
अशोक भाटिया
किसी समय कांग्रेस नेता राहुल गाँधी का एक वीडियो बहुत वायरल हो रहा था जिसमें वह कहते सुने जा रहे थे कि वे एक ऐसी मशीन लाऊंगा जिसमें एक तरफ आलू डालेंगे तो दूसरी तरफ सोना निकलेगा . अब पता नहीं वह बात हकीकत थी या मजाक . पर अब केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि भारत का कचरा एक बड़ा मौका है। उन्होंने कहा कि अगर ठोस और तरल कचरे को उपयोगी चीजों में बदल दिया जाए तो यह 5 लाख करोड़ रुपये का कारोबार बन सकता है। मुंबई में टाइम्स ऑफ इंडिया सोशल इम्पैक्ट समिट में गडकरी ने कहा कि कचरे से ऊर्जा बनाकर देश में रोजगार बढ़ाया जा सकता है। इससे पर्यावरण को भी फायदा होगा।इसके लिए गडकरी ने अपने क्षेत्र का उदाहरण दिया। उन्होंने बताया कि कैसे कचरे से पैसा कमाया जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘पिछले नौ सालों से मैं अपने क्षेत्र से ट्रीट किए हुए टॉयलेट के पानी को बेच रहा हूं, जिससे हर साल 300 करोड़ रुपये कमा रहा हूं।’ उन्होंने मथुरा में चल रहे एक कचरा ट्रीटमेंट प्रोजेक्ट के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि वहां कचरे को ऑर्गेनिक तरीके से ट्रीट किया जाता है। इससे निकलने वाले कीचड़ को बायो-फ्लोकुलेंट्स में बदला जाता है। गडकरी ने बताया कि पहले यह गंदा पानी यमुना नदी में जाता था। अब इंडियन ऑयल रिफाइनरी इसे इस्तेमाल करती है। उन्होंने कहा, ‘अगर हम इसे पूरे देश में लागू करें तो इसमें बहुत संभावनाएं हैं।’
गडकरी ने कहा कि हम सही तरीके से हम कचरे को धन में बदल सकते हैं, नौकरियां पैदा कर सकते हैं और पर्यावरण की समस्याओं को हल कर सकते हैं।’ उन्होंने यह भी कहा कि प्लास्टिक से ईंधन बनाया जा सकता है, सीवेज के पानी को इंडस्ट्रियल पानी में बदला जा सकता है और कचरे से ऐसी चीजें बनाई जा सकती हैं जिन्हें बेचा जा सके।उन्होंने बिजली बनाने के लिए बायोमास (जैविक कचरा) के इस्तेमाल पर भी बात की। उन्होंने कहा कि पहले थर्मल प्लांट कोयले से बिजली बनाते थे। अब एनटीपीसी और महाराष्ट्र सरकार बायोमास का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसे ‘वाइट कोल’ भी कहते हैं। उन्होंने बताया कि इससे बिजली बनाने में 7 रुपये प्रति यूनिट का खर्च आता है, लेकिन यह कोयले से ज्यादा साफ है।
गडकरी ने जमीन को फिर से उपजाऊ बनाने के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा, ‘हमने 1.5 लाख हेक्टेयर जमीन को विकसित करने के लिए 5 करोड़ रुपये का निवेश किया है।’ उनके अनुसार भारत की 17 प्रतिशत जमीन बंजर है। उन्होंने सुझाव दिया कि बायोमास बनाने के लिए बांस के पेड़ लगाए जा सकते हैं। खनन क्षेत्रों के पास पेड़ लगाकर कार्बन क्रेडिट कमाया जा सकता है। कार्बन क्रेडिट यानी पर्यावरण को बचाने के लिए मिलने वाला इनाम।
ठीक है गडकरी आज यह बात कह रहे है इसके पूर्व मेरठ में भाजपा नेता धर्मपाल सिंह ने एक अनोखा बयान दिया था कि “कचरे से बनेंगे कंचन”। धर्मपाल सिंह कूड़े से सोना बनाने की मशीन के बारे में ऐलान किया, और बताया कि यह मशीन जल्द ही मेरठ में तैयार की जाएगी। मंत्री का कहना था कि यह एक सतत विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा, जिससे कचरे का सही तरीके से निस्तारण किया जा सकेगा और नई ऊर्जा और संसाधनों का निर्माण किया जा सकेगा। उन्होंने आगे कहा कि कचरा प्रबंधन के तहत यह मशीन कूड़े से सोना बनाने का काम करेगी, जिससे शहर को स्वच्छ रखने में मदद मिलेगी और साथ ही यह आर्थिक रूप से भी लाभकारी साबित होगा।
बताया जाता है कि ई-कचरे को 550 से 700 डिग्री सेल्सियस तक दो से तीन घंटे तक गरम किया जाता है। इसके बाद इससे सोना चांदी तांबा समेत अन्य विभिन्न प्रकार की धातुएं बाहर निकलती हैं।भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर केके पंत के नेतृत्व में छात्रों द्वारा ही एक ऐसी तकनीक को विकसित किया गया है, जिससे इलेक्ट्रॉनिक कचरे (ई-वेस्ट) को रिसाइकिल करके सोना एवं चांदी समेत कई अन्य धातुओं को निकाला जा सकेगा।जानकारी के मुताबिक, केंद्र सरकार के विज्ञान एवं तकनीक विभाग के कचरा प्रबंधन कार्यक्रम के अधीन इस तकनीक को विकसित किया है।
उन्होंने एक संवाददाता सम्मलेन में सिंगापुर से बातचीत में बताया कि यह एक तरह की मशीन है, जिससे हर दिन 50 किलो के ई-वेस्ट को रिसाइकिल किया जा सकता है। इस मशीन के अंदर ई-वेस्ट जैसे मोबाइल, लैपटॉप, बैटरी आदि को डालकर उसे 550 से 700 डिग्री सेल्सियस तक दो से तीन घंटे तक गरम किया जाता है। इसके बाद इससे सोना, चांदी, तांबा समेत अन्य विभिन्न प्रकार की धातुएं बाहर निकलती हैं।
बताया जा रहा है कि ऐसे में अगर एक टन ई-वेस्ट को रिसाइकिल किया जाए तो इससे 300 ग्राम सोना, 650 ग्राम चांदी एवं 200 ग्राम तक तांबा निकलेगा। उन्होंने बताया कि गुणवत्ता की दृष्टि से अच्छे मोबाइल फोन से ज्यादा मात्रा में सोना-चांदी निकलता है। इन मोबाइल फोन को अगर रिसाइकिल किया जाए तो सोना-चांदी निकलने की मात्रा में और इजाफा हो सकता है।
प्रो. केके पंत ने बताया कि तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद इस तकनीक को विकसित किया है। अभी इस पर और भी काम चल रहे हैं। संस्थान की लैब के अंदर इसे तैयार किया गया है। इसमें संस्थान के केमिकल इंजीनियरिंग से पीएचडी कर रहे छात्र प्रशांत यादव ने भी काम किया है। प्रशांत ने छात्रों का नेतृत्व किया है।पंत ने बताया है कि भविष्य में इस मशीन के जरिये प्लास्टिक को भी रिसाइकिल किया जा सकेगा। जिसका उपयोग ईंधन के रूप में किया जा सकेगा। इस तकनीक को निजी क्षेत्र में भी पहुंचाने के लिए बातचीत की जा रही है। साथ ही सरकार के साथ मिलकर भी कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में इस पर काम किया जाएगा। यह तकनीक कचरा प्रबंधन क्षेत्र, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग एवं धातुएं बनाने वाले उद्योग के लिए भी लाभदायक होगी।
यहां पर बता दें कि ई-कचरा सिर्फ भारत के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए बड़ी समस्या बन चुका है, क्योंकि इसे नष्ट करना बेहद दूभर होता है। खासकर प्लास्टिक और धातु से बने सामान को नष्ट करना काफी लंबी प्रक्रिया है। भारत समेत दुनिया के तमाम बड़े देश ई-कचरा के प्रबंधन पर तेजी से काम कर रहे हैं, जिससे आने वाले कुछ सालों में इस पर लगाम लगाई जा सके और ई-कचरा को उचित तरीके से ठिकाने लगाया जा सके।
अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार