दीपक कुमार त्यागी
- डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी व उनकी टीम की मेहनत ला रही है रंग
- कोंडा गांव में 2 वर्ष पूर्व 1000 “ड्रैगन फ्रूट” के पौधों से हुई थी इसकी खेती की सफल शुरुआत। अब आने लगे हैं मेहनत के फल
- मां दंतेश्वरी हर्बल समूह ने कृषि नवाचार की लिखी एक और इबारत, कोंडागांव में सफलता पूर्वक उगाया बेहतरीन गुणवत्ता का ‘ड्रैगन फ्रूट’
- अद्भुत औषधीय गुणों से तथा एंटी ऑक्सीडेंट्स, प्रोटीन, फाइबर, विटामिन्स और कैलशियम से भरपूर होता है ड्रैगन फ्रूट, इसलिए पूरी दुनिया है इसकी दीवानी
- काली-मिर्च के साथ ड्रैगन फ्रूट की मिश्रित खेती से एक एकड़ में 5 से 10 लाख तक की हो सकती है सालाना आय
- गुजरात सरकार दे रही इसकी खेती को बढ़ावा, इसका नाम बदल कर रखा ‘कमलम’, पेटेंट के लिए किया आवेदन
छत्तीसगढ़ के बस्तर जनपद के कोंडागांव से कृषि क्षेत्र के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण सकारात्मक खबर अन्नदाता के खेतों से आ रही है, कोंडागांव में “ड्रैगन फ्रूट” की खेती करने में डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी के कुशल नेतृत्व की बदोलत वहां के किसानों को सफलता मिल गयी है। आपको बता दें कि वैसे तो “ड्रैगन फ्रूट” मूल रूप से मेक्सिको का पौधा माना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम वाइट-फ्लेशेड-पतिहाया (White-fleshed pitahaya) है तथा वानस्पतिक नाम ‘हायलेसिरस अनडेटस’ है। इसकी वियतनाम, चीन तथा थाईलैंड में बड़े पैमाने पर खेती होती है और भारत में वहीं से इसको आयात किया जाता रहा है। अब तक इसे देश के अमीरों और तथा रईसों का ही फल माना जाता था। लेकिन अब यह डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी, उनकी पुत्री अपूर्वा त्रिपाठी अन्य सहयोगी साथियों व किसानों की बदौलत बहुत जल्द ही यह “ड्रैगन फ्रूट” आम लोगों तक भी पहुंचने वाला है।।
बेहद खूबसूरत दिखने वाले इस “ड्रैगन फ्रूट” फल में अद्भुत पोष्टिक तथा औषधीय गुण पाए जाते हैं। इस बेहद स्वादिष्ट फल में भरपूर मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंट्स, प्रोटीन, फाइबर, विटामिन्स और कैलशियम आदि पाया जाता है। यही कारण है कि इसे वजन घटाने में मददगार, कोलेस्ट्राल कम करने में सहायक और कैंसर के लिए लाभकारी बताया जाता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का विशेष गुण होने के कारण कोरोना काल में इसका महत्व काफी बढ़ गया। इन्हीं कारणों से पूरी दुनिया के लोग इसके दीवाने हैं।
वैसे तो भारत में कई राज्यों में किसानों द्वारा इसकी खेती के लिए नित-नये प्रयोग हो रहे हैं। गुजरात के कच्छ, नवसारी और सौराष्ट्र जैसे हिस्सों में बड़े पैमाने पर अब यह उगाया जाने लगा है। छत्तीसगढ़ में भी कई प्रगतिशील किसानों ने इसकी खेती शुरू की है। बस्तर क्षेत्र के जगदलपुर में भी कुछ प्रगतिशील किसानों ने उसकी खेती में सफलता प्राप्त की है। लेकिन कोंडागांव में संभवत पहली बार “मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर” ने इसकी खेती को लगभग दो वर्ष पूर्व प्रारंभ किया था, तथा शुरुआत में इनके द्वारा लगभग 1000 ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगाए गए थे। वर्तमान में इसमें अच्छी तादाद में फल आने शुरू हो गए। इस उपलब्धि के बारे में मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर की संस्थापक डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी ने बताया कि यह कोंडागांव ही नहीं बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ प्रदेश व देश के लिए गर्व तथा खुशी का विषय है कि कोंडागांव में पैदा किए जा रहे “ड्रैगन फ्रूट” का न केवल स्वाद तथा रंग बेहतरीन है बल्कि औषधीय गुणों व पौष्टिकता के हिसाब से भी यह उत्तम गुणवत्ता का है तथा इसका स्वाद भी बेजोड़ है। डॉक्टर त्रिपाठी ने आगे बताया कि बस्तर की जलवायु तथा धरती इसकी खेती के लिए सर्वथा उपयुक्त है। हमने सिद्ध कर दिया कि यहां पर “ड्रैगन फ्रुट” की सफल खेती की जा सकती है। ऑस्ट्रेलियन टीक के पेड़ों पर काली मिर्च की सफल खेती के साथ ही पेड़ों के बीच वाली खाली जगह में “ड्रैगन फ्रूट” की मिश्रित खेती भी सफलतापूर्वक की जा सकती है। ड्रैगन फ्रूट का पौधा कोई विशेष देखभाल भी नहीं मांगता और केवल एक बार लगाने पर पच्चीसों साल तक लगातार भरपूर उत्पादन और नियमित मोटी आमदनी देता है। कैक्टस वर्ग का यह कांटेदार पौधा होने के कारण इसे कीड़े मकोड़े भी नहीं सताते और जानवरों के द्वारा इस पौधे को बर्बाद करने का डर भी नहीं रहता है। एक बार रोपण के बाद, इसकी सफल खेती से किसान बिना किसी विशेष अतिरिक्त लागत के 1 एकड़ से चार-पांच लाख रुपए सालाना अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं। आस्ट्रेलियन टीक के रोपण के साथ काली मिर्च व औषधीय पौधों के साथ मिश्रित खेती करने पर यह आमदनी द्विगुणित, बहुगुणित हो सकती है। वहीं इसकी भारी मांग होने के कारण इसकी मार्केटिंग व बजार में बेचने में भी कहीं कोई समस्या नहीं है।
आपको बता दें कि डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी ने बस्तर में अपने खेतों को ही प्रयोगशाला बना लिया है और वह किसानों के हित के लिए निरंतर नई संभावनाएं तलाशने में लगे रहते हैं। इनके द्वारा स्थापित संस्थान “मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर” ने पिछले 30 वर्षों में कई लाभदायक नई फसलें देश के किसानों को दी हैं। जिसका आज लाखों किसान फायदा उठा रहे हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इनके हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर मुख्य रूप से बस्तर की आदिवासी महिलाओं के द्वारा ही संचालित किए जाते हैं, जिसका आदिवासियों के परिवारों के जीवन को बेहतर करने में बेहद सकारात्मक व अनमोल योगदान है।
वैसे तो “ड्रैगन फ्रूट” की खेती के इतने सारे फायदों को देखते हुए गुजरात सरकार ने इसकी खेती को अपने प्रदेश में काफी बढ़ावा दिया है। यह अलग बात है की आज राजनीति का हर क्षेत्र में प्रवेश हो रहा है, इसलिए इस गुजरात सरकार ने इस फ्रूट का नाम बदलकर ‘कमलम’ रखने का फैसला किया है। गुजरात सरकार ने इस फ्रूट के नए नामकरण ‘कमलम’ के लिए पेटेंट के लिए भी आवेदन किया है। यह तो सर्वविदित ही है कि कमल भाजपा का चुनाव चिन्ह भी है, पर यहां यह बताना भी प्रासंगिक होगा कि भाजपा के प्रदेश कार्यालय का नाम भी कमलम है। बहरहाल राजनैतिक लक्ष्यों से परे जाकर देखने वाली बात अब यह है कि छत्तीसगढ़ के दूरदराज के इस कोंडागांव में इसकी सफल खेती को देखते हुए, इस लाभदायक खेती से क्षेत्र के अन्य किसानों को जोड़ने की “मां दंतेश्वरी हर्बल समूह” की मुहिम को जिला प्रशासन तथा प्रदेश शासन का कितना सहयोग मिल पाता है। क्योंकि यह तो तय है कि काली मिर्च तथा औषधीय पौधों के साथ ही इसकी मिश्रित खेती यहां के किसानों की आय में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि करके न केवल मालामाल करके सकती है बल्कि बस्तर सहित पूरे छत्तीसगढ़ प्रदेश के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती है। खैर जो भी हो यह तो आने वाला समय ही तय करेगा लेकिन किसानों के हित के लिए कार्य करने वाले डॉक्टर राजाराम त्रिपाठी, उनकी पुत्री अपूर्वा त्रिपाठी के कुशल नेतृत्व व बेहतरीन प्रबंधन में मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सेंटर, रात दिन एक करके किसानों की आय को बढ़ाने के लिए कार्य कर रहा है।