उत्तराखंड का लोकपर्व-‘हरेला’ हरियाली, सुख-समृद्धि का प्रतीक

Folk festival of Uttarakhand - 'Harela' is a symbol of greenery, happiness and prosperity

ओम प्रकाश उनियाल

उत्तराखंड का एक खास लोकपर्व हरेला जो कि हर साल 16 जुलाई को मनाया जाता है। हरेला का तात्पर्य हरियाली से होता है। समृद्धि और खुशहाली का पर्व। वर्षा ऋतु के आगमन, कृषि और प्रकृति से जुड़ा हुआ है यह लोकपर्व। जैसाकि, उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में देवी-देवताओं का वास है जिस कारण इसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है। देवी-देवताओं की पूजा के अलावा यहां प्रकृति को भी पूजा जाता है। कुमाऊं में इस लोकपर्व का खासा महत्व माना जाता है। हरेला से दस दिन पहले पांच-सात अनाज के बीजों को टोकरी में बोया जाता है। दस दिन के भीतर हरेला तैयार हो जाता है। दसवें दिन इसे काटकर देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। पकवान बनाए जाते हैं। फसल अच्छी हो, घर-परिवार में सुख-समृद्धि एवं शांति की कामना की जाती है।
सावन माह की शुरुआत इसी दिन से होती है। खेतों में बुआई शुरु की जाती है। बरसात के मौसम में पहाड़ों पर हर तरफ हरियाली बिखर जाती है। ऐसा लगता है जैसे पहाड़ों पर मखमली चादर बिछायी गयी हो। यह लोकपर्व पर्यावरण संरक्षण एवं प्रकृति को संजोकर रखने का संदेश देता है। इसीलिए अधिक से अधिक वृक्षारोपण करने की जरूरत है। इसके लिए सरकार और जनमानस का आपसी सहयोग जरूरी है।

हरेला के अवसर पर शासन द्वारा राज्य में वृहद पौधारोपण अभियान चलाकर 50 लाख पौधे लगाए जाने का लक्ष्य रखा गया है।
पौधारोपण सार्वजनिक स्थानों, नदियों व गदेरों के किनारे, विद्यालय, कॉलेज परिसर, विभागीय परिसर, सिटी पार्क, आवासीय परिसरों, वनों आदि स्थानों पर किया जाएगा। जिसमें फलदार प्रजाति के 50 प्रतिशत पौधे लगाए जाएंगे, बाकी अन्य प्रजाति के।