अजय कुमार
उत्तर प्रदेश में चौथा चरण समाजवादी पार्टी के लिये विशेष महत्व रखता है। चौथे चरण में 13 मई को होने वाले मतदान में 13 सीटों पर ही चुनाव भी होना है। चौथे चरण में सपा के दबदबे वाली इटावा और कन्नौज की लोकसभा की दो ऐसी सीटें है. जो कभी समाजवादी पार्टी का गढ़ हुआ करती थीं,लेकिन अब यहां खासकर इटावा में हालात काफी बदल गये हैं। फिर भी सपा की यहां जीत की संभावनाएं कम नहीं हैं।पहले बात कन्नौज की। कन्नौज लोकसभा सीट इन दिनों सपा प्रमुख अखिलेश यादव के यहां से चुनाव मैदान में कूदने के कारण सुर्खियों में है। सपा ने यहां पहले तेज प्रताप यादव को उम्मीदवार बनाया था। हालांकि, नामांकन से ठीक पहले तेज प्रताप का नाम कट गया। इस सीट अखिलेश के समाने भाजपा ने अपने मौजूदा सांसद सुब्रत पाठक को टिकट दिया है। बसपा के इमरान बिन जाफर भी यहां मैदान में हैं। कन्नौज हमेशा से लोकसभा सीट नहीं थी।यह 1967 में अस्तित्व में आई थी। साल 1967 में हुए आम चुनाव में कन्नौज सीट पर डा0 राम मनोहर लोहिया को जीत मिली थी।
संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में उतरे लोहिया ने कांग्रेस के एसएन मिश्रा को मात्र 472 वोटों से हराया था।
इसके बाद कन्नौज लोकसभा सीट 1999 के चुनाव से खास हो गई। क्योंकि कन्नौज सीट पर सपा उम्मीदवार और कोई नहीं बल्कि तब के सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव मैदान में स्वयं उतर गये थे। इस चुनाव में उनकी टक्कर किसी बड़े राजनीतिक दल के उम्मीदवार की बजाय एक गैर-मान्यता प्राप्त दल अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस के प्रत्याशी से हुई। मुलायम सिंह ने लोकतांत्रिक कांग्रेस की तरफ से उतरे अरविंद प्रताप सिंह को 79,139 वोटों से हराया। 1999 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने कन्नौज के साथ ही संभल लोकसभा सीट से भी जीत दर्ज की थी। नतीजों के बाद मुलायम सिंह यादव संभल सीट से सांसद बने रहे और कन्नौज सीट से इस्तीफा दे दिया।
साल 2000 में हुए उप-चुनाव में कन्नौज सीट मुलायम सिंह के बेटे और मौजूदा सपा प्रमुख अखिलेश यादव को उतारा गया।
इसके साथ ही अखिलेश ने चुनावी राजनीति में एंट्री ली। अखिलेश का राजनीति में यह प्रवेश जीत के साथ हुआ। उन्होंने इस उपचुनाव में जीत दर्ज की और लोकसभा पहुंचे। साल 2004, इस बार कन्नौज सीट से एक बार फिर अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरते हैं। इस चुनाव में अखिलेश के सामने बसपा से ठाकुर राजेश सिंह थे।
अखिलेश ने बसपा प्रत्याशी को 3,07,373 वोटों के विशाल अंतर से हरा दिया। पांच वर्षो के बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में भी सपा की ओर से उतरे अखिलेश यादव ने कन्नौज सीट पर जीत हासिल की लेकिन उनकी जीत का अंतर घट गया। उन्होंने बसपा उम्मीदवार डॉ. महेश चंद्र वर्मा को 1,15,864 वोट से हराया। भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले सुब्रत पाठक 2009 में तीसरे स्थान पर रहे।
2012 में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी और मुलायम सिंह यादव के उत्तराधिकारी के तौर पर अखिलेश यादव मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हुए।बाद में उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर विधान परिषद का चुनाव लड़ा और चुनाव जीत गये। फिर कन्नौज सीट पर उप-चुनाव की जरूरत पड़ गई। इसके बाद कन्नौज सीट पर उप-चुनाव हुआ जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को कन्नौज लोकसभा सीट से निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया गया। उनके खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे दो उम्मीदवारों ने उप-चुनाव के लिए अपना नामांकन वापस ले लिया था।
कांग्रेस और बसपा ने अपने उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारा था जबकि भाजपा उम्मीदवार अंतिम समय में अपना नामांकन पत्र दाखिल नहीं कर पाए थे। इस तरह से शीला दीक्षित के बाद डिंपल यादव कन्नौज सीट का प्रतिनिधित्व करने वाली दूसरी महिला बन गईं।
2014 के लोकसभा चुनाव में देश के ज्यादातर हिस्सों में भाजपा को जीत मिलती है। हालांकि, कन्नौज में पार्टी सपा के सामने हार जाती है। इस चुनाव में डिंपल यादव ने भाजपा उम्मीदवार सुब्रत पाठक को रोचक मुकाबले में 19,907 वोटों से हरा दिया।
डिंपल को 4,89,164 वोट मिले। वहीं, भाजपा के प्रत्याशी को 4,69,257 वोट मिले,लेकिन पांच साल के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा ने देशभर की 303 सीटों पर जीत हासिल की। इनमें कन्नौज की अहम जीत भी शामिल रही। आखिरकार सुब्रत पाठक कन्नौज का किला भेदने में कामयाब हो गए। पाठक ने इस चुनाव में डिंपल यादव को 12,353 वोटों से हराया। इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को 5,63,087 वोट मिले। वहीं, सपा के उम्मीदवार को 5,50,734 वोट मिले। अब बात 2024 के चुनाव की कर लेते हैं। इस बार भाजपा के प्रत्याशी के तौर पर मौजूदा सांसद सुब्रत पाठक ही चुनाव मैदान में हैं। वहीं, सपा की तरफ से पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव खुद चुनाव मैदान में उतरे हैं। जबकि डिंपल यादव मैनपुरी से चुनाव लड़ रही हैं,जहां मतदान हो चुका है बसपा ने इमरान बिन जाफर को अपना उम्मीदवार बनाया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि कन्नौज की जनता जीत का सेहरा किसके सिर बांधती है और किसे अपना जनप्रतिनिधि चुनती है।
स्माजवादी पार्टी के दबदबे वाली एक और इटावा सीट की बात की जो तो इस सीट पर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बीजेपी को 3-3 बार जीत मिली है हालांकि पिछले 10 साल से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है और इस बार पार्टी के पास हैट्रिक लगाने का मौका है. इटावा सीट पर दलित वोटर्स की बहुलता है. हालांकि ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या भी अच्छी खासी है. इटावा लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी का अभी भी गढ़ मानी जाती थी. हालांकि पिछले दो बार से पार्टी उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ रहा है। इस बार समाजवादी पार्टी ने जितेंद्र दोहरे को मैदान में उतारा है. जबकि बीजेपी ने मौजूदा सांसद राम शंकर कठेरिया को उम्मीदवार बनाया है. जबकि बहुजन समाज पार्टी ने पूर्व सांसद सारिका सिंह को उम्मीदवार बनाया है।
साल 2019 आम चुनाव बीजेपी के उम्मीदवार राम शंकर कठेरिया ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार राम शंकर कठेरिया ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार कमलेश कठेरिया को 64 हजार से ज्याद वोटों से हराया था. बीजेपी उम्मीदवार को 5 लाख 22 हजार 119 वोट मिले थे. जबकि समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को 4 लाख 57 हजार से ज्यादा वोट मिले थे. कांग्रेस उम्मीदवार अशोक कुमार दोहरे को 16 हजार 570 वोट मिले थे। राजनीति के जानकार कहते हैं कि इटावा में सपा के कमजोर पड़ने की कई वजह रहीं हैं जिसमें प्रमुख तौर पर सपा द्वारा इटावा लोकसभा सीट की बजाय मैनपुरी लोकसभा सीट को ज्यादा प्राथमिकता देना विशेष है।चाचा-भतीजे के बीच की रार, पुराने वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की नए पदाधिकारियों द्वारा कहीं न कहीं उपेक्षा सपा की कमजोरी का कारण बने हैं। इस लोकसभा चुनाव में चाचा शिवपाल सिंह अब सपा के साथ हैं। ऐसे में कहीं न कहीं कार्यकर्ता चुनाव में मजबूती देख रहे हैं।
समाजवादी पार्टी के अपने ही गढ़ में 2014 और 2019 में लगातार दो बार चुनाव हारने के कारणों का अगर विश्लेषण किया जाए तो 2014 में जहां मोदी लहर ने भाजपा को संजीवनी दी वहीं 2017 के बाद मुलायम परिवार में चाचा भतीजे के बीच हुए मतभेदों ने पार्टी को काफी नुकसान पहुंचाया। दो खेमों में संगठन व कार्यकर्ताओं के बंट जाने के कारण 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा को नुकसान भी हुआ। हालांकि इस चुनाव में सपा बसपा का गठबंधन भी था। तब भी भाजपा अपना परचम लहराने में कामयाब रही। इस चुनाव में चाचा की पार्टी प्रसपा ने भी शंभूदयाल दोहरे को चुनाव मैदान में उतारकर वोटों का नुकसान किया था। उस समय चाचा शिवपाल सिंह यादव के समर्थकों में मायूसी छाई और उनके खास रहे पूर्व सांसद रघुराज शाक्य, पूर्व जिला महामंत्री कृष्ण मुरारी गुप्ता, ब्लाक प्रमुख बसरेहर दिलीप यादव भाजपा में शामिल हो गए। इस चुनाव में भी पार्टी हाईकमान की उपेक्षा से नाराज पूर्व सांसद प्रेमदास कठेरिया भी भाजपा के खेमे में आ गए। इस चुनाव में सपा, बसपा के रास्ते अलग-अलग हैं।
सपा जिलाध्यक्ष प्रदीप शाक्य कहते हैं कि संगठन कतई कमजोर नहीं हुआ है। हालांकि बड़े नेताओं के दौरे न होने को लेकर कहा कि कार्यक्रम फाइनल हो रहे हैं। आजादी के बाद से समाजवादियों का गढ़ रहा इटावा लगातार उनके लिए मुफीद रहा है। व्यक्तिगत तौर पर कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया व राम सिंह शाक्य तीन बार विजयी हुए वहीं सपा से चुनाव लड़े रघुराज शाक्य भी दो बार चुनाव जीते थे। चौथे चरण में जिन सीटों पर मुकाबला होगा उसमें शाहजहांपुर, खीरी, धौरहरा, सीतापुर, हरदोई, मिश्रिख, उन्नाव, फर्रूखाबाद, इटावा, कन्नौज, कानपुर, अकबरपुर, बहराइच शामिल हैं।