शीतला सप्तमी का व्रत : माता पूजन और बासी भोजन खाने की परम्परा

नीति गोपेंद्र भट्ट

नई दिल्ली। शीतला सप्तमी का व्रत शीतला की पूजा और बासी भोजन खाने की परम्परा का दिन है ।यहत्योहार देश के कई भागों में मनाया जाता हैं।

भारतीय सनातन परंपरा में शीतला सप्तमी का विशेष महत्व है । चैत्र कृष्ण सप्तमी का यह व्रत माता की विशेषप्रकार की पूजा और ठंडा भोजन ग्रहण करने के साथ मनाया जाता है।

मान्यता है कि जो भक्त माता शीतला का व्रत रखते हैं उन्हें सभी रोगों से छुटकारा मिल जाता है । विशेष रूप सेसंतान की सेहत के लिए इस व्रत को रखने की विशेष मान्यता है । शीतला माता जिस कलश को हाथ में लिएदिखाई पड़ती हैं पुराणों के अनुसार उस कलश में 33 करोड़ देवी-देवताओं का निवास होता है।

श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ मृत्युञ्जय तिवारी के अनुसार सप्तमी तिथिकी शुरूआत 13 मार्च की रात 9 बजकर 27 मिनट से हुई और समाप्ति 14 मार्च रात 9 बजकर 27 मिनट परहोगी । फाल्गुन मास में 14 मार्च के दिन शीतला सप्तमी का व्रत रखा जाएगा । इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्तसुबह 6 बजकर 33 मिनट से शुरू होकर शाम 6 बजकर 29 मिनट तक रहेगा अगले दिन यानी 15 मार्च के दिनशीतला अष्टमी मनाई जाएगी ।

शीतला सप्तमी पूजा विधि

मान्यतानुसार शीतला सप्तमी का व्रत रखने पर चेचक या खसरा जैसी बीमारियों से भी मुक्ति मिल जाती है ।माताएं अपनी संतान की सेहत और सुरक्षा के लिए सीतला सप्तमी का व्रत रखती हैं ।

शीतला सप्तमी की पूजा में सुबह उठकर गुनगुने पानी से स्नान किया जाता है । इसके पश्चात व्रत का संकल्पलिया जाता है । जो महिलाएं शीतला सप्तमी का व्रत रखती हैं वे शीतला माता के मंदिर में जाकर या शीतलामाता की प्रतिमा के समक्ष पूजा करती हैं।इस दिन माता शीतला से स्वस्थ जीवन की कामना की जाती है ।शीतला सप्तमी की कथा सुनकर पूजा पूरी करते हैं।

शीतला सप्तमी की कथा

एक बार दो महिलाओं और उनकी बहुओं ने शीतला सप्तमी का व्रत रखा था । शीतला सप्तमी के दिन बासीभोजन का सेवन किया जाता है इसीलिए उन्होंने पहले ही भोजन पका लिया था. लेकिन, दोनों बहुओं ने बासीभोजन ग्रहण करने के बजाय ताजा पका हुआ खाना खा लिया. इसके पश्चात दोनों बहुओं के बच्चों की मृत्यु होगई । दोनों बहुओं की सास ने उन्हे घर से निकाल दिया और बहुएं बच्चों के शव को लिए दर-दर भटकने लगीं ।इसके बाद उन्हें बरगद के पेड़ के नीचे ओरी और शीतला नाम की दो बहनें मिलीं । बहुओं ने उन बहनों को अपनीपूरी व्यथा सुनाई और बहनों ने आशीर्वाद दिया कि तुम्हारी गोद हरी हो जाए जिसके बाद दोनों मृत बालकजीवत हो गए । बहुओं को समझ आ गया कि वे साक्षात माता हैं और वे उन दोनों के पैरों में गिर गईं। इसके बादसे वे हर साथ पूरे मनोभाव और श्रद्धा से शीतला सप्तमी का व्रत रखने लगीं ।

नीम के पेड़ की पूजा का महत्व

सनातन वैदिक धर्म में पेड़ पौधों को बेहद शुभ माना जाता है और इनकी पूजा भी होती है लेकिन नीम का पेड़बेहद चमत्कारी और असरकारी होता है नीम का उपयोग कई तरह के धार्मिक और ज्योतिषीय उपायों व कार्योंमें किया जाता है ज्योतिषशास्त्र की मानें तो इसका प्रयोग ग्रहों को शांत करने में भी होता है खासकर अगरकिसी जातक की कुंडली में शनि, राहु केतु और मंगल का कोई दोष है

अगर घर में नकारात्मकता बनी रहती है जिसके कारण आपको कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तोऐसे में घर के बाहर नीम का पौधा लगाएं । इससे नकारात्मकता बाहर चली जाती है और सकारात्मकता कासंचार होता है।