विदेश सेवा अधिकारी विश्वविख्यात भारतीय परचम लहराते रहें

Foreign Service Officers should keep the Indian flag flying high worldwide

प्रो. नीलम महाजन सिंह

पिछले 78 वर्षों में, भारत के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी तक, भारतीय विदेश नीति के मुख्य पहलू लगभग समतल हैं। पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के शब्द ‘अटल’ हो चुके हैं; “हम सब कुछ बदल सकते हैं, परंतु भूगोल में अपने पड़ोसी देशों को नहीं बदल सकते “। इस कारण हमें प्रयास करना चाहिए कि हम पडोसियों से सद्भावना के संबंध बनाएँ। भारतीय विदेश नीति जटिल अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में दिशा निर्धारित करने के उद्देश्य से; सिद्धांतों, उद्देश्यों व रणनीतियों का गतिशील मिश्रण है। गुटनिरपेक्षता, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व व रणनीतिक साझेदारी के प्रति प्रतिबद्धता, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास व वैश्विक प्रभाव पर ज़ोर दिया जाना, विदेश नीति की विशेषता रही है। सरकारें बदलने के बावजूद, भारत की विदेश नीति के मूल सिद्धांत अपरिवर्तित हैं। शंघाई सहयोग संगठन (SCO) को अयोजित करने में चीन के विदेश मंत्री वांग यी (Wang Yi) व्यस्त हैं। शंघाई सहयोग संगठन (यूरो-एशिया का राजनीतिक, आर्थिक व सैनिक संगठन) की स्थापना 2001 में शंघाई में चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, तजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के नेताओं ने की। पारस्परिक सुरक्षा, राजनीतिक, आर्थिक संगति इसका मुख्यालय पकिङ्ग, चीन में है। इस के 8 सदस्य देश, चीन, भारत, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान हैं। भारत ऐतिहासिक रूप से किसी भी प्रमुख सैन्य गुट या शक्ति केंद्र के साथ गठबंधन करने से बचता रहा है, जिससे उसे अपने हितों को स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ाने व रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने की अनुमति मिलती है। गुटनिरपेक्षता का यह मूल सिद्धांत है। शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांत (परस्पर सम्मान, अहिंसा, अहस्तक्षेप, समानता और पारस्परिक लाभ) भारत के अन्य देशों, विशेषकर उसके पड़ोसियों के साथ संबंधों का मार्गदर्शन करते हैं। ये पंचशील के अंतर्गत आते हैं। यह नीति अपने ‘निकटतम पड़ोसियों’ के साथ मज़बूत व सहयोगात्मक संबंध बनाने को प्राथमिकता देती है, जिसमें संपर्क, आर्थिक साझेदारी व क्षेत्रीय स्थिरता पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। पड़ोसी पहले (Neighbour First) का यह सिद्धांत वैश्विक स्तर पर सहायक है। भारत आर्थिक, राजनीतिक व सुरक्षा सहयोग के माध्यम से दक्षिण पूर्व एशिया व व्यापक हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करना चाहता है। ‘एक्ट ईस्ट नीति’ (Act East) ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय में संबंधों को संयोजित किया है। भारत आपसी हितों व साझा रणनीतिक लक्ष्यों के आधार पर अमेरिका, रूस व जापान जैसी प्रमुख शक्तियों के साथ मज़बूत साझेदारी बनाए हुए है। विदेश नीति का मुख्य उद्देश्य, राष्ट्रीय सुरक्षा है। भारत की क्षेत्रीय अखंडता व संप्रभुता की रक्षा करना सर्वोपरि उद्देश्य है। विदेश नीति, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, निवेश आकर्षित करने व व्यापार का विस्तार करने की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रही है। भारत का लक्ष्य क्षेत्रीय व वैश्विक व्यवस्था को आकार देने, बहुपक्षवाद को बढ़ावा देने और विश्व मंच पर अपने हितों की वकालत करने में प्रमुख भूमिका निभाना है। प्रवासी भारतीयों के कल्याण की रक्षा और संवर्धन भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण पहलू है। भारत अपने हितों को आगे बढ़ाने व वैश्विक शासन में योगदान देने के लिए संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन और ब्रिक्स जैसे विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों में सक्रिय रूप से भाग लेता है।

बहुपक्षवादी, रक्षा कूटनीति से भारत अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने व अपना प्रभाव प्रदर्शित करने के लिए अपनी रक्षा क्षमताओं को बढ़ाता रहा है व रणनीतिक रक्षा साझेदारियों में संलग्न है। भारत अपनी सांस्कृतिक विरासत, प्रवासी समुदाय और सॉफ्ट पावर पहलों का लाभ उठाकर सद्भावना का निर्माण करता है और वैश्विक स्तर पर अपनी छवि प्रस्तुत करता है। भारत जलवायु परिवर्तन से निपटने, नवीकरणीय ऊर्जा और सतत विकास को बढ़ावा देने के वैश्विक प्रयासों में सक्रिय रूप से शामिल है। ‘ज़ीरो टॉलरेंस’: चीन में एससीओ (SCO) बैठक से पहले विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने आतंकवाद पर कड़ा संदेश दिया है। डा. एस जयशंकर की चीन यात्रा वर्षों से चले आ रहे सीमा तनाव के बाद संबंधों में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने राष्ट्रपति शी जिनपिंग व वांग यी से मुलाकात की है और द्विपक्षीय संबंधों, सीमा मुद्दों व व्यापार संबंधी चिंताओं पर चर्चा की। दोनों पक्षों ने आपसी सम्मान व स्थिर संबंधों के महत्व पर ज़ोर दिया है। साथ ही आतंकवाद, सीमा पार नदियों और लोगों के बीच आदान-प्रदान पर भी चर्चा हुई। दोनों पड़ोसी देशों के बीच धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त संबंधों के बीच, यह छह वर्षों में उनकी पहली चीन यात्रा थी। यह मुलाकात शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान हुई। जयशंकर ने ‘X’ पर पोस्ट किया, “आज सुबह बीजिंग में अपने साथी एससीओ विदेश मंत्रियों के साथ राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाक़ात की। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अभिवादन पहुँचाया। राष्ट्रपति शी को हमारे द्विपक्षीय संबंधों के हालिया विकास से अवगत कराया। इस संबंध में हमारे नेताओं के मार्गदर्शन को महत्व देते हैं”। डा. जयशंकर ने अपने समकक्ष वांग यी के साथ बातचीत के बारे में कहा कि दोनों देशों ने पिछले नौ महीनों में हमारे द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में प्रगति की है। इसका श्रेय सीमा पर तनाव के समाधान व शांति बनाए रखने के प्रयासों को दिया।

यह आपसी रणनीतिक विश्वास और द्विपक्षीय संबंधों के सुचारू विकास का मूल आधार है। अब यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम सीमा से जुड़े अन्य पहलुओं पर भी ध्यान दें, जिसमें तनाव कम करना भी शामिल है।

पिछले साल कज़ान में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद से सकारात्मक प्रगति को देखते हुए, जयशंकर ने बीजिंग से संबंधों के प्रति दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाने का आग्रह किया।

भारत-चीन के बीच स्थिर व रचनात्मक संबंध न केवल हमारे, बल्कि पूरे विश्व के लिए लाभकारी हैं। यह पारस्परिक सम्मान, पारस्परिक हित व पारस्परिक संवेदनशीलता के आधार पर संबंधों को संभालने से ही संभव है। सारांशार्थ, हम पहले भी इस बात पर सहमत हुए हैं कि मतभेद; विवाद नहीं बनने चाहिए और न ही प्रतिस्पर्धा, कभी संघर्ष में बदलनी चाहिए। इसी आधार पर हम अब अपने संबंधों को सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ा सकते हैं। इस तरह की व्यापार बाधाएँ भारत के घरेलू विनिर्माण को प्रभावित कर सकती हैं। पड़ोसी देशों और आज दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के रूप में, भारत व चीन के संबंधों के कई पहलू और आयाम हैं। हमारे लोगों के बीच आदान-प्रदान को सामान्य बनाने की दिशा में उठाए गए कदम निश्चित रूप से पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग को बढ़ावा दे सकते हैं। इस संदर्भ में यह भी आवश्यक है कि प्रतिबंधात्मक व्यापार उपायों और बाधाओं से बचा जाए। दोनों पक्ष सीधी हवाई सेवाओं और कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने व जल विज्ञान संबंधी आंकड़ों के आदान-प्रदान के माध्यम से सीमा पार नदियों पर सहयोग करने पर सहमत हुए हैं। एससीओ बैठक से पहले आतंकवाद का मुद्दा उठाते हुए, जयशंकर ने वांग को याद दिलाया कि, समूह का प्राथमिक कार्य आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद का मुकाबला करना है। यह एक साझा चिंता का विषय है और भारत को उम्मीद है कि आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता की नीति को दृढ़ता से बरकरार रखा जाएगा। यह यात्रा पूर्वी लद्दाख में लंबे समय से चले आ रहे सैन्य गतिरोध के समाधान की पृष्ठभूमि में हो रही है, जो अक्टूबर 2023 में देपसांग और डेमचोक में सैनिकों की वापसी के साथ पूरा हो जाएगा। इस गतिरोध ने कज़ान (Kazan) में मोदी-शी बैठक व उच्च-स्तरीय वार्ता की बहाली का मार्ग प्रशस्त किया, व पीएम नरेंद्र मोदी के सितंबर में एससीओ शिखर सम्मेलन के लिए फिर से चीन आने की उम्मीद है। ‘हिंदी चीनी भाई-भाई’; का महत्वपूर्ण नारे को धरातल पर कार्यरत करना चुनौतीपूर्ण रहेगा। भारतीय विदेश मंत्रालय के सचिव विक्रम मिस्री व विदेश सेवा अधिकारियों को प्रयत्नशील रहना चाहिए, कि विश्व स्तर में भारत का परचम लहराता रहे।

प्रो. नीलम महाजन सिंह (वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक, अंतर्राष्ट्रीय सामयिक विशेषज्ञ, दूरदर्शन व्यक्तित्व, सॉलिसिटर फॉर ह्यूमन राइट्स संरक्षण व परोपकारक)