दलगत मानसिकता के भेद को त्याग दीजिए

अरुण कुमार चौबे

भाजपा के पितामह स्वर्गीय श्री अटलजी ने सन 1983 में इंदौर के राज्बाडा जनता चौक की आमसभा में कहा था कि जरूरी नहीं है कि जिस दल की केन्द्र में सरकार हो उसी दल की सरकार राज्य में भी हो या स्थानीय निकाय में भी हो. यदि केंद्र में किसी एक दल की सरकार है तो राज्य में किसी दूसरे दल की सरकार भी हो सकती है.नगर निगम/ नगर पालिका/पंचायत स्तर पर किसी भी दूसरे दल की सरकार भी हो सकती है. तब केन्द्र की सरकार को दलगत मानसिकता से अलग हट कर सभी के साथ उदारता से सहयोग करना चाहिए. ये भेद नहीं होना चाहिए कि यदि राज्य में और नगर निगम आदि में किसी दूसरे दल की सरकार है तो उनके साथ असहयोग नहीं होना चाहिए. जो अनुदान/ फंड राज्य या नगर निगम आदि के अधिकार का है वो उन्हें यथा समय प्रदान करना चाहिए. दलगत भेदभाव/राजनीतिक मतभेद राष्ट्र के विकास से बड़े नहीं हैं. उस समय एक दो राज्यों में दूसरे अन्य दलों की सरकार थी और केन्द्र की सरकार का अन्य दूसरे दलों की सरकारों के साथ सौतेला व्यवहार था जिसका अटलजी ने आम सभाओं में और संसद में विरोध किया था. आज केंद्र में और राज्य में भाजपा की सरकार है. नगर निगम के चुनावों प्रचार के दौरान हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान ने कहा है कि यदि भाजपा को नहीं जिताया तो विकास नहीं होगा फंड नहीं मिलेगा. विकास नहीं होगा. अभी तक तो रास्तों से कारवाँ तक और इस जमीन से आसमान तक भाजपा की ही सरकार रही है. नगर निगम के चुनावों में परिवर्तन भी हो सकता है.

मध्यप्रदेश के नगरनिगम/नगर पालिका चुनावों में मिलाजुला परिणाम आने की संभावना है कहीं काँग्रेस तो कहीं भाजपा जनता का निर्णय स्वीकार करना होगा और दलगत मानसिकता से अलग हटकर “सबका साथ सबका विकास” करने का बड़ा मन रखना होगा. जब इंदौर में श्री कैलाश विजयवर्गीय मेयर थे और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री द्वविगविजय सिंह थे तब भी काँग्रेस के मुख्यमंत्री और इंदौर के कैलाशजी ने इंदौर के विकास की जो इबारत लिखी थी वो आज इंदौर की शान है.

कैलाशजी ने जो विकास किया है उसी को उनके बाद मेयर लोगों ने आगे बढ़ाया है.ये मतदाता है अपनी मन की करता है.

ये भेद समाप्त कर दीजिए कि इस मोहलले से हमारी पार्टी को वोट नहीं मिले हैं तो इन्हें जताना कि हमें हराने की क्या सजा है. श्री लक्ष्मण सिंहजी गोड़ विधायक थे वो कहते थे कि मैं जिताने वालों का भी विधायक हूँ और हराने वालों का भी विधायक हूँ. वो बगैर किसी भेद भाव के सभी का काम करते थे. जिससे ये होता था उन्हें वोट नहीं देने वाले भी यही कहते थे अब हम इन्हें ही वोट देना है. चुनाव नहीं लोगों का मन जीतना जरूरी है. लोगों के मन में ये रहेगा कि भले ही हमने किसी दूसरे दल का प्रत्याशी चुना है परंतु काम नहीं रुकता है

मुख्यमंत्रीजी आप उदारता से सहयोग करिये क्योंकि सबका साथ सबका विकास में सभी को साथ-साथ लेकर चलना पड़ता है. प्रत्याशी को तो ये कहना चाहिए कि यदि हम विपक्ष में रहे तो किस प्रकार काम करेंगे. सुमित्राजी सांसद थी उस समय काँग्रेस और युपीए की सरकार केन्द्र में थी इसके बाद भी उन्होंने इंदौर के विकास के कई काम केंद्र की सरकारों से करवाये थे. केंद्र और राज्य की सरकारों को भी बगैर किसी दलगत भेदभाव के सभी का सहयोग करना होगा. नगर निगम में चाहे कोई भी जीते.दलगत मानसिकता को त्याग दीजिए.