सीता राम शर्मा ” चेतन “
राहुल, केजरीवाल, ममता और नीतीश कुमार, ये हैं 2024 लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटे विपक्षी दलों के सबसे चतुर उम्मीदवार ! इनको लेकर जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वह यह है कि इनमें से एक भी नेता ऐसा नहीं है, जिसकी छवि या पहचान राष्ट्रीय स्तर के बड़े राजनेता की हो, जो कम से कम देश के प्रधानमंत्री बनने की पात्रता की पहली जरूरत है । ना ही इनमें से किसी की भी दलगत स्थिति ही ऐसी है, जिसके बूते वर्तमान समय में इन्हें बहुत विवशता में ही सही एक परिस्थितिजन्य सर्वदलीय चमत्कारिक सफल या मध्यम दर्जे का ही योग्य प्रधानमंत्री बनाने का उम्मीदवार माना जा सकता है । ऐसा तब संभव हो सकने की संभावनाएं व्यक्त की जा सकती थी, जब इनमें से किसी के भी दल को सरकार बनाने के लिए जरूरी लोकसभा की आधी सीट संख्या की भी आधी सीट प्राप्त होने की कोई गुंजाइश होती । स्पष्ट है कि केंद्र में सरकार बनाने के लिए 272 सीट चाहिए होती है और उसकी आधी संख्या होती है 136, जिससे फिलहाल नीति और काम की दृष्टि से इन सबका 36 का आंकडा है और ये चाहे लाख चिल्लाएं, चिल्ला-चिल्ला कर जनता को बरगलाएं, झूठे, खोखले, षड्यंत्रकारी लोक लुभावन वादें कर जनता को फुसलाएं बहकाएं, जनता किसी भी हालत में इन पर भरोसा नहीं करेगी । यह वह कठोर सच है जो देश की जनता 2019 से कहीं ज्यादा समझदारी के साथ 2024 में भी सिद्ध कर देगी । यदि जनता ने ऐसी गलती की तो उसका सबसे बड़ा और कड़ा अनुभव जनित उदाहरण भी जनता को बहुत अच्छी तरह याद है, जब 2014 से पहले 10 साल तक बेमेल, मतलबी, स्वार्थी भ्रष्ट नेताओं और दलों के गठबंधन की सरकार ने देश की पूरी व्यवस्था का बंटाधार कर दिया था । जब काम से ज्यादा घपले घोटालों का जिक्र राष्ट्रीय दिनचर्या का आवश्यक हिस्सा था । तब दुनियाभर में भारत की कमजोर कठपुतली सरकार और उसके भ्रष्टाचार का मजाक उड़ाया जाता था ! खैर, फिलहाल बात वर्तमान की, जो यही है कि एक तरफ केंद्र सरकार है जो बहुत तेजी से देश के विकास और विश्वास को बढ़ाकर उसे शक्ति और गति दे रही है तो दूसरी तरफ है बिखरा, भटका, स्वार्थ, षड्यंत्र और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा विपक्ष, जिसके हर बड़े नेता के मन में प्रधानमंत्री बनने का सपना है, उस सपने को साधने के लिए उनके पास अपने-अपने झूठ हैं, फरेब हैं, पाखंड हैं, देश को गर्त में ले जाने वाली फोकटतंत्र की पतनशील नीतियां हैं, नये-नये षड्यंत्र तो हैं, पर किसी में भी व्यक्तिगत और दलगत दृढ़संकल्प और देशहित तथा जनहित की विकास नीतियों पर चलने का वह व्यक्तित्व, साहस और ईमानदारी नहीं, जिसके बूते सकारात्मक और बड़े परिवर्तनों, कार्यों को अंजाम देते हुए वे चुनाव में जाने का वह नैतिक आधार हासिल कर सकें, जो आधार नरेंद्र मोदी के पास 2014 और 2019 चुनाव में जाने के पहले था और 2024 में भी होगा । पिछले सवा तीन वर्ष का उनका दूसरा कार्यकाल तो बड़ी प्राकृतिक और वैश्विक आपदाओं विपदाओं के बावजूद भी पहले कार्यकाल से कहीं ज्यादा सफल, सशक्त और राष्ट्रीय दृष्टिकोण से गौरवशाली सिद्ध हो चुका है । हाँ, बढ़ती महंगाई जरूर एक कमी है, पर जनता जानती है कि इस कमी या समस्या में वैश्विक परिस्थितियों का भी प्रभाव है । मंहगाई फिलहाल राष्ट्रीय नहीं एक अतंरराष्ट्रीय समस्या है, जिससे भारत के पड़ोसी देशों के साथ दुनिया के कई देश भी त्रस्त हैं । फिलहाल बात सरकार और विपक्ष की, तो गौरतलब है कि विपक्षियों की बौखलाहट, उनका सरकार का विकास कार्यों से ध्यान भटकाने के लिए दो वर्ष पूर्व ही मचाया जा रहा व्यापक चुनावी शोर और उनके द्वारा रचे जा रहे नित्य नए पाखंड और षड्यंत्रों के बीच भी मोदी सरकार के बड़े और महत्वपूर्ण कार्य जारी हैं । अतः बचे हुए पौने दो साल का समय भी मोदी सरकार के लिए कई नई और बड़ी उपलब्धियों वाला ही सिद्ध होगा, इसमें संदेह की रत्ती भर भी गुंजाइश नहीं है । आश्चर्य कि बात है कि प्रधानमंत्री दौड़ में उतावले तीन नेताओं का ध्यान मुख्यमंत्री होने के बावजूद अपने राज्यों में काम से ज्यादा केंद्र सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार करने और उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचने में है ! जिसे जनता बखूबी देख, सोच और समझ रही है ।
कुल मिलाकर निष्कर्ष यही है कि भारतीय जनमानस के लिए यह बहुत जरूरी है कि वह इन अत्यंत घोर महत्वाकांक्षी, चालबाज, स्वार्थी और षड्यंत्रकारी नेताओं और उनके दलों के चरित्र और चाल-चलन का निष्पक्ष चिंतन तथा मूल्यांकन करता रहे और उससे अपने आसपास की जनता को जागरूक भी करता रहे, ताकि ये अपने नापाक मंसूबों में कामयाब ना हो सकें । हाँ, फिलहाल नीतिहीन नीतीश का खयाली प्रधानमंत्री नाच, हजारों करोड़ के भ्रष्टाचार में घिरे राहुल का जेल जाने के भय से आत्मरक्षार्थ पूरे राजशाही तामझाम और शानो-शौकत के साथ मंहगाई और गरीबी का पापी रोना रोते हुए भारत जोड़ो का शाही पाखंडी दौरा, भ्रष्टाचार से घिरी ममता की बौखलाहट और फोकटतंत्र का कीर्तिमान स्थापित करते केजरीवाल की असफल नौटंकी का सामुहिक आनंद जनमानस लेता रहे, क्योंकि भारत में लोकतंत्र है और ये तमाम महानुभाव लाख कमियों, झूठों, पाखंडों, भ्रष्टाचारों, जनता को झूठ से बहकाने भटकाने वाले आपराधिक षड्यंत्रों के दोषी होने के बावजूद सत्ता शीर्ष पर बैठे लोग हैं, जिन्हें लगता है कि वे लोकतंत्र और भीड़तंत्र की आड़ में अपने पापी स्वार्थों की रोटी सेकते रहेंगे । अपने भ्रष्टाचार के दंड से बचते रहेंगे । अपने पापी मंसूबों में कामयाब होते रहेंगे । ये सचमुच इस बात और सच से अब भी अनजान हैं कि अब भारत और भारत का जनमानस बहुत बदल चुका है । वह कभी-कभार समयानुसार स्वार्थी लोगों से अपने थोड़े स्वार्थ की सिद्धि भले कर ले, समय आने पर उन्हें ठिकाने लगाने की चतुराई सीख चुका है ! आशय स्पष्ट है, सारे चतुर नेताओं का सच देख समझ कर अब तक तो यही लगता है कि 2024 में भी आएंगे तो मोदी ही । हाँ, कुछ अनचाहे बाराती को झेलने का कष्ट तो भारत की लोकतांत्रिक मजबूरी है ! आखिरी मत नहीं, यह इच्छा अवश्य है कि भारत में कोई सशक्त विपक्षी दल और नेता ऐसा अवश्य होना चाहिए, जो मोदी से अधिक ना सही, मोदी जैसा भी ना सही, पर उनके समकक्ष खड़ा होने के योग्य तो अवश्य हो !