। दोनों ही दलों में टिकिट चयन पर भोपाल से लगाकर दिल्ली तक मंथन का दौर जारी है। सर्वे का सहारा लिया जा रहा है। पर्यवेक्षको की रिपोर्ट देखी जा रही है। क्षेत्र के जन प्रतिनिधियों से बडे नेता मोबाईल से चर्चा कर फीडबैक निकाल रहें है। इसके बावजूद मजबूत कहे जाने वाले नेताओं और उनके समर्थकों को भी टिकिट मिलने का भरोसा नहीं है। नवोदय की संभावना से पुराने स्थापित चेहरों के मुरझाने के साफ संकेत देखे जा रहे है। ऊंट किस करवट बैठेगा कहा नही जा सकता है। असमंजस और अनिश्चितता का माहौल जो अभी है, पहले कभी नही दिखाई दिया। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के ग्यारसीलाल रावत ने पूर्वमंत्री भाजपा उम्मीदवार अंतरसिंह आर्य को 16 हजार से अधिक मतों से पराजित किया था। इससे पूर्व अंतरसिंह आर्य तीन बार लगातार विधानसभा में विजयी हुए थै। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार ग्यारसीलाल रावत, सुखलाल परमार और दयाराम पटेल को पराजित किया था। वें कैबिनेट मंत्री के पद पर भी काबिज रहे। 2018 की पराजय के बाद अंतरसिंह आर्य को भाजपा पुनः अपना उम्मीदवार बनाएगी इस पर उनके मजबूत समर्थकों में भी एक राय नहीं है। जिसका कारण स्वयं आर्य का अपने पुत्र विकास आर्य को मैदान में उतारने की सम्भावनाओ को माना जा रहा है। यह सच है कि विधानसभा में अंतरसिंह आर्य के साथ उनका पुत्र विकास आर्य विगत 10 बरसो से परछाई की तरह संगठन की मजबूती के प्रयास करता रहा है। अब भी वह सम्पूर्ण विधानसभा में मजबूत संगठन के निर्माण में कड़ी मेहनत और परिश्रम करता दिखाई दे रहा है। विकास आर्य एक बार स्वयं जिला जनपद सदस्य का चुनाव जीत चुके है। इस बार अपनी पत्नी कविता आर्य को जिला जनपद की सदस्य के रूप में विजयी दिलवाने में सफलता प्राप्त की है। यानी विकास को राजनीति का पर्याप्त अनुभव है। क्षेत्र में गहरी पैठ है। अपने पिता अंतरसिंह आर्य के साथ विधानसभा में भाजपा की सांगठनिक मजबूती में खूब पसीना बहाया है। अंतरसिंह आर्य अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल विकास को विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाने में कर सकते है। ऐसी संभावनाएं व्यक्त की जा रही है। इन संभावनाओं के मध्य भाजपा में तीसरे चेहरे के रूप में नए नवेले डॉक्टर रेलास सेनानी भी चर्चा में बने हुए है। जो वर्तमान में भाजपा जनजातीय मोर्चा के बड़वानी जिला अध्यक्ष है। स्थानीय महाविधालय की जनभागीदारी समिति में भी सदस्य है। विगत बरसो में डा रेलास सेनानी भी विधानसभा में सक्रिय दिखाई दे रहे है। इस चर्चा के मध्य उनके विरोधियों द्वारा उनके माइनस हाईकमान तक पहुचाए जा रहे है। डॉक्टर रेलास सेनानी ने अपना जन्मदिन गृहगांव आमझिरी और सेंधवा में धूमधाम से बनाकर अपनी उम्मीदवारी के संकेत देने की कोशिश की है। इसीप्रकार का संशय और असमंजस कांग्रेस में भी बना हुआ है। क्षेत्रीय विधायक ग्यारसीलाल रावत जिन्होंने 2018 में कैबिनेट मंत्री अंतरसिंह आर्य को 16 हजार से अधिक मतों से पराजित कर अपने राजनैतिक वजूद को बताने में कामयाबी हासिल की थी। 2018 के पूर्व अपनी पत्नी लताबाई रावत को जिला जनपद बड़वानी की अध्यक्षा बनाकर विधानसभा ही नही सम्पूर्ण बड़वानी जिले में मजबूत नेता की छवि बनाई थी। यह छवि तब भरभराकर टूटती प्रतीत हुई जब विधायक ग्यारसीलाल रावत अपनी पत्नी लताबाई और पुत्र राकेश रावत को त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2022 में जिला जनपद सदस्य के चुनाव में विजय श्री नहीं दिला पाए। पत्नी-पुत्र की पराजय का हथियार उनके राजनतिक विरोधियों द्वारा खूब इस्तेमाल किया जा रहा है। इस्तेमाल तो विधायक रहते जनपद पंचायत सेंधवा में कांग्रेस समर्थित अध्यक्ष का नहीं बन पाना। नगरपालिका चुनाव में कांग्रेस पार्टी का कमजोर प्रदर्शन करना याने पंचायत चुनाव ने विधायक रावत की छवि को भारी नुकसान पहुचाया है। उनका ग्रामीण मतदाताओं में व्याप्त प्रभाव कमजोर होता प्रतीत हो रहा है। जिसका इस्तेमाल ग्यारसीलाल रावत के विरोधियों द्वारा किया जा है। इसी पंचायत चुनाव में जब विधायक रावत की जमीन दरक रही थी। कांग्रेस समर्थित जयस के जिला अध्यक्ष मोंटू सोलंकी ने अपनी पत्नी राजकला को विजय श्री दिलवाकर विधानसभा में अपनी जमीन तैयार की जा रही थी। इस विजयी ने मोंटू की ख्याति को बढ़ाया उन्हें स्थापित किया। वर्ष 2022 का पंचायत चुनाव स्थानीय नेताओं की छवि तोड़ने और निर्माण करने की प्रमुख वजह बन गया है। मोंटू सोलंकी जयस से कांग्रेस का गठबन्धन होने पर टिकट के दावेदार हो सकते है। इस विधानसभा में कांग्रेस की और से पोरलाल खरतें का नाम भी जोर-शोर से चल रहा है। नए होने के कारण उनपर कोई दाग नहीं है। उनके समर्थकों की भोपाल में कमलनाथ से मुलाकातें भी चर्चाओं में है। सूत्रों के अनुसार पोरलाल खरतें कर अधिकारी के पद से इस्तीफा देकर कांग्रेस से टिकट की दावेदारी कर रहे है। खरतें पढ़े लिखे उम्मीदवार है। भाषणकला में निपुणता और समाज की गहरी पकड़ उन्हें प्रगतिशील सोच के व्यक्ति के रूप में चर्चा में बनाए हुए है। सेंधवा जनपद की मेंदलिया पानी पंचायत के निवासी सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में क्षेत्र में अपनी गहरी पकड़ बनाए हुए है। वे आदिवासी कर्मचारी संघ अजाक्स के नेता भी है। उन्हें कमलनाथ की पसंद बताया जा रहा है। कांग्रेस से पूर्व जिला कांग्रेस अध्यक्ष सुखलाल परमार की धर्मपत्नी सुभद्रा परमार भी दौड़ में दिखाई दे रही है। वें स्वयं महिला कांग्रेस की जिला अध्यक्ष है। अपने समर्थकों के साथ दिल्ली-भोपाल के नेताओ से मिल रही है। इन सब कारणों से विधानसभा क्षेत्र सेंधवा में 6 से अधिक चुनाव लड़ने के बाद भी पुराने चेहरों में टिकिट प्राप्ति को लेकर अविश्वास की स्थित जनसामान्य में संशय का मुख्य कारण बनी हुई है। जब तक सियासी दल अपने उम्मीदवार घोषित नहीं करते कौन होगा उम्मीदवार ? कहना मुश्किल है। भाजपा से अंतरसिंह फिर होंगे उम्मीदवार या फिर अपने पुत्र विकास को अपनी राजनीतिक विरासत देने की तैयारी रहे है। इस सोच के विपरीत डॉक्टर रेलास सेनानी भी भोपाल की दौड़ लगा रहे है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष से मिलकर अपना पक्ष रख रहे है। कांग्रेस विधायक ग्यारसीलाल रावत अपनी उम्मीदवारी बरकरार रख पाएंगे या पंचायत चुनावों में पत्नी-पुत्र की पराजय नपा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार, उनके टिकिट कटने का कारण बन पाएगी। जयस जिला अध्यक्ष क्षेत्र में आदिवासी युवाओं के बेहतर संगठन के बल पर टिकिट लाने में सफल होंगे या अजाक्स के नेता पोरलाल खरतें आदिवासी कर्मचारियों की ताकत से काँग्रेस का टिकट लाने में सफल होंगे। इस सब कयासों के मध्य हर तरफ से जोर आजमाइश जारी है। विधानसभा की जनता में संशय बरकरार है। यह संशय नए चेहरों की संभावनाओ को बल प्रदान करता दिख रहा है। बदलाव की यहीं संभावनाएं नए चेहरों के उत्साह का कारण भी बनी हुई है। नए दावेदारों की सक्रियता से पुराने चेहरों पर चिंता साफ नजर आ रही है। नवोदय की संभावना पुराने स्थापित चेहरों के मुरझाने की वजह भी दिखाई दे रही है। मुरझाए चेहरे फिर खिल उठेंगे या नवांकुरों को जवाबदेही सौपी जाएगी। विधानसभा सेंधवा में टिकिट चयन के बाद ही संशय का यह माहौल खत्म हो सकेगा।