रेखा शाह आरबी
ऐसे तो बहुतेरे दुनिया जगत में हर तरफ बंदर है लेकिन दुर्भाग्यवश अपने आप को इंसान समझते हैं । लेकिन गांधी जी के बंदरों की बात ही कुछ और है। जितनी ख्याति गांधी जी के बंदरों को प्राप्त है। उतनी अगर किसी इंसान को मिल जाए तो उसका तो बैठे बिठाये दिमाग ही खराब हो जाए । इंसान की तो बात ही अलग है उसे तो बीमारी है हर छोटी-छोटी बात पर अहंकार में भर जाने की। लेकिन गांधी जी के बंदर इंसान थोड़ी ना है वह जानते हैं जब तक वह कुछ देख सुन नहीं रहे ..बोल नहीं रहे हैं। तभी तक उनकी जय जयकार है। देखना सुनना बोलना चालू कर दिए तो तो लोगों के द्वारा नकार दिए जाएंगे और उनकी जगह पर कोई तुरंत दूसरा आकर काबिज हो जाएगा। इसीलिए गांधी जी के बंदर सोची समझी रणनीति के तहत ना कुछ बोलते हैं ना सुनते हैं ना देखते हैं। अपने देश में ऐसे बंदरों की बहुतायत है।
गांधी जी का पहला बंदर कहता है बुरा मत देखो.. अब बताइए भला यह भी कोई मानने वाली बात है। आप कहीं पर सत्यनारायण की कथा कहवा दीजिए देखिए उसमें कितने लोग बिना बुलाऐ आते हैं और कुछ तो इतने बंदर होते हैं कि बुलाने पर भी नहीं आते हैं।लेकिन वही कहीं पर मारपीट हो रही है तो वहां पर लोगों की संख्या देख लीजिए.. और सारे बिना बुलाए आते हैं। उसके बाद भी यह कहना कि बुरा मत देखो काफी असंगत बात है। तो गांधी जी का पहला बंदर तो इस दुनिया के लिए किसी काम का नहीं है।
गांधी जी का दूसरा बंदर कहता है बुरा मत सुनो.. सुनना बहुत ही उच्च कोटि का कार्य है और आज की पीढ़ी इतने उच्च कार्य नहीं करती है। कि वह किसी की सुनने जाए.. अरे वह तो अपने आप की भी नहीं सुनती है उसका दिमाग कहता रहता है कि पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब और रील बनाओगे तो जिंदगी हो जाएगी खराब.. लेकिन उसके बावजूद आज की पीढ़ी रील बनाने पर ही लगी हुई है। जब वह अपने आप की नहीं सुनती तो दूसरे की क्या खाक सुनेगी।
तीसरा बंदर कहता है बुरा मत बोलो.. आजकल बोलने कहां दिया जाता है कि लोग बोले.. हर कोई बड़ा सोच समझ कर ही आजकल के जमाने में बोलता है । क्योंकि रिकॉर्डिंग का जमाना है.. आप इधर कुछ अर्थ बोले और उधर कुछ उसमें अनर्थ जोड़कर आपकी खटिया खड़ी कर दी जाएगी। इसीलिए जिसको बोलना है वह भी चुप है और जो सुनकर पक चुका है वह भी चुप है। आजकल सबसे खतरनाक कम बोलना ही है बोलने के लिए मुंह में जुबान नहीं कलेजे में दम चाहिए। और इस जमाने में आपका दम निकालने के लिए हजारों तरीके हैं इसीलिए बोलने की बात भूल जाइए। अगर आपकी जुबान में ज्यादा ही खुजली हो रही है तो अपने आप को ही सुना लीजिए औरों को सुनाने की बात छोड़ दीजिए।
गांधी जी के तीन बंदरों के अलावा इस सदी को एक चौथा बंदर भी मिल गया है । जो सिर्फ अपने मोबाइल में व्यस्त रहता है.. वह ना बुरा देखता है.. ना बुरा सुनता है.. और ना बुरा कहता है। यह चौथा बंदर तो ऐसा है जो ना इधर देखता है ना उधर देखता है ना सुनता है ना बोलता है बस अपने आप में मगन रहता है। इस बंदर को दुनिया में आग भी लग जाए तो कोई फर्क नहीं पड़ने वाला बस उसके मोबाइल में नेट रहना चाहिए । बाकी दुनिया भाड़ में जाए। यह बंदर अपने मोबाइल में ही हंसता, गाता, रोता, खेलता, कूदता अपनी दुनिया बनाते और बिगाड़ता रहता है इसे बाहरी दुनिया से कुछ नहीं लेना देना होता है। यह बंदर ना दुनिया वालों के काम का है ना दुनिया इसके काम की है।
परसाई जी कहते हैं कि.. दिशाहीन, बेकार, हताश, नकारवादी बेकार युवको की भीड़ बड़ी ही खतरनाक होती है इसका प्रयोग महत्वकांक्षी खतरनाक विचारधारा वाले व्यक्ति और समूह कर सकते हैं ..इस भीड़ का उपयोग नेपोलियन, हिटलर ने किया था.. और यह चौथा बंदर ऐसे ही लोगों की एक भीड़ है जो निराश है, हताश है ,दिशाहीन है, बेकार है, अतः मोबाइल कंपनी वाले इनका सदुपयोग कर रहे हैं। चलिए यह चौथा बंदर किसी के तो काम आ रहा है कहीं पर तो इसका उपयोग किया जा रहा है । किसी का भला हो इससे भली बात और क्या होगी।