क्या राज्य सरकार आदिवासियों के प्रयाग राज बेणेश्वर धाम के ऐतिहासिक,भौगोलिक, धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्वरूप की रक्षा कर पायेंगी?
नीति गोपेंद्र भट्ट
नई दिल्ली : राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपनेतीसरे शासन काल के दसवें बजट में राजस्थान में 19 नए जिलोंका गठन किए जाने की ऐतिहासिक घोषणा कर अपनी दृढ़राजनीतिक इच्छा शक्ति और मजबूत इरादों को ज़ाहिर किया है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का यह कथन बिल्कुल सही लगता हैकि भू-भाग की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा प्रान्त होने और प्रदेशकी विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए नए जिलों कागठन न केवल प्रासंगिक है वरन आवश्यक भी हो गया था।उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि राजस्थान से आकार में छोटेकई प्रदेशों में जिलों की संख्या राजस्थान से अधिक हैं।गहलोतने प्रशासनिक दृष्टि से छोटे जिलों को उचित बताते हुए तर्क दियाकि जिला मुख्यालयों की दूरी को सौ किमी से कम के दायरे मेंलाने के प्रयासों से आम जन की परेशनियाँ कम होंगी औरइलाक़ों का विकास और अधिक तीव्र गति से होंगा। नए जिलों केगठन की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए उन्होंने बजट में दो हजारकरोड़ रु का प्रावधान भी रखा हैं।
प्रदेश में 19 नए जिलों अनूपगढ़ (श्रीगंगानगर), बालोतरा(बाड़मेर), ब्यावर (अजमेर),डीग (भरतपुर),कुचामनसिटी(नागौर),दूदू (जयपुर), गंगापुर सिटी (सवाईमाधोपुर), जयपुर-उत्तर,जयपुर-दक्षिण,जोधपुर पूर्व,जोधपुर पश्चिम,केकड़ी(अजमेर),कोटपूतली (जयपुर),खैरथल (अलवर),नीम का थाना(सीकर ), फलोदी (जोधपुर), सलूंबर (उदयपुर), सांचोर(जालोर), शाहपुरा (भीलवाड़ा)
की घोषणा के साथ ही अब राजस्थान में जिलों की संख्या 33 सेबढ़ कर 50 हो गई है और नए संभाग सीकर, पाली और बांसवाड़ाबनने से संभागों की संख्या भी सात से बढ़ कर दस हो गई हैं।
नए जिलों से असन्तोष भी उभरा
प्रदेश में प्रतिपक्ष की भूमिका निभा रही भारतीय जनता पार्टी नेइसे जल्दबाजी में लिया गया और आधी अधूरी तैयारी के साथअपने समर्थक विधायकों को ख़ुश करने तथा राजनीतिक फ़ायदाउठाने के लिए उठाया गया अविवेक भरा कदम बताया है।भाजपा का यह भी कहना है कि हाल ही एक ओर स्वयं मुख्यमंत्रीने नए जिलों का गठन करने के लिए गठित राम लुभाया कमेटी काकार्यकाल छह माह बढ़ा कर यह बयान दिया था कि कमेटी कीपूरी रिपोर्ट आने के बाद ही नए जिलों के गठन के प्रस्ताव परविचार किया जाएगा लेकिन उसके पहले ही बजट सत्र के अंतिमचरण में किसी को कानों कान खबर लगने दिए बिना अचानकएक साथ इतने अधिक संख्या में जिलों की घोषणा कर गहलोतसरकार ने सस्ती लोक प्रियता हासिल करने की कौशिश की है।
इधर पन्द्रह साल के अन्तराल के बाद एक साथ 19 नए जिलों कीघोषणा से प्रदेश के नए जिलों और संभागों को लेकर प्रदेश केकुछ हिस्सों में असन्तोष भी देखा गया है तथा जिन जगहों कोजिला नहीं बनाया गया वहाँ असन्तोष का बवाल उठ खड़ा हुआ है । राज्य के भिवाड़ी, सांभर-फुलेरा, सूजानगढ़,सूरतगढ़, गुढामलानी, भीनमाल आदि को भी जिला बनाने और पश्चिमीराजस्थान में बाड़मेर को नया संभागीय मुख्यालय बनाने की मांगको लेकर आंदोलन उठ खड़े हुए हैं। लोगों ने आंदोलन, धरना, प्रदर्शन, हाईवे जाम आदि कर अपना विरोध दर्ज कराया हैं।
आन्दोलन करने वाले लोगों का कहना है कि लम्बे समय सेज़िला बनने लायक़ प्रतीक्षारत स्थानों और उपखंड मुख्यालयों कीभारी अनदेखी हुई है तथा ऐसे स्थान भी ज़िला बन गए है जोकिसही मायनों में पंचायत समिति मुख्यालय के लायक़ भी नही हैं।
राज्य सरकार के समक्ष चुनौतियाँ
नए जिलों को ज़मीन पर आकार देने के परिप्रेक्ष्य में देखें तों इसेलेकर भी राज्य सरकार के समक्ष कम चुनौतियाँ नही है ।
जैसे आदिवासियों के प्रयागराज माने जाने वाले बेणेश्वर धाम केऐतिहासिक,भौगोलिकसामाजिक,धार्मिक और सांस्कृतिकस्वरूप की रक्षा को लेकर आवाज़ उठनी शुरू हो गई है। दरअसलबेणेश्वर धाम अब तक डूंगरपुर ज़िले के आसपुर विधान सभाक्षेत्र की साबला तहसील के अन्तर्गत आता है।सोम,माही औरजाखम (लुप्त) नदियों के संगम पर स्थित इस पवित्र टापू का एककिनारा डूंगरपुर जिले के साबला क़स्बा तों दूसरा किनाराबाँसवाड़ा ज़िले के लोहारिया से लगा हुआ है। बेणेश्वर धाम केगादीपति महन्त भी साबला के हरि मंदिर में विराजते है जहांमावजी महाराज के अर्वाचीन चोपड़े संरक्षित हैं। बेणेश्वर धाम परप्रति वर्ष माघ पूर्णिमा पर भव्य मेला लगता है जिसमेंराजस्थान,गुजरात, मध्य प्रदेश,महाराष्ट्र आदि प्रदेशों के लाखोंआदिवासी भाग लेते है और संगम में पवित्र स्नान करने के साथ हीअपने पितृ जनों और सगे सम्बन्धियों की अस्थियों का विसर्जनकर तर्पण,हवन,श्राद्ध आदि कर्म काण्ड पूरे करते है। इसलिएबेणेश्वर धाम को आदिवासियों का कुम्भ मेला तथा प्रयाग राजऔर हरिद्वार के समतुल्य माना जाता है। यहाँ के साद समाज केलोग बेणेश्वर को अपना तीर्थ और मावजी महाराज केउत्तराधिकारी साबला के महन्त को अपना गुरु मानते है। उन्हेंअंदेशा है कि उदयपुर को विभाजित कर सलुंबर को जिला बनानेसे बेणेश्वर धाम उसमें शामिल हो जाने से डूंगरपुर जिले काहिस्सा नही रह पायेगा। इस तरह सदियों से चली आ रही ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के समाप्त होने से लाखों लोगों की भावनाएंआहत होंगी। कतिपय लोगों का मानना है कि सलुंबर के स्थानपर सागवाडा अथवा परतापूर जिला बनाने की दृष्टि से अधिकबेहतर और विकसीत स्थान थे। एआईसीसी सदस्य दिनेशखोडनिया ऐसा करवाने में चुक गए।इसी प्रकार क़रीब आठ सौसाल पुराना डूंगरपुर जिला मुख्यालय भी संभाग बनाने के लिहाजसे असली हक़दार था लेकिन खाँटी आदिवासी नेता और गहलोतमंत्रिमंडल में केबिनेट मंत्री महेन्द्र जीत सिंह मालविया इस मामलेमें भारी पड़े।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखें तों रियासत काल में महाराणाप्रताप के पितामह राणा सांगा के पक्ष में बाबर के साथ खानवा केयुद्ध में शहीद हुए उनके बड़े भाई डूंगरपुर महारावल उदय सिंहद्वितीय के बाद डूंगरपुर से टूट कर ही बाँसवाड़ा अलग रियासतबनी थी ।
इस ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि में इन दिनों बेणेश्वर धाम को डूंगरपुरजिला में ही रखने की पूरजोर माँग की जा रही है।
इसलिए यह तय है कि प्रदेश के अन्य कतिपय स्थानों में भी इस चुनावी वर्ष में ऐसी ही विसंगतियाँ नए जिलों के गठन में राज्य सरकार के लिए परेशानी का सबब बन सकती हैं।विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए नए जिलों का गठन न केवल प्रासंगिक है वरन आवश्यक भी हो गया था।उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि राजस्थान से आकार में छोटे कई प्रदेशों में जिलों की संख्या राजस्थान से अधिक हैं।गहलोत ने प्रशासनिक दृष्टि से छोटे जिलों को उचित बताते हुए तर्क दिया कि जिला मुख्यालयों की दूरी को सौ किमी से कम के दायरे में लाने के प्रयासों से आम जन की परेशनियाँ कम होंगी और इलाक़ों का विकास और अधिक तीव्र गति से होंगा। नए जिलों के गठन की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए उन्होंने बजट में दो हजार करोड़ रु का प्रावधान भी रखा हैं।
प्रदेश में 19 नए जिलों अनूपगढ़ (श्रीगंगानगर), बालोतरा(बाड़मेर), ब्यावर (अजमेर),डीग (भरतपुर),कुचामनसिटी(नागौर),दूदू (जयपुर), गंगापुर सिटी (सवाईमाधोपुर), जयपुर-उत्तर,जयपुर-दक्षिण,जोधपुर – पूर्व,जोधपुर-पश्चिम, केकड़ी(अजमेर), कोटपूतली (जयपुर), खैरथल (अलवर),नीम का थाना(सीकर ), फलोदी (जोधपुर), सलूंबर (उदयपुर), सांचोर(जालोर), शाहपुरा (भीलवाड़ा)
की घोषणा के साथ ही अब राजस्थान में जिलों की संख्या 33 से बढ़ कर 50 हो गई है और नए संभाग सीकर, पाली और बांसवाड़ा बनने से संभागों की संख्या भी सात से बढ़ कर दस हो गई हैं।
नए जिलों से असन्तोष भी उभरा
प्रदेश में प्रतिपक्ष की भूमिका निभा रही भारतीय जनता पार्टी ने नए जिलों के गठन को जल्दबाजी में लिया गया और आधी अधूरी तैयारी के साथ अपने समर्थक विधायकों को ख़ुश करने तथा राजनीतिक फ़ायदा उठाने के लिए उठाया गया अविवेक भरा कदम बताया है।भाजपा का यह भी कहना है कि हाल ही एक ओर स्वयं मुख्यमंत्री ने नए जिलों का गठन करने के लिए गठित राम लुभाया कमेटी का कार्यकाल छह माह बढ़ा कर यह बयान दिया था कि कमेटी की पूरी रिपोर्ट आने के बाद ही नए जिलों के गठन के प्रस्ताव पर विचार किया जाएगा लेकिन उसके पहले ही बजट सत्र के अंतिम चरण में किसी को कानों कान खबर लगने दिए बिना अचानक एक साथ इतनी अधिक संख्या में जिलों की घोषणा कर गहलोत सरकार ने सस्ती लोक प्रियता हासिल करने की कौशिश की है।
इधर पन्द्रह साल के अन्तराल के बाद एक साथ 19 नए जिलों की घोषणा से प्रदेश के नए जिलों और संभागों को लेकर प्रदेश के कुछ हिस्सों में असन्तोष भी देखा गया है तथा जिन जगहों को जिला नहीं बनाया गया वहाँ असन्तोष का बवाल उठ खड़ा हुआ है । राज्य के भिवाड़ी, सांभर-फुलेरा, सूजानगढ़, सूरतगढ़, गुढामलानी, भीनमाल आदि को भी जिला बनाने और पश्चिमी राजस्थान में बाड़मेर को नया संभागीय मुख्यालय बनाने की मांग को लेकर आंदोलन उठ खड़े हुए हैं। लोगों ने आंदोलन, धरना, प्रदर्शन, हाईवे जाम आदि कर अपना विरोध दर्ज कराया हैं।
आन्दोलन करने वाले लोगों का कहना है कि लम्बे समय से ज़िला बनने लायक़ और लम्बे समय से प्रतीक्षारत स्थानों और उपखंड मुख्यालयों की भारी अनदेखी हुई है तथा ऐसे स्थान भी ज़िला बन गए है जोकि सही मायनों में पंचायत समिति मुख्यालय के लायक़ भी नही हैं।
राज्य सरकार के समक्ष चुनौतियाँ
नए जिलों को ज़मीन पर आकार देने के परिप्रेक्ष्य में देखें तों इसे लेकर राज्य सरकार के समक्ष चुनौतियाँ भी कम नही है ।
जैसे आदिवासियों के प्रयागराज माने जाने वाले बेणेश्वर धाम के ऐतिहासिक,भौगोलिकसामाजिक,धार्मिक और सांस्कृतिक स्वरूप की रक्षा को लेकर आवाज़ उठनी शुरू हो गई है। दरअसल बेणेश्वर धाम अब तक डूंगरपुर ज़िले के आसपुर विधान सभा क्षेत्र की साबला तहसील के अन्तर्गत आता है।सोम,माही और जाखम (लुप्त) नदियों के संगम पर स्थित इस पवित्र टापू का एक किनारा डूंगरपुर जिले के साबला क़स्बा तों दूसरा किनारा बाँसवाड़ा ज़िले के लोहारिया से लगा हुआ है। बेणेश्वर धाम के गादीपति महन्त भी साबला के हरि मंदिर में विराजते है जहां मावजी महाराज के अर्वाचीन चोपड़े संरक्षित हैं। बेणेश्वर धाम पर प्रति वर्ष माघ पूर्णिमा पर भव्य मेला लगता है जिसमें राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आदि प्रदेशों के लाखों आदिवासी भाग लेते है और संगम में पवित्र स्नान करने के साथ हीअपने पितृजनों और सगे सम्बन्धियों की अस्थियों का विसर्जन कर तर्पण,हवन,श्राद्ध आदि कर्म काण्ड पूरे करते है। इसलिए बेणेश्वर धाम को आदिवासियों का कुम्भ मेला तथा प्रयाग राज और हरिद्वार के समतुल्य माना जाता है। यहाँ के साद समाज के लोग बेणेश्वर को अपना तीर्थ और मावजी महाराज के उत्तराधिकारी साबला के महन्त को अपना गुरु मानते है। उन्हें अंदेशा है कि उदयपुर को विभाजित कर सलुंबर को जिला बनाने से बेणेश्वर धाम उसमें शामिल हो जाने से डूंगरपुर जिले का हिस्सा कम नही रह पायेगा। इस तरह सदियों से चली आ रही ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के समाप्त होने से लाखों लोगों की भावनाएं आहत होंगी। कतिपय लोगों का मानना है कि सलुंबर के स्थान पर सागवाडा अथवा परतापूर जिला बनाने की दृष्टि से अधिक बेहतर और विकसीत स्थान थे। एआईसीसी सदस्य दिनेश खोडनिया ऐसा करवाने में चुक गए।इसी प्रकार क़रीब आठ सौ साल पुराना डूंगरपुर जिला मुख्यालय भी संभाग बनाने के लिहाजसे असली हक़दार था लेकिन खाँटी आदिवासी नेता और गहलोतमंत्रिमंडल में केबिनेट मंत्री महेन्द्र जीत सिंह मालविया इस मामलेमें भारी पड़े।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखें तों रियासत काल में महाराणाप्रताप के पितामह राणा सांगा के पक्ष में बाबर के साथ खानवा केयुद्ध में शहीद हुए उनके बड़े भाई डूंगरपुर महारावल उदय सिंहद्वितीय के बाद डूंगरपुर से टूट कर ही बाँसवाड़ा अलग रियासतबनी थी ।
इस ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि में इन दिनों बेणेश्वर धाम को डूंगरपुरजिला में ही रखने की पूरजोर माँग की जा रही है।
इसलिए यह तय है कि प्रदेश के अन्य कतिपय स्थानों में भी इसचुनावी वर्ष में ऐसी ही विसंगतियाँ नए जिलों के गठन में राज्यसरकार के लिए परेशानी का सबब बन सकती हैं।