उन्माद

नीना सिन्हा

प्रोफेसर साहब मिल गए तो उन्हें नमस्कार कर मंदिर की सीढ़ियों पर संग बैठ गया, “सर! वक्त हो तो मेरी जिज्ञासा शांत करें।”

“पूछो!”

“सर! रामनवमी आई, पूरे देश से पत्थरबाजी, आगजनी और हिंसा की खबरें निरंतर आती रहीं। इंसान इतना असहिष्णु क्यों हो गया है? त्यौहार में रौनक, मौज-मस्ती का स्थान एक अनजाने से खौफ ने ले लिया है!”

“कई कारण हैं- बढ़ती जनसंख्या, बढ़ती महंगाई एवं बेरोजगारी तथा शिक्षा का गिरता स्तर। कई प्रदेशों में युवाओं के पास डिग्रियाँ हैं, सच्ची हैं या फर्जी, कौन जाने। कितने ही विश्वविद्यालयों के भ्रष्ट कुलपतियों की कहानियाँ सुनी होगी। स्कूलों-कॉलेजों में शिक्षक बहुत कम हैं, सिर्फ इमारतें खड़ी हैं। अच्छे शिक्षकों को कोचिंग वाले उड़ा ले जाते हैं। विपरीत परिस्थितियों में निर्णय लेने योग्य बेहतरीन विद्यार्थियों के स्थान पर रट्टू तोते बनाये जा रहे हैं, शिक्षण संस्थानों में।

दरअसल दशकों से देश में शिक्षक अक्सर वही बनते हैं, जो बड़ी-बड़ी नौकरियों में नहीं पहुँच पाते। क्योंकि शिक्षक बनकर अन्य नौकरियों के समान न इज्जत मिलती है और न तनख्वाह। इधर-उधर के दसियों काम भी कराए जाते हैं। तभी उनके शिक्षण में यथोचित ईमानदारी नहीं होती, कुछ अपवादों को छोड़कर। इस शिक्षा व्यवस्था की उपज ‘कहे हुए’ को कंठस्थ करना जानेंगे, पर दिमाग खर्चना नहीं। इसका लाभ धर्मगुरुओं, बाबाओं एवं राजनीतिज्ञों को मिलता है, जो अपने वाक् चातुर्य से इकट्ठे जनसमूह को सम्मोहित कर भीड़ में बदल देने की क्षमता रखते हैं।

जनसाधारण की धार्मिक भावना कब आवेशित होकर उन्माद में बदल जाती है, पता ही नहीं चलता। देखते ही देखते एक जनसमूह अपने दिमाग का शटर गिरा कर असंयमित भीड़ में बदल जाता है तथा उपद्रवी अगुआ के इशारे पर कुछ भी कर गुजरता है।”

“ क्या ऐसा हो सकता है, सर?”

“अवश्य हो सकता है। टोमेटो केचप लाकर मंदिर के अंदर बिखेर दो तथा शोर मचाओ कि तुमने एक विधर्मी को कुछ बिखेर कर चुपके से मंदिर से निकलते देखा है। फिर देखो… जाने बिना कि वह लाल द्रव्य खून है या कुछ और…! जलजला सा आ जायेगा।”

“शायद आप ठीक कह रहे हैं, सर! पर इसका समाधान?”

“समाधान है, मेहनत से जी न चुराते हुए सच्ची शिक्षा प्राप्त करना, जो दिलो दिमाग को रोशन कर सके। धर्म के स्थान पर मानवता की रक्षा का प्रण लेना। मानवता की मशाल तले सारे धर्म सुरक्षित हो जाएँगे। अब चलूँ? अंधेरा होने ही वाला है।”

“जी! मार्गदर्शन का शुक्रगुजार हूँ, सर।”