
विजय गर्ग
यदि आपके बच्चे स्कूलों में पढ़ रहे हैं और अब तक गिल्ली-डंडा, कंचे, कबड्डी, गुट्टी व राजा मंत्री-चोर सिपाही जैसे खेलों से परिचित नहीं हैं तो जल्द ही उन्हें इन परंपरागत प्राचीन भारतीय खेलों से परिचित होने का मौका मिल सकता है। आधुनिकता और तकनीक के इस दौर में तेजी से लुप्त हो रहे इन परंपरागत भारतीय खेलों को बचाने को लेकर शिक्षा मंत्रालय ने एक नई मुहिम शुरू की है। जिसमें देश की नई पीढ़ी को इन भारतीय खेलों से स्कूली स्तर पर ही जोड़ा जाएगा। इनमें ऐसे परंपरागत खेलों को अधिक अहमियत दी जाएगी, जो समूहों में खेले जाते हैं। माना जा रहा है कि इससे बच्चों में सामाजिक जुड़ाव की भावना विकसित करने में मदद मिलेगी।
देश के अलग-अलग हिस्सों में प्राचीन समय से खेले जाने वाले करीब 75 भारतीय खेलों को अब तक इस पहल के तहत चिह्नित किया गया है। इनमें खो-खो, कबड्डी व गिल्ली-डंडा जैसे ऐसे खेल भी शामिल हैं, जो अलग-अलग नामों से देश के कई हिस्सों में और दुनिया के दूसरे देशों में खेले जाते हैं।
मंत्रालय फिलहाल कबड्डी की तर्ज पर इन खेलों के लिए एक स्टैंडर्ड नियम-कायदे बनाने में जुटा है। इसमें इन खेलों से जुड़े विशेषज्ञों की मदद ली जा रही है। अब तक कबड्ड़ी, गिल्ली-डंडा, खो-खो और लगोरी या पिट्ठू जैसे खेलों के नियम कायदे और इसे खेलते हुए वीडियो अपलोड भी किए जा चुके हैं। बाकी खेलों को लेकर भी ऐसी तैयारी चल रही है।
मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों के अनुसार, इस पहल के पीछे का उद्देश्य बच्चों को इन खेलों के जरिये भारतीय जड़ों से परिचित कराना है। इसका एक ढांचा तैयार किया जा रहा है। इन खेलों से जुड़े देशभर के प्रतिभाशाली लोगों की पहचान की जा रही है। स्कूलों में तैनात खेल तथा व्यायाम शिक्षकों को इसका प्रशिक्षण देने की तैयारी भी की जा रही है।
यह भी बताया गया है कि स्कूलों से इसका ब्योरा मांगा गया है। इसके साथ ही इन खेलों के प्रति रुझान बढ़ाने के लिए देशभर में इससे जुड़ी प्रतियोगिताएं आयोजित करने जैसी पहल शामिल है। शिक्षा में भारतीय ज्ञान परंपरा को बढ़ावा देने की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) में की गई पहल को इससे जोड़कर देखा जा रहा है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब