याद आते रहेंगे किसान हितैषी चौधरी अजीत सिंह

के. पी. मलिक

कुछ लोग पैदा होकर कब अपना जीवन जीकर चले जाते हैं, पता ही नहीं चलता। यहां तक कि उनके परिवारजन भी कुछ दिन बाद उन्हें भूल जाते हैं। लेकिन कुछ लोग जिंदगी में ऐसे काम कर जाते हैं कि समाज एवं आने वाली पीढ़ियां तो उन्हें हमेशा याद रखती ही हैं, और समाज भी उन्हें याद रखता है। ऐसे लोगों के लिए कहा गया है कि जो मानव समाज के लिए जीता है, वो दुनिया से जाने के बाद भी कभी मरता नहीं है। ना कभी हार से विचलित, ना कभी जीत की खुशी, ना ही कभी किसी का कोई डर! परिस्थितियां जो भी रही हों उनके बंगले 12 तुगलक रोड का दरवाज़ा 24 घंटे खुला रहता था। मुझे याद है उनके साथ जो दिल्ली पुलिस का एक सिपाई रहता था एक दिन वह वर्दी पहन कर आ गया था तो उन्होंने उसे तुरंत वापस भेज दिया था। उनके राजनीतिक जीवन का अंदाज ही निराला था। किसानों से दिली लगाव और मन में उनके लिए कुछ कर गुजरने की प्रबल इच्छा ही तो आईबीएम जैसी विश्व प्रसिद्ध बहुराष्ट्रीय कंपनी के सॉफ्टवेयर इंजीनियर की हजारों करोड़ों डॉलर की नौकरी को लात मारकर अपनों के हकों और उनके चेहरों पर खुशियाँ देखने के लिए एक नही अनेक बार अपने राजनीतिक हितों की कभी परवाह भी नही की। जब तक जिये, चौधरियों के चौधरी बनकर जिये। ऐसे ही एक अमर व्यक्तित्व का नाम है चौधरी अजीत सिंह! दुर्भाग्य से पिछले साल कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान वे इस महामारी की चपेट में आने के बाद 6 मई 2021 को हम सबको छोड़कर हमेशा के लिए परलोक चले गए। लेकिन आज उनकी पहली पुण्यतिथि पर मुझे उनके द्वारा किसानों, मजदूरों और सर्वसमाज के लिए किए गए काम याद आ रहे हैं। साथ ही उनके साथ बिताए वो कीमती पल और उनसे जो पिछले तीन दशकों में जो मुलाकातें हुईं वो भी याद आ रही हैं। मेरा उनसे एक आत्मीयता का अलग ही रिश्ता था हालांकि कई बार उस समय को याद करके मैं भावुक भी हो जाता हूं। लेकिन मैं जानता हूं कि वह महान आत्मा जहां भी होंगी, देश और समाज के हितों के लिए चिंतित होंगी।

देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के सुपुत्र चौधरी अजीत सिंह का जन्म 12 फरवरी 1939 को पश्चिम उत्तर प्रदेश के जिले मेरठ के भडोला गांव में हुआ था। वैसे तो चौधरी अजीत सिंह ने उस जमाने में लखनऊ विश्वविद्यालय से बीएससी, आईआईटी खड़गपुर से बीटेक और फिर एमएस की उपाधि डिग्री इलिनोइस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, शिकागो से प्राप्त की। लेकिन उन्हें कृषि और आधुनिक प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशेष रुचि थी। साथ ही उनके मन में कहीं न कहीं अपने पिता की तरह किसानों की दशा सुधारने और उनके लिए कुछ नया करने की ललक थी। हालांकि पढ़ाई पूरी करने के बाद शुरुआती दौर में पिता की इच्छा की वजह से उन्होंने अमेरिक में अमेरिकी कंप्यूटर इंडस्ट्री में क़रीब 17 वर्षों तक सेवाएं दी। इस बीच वर्ष 1967 में उनका विवाह राधिका सिंह से हुआ। चौधरी अजीत सिंह की तीन संतानों में एक बेटा चौधरी जयंत सिंह, जो अब पिता की तरह ही राजनीति में सक्रिय हैं और राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष हैं। और दो बेटियां निधि सिंह और दीपा सिंह हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि उन्होंने अमेरिका में लंबा समय उन्होंने पिता के कहने पर दिया। लेकिन पिता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के अस्वस्थ होने पर वह वापस अपने वतन लौट आए, राजनीतिक हालात को देखते हुए, उन्होंने राजनीति में कदम रखने का मन बना लिया। यह वर्ष 1980 का वो दौर था, जब चौधरी चरण सिंह अपना प्रधानमंत्री का कार्यकाल पूरा कर चुके थे और उनकी पार्टी भारतीय लोकदल का प्रभाव फीका पड़ रहा था। हालांकि चौधरी चरण सिंह अपने बेटे चौधरी अजीत सिंह के राजनीति में आने के इच्छुक नहीं थे उनको लगता था कि देश में जिस तरह की राजनीति होती है या राजनैतिक पैंतरेबाजी की जाती है वह पैंतरेबाजी अजीत सिंह नहीं कर पाएंगे, इसलिए वह उनके राजनीति में आने का विरोध करते थे। लेकिन इस सबके बावजूद अजीत सिंह राजनीति में आए क्योंकि उन्होंने राजनीति में आने का पूरा मन बना लिया था और वर्ष 1980 में लोकदल को पुनर्जीवित करने का काम किया।

दरअसल भारतीय लोकदल नाम की पार्टी वर्ष 1974 में उनके पिता चौधरी चरण सिंह ने बनाई थी, जिसका चुनाव चिन्ह हलधर किसान था। वैसे तो चौधरी अजीत सिंह भारतीय कंप्यूटर वैज्ञानिक थे, जिन्होंने आईबीएम और एमएनसी जैसी प्रतिष्ठित कंपनियों में काम किया। लेकिन राजनीति में आकर कुछ करने की लालसा उनकी तब पूरी हुई, जब उन्होंने पिता की मृत्यु के बाद पूरी तरह राजनीतिक राह अपना ली। लेकिन वर्ष 1987 में उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल नामक पार्टी बनाई और पूरी तरह राजनीति में सक्रिय हो गए। दरअसल राष्ट्रीय लोकदल के गठन की एक अलग कहानी है। लेकिन चौधरी अजीत सिंह के राजनीतिक करियर में चमक तभी आई, जब उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल के बैनर तले लंबा संघर्ष किया।

अगर उनके राजनीतिक करियर की बात करें, तो फरवरी 1995 से मई 1996 तक प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार में वो केन्द्रीय खाद्य प्रसंस्कृरण एवम् उद्योग मंत्री रहे। इसके पहले प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार में 5 दिसम्बर 1989 से 10 नवम्बर 1990 तक वो वाणिज्य और उद्योग मंत्री रहे। इसके बाद प्रधानमंत्री अटल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में 22 जुलाई 2001 से 24 मई 2003 तक वो केंद्रीय कृषि मंत्री रहे। इसके बाद कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार में 18 दिसंबर 2011 से 26 मई 2014 तक वो केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री रहे। अगर उनके कामों की बात की जाए, तो वर्ष 1989 में उद्योग मंत्री बनने के बाद उन्होंने किसानों के हित में सबसे बड़ा काम यह किया कि उन्होंने चीनी मिल की 25 किलोमीटर की परिधि को घटाकर 15 किलोमीटर किया। इसके बाद उन्होंने महज एक साल के अंदर ही देश में 40 नई गन्ना मिलों को लगवाया और शुगर कॉम्पलैक्स के लाइसेंस दिए। इसका फायदा यह हुआ कि देश के गन्ना किसानों का गन्ने की फसल का बेसिक कोटा 450 किवंटल प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 880 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो गया। इससे किसानों की आमदनी में प्रति वर्ष लाखों रुपए की बढ़ोतरी हो गई। इसके अलावा वर्ष 2001 में कृषि मंत्री बनने के बाद उन्होंने 10 नई फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी के दायरे में लाकर इस महत्वपूर्ण योजना में शामिल कराने का काम किया। इसके साथ ही कृषि यंत्रों एवं ट्रेक्टर लोन पर ब्याज दर को कम करवाया और खेती की जमीन गिरवी न रखने का आदेश भी पास करवाया। उन्होंने किसानों के हित में एक बार कृषि मंत्री पद से इस्तीफा तब दे दिया, जब केंद्र की अटल बिहारी वाजपेई सरकार कृषि पर टैक्स लगाना चाहती थी, जिसका चौधरी अजीत सिंह ने खुलकर विरोध किया था।

बहरहाल आज वर्तमान सरकार ने एयर इंडिया की बदहाली का हवाला देते हुए, उसको टाटा को बेचने का जो कार्य किया है। जब वर्ष 2011 में चौधरी अजीत सिंह उड्डयन मंत्री बने तो इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया को उन्होंने अपने कार्यकाल में उसे घाटे से उबारने का कार्य किया था। वहीं गौरतलब है कि पिछले साल उनके एक फोन करने मात्र से किसान आंदोलन ने तब एक नया मोड़ ले लिया था, जब किसान नेता राकेश टिकैट पर हमले के बाद उनके आंसू बह रहे थे। उनके इस फोन में पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानों में एक जोश उत्पन्न करने और दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन को एक संजीवनी देने का कार्य किया था। जिसको देश का किसान कभी नहीं भुला सकता। लेकिन दुर्भाग्य से कोरोना महामारी की दूसरी क्रूर लहर में उन्हें कोरोना से ग्रसित होने के चलते गुड़गांव के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां कुछ दिनों बाद उन्होंने अंतिम सांस ली। किसानों और समाज के लिए चौधरी अजीत सिंह के द्वारा किए गए तमाम उल्लेखनीय कार्यों को भले ही आज की युवा पीढ़ी उतना याद नहीं रखती हो, लेकिन देश का किसान और इतिहास उनके योगदान और किसान हित में किए गए कार्यों को कभी नहीं भूल सकता।

(लेखक चौधरी अजीत सिंह के राजनीतिक सलाहकार रहे हैं)