बीकानेर की पूर्व राजमाता और डूंगरपुर की बाई सा सुशीला कुमारी के निधन से राजस्थान का एक औरऐतिहासिक स्तम्भ ढह गया

नीति गोपेंद्र नाथ भट्ट

नई दिल्ली : डूंगरपुर राजघराने में जन्मी बीकानेर की पूर्व राजमाता सुशीला कुमारी के निधन के साथ ही एकऔर गौरवमयी इतिहास का पटाक्षेप हो गया। धर्म परायण सुशीला कुमारी राजस्थान विधानसभा के पूर्वअध्यक्ष स्व महारावल लक्ष्मण सिंह की सुपुत्री और वर्तमान महारावल महिपाल सिंह महाराज जय सिंह औरमहान क्रिकेटर स्व राज सिंह डूंगरपुर की सबसे बड़ी बहन थी। वे बीकानेर की मौजूदा भाजपा विधायक सिद्धिकुमारी की दादी थी। उनके निधन की खबर से सभी ओर शोक की लहर छा गई।

सुशीला कुमारी का विवाह बीकानेर राजघराने में महाराजा गंगा सिंह के पोते और सार्दुल सिंह के सुपुत्र मशहूरओलिम्पीयन महाराजा डॉ करणी सिंह के साथ हुआ था । डॉ करणी सिंह ने और उनकी सुपुत्री राजश्री नेओलम्पिक में शूटिंग प्रतिस्पर्धा में लम्बे समय तक भारत का प्रतिनिधित्व किया। वे लगातार 25 वर्षों तक(1952 से 1977) तक लोकसभा सांसद रहें। वे राजस्थानी भाषा के प्रबल समर्थक थे और इसके लिए उन्होंनेसंसद में कई बार आवाज़ उठाई। सुशीला कुमारी भी राजस्थानी भाषा की हिमायती थी और अक्सर अपनीभाषा में ही संवाद करती थी।

डूंगरपुर में 1944 में हुआ राजकुमारी सुशीला कुमारी का विवाह समारोह पूरे देश विदेश में चर्चित रहा । उनकेचचेरे भाई समर सिंह डूंगरपुर ने अपनी पुस्तक “डूंगरपुर ए ग्लोरियस सेंचुरी” में लिखा है कि उस विवाह समारोहमें देश के बड़े राजा महाराजा और विदेशी मेहमानों ने भी बड़ी संख्या में भाग लिया था। महारावल लक्ष्मण सिंह के राजनीतिक सचिव राजघराना के मास्टर साहब और प्रखांड विद्वान भट्ट स्व कान्तिनाथ शर्मा बताते थे किसुशीला कुमारी की बारात में बीकानेर स्टेट का स्टेट प्लेन आया था और हवाई जहाज़ को उतारने के लिए उदयविलास पेलेस के पास नवलखा में विशेष हवाई पट्टी बनाई गई थी। महारावल लक्ष्मण सिंह एक प्रगतिशीलविचारों वाले राजा थे और उन्होंने अपनी माँ राजमाता देवेन्द्र कुंवर के मार्ग दर्शन में शिक्षा स्वास्थ्य और अन्यविभिन्न क्षेत्रों में अपनी रियासत को सबसे अग्रणी बनाया था। डूंगरपुर में बिजली के लिए पावर हाउस अच्छीसड़के जल संरक्षण और पेयजल की उत्कृष्ट व्यवस्था सघन वन आदि सभी को प्रभावित करते थे।

1929 में हुआ था जन्म
राजमाता सुशीला कुमारी का जन्म 1929 में डूंगरपुर राज परिवार में हुआ। वह राजसिंह डूंगरपुर की बहन थी।उनका विवाह बीकानेर राजपरिवार में हुआ। महाराजा करणी सिंह बीकानेर से 1952 से 1977 तक सांसद भीरहे। उनकी पोती सिद्धि कुमारी बीकानेर पूर्व विधानसभा से पिछले तीन चुनावों में लगातार विधायक है।

बीकानेर राजपरिवार की महारानी एवं राजमाता सुशीला कुमारी का शुक्रवार देर रात निधन हो गया। लालगढ़स्थित अपने आवास पर उन्‍होंने अपनी अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर से शहर में शोक छा गया है।राजमाता पिछले काफी समय से अस्वस्थ थी। इसके बावजूद वे सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वहन बखूबीकरतीं थी।उनका अंतिम संस्कार रविवार को सागर गांव में स्थित राजपरिवार के श्मसान घाट पर कियाजाएगा। इससे पहले शनिवार को जूनागढ़ में उनकी पार्थिव देह के दर्शनों के लिए रखी जाएगी। बीकानेर पूर्वकी विधायक सिद्धि कुमारी का अपनी दादी से बेहद लगाव रहा है।

आपको बता दें कि महाराजा करणी सिंह के निधन के बाद उन्हें सभी राजमाता के रूप में संबोधित करते रहे हैं।सुशीला कुमारी का जन्म 1929 में हुआ था। राजसिंह डूंगरपुर की बहन सुशीला कुमारी का जन्म डूंगरपुर राजपरिवार में हुआ। उनका विवाह बीकानेर राजपरिवार में हुआ। सुशीलाकुमारी से मिलने वालों से राजस्थानी में हीबात करती थी।

बीकानेर की महारानी बन जाने के बाद भी सुशीला कुमारी का अपने गृह नगर डूंगरपुर और राजघराना परिवारविशेष कर माता पिता और भाई बहनों से गहरा लगाव था। उन्होंने अपने भाई महिपाल सिंह का विवाह भी आगेबढ़ कर धूमधाम से बीकानेर राजघराने में ही कराया । वे धर्म अनुरागी और उच्च संस्कारों शिष्टाचार से युक्ततथा पारम्परिक कला संस्कृति की प्रबल समर्थक और पोषक थी । जब भी डूंगरपुर आती तो धार्मिक आयोजनोंमें भाग लेती और अपनी दादी देवेन्द्र कुंवर और चाचा अंतर राष्ट्रीय न्यायालय हेग के मुख्य न्यायाधीश डॉनागेन्द्र सिंह और वीरभद्र सिंह तथा जूना महल के कार्यक्रमों में सक्रिय होकर भाग लेती थी। शिक्षा के प्रति वहबहुत जागरुक थी इसलिए उन्होंने भट्टमेवाडा समाज के पंडित गोकुल राम शर्मा को अपने साथ बीकानेर लेजाकर अपने राजकुमार राजकुमारियों की शिक्षा दीक्षा कराई और डूंगरपुर में पं कान्ति नाथ भट्ट को अपने भाईबहनों की शिक्षा के लिए नियुक्त कराने में गहरी रुचि ली।

सुशीला कुमारी की देश विदेश के मामलों में भी गहरी रुचि रही । वे राजाओं के प्रिवीपर्स रहने तक नई दिल्ली मेंइंडिया गेट के पास बीकानेर हाऊस में रहती थी और बाद में पृथ्वीराज रोड स्थित अपने निजी आवास में शिफ़्टहुई। ढलती उम्र के साथ वे बीकानेर में रहने लगी। खेलों के प्रति भी उनकी गहरी रुचि रही । अपने पति करनीसिंह पुत्री राजश्री और भाई राज सिंह डूंगरपुर को वे हमेशा नैतिक समर्थन देती थी।दिल्ली के ऐतिहासिकतुग़लक़ाबाद क़िले के पास एशियाड 1982 के समय बने डॉ कर्णी सिंह शूटिंग रेंज में भी वे जाया करती थी।

वे प्रचार प्रसार से कोसों दूर हमेशा पृष्ठभूमि में ही रहना पसन्द करती थी। अपने पति महाराजा करनी सिंह औरपिता महारावल लक्ष्मण सिंह के चुनाव प्रचार के लिए अपनी मर्यादाओं और सीमाओं में रह कर सामाजिकमहिलाओं के मध्य ही आती जाती थी। सामाजिक कल्याण के कार्यों के लिए हर सम्भव मदद के लिए तत्पररहती थी। अस्वस्थता के बावजूद वे सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वहन बखूबी करतीं थी। बीकानेर के जूनागढ़महल को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति दिलाने में भी उनका अमूल्य योगदान रहा ।

शुक्रवार देर रात बीकानेर के लालगढ़ पेलेस पर निधन 95 वर्ष की उम्र में उनका निधन होने से राजस्थान काएक और ऐतिहासिक स्तम्भ ढह गया है। ल राजमाता सुशीला कुमारी काफी समय से सामान्य रूप से अस्वस्थचल रही थी। राजमाता का अंतिम संस्कार रविवार को बीकानेर में राजपरिवार की रीति नीति के अनुसारहोगा। इनकी पार्थिव देह जूनागढ़ में अंतिम दर्शन के लिए रखी गई है । बीकानेर डूंगरपुर आदि शहरों के साथही देश प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने उनके स्वर्गवास पर शोक सवेदनाएं व्यक्त की है ।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला मुख्य मंत्री अशोक गहलोत पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे केन्द्रीय मंत्री अर्जुन राममेघवाल पूर्व राज्यसभा सांसद हर्षवर्द्धन सिंह डूंगरपुर सहित कई नेताओं ने उनके निधन को अपूरणीय क्षति बताया है।