पिंकी सिंघल
बच्चे भी प्यार की भाषा समझते हैं ।यदि उन्हें डरा धमका कर या जबरदस्ती कोई काम करने को कहा जाए तो वे आनाकानी करते हैं और यदि उन्हें वह काम करना भी पड़ जाए तो वे उस काम को बिना मन,बिना इच्छा और दबाव के चलते ही करते हैं। बच्चे तो फिर भी इंसान ठहरे ,यहां तक कि जानवर भी प्यार की,अपनेपन की ही भाषा समझते हैं और जो उन्हें प्यार से अपने पास बुलाता है ,वे उनके पास दौड़े चले आते हैं। घृणा और क्रोध की भावना मन में रखकर जो व्यक्ति मनुष्य अथवा जानवरों के साथ जबरदस्ती करते हैं अथवा उन पर अपनी हुकूमत जताना चाहते हैं वे सदा ही तिरस्कार और अवमानना पाते हैं ।
कहने का तात्पर्य यह है कि हम सभी मनुष्यों की प्रवृत्ति होती है कि यदि हमें किसी काम को करने के लिए प्यार से कहा जाए तो हम खुशी-खुशी वह काम करने को तैयार हो जाते हैं।उदाहरण के तौर पर ,यदि एक छोटे बच्चे को प्यार से अपने कपड़े बदलने को कहा जाए अथवा अपनी कोई प्यारी चीज किसी दूसरे को देने को कहा जाए तो वे खुशी-खुशी उसके लिए हामी भर लेते हैं ,परंतु यदि जबरदस्ती उसके मनपसंद कपड़े उतरवाकर बड़ों द्वारा उसे उनकी मर्जी के कपड़े पहनाए जाते हैं तो उस चीज के लिए वे कदापि तैयार नहीं होते और पूरे घर में हो हल्ला मचाने लगते हैं ,रोने लगते हैं और आक्रामक हो उठते हैं।
अनुमान लगाइए ,यदि इतनी छोटी चीज को बदलने पर व्यक्ति आक्रामक हो सकता है तो धर्म ,जाति और संप्रदाय बदलने की यदि बात उठती है तो स्थिति क्या रूप ले सकती है। किसी व्यक्ति को जबरन धर्मांतरण के लिए मजबूर किया जाए तो वह उस चीज के लिए कदापि तैयार नहीं होगा, अपितु,वह स्वयं को असहाय और लाचार महसूस करेगा और अपनी पूरी कोशिश करेगा कि जिस धर्म का पालन करते हुए वह बच्चे से बड़ा हुआ है, वह कभी ना बदले।
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में तो यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि किसी भी व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता पर आंच ना आने पाए क्योंकि भारतीय संविधान ने ही भारत के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थात अपने धर्म को चुनने का अधिकार दिया है और यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को धर्म बदलने हेतु मजबूर करता है या धर्म न बदलने पर उसे धमकी देता है अथवा उसके किसी धार्मिक कृत्य अथवा धर्म की निंदा करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जा सकती है।
पिछले कुछ समय से भारत में भी धर्मांतरण और वो भी जबरन जैसी समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है । न केवल पिछड़े क्षेत्रों ,अपितु विकसित राज्यों में भी जबरन धर्मांतरण की समस्याएं देखने को मिलती रहती हैं जोकि अति निंदनीय है ।इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने भी जबरन धर्मांतरण को एक गंभीर मामला बताया है और अवैध धर्मांतरण संबंधी मामलों में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों को लेकर जवाब दाखिल करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार जबरन धर्मांतरण से न केवल नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर आंच आती है,अपितु, देश की सुरक्षा को भी खतरा पहुंचने की संभावना है क्योंकि जिस व्यक्ति का जबरन धर्मांतरण करवाया जाता है उसके सगे संबंधी ,रिश्तेदार ,परिवार जन इस बात को लेकर कदापि चुप नहीं बैठते और इसके खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद करते हुए वे उन लोगों के साथ अवश्य उलझते हैं जिन्होंने अमुक व्यक्ति को जबरन धर्मांतरण के लिए मजबूर किया हो और उस का जबरन धर्मांतरण करवाया हो। एक छोटे स्तर से उठकर यह बात बहुत जल्द राज्य स्तर तक और उसके उपरांत राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंच सकती है जिसकी वजह से हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा उत्पन्न हो सकता है।
एक बात समझ के परे है कि जब हमारे संविधान में ही प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने आचरण करने और उसका प्रचार प्रसार करने का मौलिक अधिकार प्रदान किया गया है ,तो फिर क्यों कोई अन्य व्यक्ति किसी भी व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रहार कर सकता है और उसे अपना धर्म बदलने के लिए मजबूर कर सकता है ,यह कानून के खिलाफ है और कानून का पालन न करने और कानून की अवमानना करने हेतु ऐसे व्यक्तियों को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए क्योंकि ये वही लोग होते हैं जो कानून का मजाक उड़ाते हैं और कानून की धज्जियां उड़ाने में ही अपनी शान समझते हैं।परंतु, शायद वे यह भूल जाते हैं कि संविधान और कानून सभी के लिए समान है और सर्वोच्च हैं जिसका पालन करना प्रत्येक भारतीय नागरिक के लिए अनिवार्य है।
धर्मांतरण शब्द विशेष की यदि बात की जाए तो धर्मांतरण के अंतर्गत व्यक्ति किसी अन्य धर्म वाले को अपने धर्म में शामिल करने का प्रयास करता है और उसकी धार्मिक स्वतंत्रता की परवाह किए बिना उसके मौलिक अधिकार की अवहेलना करता है जो कानूनी रूप से गलत है।
हर दूसरे दिन हम सभी के सामने ऐसे अनेक मामले आते रहते हैं जिसमें लोग अपने धर्म को छुपाते हैं अथवा गलत तरीके से दूसरे धर्म के व्यक्तियों के साथ शादी करते हैं और तत्पश्चात अपने जीवनसाथी को धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर करने लगते हैं और मजबूरी वश उनके जीवन साथी को अपना धर्म न चाहते हुए भी बदलना पड़ता है ।परंतु सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों का संज्ञान लिया है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के अनुसार जबरन धर्मांतरण भारतीय लोकतंत्र के खिलाफ है और भारत चूंकि एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है और कोई भी धर्मनिरपेक्ष राज्य जबरन धर्मांतरण की कभी भी पैरवी नहीं करता। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जबरन धर्मांतरण सभी मुद्दों से निपटने के लिए न केवल उचित कदम उठाने को कहा है ,अपितु धर्मांतरण के मामलों की जांच के लिए निर्देश भी दिए हैं।
यदि कोई व्यक्ति अपनी मर्जी या स्वेच्छा से अपना धर्म परिवर्तन करना चाहता है तो वह इस चीज के लिए स्वतंत्र है, किंतु यदि जबरन उससे यह काम करवाया जाए और अपना धर्म छोड़कर दूसरा धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया जाए तो यह कानून के खिलाफ़ है। भारतीय संविधान में तो किसी धर्म की आलोचना करने अथवा उस पर उंगली उठाने तक को अनैतिक एवं गैरकानूनी माना है , फिर जबरन धर्मांतरण तो बहुत बड़ा मुद्दा है जिसे किसी भी सूरत में अनदेखा नहीं किया जा सकता क्योंकि किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी अन्य धर्म का पालन करने के लिए कतई मजबूर नहीं किया जा सकता , विशेषत:तब,जब कि वह स्वयं उस धर्म को अपनाना न चाहता हो।
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के दबाव में आकर अथवा किसी सामाजिक आर्थिक लालच से अपना धर्म परिवर्तन करता है तो यह एक गंभीर मामला है जिस के संबंध में सरकार को उचित दिशा निर्देश जारी करने चाहिएं और धर्म परिवर्तन करवाने वालों से सख्ती से निपटना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने उन सभी शिक्षण संस्थानों, संगठनों एवं धार्मिक समुदायों को भी आड़े हाथों लिया है जो अपने छात्रों ,अनुयायियों और सदस्यों को जबरन धर्मांतरण के लिए मजबूर करते हैं और ऐसा न करने पर उनका अनादर करते हैं।
धर्म चुनना हम सभी नागरिकों का निजी मामला है और किसी अन्य व्यक्ति ,वर्ग, समुदाय अथवा सरकार द्वारा इसमें दखलंदाजी नहीं की जा सकती। धार्मिक स्वतंत्रता हमारा मौलिक अधिकार है जिस पर प्रहार करने वालों को कानूनन गलत ठहराया जाता है और उनके खिलाफ कार्यवाही का प्रावधान भी है। किसी को प्रलोभन अथवा धमकी देकर करवाया गया धर्म परिवर्तन सरासर गलत माना जाता है जिसके खिलाफ कानूनी प्रावधान भी हैं।जरूरत है ,उन प्रावधानों को जानने की ,समझने की और अपने आप को जागरूक बनाने की, ताकि कभी कोई दूसरा व्यक्ति हमारे ऊपर हावी न होने पाए और हमारी धार्मिक स्वतंत्रता को हमसे छीन न पाए।