ललित गर्ग
श्रीनगर में जी-20 के पर्यटन कार्यसमूह के तीन दिवसीय सम्मेलन से जम्मू-कश्मीर के बदलते सुखद एवं लोकतांत्रिक स्वरूप, पर्यटन को नई दिशा मिलने एवं बॉलिवुड के साथ रिश्ते मजबूत होने का आधार मजबूत हुआ है। बीते 75 साल से जो हालात रहें, जिनमें विदेशी ताकतों का भी हाथ रहा है, उसमें एक पनपी सामाजिक शोषण, आतंक, अन्याय, अशांति एवं पक्षपात की व्यवस्था को पूरी तरह समाप्त कर दिये जाने की तस्वीर सामने आयी है। वैश्विक और टिकाऊ पर्यटन को प्रोेत्साहन देने की दृष्टि से सम्मेलन का कश्मीर में आयोजन जम्मू कश्मीर की 1.30 करोड़ की आबादी के लिए गौरव की बात है।
श्रीनगर में डल झील के किनारे शेर-ए-कश्मीर इंटरनैशनल कन्वैंशन सेंटर में भारत सरकार ने जी-20 से जुड़े इस आयोजन को भव्य एवं सुरक्षित परिवेश देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। चीन एवं पाकिस्तान के विरोध के बावजूद भारत ने अपने आंतरिक मामलों में किसी अन्य देश की आपत्ति सहन करने से साफ इंकार करते हुए न केवल साहस का परिचय दिया बल्कि भारत का हर तरह से शक्तिसम्पन्न होने का भी संकेत देकर विरोधी शक्तियों को चेताया है। भारत ने पडोसी देशों की न केवल अनदेखी की, बल्कि इन दोनों देशों को दो टूक जवाब भी दिया। ऐसा करना आवश्यक था, क्योंकि भारत को अपने किसी भी भूभाग में हर तरह के आयोजन करने का अधिकार है- वे चाहे अंतरराष्ट्रीय स्तर के ही क्यों न हों।
भारत न केवल आतंरिक मामलों में बल्कि दुनिया में अपनी स्वतंत्र पहचान को लेकर तत्पर है। दिनोंदिन शक्तिसम्पन्नता की ओर अग्रसर होते हुए चीन और पाकिस्तान को उसकी जमीन दिखाने में भारत सफल रहा है। चीन की दोगली नीति एवं कुचेष्टाओं पर भारत ने करारा जबाव दिया है। कश्मीर के मामले में चीन अनेक बार अपनी फजीहत पहले भी करा चुका है। उसने पाकिस्तानी आतंकियों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ओर से प्रतिबंधित करने की पहल में हर बार अड़ंगा लगाया, लेकिन कई मौकों पर उसे मुंह की खानी पड़ी। चीन अपनी हरकतों से यही बता रहा कि आतंकवाद के मामले में उसकी कथनी-करनी में अंतर है। यह अंतर दुनिया भी देख रही है, लेकिन चीन सही रास्ते पर आने को तैयार नहीं। अकेला पड़ा चीन अपनी ही चालों से पस्त होता रहा है, उसने अरुणाचल प्रदेश में भी जी-20 की एक बैठक का बहिष्कार किया था, लेकिन भारत अपने निर्णय पर अडिग रहा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रभावी नेतृत्व में भारत सरकार को अपना यह अडिग एवं साहसिक रवैया जारी रखते हुए चीन एवं पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब निरन्तर देते रहना चाहिए। भले ही श्रीनगर में जी-20 के पर्यटन कार्यसमूह की बैठक से चीन ने बाहर रहने का निर्णय किया है। उसका साथ तुर्किए भी दे रहा है। जबकि तुर्किये एवं सऊदी अरब के पर्यटन से जुड़े प्रतिनिधि शामिल हुए है। एक-दो अन्य देश भी इस बैठक में शामिल होने से भले ही मना करें, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। इस बैठक में 25 देशों के 60 से प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। रूस-यूक्रेन में युद्ध दुनिया के लिए एक बड़ी चिंता है, समूची दुनिया युद्ध-मुक्त परिवेश चाहती है। कुछ चीन जैसे देश है जो इस सोच में बाधा बने हुए है। इसलिये स्पष्ट है कि अधिकांश देशों ने चीन को आईना दिखाना आवश्यक समझा। उनका यह फैसला चीन की फजीहत भी है और इस पर मुहर भी कि जम्मू-कश्मीर से विभाजनकारी अनुच्छेद 370 खत्म करने का भारत का निर्णय सही था।
भारत एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ताकत का निरन्तर विश्व मंचों पर आभास होना सुखद संकेत हैं। यह ताकत इसलिये भी बढ़ रही है कि दुनिया अब शांति चाहती है, आतंक एवं युद्ध-मुक्त दुनिया की संरचना उसकी चाह हैं। भारत अपनी शांति, मानवतादी सोच एवं हिंसा-युद्ध विरोधी नीतियों से सभी महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जिस तरह विश्व समुदाय का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है, उससे यही पता चलता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत की भूमिका बढ़ रही है एवं मजबूत हो रही है। इसका एक प्रमाण अभी हाल में हिरोशिमा में जी-7 की बैठक में मिला और फिर पापुआ न्यू गिनी में भी। भारतीय प्रधानमंत्री जिस तरह जापानी मीडिया में छाए रहे, उसी तरह पापुआ न्यू गिनी और फिजी में भी। इन दोनों देशों ने अपने सर्वोच्च सम्मान से मोदी को सम्मानित किया है। असल में इन दोनों देशों के अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के सर्वोच्च सम्मान से किसी अन्य देश केे व्यक्ति को सम्मानित किया जाना दुर्लभ बात है, ऐतिहासिक घटना है।
इस बैठक का मकसद दुनिया को कश्मीर की बदलती तस्वीर दिखाना है। विदेशी राजनयिकों ने यह तस्वीर बहुत नजदीक से देखी है कि कश्मीर अशांति एवं आतंक की छाया से मुक्त हो रहा है और पाकिस्तान का यहां पर कोई प्रभाव नहीं है। घाटी का आवाम देश की मुख्यधारा में शामिल है और वह प्रशासन से मिलकर कश्मीर के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। अब जमीनी स्तर पर लोकतंत्र मजबूत हुआ है, नए उद्योग आ रहे हैं, द्रुत कृषि विकास वहां के गांवों को समृद्ध बना रहा है, बुनियादी ढांचे का विकास तेजी से हो रहा है और प्रौद्योगिकी पर सरकार की प्राथमिकताओं से जम्मू कश्मीर को एक डिजिटल समाज में बदला जा रहा है।
यद्यपि जी-20 बैठक के दौरान पाक समर्थित आतंकवादियों ने बड़ी आतंकी घटना करने की योजना बनाई, उनकी साजिशों के दृष्टिगत सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं लेकिन इतना तय है कि कश्मीर तेजी से बदल रहा है। निश्चित ही जी-20 के इस आयोजन से कश्मीर का नया अभ्युदय होगा। विकास के विभिन्न मापदंडों के आधार पर जम्मू कश्मीर भारत के विकसित क्षेत्रों की कतार में अग्रसर होगा। इससे हास्पिटैलिटी क्षेत्र में बहुत बड़े पैमाने पर निवेश के प्रस्ताव आयेंगे। सरकार ने 300 नए पर्यटन स्थलों को विकास के लिए चिह्नित किया है। पर्यटन क्षेत्र को जम्मू कश्मीर में एक उद्योग का दर्जा दिया गया है और इसे भी जम्मू कश्मीर की औद्योगिक नीति के आधार पर वित्तीय प्रोत्साहन दिया जा रहा है। भारत सरकार आमजन को सामाजिक और आर्थिक रूप से खुशहाल बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। इन सब स्थितियों को देखते हुए एवं जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद से ही पाकिस्तान बुरी तरह से बौखलाया हुआ है और चीन केवल पाकिस्तान को ही तुष्ट करना चाहता है। क्योंकि चीन के आर्थिक हित उससे जुड़े हुए हैं।
जी-20 की बैठक का आयोजन कर भारत ने यह दिखा दिया है कि कश्मीर में अब कोई विवाद नहीं है और यह भारत का अभिन्न अंग है। लद्दाख और अरुणाचल में ऐसे आयोजन कर भारत ने यह भी संदेश दिया है कि यह सभी क्षेत्र भारत का अभिन्न हिस्सा है और भारत की संप्रभुता के अंतर्गत आते हैं। इसे भारतीय कुटनीति की जबर्दस्त सफलता के रूप में देखा जा रहा है कि जब भी कोई देश किसी अंतर्राष्ट्रीय समूह का प्रमुख होता है या ऐसे अंतर्राष्ट्रीय बैठकों की मेजबानी करता है तो स्थल का चयन करना उसका विशेषाधिकार होता है। कश्मीर को भारत का स्वर्ग कहा जाता है। कभी यहां लगातार फिल्मों की शूटिंग होती थी और कश्मीर के पर्यटक स्थल गुलमर्ग, सोनमर्ग, पहलगांव, डल झील और अन्य स्थलों पर फिल्मी सितारों का जमघट लगा रहता था लेकिन पाक प्रायोजित आतंकवाद ने कश्मीर के विकास को लील लिया था लेकिन मोदी सरकार ने दृढ़ इच्छा शक्ति दिखाते हुए कश्मीर में आतंकवाद एवं अशांति को काबू किया। जनकल्याण के लिये समर्पित संकल्पों से नये कश्मीर को आकार दिया जा रहा है। विश्व की आर्थिक एवं राजनीतिक शक्तियों को संचालित करने वाले देश अगर ईमानदारी से ठान ले तो दुनिया से आतंकवाद पर काबू पाया जा सकता है और कश्मीर की ही भांति दुनिया की तस्वीर बदली जा सकती है।