बढ़ते मधुमेह को नियंत्रित करने की वैश्विक चुनौती

Global challenge to control rising diabetes

ललित गर्ग

डायबिटीज यानी मधुमेह दुनियाभर में तेजी से बढ़ती ऐसी बीमारी है जो अन्य अनेक बीमारियों एवं शरीर की जर्जरता का कारण बनती है, जिसका शिकार हर उम्र के लोगों को देखा जा रहा है। जिन लोगों का शुगर लेवल अक्सर बढ़ा हुआ रहता है उनमें आंखों, किडनी, तंत्रिकाओं, शरीर की सुस्ती और हृदय से संबंधित कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। वैश्विक स्तर पर बढ़ती इस गंभीर और क्रोनिक बीमारी के बारे में लोगों को जागरूक करने, इससे बचाव को लेकर लोगों को शिक्षित करने के उद्देश्य से हर साल 14 नवंबर को विश्व मधुमेह दिवस मनाया जाता है। आंकड़ों से पता चलता है कि डायबिटीज के मरीज साल-दर साल बढ़ते जा रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक दुनियाभर में 53 करोड़ से अधिक लोग इस बीमारी के शिकार हैं और अगले दो दशकों में रोगियों की संख्या 80 करोड़ के आंकड़े को छू सकती है। विश्व मधुमेह दिवस दुनिया की गंभीरतम बीमारियों में से एक होने की वजह से 160 से अधिक देशों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है और अपने जागरूकता अभियानों, उपचार तक बेहतर पहुंच की वकालत और मधुमेह से निपटने के लिए गुणवत्तापूर्ण सूचनात्मक सामग्री के माध्यम से 100 करोड़ से अधिक लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहा है।

इस वर्ष, इस दिवस की थीम है ‘बाधाओं को तोड़ना, अंतरालों को पाटना’। यह थीम लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर मधुमेह के प्रभाव पर प्रकाश डालती है और मधुमेह प्रबंधन-नियंत्रण-जागरूकता के महत्व पर भी जोर देती है और यह बताती है कि इसके लिये संतुलित, योगमय एवं गुणवत्ता जीवन कैसे इस बीमारी से लड़ने की शक्ति देती है। दरअसल, विश्व मधुमेह दिवस को 14 नवंबर को मनाने का मुख्य उद्देश्य सर फ्रेडरिक बैंटिंग को याद करना था। 1992 में सर फ्रेडरिक बैंटिंग ने चार्ल्स बेस्ट के साथ मिलकर इंसुलिन की खोज की थी। अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह फाउंडेशन (आईडीएफ) के अनुसार, 2021 में मधुमेह के कारण 67 लाख लोगों की मृत्यु हुई और अनुमान है कि उसी वर्ष 53.7 करोड़ (10 में से 1) लोग इस बीमारी के साथ जी रहे थे और अनुमान है कि यह संख्या 2030 में बढ़कर 64.3 करोड़ और 2045 तक 78.3 करोड़ हो जाएगी। यह तथ्य सामने आया है कि मधुमेह से प्रभावित 2 वयस्कों में से 1 यानी 44 प्रतिशत, लगभग 24 करोड़ लोग, अभी तक निदान नहीं करा पाये हैं, उनमें से अधिकांश टाइप 2 मधुमेह से पीड़ित हैं, जिसे कुछ जीवनशैली में बदलाव, इच्छाशक्ति, योग-साधना और स्वस्थ आहार आदतों से रोका जा सकता है। असंतुलित जीवनशैली के कारण लगभग 54.1 करोड़ वयस्कों को टाइप 2 मधुमेह विकसित होने का खतरा है।

डायबिटीज के होने एवं पनपने के अनेक कारण हैं, जिनमें सबसे बड़ा कारक फैमिली हिस्ट्री को माना जाता है। यानी कि यदि माता-पिता या भाई-बहन को टाइप-2 डायबिटीज है तो आपको भी मधुमेह होने का खतरा बढ़ जाता है। अधिक वजन या मोटापा डायबिटीज रोग के लिए एक मुख्य जोखिम है। अध्ययनों से पता चलता है कि मुख्यरूप से पेट पर फैट जमा होने से आपमें डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है। अध्ययकर्ताओं ने पाया कि जो लोग अधिक मीठा खाते हैं उनमें पेट की चर्बी बढ़ने का खतरा रहता है। मोटापा से ग्रस्त लोगों में डायबिटीज की स्थिति हृदय रोग और अन्य जटिलताओं को भी बढ़ाने वाली हो सकती है। विशेषज्ञ का मानना है कि शारीरिक निष्क्रियता भी डायबिटीज की जोखिम को बढ़ा देती है। शारीरिक गतिविधि जैसे नियमित रूप से योग-व्यायाम वजन और खेलकूद से वजन को नियंत्रित करने में मदद करती है और इससे ब्लड शुगर के स्तर को कंट्रोल में रखा जा सकता है। मधुमेह से बचे रहने के लिए रोजाना कम से कम 30 मिनट तक व्यायाम जरूर करें। टाइप-2 डायबिटीज होने का जोखिम उन लोगों में अधिक होता है, जिन्हें गर्भावस्था के दौरान मधुमेह का पता चलता है। यही कारण है कि स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस अवधि में शुगर के स्तर को कंट्रोल में रखने की सलाह देते हैं। गर्भावधि में मधुमेह के कारण ब्लड शुगर का स्तर बढ़ा रहता है जिसका असर गर्भवती और बच्चे दोनों की सेहत पर देखा जाता है।

डॉक्टर बताते हैं, भले ही दुनियाभर में सबसे ज्यादा मरीज टाइप-2 डायबिटीज के देखे जाते रहे हैं पर मधुमेह चार प्रकार का होता है। इसे उम्र बढ़ने के साथ होने वाली बीमारी समझना या युवावस्था में शुगर की समस्या को अनदेखा करना आपके लिए दिक्कतें बढ़ाने वाला हो सकती है। बढ़े रहने वाले शुगर लेवल का असर हृदय और आंखों की सेहत पर भी पड़ सकता है, इसलिए डायबिटीज को हल्के में लेने की भूल नहीं की जानी चाहिए। डायबिटीज के मरीजों को अपने खाने पीने के अलावा नींद का भी ध्यान रखने की जरूरत होती है। कम नींद के कारण ब्लड शुगर लेवल में उतार-चढ़ाव हो सकता है। भोजन और एक्सरसाइज के अलावा नींद भी शरीर के लिए उतनी ही जरूरी होती है। नींद पूरी न होने से शरीर सुस्त हो जाता है और तनाव भी बढ़ता है। ऐसे में कार्टिसोल हार्माेन बढ़ने लगता है जो ब्लड शुगर लेवल को बढ़ा देता है। शरीर में जब शुगर का लेवल बढ़ता या घटता है तो नींद से जुड़ी समस्याएं होने लगती है। खासतौर पर टाइप 2 डायबिटीज वाले लोगों को हमेशा पर्याप्त नींद लेनी चाहिए। यदि आपको देर रात तक जागने की आदत है या फिर आप देर रात तक जागकर काम करते हैं तो आपकी यह आदत आप पर भारी पड़ सकती है। अनियंत्रित मधुमेह हृदय संबंधी समस्याओं, तंत्रिका क्षति, गुर्दे की क्षति, पैर की क्षति, त्वचा संक्रमण, स्तंभन दोष, अवसाद, दंत समस्याओं जैसी घातक जटिलताओं को जन्म दे सकता है। चिकित्सा-विज्ञान की अपूर्व प्रगति के बावजूद मधुमेह जैसी जटिल एवं असाध्य बीमारी का राक्षसी-पंजा नियंत्रण से बाहर है, इसलिये व्यक्ति को खुद को खुद के प्रति जागरूक होना होगा।

मधुमेह का नियंत्रित करने के लिये योग-ध्यान-साधना-प्रातःभ्रमण की महत्वपूर्ण भूमिका है। वैज्ञानिक डॉ. घियोपोर ने बहुत पहले अपने अनुसंधान में बताया कि ध्यान एवं योग करने वाले व्यक्तियों की साइकोलॉजी में असाधारण रूप से परिवर्तन होता है। ऐसे व्यक्तियों में घबराहट, उत्तेजना, मानसिक तनाव, उग्रता, मनोकायिक बीमारियां, स्वार्थपरता और विकारों में कमी पाई गयी हैं तथा आत्मविश्वास, सहनशक्ति, स्थिरता, कार्यदक्षता, विनोदप्रियता, एकाग्रता आदि गुणों में वृद्धि देखी गयी है। ये ध्यान-साधना एवं योग में प्रत्यक्ष लाभ अनुभूत किये गये हैं। इसीलिये मधुमेह को परास्त करने के लिये इन गुणों युक्त जीवनशैली को अपनाया जाना चाहिए। सम्पूर्ण आस्था एवं विश्वास के साथ जीवनरूपी प्रयोगशाला में इसे प्रायोगिक रूप देकर जीवन में मधुमेह रूपी-राक्षस को निस्तेज करके जीवन में आनन्द का अवतरण किया जा सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह फाउंडेशन के अनुसार, यह अनुमान है कि लगभग 54.1 करोड़ वयस्कों को टाइप 2 मधुमेह विकसित होने का खतरा है, जो कि दुनिया भर में सबसे बड़ी चिंता का विषय बन गया है, ताकि जागरूकता कार्यक्रमों और गुणवत्ता वाले मधुमेह शैक्षिक प्लेटफार्मों को बढ़ावा देकर इस जोखिम को कम किया जाना चाहिए। हम देखते है कि पुरानी पीढ़ी के लोग जीवन के आठवें या नौवें दशक में भी स्वस्थ एवं स्वावलम्बी है। गांवों की स्थिति भी काफी सुखद है, मधुमेह रोगियों की संख्या वहां शहरों की अपेक्षा काफी कम है। इसका कारण है सहज, प्रकृतिमय और चिन्तामुक्त जीवन, शुद्ध वातावरण, शुद्ध हवा-पानी, सात्विक-संतुलित आहार और भरपूर मेहनत। महानगरों की भाग-दौड़ भरी जिन्दगी में आदमी मात्र मशीन बनकर रह गया है। अपने स्वास्थ्य के बारे सोचने एवं समझने का समय भी उसके पास नहीं है। विकास की तीव्र गति से उपजी अति तनावपूर्ण जीवनशैली एवं प्रतिस्पर्धाओं ने चिन्ता एवं तनावों को जन्म दिया है, जो मधुमेह को बढ़ाते हैं। अपेक्षा है आशावादी दृष्टिकोण एवं आहार संयम को अपनाएं। मधुमेह से लड़ने के लिये संकल्प जगाये एवं प्रमाद त्यागे। संतुलित जीवन जीएं। तनावों-दबावों को अपने पर हावी न होने दे। सोचो, जिन्दगी मात्र जीने के लिये नहीं, स्वस्थता एवं सरसता से जीने के लिये हैं।