भूला-बिसरा संसद संकल्प

Forgotten Parliament resolution

संकल्प को लक्ष्य में बदलते देखना चाहता है भारत

सर्वेश कुमार सिंह-

संसद का संकल्प, जो लक्ष्य बनना चाहिए था। वह भूला-बिसरा साधारण प्रस्ताव मात्र बनकर रह गया है। संसद के दोनों सदनों द्वारा संयुक्त रूप से पारित यह संकल्प प्रस्ताव चीन से 1962 के युद्ध में खोई अपनी 38 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि को वापस पाने के लिए है। भारत ने अपनी भूमि को प्राप्त करने के लिए 14 नवम्बर 1962 को (प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिवस) संकल्प प्रस्ताव पारित किया था। लेकिन, जिस दिन से यह प्रस्ताव पारित हुआ तब से लेकर आजतक इस संकल्प को कभी देश के लक्ष्यों की प्राथमिकता सूची में शानिल नहीं किया गया है। मात्र इसे एक प्रस्ताव मानकर चीन के साथ चर्चाएं और वार्ताएं होती रहीं।

हिन्दी-चीनी भाई-भाई का मिथक तोड़ने वाले चीन ने 1962 में हमारे जिस भू-भाग पर कब्जा किया। उसमें चीन स्थायी निर्माण कर रहा है। भारत से युद्ध के पहले तिब्बत को उसने अधिग्रहीत किया। तिब्बत हमारी सीमा थी, आज वहां चीन सीमा है, जबकि वास्तविक सीमा तिब्बत है। तिब्बत की राजनीतिक स्वतत्रता का हनन करके उस पर कब्जा जमाने वाली चीन की कृदृष्टि शुरु से ही भारत के भू-भागों पर थी। वह कभी लद्धाख तो कभी अरुणाचंचल प्रदेश के मुद्दे उठाता था। आज भी उठाता है। उसने अपनी इसी विस्तारवादी रणनीति के अन्तर्गत भारत पर हमला करके हमारे भ्रम को तोड़ दिया था। इस युद्द में हमने जहां सैनिकों का बलिदान देखा, वहीं चीन के कब्जे अपनी भूमि भी खोयी। लेकिन, भारत की संसद ने इस अविस्मरणीय घटना को याद रखने के लिए एक संकल्प प्रस्ताव पारित किया। यह संकल्प प्रस्ताव उसी नेहरू सरकार ने संसद में प्रस्तुत किया था,जिसने चीन के हाथों अपनी 38 हजार वर्ग किमी भूमि खोयी थी। प्रस्ताव को पारित करने के लिए संसद के दोनों सदनों का संयुक्त सत्र आहूत हुआ था।

संकल्प प्रस्ताव मे कहा गया है कि- “इस संसद को इस बात का गहरा दुख है कि चीन की जनवादी सरकार ने भारत के सदाशयपूर्ण मैत्री व्यवहारों की उपेक्षा करके दोनों देशों के बीच पारस्परिक स्वाधीनता, तटस्थता और एक-दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप न करने के सिद्धान्त व सह-अस्तित्व की भावना के समझौते को न मानकर पंचशील के सिद्धान्तों का उल्लंघन किया है। इसके बाद चीन ने अपनी विशाल सेना लेकर पूरी तैयारी के साथ भारत पर आक्रमण किया। यह संसद हमारी सेनाओं के जवानों और अधिकारियों के शौर्यपूर्ण मुकाबले की सराहनी करती है, जिन्होंने हमारी सीमाओं की रक्षा की है। सीमा सुरक्षा में अपने प्राणों की बलि देने वाले वीरगति प्राप्त शहीदों को हम श्रद्धांजलि देते हैं और मातृभूमि की रक्षा के लिए दी गई कुर्बानी के लिए नतमस्तक होते हैं।

यह संसद भारतीय जनता के सक्रिय सहयोग की प्रशंसा करती है, जिसने भारत पर चीनी आक्रमण से उत्पन्न संकट और आपात स्थिति में भी बड़े धैर्य के साथ काम किया। संसद हर वर्ग के लोगों के उत्साह और सहयोग की प्रशंसा करती है, जिन्होंने आपातकालीन स्थितियों का डट कर मुकाबला किया। भारत की स्वाधीनता की रक्षा के लिए लोगों में एक बार फिर स्वतंत्रतता, एकता और त्याग की ज्वाला फूटी है। विदेशी आक्रमण के प्रतिरोध में हमारे संघर्ष के क्षणों में जिन अनेक मित्र राष्ट्रों की सहायता हमें प्राप्त हुई है, उनकी नैतिक एवं सहानुभूतिपूर्ण संवेदनाओं के प्रति यह संसद अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करती है। संसद आशा और विश्वास के साथ प्रतिज्ञा करती है कि भारत की पवित्र भूमि से हम आक्रमणकारियों को खदेड़ कर ही दम लेंगे। इस कार्य में हमे चाहे कितना समय क्यों ने लगाना पड़े या इसका कितना भी मूल्य चुकाना पड़े, हम चुकाने के लिए तैयार हैं”।

संकल्प प्रस्ताव विदेश मंत्रालय और संसद की फाइलों में 63 साल से सुरक्षित है। अब इसे फिर से निकालने की जरूरत है। देश को उम्मीद है कि कठिन से कठिन और असंभव मान ली गई समस्याओं का समाधान ढूंढने वाली मोदी सरकार इस मोर्च को भी फतेह करेगी। मोदी सरकार ने जिस तरह दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए भारतीय जनता पार्टी के तीन वादों में से दो को पूरा कर दिया है, इसे भी पूरा करेगी। भाजपा सरकार ने “धारा 370” की समाप्ति के लक्ष्य को पूरा किया। कभी न खत्म होने वाली समस्या मान ली गई “नक्सलवाद” का समाधान कर दिया। भारत नक्सलवाद मुक्त होने की ओर अग्रसर है। मोदी सरकार में ही “राम मन्दिर” का सपना साकार हो गया है तो फिर इस प्रस्ताव को भी पूरा करने की उम्मीद नरेन्द्र मोदी से ही है।

भाजपा के ही नांदेड़ (महाराष्ट्र) से सासंद प्रतापराव पाटिल ने लोकसभा में 19 दिसम्बर 2022 को इस संकल्प की चर्चा की। उन्होंने कहा भारत की जनता को विश्वास हो गया है कि मोदी सरकार 1962 के युद्ध में चीन से खोई जमीन वापस ले लेगी। शून्य काल में पाटिल ने 14 नवम्बर 1962 के इस प्रस्ताव का जिक्र किया। उन्होंने कहा “मैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से 14 नवम्बर 1962 के संकल्प को पूरा करने का अनुरोध करता हूं”। इस संकल्प को पूरा करने का प्रश्न “लोक सभा” और “राज्य सभा” में कई बार आ चुका है। इस पर विदेश राज्यमंत्री ने उत्तर दिये हैं। राज्य सभा में 2019 में वाई.एस. चौधरी ने इस पर सवाल पूछा था। विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने उत्तर देते हुए बताया था कि “चीन द्वारा कब्जाई गई 38 हजार वर्ग किमी भूमि के अतिरिक्त चीन-पाकिस्तान समझौते में पाकिस्तान ने 2 मार्च 1963 को जम्मू कश्मीर की 5 हजार एक सौ अस्सी वर्ग किमी भूमि चीन को सौंप दी थी” उन्होंने यह भी बताया था कि भारत-चीन सीमा विवाद हल करने के लिए वार्ता के कई दौर किये हैं। लोक सभा में 8 अगस्त 2025 को विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह भी एक प्रश्न के उत्तर मे बता चुके हैं कि “चीन ने भारत की 38 हजार वर्ग किमी भी कब्जाई हुई है”। इस पर वार्ता के कई दौर हुए हैं। इनकी भी जानकारी विदेश राज्य मंत्री ने दी है।

संसद के इस संकल्प को पूरा करने के लिए अनेक दौर की वार्ताएं हुईं हैं। विदेश सचिव स्तर के कार्यसमूह गठित किये गए। किन्तु समाधान कुछ नहीं है। अभी तक हम चीन से एक इंच भी भूमि को मुक्त कराने या मुक्त करने का आश्वासन भी नहीं ले सके हैं। यह स्थिति चिंताजनक तो है ही भारत की संप्रभुता और राष्ट्रीय स्वाभिमान को हर समय चुनौती दे रही है। इसलिए यह समय संसद के इस संकल्प को सिर्फ याद करने का नहीं है, बल्कि उसपर अमल करने के लिए कुछ ठोस प्रयास करने का है। हम भारत को 2047 में विकसित बनाने के संकल्प के साथ काम कर रहे हैं। लेकिन, विकसित भारत में अपने वे “दो संकल्प” भी पूरे करने होंगे जो हमारी संसद ने सर्वसम्मति से पारित किये हैं। एक सकल्प चीन से भूमि मुक्त कराने का है दूसरा पाकिस्तान के कब्जे में गए जम्मू कश्मीर के हिस्से को फिर से प्राप्त करने का है।