सुनील कुमार महला
पिछले कुछ समय से भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो काफ़ी चर्चा में है। दरअसल, दिसंबर 2025 में भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो में अचानक हुए बड़े पैमाने के फ्लाइट कैंसिलेशन, देरी, पायलटों की कमी और संचालन-अव्यवस्था से, पूरे देश की हवाई सेवाएं अस्त-व्यस्त हो गईं और इंडिगो संकट पैदा हुआ।इस क्रम में आँकड़े बताते हैं कि 21 नवंबर से 7 दिसंबर 2025 के बीच एयरलाइन ने कुल 9,55,591 पीएनआर’ज रद्द किए गए और यात्रियों को ₹827 करोड़ का रिफंड जारी किया गया । सिर्फ 1–7 दिसंबर 2025 के दौरान ही 5,86,705 टिकट रद्द हुए, जिनके लिए ₹569.65 करोड़ लौटाए गए । इसी अवधि में लगभग 9,000 बैग प्रभावित हुए, जिनमें से 4,500 बैग यात्रियों तक वापस पहुँचा दिए गए । परिचालन स्थिर करने के प्रयासों के बीच एयरलाइन प्रतिदिन करीब 1,802 उड़ानें संचालित कर पाई, जबकि उसी दिन लगभग 500 उड़ानें अब भी रद्द रहीं । ये सभी आँकड़े दिखाते हैं कि संकट का असर न केवल संचालन पर बल्कि यात्रियों और एयरलाइन की साख पर भी व्यापक रूप से पड़ा। बहरहाल, यहां पाठकों को बताता चलूं कि यह संकट नए लागू हुए पायलट वर्क-रेस्ट नियमों (एफडीटीएल) के बाद उभरा, जिनमें पायलटों को अनिवार्य 48 घंटे साप्ताहिक आराम और रात में उड़ानों की संख्या पर कड़ी सीमा तय की गई। गौरतलब है कि डीजीसीए ने ने 2024 में पायलटों की थकान कम करने के लिए नए वर्क–रेस्ट (एफडीटीएल) नियम लागू किए, जिनमें साप्ताहिक आराम को 36 से बढ़ाकर 48 घंटे करना, रात के समय को 00:00–06:00 बजे तक बढ़ाना, रात की लैंडिंग्स सीमित करना और ड्यूटी अवधि पर कड़े नियंत्रण शामिल थे। ये नियम चरणबद्ध तरीके से 1 जुलाई 2025 से लागू हुए, लेकिन इसके बाद इंडिगो सहित कई एयरलाइंस को रोस्टर बनाने में कठिनाई हुई और देशभर में बड़ी संख्या में उड़ानें रद्द हो गईं। स्थिति बिगड़ने पर डीजीसीए ने 5 दिसंबर 2025 को बड़ा कदम उठाते हुए नए नियमों के सबसे कड़े प्रावधान-जैसे साप्ताहिक विश्राम के बदले छुट्टी को न मानने का नियम और रात-ड्यूटी से जुड़े कुछ प्रतिबंध अस्थायी रूप से वापस ले लिए। तथा इससे एयरलाइंस को परिचालन में राहत मिली। डीजीसीए ने स्पष्ट किया कि यह सुरक्षा मानकों को छोड़ना नहीं है, बल्कि यात्रियों की असुविधा और क्रू-कमी को देखते हुए की गई अस्थायी ढील है, जबकि थकान-प्रबंधन के मूल लक्ष्य को आगे भी जारी रखा जाएगा। लेकिन इंडिगो के पास डीजीसीए के इन नए नियमों के अनुसार पर्याप्त पायलट-बफर या अतिरिक्त क्रू उपलब्ध नहीं था, इसलिए उनकी शेड्यूलिंग पर इससे बहुत ही व्यापक स्तर पड़ा और इसके कारण इंडिगो को अपनी हज़ारों उड़ानें रद्द करनी पड़ीं। इसके साथ ही लंबे समय से चली आ रही लीन-स्टाफिंग(काम चलाने के लिए सिर्फ ज़रूरी कर्मचारियों को रखना, ताकि लागत कम हो और काम कुशलता से हो), भारी व्यस्त रूट, तकनीकी देरी, और मौसम-जनित समस्याएँ भी एक साथ जुड़कर स्थिति को गंभीर बना गईं और इसका परिणाम यह हुआ कि इससे यात्रियों को एयरपोर्ट पर लंबी लाइनों, अचानक कैंसिलेशन, महंगे टिकट, और खोए/रुके बैगेज जैसी भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। इसके बाद डीजीसीए की जाँच में यह साफ हो गया कि इंडिगो की समस्या किसी बाहरी वजह से नहीं, बल्कि उनकी अपनी योजना(शिड्यूलिंग) बनाते समय हुई गलतियों और कमजोर तैयारी के कारण पैदा हुई है। इसलिए डीजीसीए ने कुछ नियमों में अस्थायी ढील तो दी, लेकिन इसे एक चेतावनी की तरह भी लिया गया कि यदि देश की सबसे बड़ी एयरलाइन ही ऐसी अव्यवस्थाओं में फँस जाएगी, तो इसका असर पूरे भारत की हवाई यात्रा व्यवस्था पर पड़ना लगभग लगभग तय ही है। कुल मिलाकर संदेश यह है कि आज एयरलाइनों को क्रू-मैनेजमेंट, शेड्यूलिंग और बैकअप सिस्टम और मज़बूत बनाने की जरूरत है, वरना एक छोटी सी चूक भी कभी भी एक बड़े संकट में बदल सकती है। वास्तव में, कहना ग़लत नहीं होगा कि इंडिगो की हालिया लापरवाही ने भारतीय विमानन क्षेत्र में गहरी चिंता पैदा कर दी है। क्रू मैनेजमेंट और फ्लाइट शेड्यूलिंग में गड़बड़ी के कारण पायलट और कैबिन क्रू के वर्क-रेस्ट नियम सही तरीके से लागू नहीं हो पाए, जिससे हजारों यात्रियों को भारी असुविधाओं और परेशानियों का सामना करना पड़ा। डीजीसीए की अस्थायी राहत के बावजूद यह घटना कहीं न कहीं एयरलाइन की कमजोरी, एयरलाइन की व्यवस्थाओं और उसकी सेवा पर सवाल खड़े करती है।इंडिगो की भारत या यूं कहें कि घरेलू विमानन बाजार में इसकी हिस्सेदारी (मार्केट शेयर) काफी हद तक है। आंकड़े बताते हैं कि जनवरी 2025 में इंडिगो की घरेलू बाजार हिस्सेदारी लगभग 65.2% थी।वहीं दूसरी ओर कुछ अन्य मासिक रिपोर्ट्स में जैसे अगस्त 2025- इसे लगभग 64.2% दिखाया गया है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार उसके बेड़े में 417 विमान हैं और सामान्य दिनों में हर दिन 2200 उड़ानें भरी जाती हैं। इंडिगो के पास बाजार में इतनी बड़ी हिस्सेदारी होने के कारण यह व्यावहारिक रूप से एकाधिकार(मोनोपॉली) की स्थिति में है, जिससे कीमतों और सेवा गुणवत्ता पर नियंत्रण कम, और यात्रियों के विकल्प सीमित हो जाते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि इंडिगो का यह मामला लापरवाही, बाजार में अपनी मजबूत स्थिति का बेजा फायदा उठाने की कोशिश और जिम्मेदारियों से भागने का बड़ा उदाहरण है। वैसे, यह संकट सिर्फ एक एयरलाइन की समस्या नहीं, बल्कि पूरे हवाई परिवहन तंत्र की कमजोरी और मोनोपॉली की चिंता को उजागर करता है। डीजीसीए ने नए नियम बनाकर यह तय किया कि पायलट और केबिन क्रू कितनी देर तक उड़ान भर सकते हैं। सभी एयरलाइंस को इन नियमों के अनुसार अपने स्टाफ की तैयारी करने का समय भी दिया गया, लेकिन इंडिगो ने समय रहते नए नियमों के हिसाब से पर्याप्त स्टाफ नहीं रखा। इसके कारण अचानक बहुत बड़ी समस्या पैदा हो गई। अब सरकार की कमिटी यह जांच कर रही है कि क्या इंडिगो ने जानबूझकर तैयारी में देरी की, ताकि जब संकट आए तो उसे नियमों में ढील मिल सके ? यानी सवाल यह है कि क्या इंडिगो इस बात का इंतजार कर रही थी कि समस्या खुद-ब-खुद हो जाए, ताकि उसे फायदा मिल सके। हाल फिलहाल, सरकार ने अभी के लिए नए नियमों में थोड़ी ढील दे दी है, ताकि हालात संभल सकें और आम लोगों को अस्थायी राहत मिल सके। लेकिन इससे यह तय नहीं है कि नियमों को हमेशा के लिए कमज़ोर किया जाए। ये नियम पायलटों की सेहत और उड़ानों की सुरक्षा के लिए जरूरी हैं और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार बनाए गए हैं, इसलिए उनका पालन किया जाना बहुत ही ज़रूरी व महत्वपूर्ण है। गौरतलब है कि सरकार ने इंडिगो से इस पूरे मामले में जवाब मांगा है। लेकिन यह सिर्फ जवाब लेने का समय नहीं है, बल्कि यह नीतियों और प्रणाली की समीक्षा का भी समय है। अगर कंपनी नए फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन (एफडीटीएल) नियमों के अनुसार तैयार नहीं थी, तो यहां सवाल यह उठता है कि क्या संबंधित अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं थी? क्या डीजीसीए के निगरानी और नियंत्रण प्रणाली में सुधार की जरूरत है, ताकि ऐसी समस्याओं को पहले ही रोका जा सके? अंत में यही कहूंगा कि मौजूदा संकट हमें यह याद दिलाता है कि किसी भी क्षेत्र में जब केवल एक या दो बड़े खिलाड़ी होते हैं, तो वहां जोखिम ज्यादा होता है। अगर कंपनियों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हो, तो यात्री उचित कीमत पर बेहतर सेवा पा सकते हैं। फिलहाल, सच तो यह है कि पिछले कुछ दिनों से देश की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो जिस अभूतपूर्व संकट से गुजर रही है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। देश के विभिन्न हवाई अड्डों पर लाखों यात्री बेहद बुरी स्थितियों में फंसे रहे, किसी की परीक्षा छूटी, किसी का इंटरव्यू, तो कोई गंभीर मरीज डॉक्टर तक वक्त पर नहीं पहुंच सका। इससे बड़ी बात भला और क्या होगी कि एक पिता की अपनी बेटी के लिए सेनेटरी पैड के लिए गुहार तक सुनने वाला कोई नहीं था। पिछले कुछ समय में हवाई यात्रा की अड़चन को लेकर एक अजीब सा और अराजक माहौल देश में दिखा।सभी एयरलाइनों के पास नियमों के अनुपालन की तैयारी के लिए डेढ़ साल से अधिक का समय था, लेकिन बावजूद इसके सरकार को नए नियमों को स्थगित करने के लिए मजबूर होना पड़ा। आखिर क्यों ? एयरलाइनों ने समय पर नियमों की अनुपालना आखिर क्यों नहीं की ? आखिर दिक्कतें/समस्याएं कहां थीं ? कोई भी क्षेत्र हो, आज आवश्यकता इस बात की है कि पर अंकुश लगना चाहिए। इंडिगो को आज आत्मचिंतन करने की जरूरत है, क्योंकि उसकी गलतियों की जिम्मेदारी कोई और नहीं ले सकता। जरूरी यह भी है कि जो दोषी हैं, उन्हें सजा भी मिले। यह पूरा हंगामा कहीं न कहीं सरकार के लिए भी एक कड़ा सबक है। उसकी सख्ती से इंडिगो को यात्रियों को रिफंड देने पर मजबूर होना पड़ा, लेकिन सवाल तो यह भी है कि अगर पहले सक्रियता दिखाई गई होती, तो यह आपदा आती ही क्यों? बहरहाल, आज हमारे देश में हवाई यात्रा का क्षेत्र तेज़ी से बढ़ रहा है और यह अच्छा संकेत है। इस प्रगति को बनाए रखने और यात्रियों को बेहतर सेवा देने के लिए सरकार को कुछ अतिरिक्त कदम उठाने की जरूरत है, जैसे कि एयरलाइन कंपनियों की तैयारी और योजना की निगरानी, नियमों का समय पर पालन सुनिश्चित करना, और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना। इससे न सिर्फ एयरलाइन्स मजबूत होंगी, बल्कि यात्रियों का भरोसा भी बढ़ेगा और हवाई क्षेत्र की तरक्की लगातार जारी रहेगी।





