प्रभुनाथ शुक्ल
भारतीय सिनेमा जगत की नामचीन हस्ती और फिल्म अभिनेत्री आशा पारेख को ‘दादा साहब फाल्के’ पुरस्कार से नवाजा जाएगा। फाल्के पुरस्कार से सम्मानित होने वाली वह देश की 52 वीं अभिनेत्री होंगी। दादा साहेब फाल्के पुरस्कार फ़िल्म क्षेत्र में भारत का राष्ट्रीय पुरस्कार है। फिल्म में उल्लेखनीय योगदान करने वाले लोगों के लिए यह सर्वोच्च पुरस्कार दिया जाता है। निश्चित रूप से आशा पारेख इसके काबिल हैं। वैसे यह पुरस्कार उन्हें बहुत पहले मिल जाना चाहिए था, लेकिन देर से सही। देश की एक पूरी जवान पीढ़ी सिने जगत की अभिनेत्री को जानती तक नहीं होगी। लेकिन हिंदी सिनेमा में 60 के दशक का वह दौर भी था जब आशा पारेख युवा दिलों की धड़कन थीं। किशोर दा के फिल्मी गीतों पर बालों के गजरे लगाकर और आंखें-आंखों में इशारा कर पारेख पर्दे पर अपनी अदाकारी का जलवा विखेरती थीं तो लाखों लोग उनके दीवाने हो जाते थे। उस दौर की युवापीढ़ी का वह दिल जीत लेती थीं। वह दौर हिंदी सिनेमा का गोल्डेन दौर था जो कब का अलबिदा हो चुका है।
भारतीय सिनेमा में अभिनेत्री आशा पारेख को कड़ा संघर्ष करना पड़ा। उन्हें फिल्म निर्माताओं की तरफ से कई चुनौतियां भी मिली, लेकिन उन्होंने उसका मुकाबला किया और अपने को साबित किया। उन्होंने फिल्म निर्माताओं की उपेक्षाओं को भी खूब झेला, लेकिन खुद को साबित करके दिखा दिया। आशा पारेख ने कड़े संघर्ष और मेहनत के बल पर सिनेमा जगत में अपनी पहचान बनायी। पारेख ने भारतीय सिनेमा जगत को अपना बहुमूल्य योगदान दिया। उन्हें 2020 का दादा साहेब फाल्के पुरस्कार दिया जाएगा। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का यह सराहनीय कदम है। पारेख को फिल्म जगत के कई नामचीन पुरस्कारों के साथ पद्मश्री सम्मान भी मिला है।
मशहूर अदाकारा आशा पारेख हिंदी के अलावा गुजराती, कन्नड़ और पंजाबी जैसी फिल्मों में भी काम किया है। आशा पारेख तकरीबन 90 से अधिक फिल्मों में काम किया। केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की वह अध्यक्ष भी रहीं हैं। 68 वें फिल्मफेयर पुरस्कार समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की तरफ से ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ से सम्मानित किया जाएगा। उन्होंने मैं तुलसी तेरे आंगन की, कारवां, कटी पतंग, तीसरी मंजिल, दिल देके देखो जैसे हिट फिल्मों में काम किया है। अपने फिल्मी करियर की शुरुवात बाल फिल्मों से किया। लोग उन्हें ‘बेबी पारेख’ के नाम से भी बुलाते थे। 1952 में बनी विमल राय की फिल्म मां में पारेख ने 10 साल की उम्र में बाल कलाकार के रूप में अभिनय किया। उनके जीवन में वह वक्त भी आया जब उनके सितारे गर्दिश में रहे। 1954 में बनी ‘बाप बेटी’ फिल्म उनकी पिट गई थी। ‘गूंज उठी शहनाई’ में उनके काम को खारिज कर दिया गया था। एक फिल्म निर्माता ने कहा कि आशा पारेख स्टार अभिनेत्री नहीं बन सकती क्योंकि यह काबिलियत उनमें नहीं है। लेकिन नादिया हुसैन की फिल्म ‘दिल देके देखो’ (1959) ने उन्हें स्टार बना दिया और उन्होंने सिनेमा पर्दे पर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
इस फिल्म ने उनके कैरियर निर्माण में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। इसके बाद नासिर हुसैन ने अपनी छह फिल्मों में पारेख को बतौर हीरोइन साइन किया। जिसमें जब प्यार किसी से होता है, फिर वहीं दिल लाया हूं, तीसरी मंजिल बहारों के सपने, प्यार का मौसम और कारवां जैसी फिल्में शामिल थी। सभी फिल्में 60 से 70 के दशक के मध्य बनी। पारिवारिक फिल्म ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ में उन्होंने सह अभिनेत्री की शानदार भूमिका निभाई। पुरानी पीढ़ी को आज की यह फिल्म सबसे अधिक पसंदीदा है। क्योंकि यह पूरी तरह पारिवारिक है। इसके गीत आज भी लोगों के होठों पर गुनगुनाते सुने जाते हैं ‘ मैं तुलसी तेरे आँगन की…।
आशा पारेख गुजराती परिवार से आती हैं। लेकिन उनके पिता और माँ अलग-अलग सामाजिक समुदाय से ताल्लुक रखते थे। इनका जन्म 02 अक्टूबर 1942 को हुआ। इनके पिता का नाम बच्चूभाई और मां का नाम सुधा पारेख था। भारतीय सिनेमा की मशहूर अभिनेत्री आजीवन अविवाहित रहीं उन्होंने शादी नहीं किया। उनका नाम एक फ़िल्म निर्देशक से भी जुड़ा। लेकिन अपने जीवन से उन्होंने कभी समझौता नहीं किया। उन्हें आज भी अपने फ़िल्मी दोस्तों के साथ समय गुजरना अधिक पसंद है। फ़िल्म ‘अखंड सौभाग्यवती’ के लिए गुजरात राज्य का सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार दिया गया। ‘कटी पतंग’ के लिए फिल्म फेयर का सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार भी उन्हें मिला।
भारतीय सिनेमा में काम करने वाले हर अभिनेता और अभिनेत्री अनगिनत फिल्मों में काम किया है। लेकिन कुछ फिल्में उन्हें बेहद पसंद होती हैं। उसी तरह आशा पारेख को भी ‘दो बदन’ ‘चिराग’ ‘कटी पतंग’ और ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ सबसे अधिक पसंद थीं। मैं तुलसी तेरे आंगन की फिल्म में उन्होंने सहायक अभिनेत्री की भूमिका निभाई थी। वह फिल्मी दुनिया में ग्लैमरस गर्ल के नाम से जानी जाती थी। शास्त्रीय नृत्य उन्हें काफी पसंद थ। उनकी मां उन्हें एक बेहतरीन नृत्यांगना बनाना चाहती थीं। इसीलिए शास्त्री नृत्य में उनका कोई जोड़ नहीं था। उन्होंने विदेश में भी शास्त्रीय नृत्य के लिए कार्यक्रम किया। पारेख डांस एकेडमी भी चलाती है। भारतीय सिनेमा जगत में आशा पारेख ने उल्लेखनीय योगदान दिया है। केंद्रीय प्रसारण मंत्रालय की तरफ से दादा साहब फाल्के पुरस्कार देने की घोषणा अच्छा कदम है। इस पुरस्कार का ख्वाब हर अभिनेताओं को रहता है। इसका स्वागत किया जाना चाहिए।