डॉ. वेदप्रताप वैदिक
11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। ऐसे अवसरों पर लोग उत्सव करते हैं लेकिन इस विश्व दिवस पर लोग चिंता में पड़ गए हैं। उन्हें चिंता यह है कि दुनिया की आबादी इसी रफ्तार से बढ़ती रही तो अगले 30 साल में दुनिया की कुल आबादी लगभग 10 अरब हो जाएगी। इतने लोगों के लिए भोजन, कपड़े, निवास और रोजगार की क्या व्यवस्था होगी? क्या यह पृथ्वी इंसान के रहने लायक बचेगी? पृथ्वी का क्षेत्रफल तो बढ़ना नहीं है और अंतरिक्ष के दूसरों ग्रहों में इंसान को जाकर बसना नहीं है। ऐसे में क्या यह पृथ्वी नरक नहीं बन जाएगी? बढ़ता हुआ प्रदूषण क्या मनुष्यों को जिंदा रहने लायक छोड़ेगा? ये ऐसे प्रश्न हैं, जो हर साल जमकर उठाए जा रहे हैं। ये सवाल हमारे दिमाग में काफी निराशा और चिंता पैदा करते हैं लेकिन अगर हम थोड़े ठंडे दिमाग से सोचें तो मुझे लगता है कि मनुष्य जाति इतनी महान है कि वह इन मुसीबतों का भी कोई न कोई हल निकाल लेगी। जैसे अब से लगभग 70 साल पहले दुनिया की आबादी सिर्फ ढाई अरब थी लेकिन अब वह लगभग 8 अरब हो गई है। क्या इस बढ़ी हुई आबादी को कमोबेश सभी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं? नए-नए आविष्कारों, यांत्रिक विकासों और आपसी सहकारों के कारण दुनिया के देशों में जबर्दस्त विकास हुआ है। इन्हीं की वजह से लोगों के स्वास्थ्य में सुधार हुआ है और पिछले 40 साल में लोगों की औसत आयु में 20 साल की वृद्धि हो गई है। जो लोग पहले 50 साल की आयु पाते थे, वे अब 70 साल तक जीवित रहते हैं। जनसंख्या-वृद्धि का यही मूल कारण भी है। परिवार नियोजन तो लगभग सभी देशों में प्रचलित है। जापान और चीन में यह चिंता का विषय बन गया है। वहां जनसंख्या घटने की संभावना बढ़ रही है। यदि दुनिया की आबादी 10-12 अरब भी हो जाए तो उसका प्रबंध असंभव नहीं है। खेती की उपज बढ़ाने, प्रदूषण घटाने, पानी की बचत करने, शाकाहार बढ़ाने और जूठन न छोड़ने के अभियान यदि सभी सरकारें और जनता निष्ठापूर्वक चलाएं तो मानव जाति को कोई खतरा नहीं हो सकता। मुश्किल यही है कि इस समय सारे संसार में उपभोक्तावाद की लहर आई हुई है। हर आदमी हर चीज जरुरत से ज्यादा इस्तेमाल करना चाहता है। इस दुर्दांत इच्छा-पूर्ति के लिए यदि प्राकृतिक साधन दस गुना ज्यादा भी उपलब्ध हों तो भी वे कम पड़ जाएंगे। ऐसी हालत में पूंजीवादी और साम्यवादी विचारधाराओं के मुकाबले भारत की त्यागवादी विचारधारा सारे संसार के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हो सकती है। जिस संयुक्तराष्ट्र संघ ने 11 जुलाई 1989 को इस विश्व जनसंख्या दिवस को मनाने की परंपरा डाली है, उसके कर्त्ता—धर्त्ताओं से मैं निवेदन करुंगा कि वे ईशोपनिषद् के इस मंत्र को सारे संसार का प्रेरणा-वाक्य बनाएं कि ‘त्येन त्यक्तेन भुंजीथा’ याने ‘त्याग के साथ उपभोग करें’ तो आबादी का भावी संकट या उसकी चिंता का निराकरण अपने आप हो जाएगा।