तनवीर जाफ़री
साहित्य, मानवीय अभिव्यक्ति का एक ऐसा रूप है जो ‘संस्कृति’ का प्रसार करता है। साहित्य को समाज का दर्पण भी कहा जाता है। साहित्यकार अपनी रचनाओं में समाज के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं। साहित्य, जीवन के प्रचलन के अनुसार गतिशील रहता है। गैर-काल्पनिक गद्य, काल्पनिक गद्य, कविता, नाटक, और लोक कथाएं आदि साहित्य के प्रमुख रूप हैं।
साहित्यिक भाषा, किसी भाषा का वह रूप है जिसका उपयोग औपचारिक, अकादमिक, या विशेष रूप से विनम्र लहजे में लिखते समय किया जाता है। साहित्य समाज के मर्म का भी दर्पण है। यह साहित्य ही है जिसके द्वारा शब्दों के माध्यम से बड़े ही प्रभावी तरीक़े से अपनी बात कही और दूसरों तक पहुंचाई जाती है। हमारे देश में हिंदी व उर्दू साहित्य का एक सबसे प्रभावी नाम था मुंशी प्रेमचंद। उनके उपन्यासों व कहानियों में प्रायः ग़रीबी,सामाजिक अन्याय, सामाजिक व साम्प्रदायिक सद्भाव सहित तमाम मानवीय पहलुओं का ज़िक्र हुआ करता था। इसी तरह प्रेमचंद के समकक्ष अंग्रेजी साहित्य में भी ऐसे अनेक साहित्यकार हुये हैं जिन्होंने सामाजिक मुद्दों और यथार्थवाद को इसी तरह संबोधित किया। इनमें चार्ल्स डिकेंस को जहां गरीबों के संघर्षों के चित्रण और सामाजिक अन्याय की आलोचना के लिए जाना जाता है वहीँ विशेष रूप से ओलिवर ट्विस्ट और डेविड कॉपर फ़ील्ड जैसी रचनाओं के लिये भी वे प्रसिद्ध हैं। इसी तरह मार्क ट्वेन के आख्यानों में अक्सर जाति और वर्ग के विषयों पर प्रकाश डाला जाता था, जैसा कि द एडवेंचर्स ऑफ़ हकलबेरी फिन में देखा गया है। वहीं टोनी मॉरिसन जोकि बेलव्ड जैसे उपन्यासों में अफ़्रीक़ी अमेरिकी अनुभवों और सामाजिक मुद्दों की उनकी खोज प्रेमचंद के हाशिए पर पड़े समुदायों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ प्रतिध्वनित होती है। प्रेमचंद की ही तरह इन लेखकों ने भी अपने आख्यानों का उपयोग सामाजिक मानदंडों और अन्याय की आलोचना करने के लिए किया।
लियो टॉल्स्टॉय ने भी प्रेमचंद के लेखन को प्रभावित किया। उन्होंने टॉल्स्टॉय की नैतिक कहानियों का हिंदी में अनुवाद किया, जिससे उन्हें “हिंदी टॉल्स्टॉय” की उपाधि मिली। इसी तरह गुस्ताव फ़्लोबर्ट की कथात्मक शैली भी प्रेमचंद के सामाजिक यथार्थवाद पर ध्यान केंद्रित करने के समान है। मैक्सिम गोर्की ने भी विशेष रूप से निम्न वर्गों के संघर्षों के संबंध में प्रेमचंद के साथ विषयगत चिंताओं को साझा किया। इसी तरह शेक्सपियर हों या रविंद्र नाथ टैगोर,इन जैसे अनेक लेखकों व साहित्यकारों ने अपने लेखन में मानवीय संवेदनाओं का बख़ूबी ज़िक्र किया है। वैसे भी हमारा देश गांधी के सत्य अहिंसा के सिद्धांतों पर चलने वाले देश के रूप में विश्व प्रसिद्ध है। इसलिये यहाँ हिंसा,विध्वंस,नफ़रत,विद्वेष,साम्प्रदायिकता तबाही बर्बादी जैसे अमानवीय पहलुओं की कोई गुंजाईश नहीं होनी चाहिये।
परन्तु ब्रिटिश कंपनी जे सी बैमफ़ोर्ड एक्सकेवेटर लिमिटेड (जेसीबी) की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी जेसीबी (इंडिया) जो ब्रिटिश कंज़र्वेटिव पार्टी के सबसे प्रभावशाली दान दाताओं में से एक रही है, इसी जेसीबी कंपनी ने लेखकों के लिए एक साहित्य पुरस्कार की स्थापना की है। ग़ौर तलब है कि यही जे सी बी कंपनी है जो इज़राइली रक्षा मंत्रालय के साथ एक अनुबंध के तहत फ़िलिस्तीन में मकानों को ध्वस्त करने और अवैध इस्राईली बस्तियों के विस्तार के लिए जेसीबी बुलडोज़र मुहैय्या करा रही है।
इसी जे सी बी के बुलडोज़र ग़ज़ा में तबाही मचाये हुये हैं। भारत में भी सुप्रीम कोर्ट के दख़ल के बाद भले ही जे सी बी के बुलडोज़रों द्वारा ढहाए जाने वाले भवनों की संख्या में अब विराम लग गया हो। परन्तु गत एक दशक से देश के ख़ासकर भारतीय जनता पार्टी शासित अनेक राज्यों में सत्ता शक्ति का दुरूपयोग करते हुये धर्म व जाति-विशेष के लोगों को निशाना बनाया गया और शासन द्वारा अदालत की शक्तियों को अपनी हाथों में लेने की कोशिश की गयी, जिसने पूरे विश्व में मानवीय संवेदनाओं को झकझोर कर रख दिया।
और इससे भी शर्मनाक बात यह है कि इसी विध्वंसकारी मशीन का भारत से लेकर अमेरिका तक इन्हीं दक्षिणपंथियों द्वारा महिमामंडन किया गया। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर इस मशीन का विदेशों में प्रदर्शन किया गया। और हद तो तब हो गयी जब गाँधी के राज्य गुजरात में अप्रैल 2022 में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ब्रिटिश जे सी बी कम्पनी का दौरा करते हैं और साथ ही बुलडोज़र पर खड़े होकर फ़ोटो कराते हैं। साथ ही अपने इसी दौरे में वे गाँधी जी के आश्रम में जाकर उनका चरख़ा भी चलाते हैं। सवाल यह है कि जो जे सी बी कंपनी भारतीय लेखकों की विविधता का जश्न मनाते हुए साहित्यिक पुरस्कार देने के घोषणा कर रही हो उसी कंपनी द्वारा ऐसी विध्वंसकारी मशीन का निर्माण व जनसंहारक उपयोग किया जाना जिससे कि वह दंड के रूप में लाखों लोगों के जीवन,उनके घरों व आजीविका को नष्ट करने में भागीदार हो, ऐसे दोहरेपन में आख़िर ‘साहित्यिक पुरस्कार’ की क्या गुंजाईश ?
यही वजह है कि भारतीय लेखकों सहित विश्व के सौ से अधिक उपन्यासकारों,लेखकों,कवियों,अनुवादकों और प्रकाशकों ने ब्रिटिश बुल्डोजर निर्माता और एक साहित्यिक पुरस्कार की आयोजक कंपनी जेसीबी की आलोचना करते हुए एक खुला पत्र लिखकर साफ़ शब्दों में यह कहा है कि ‘जेसीबी साहित्य पुरस्कार’ कोई पुरस्कार नहीं बल्कि यह इस कंपनी का एक पाखंड है क्योंकि जेसीबी साहित्य पुरस्कार’ की घोषणा करने वाली यही कंपनी भारत और फ़िलस्तीन में ग़रीबों तथा हाशिये पर पड़े ग़रीब लोगों की ज़िंदिगी ‘उजाड़’ रही है और जो ‘दंड के रूप में इतने सारे लोगों के जीवन और आजीविका को नष्ट करने में भागीदार है। ’लेखकों ने पत्र में यह भी लिखा है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने विभिन्न राज्यों में मुसलमानों के घरों, दुकानों और उपासना स्थलों को ध्वस्त करने के लिए ‘व्यवस्थित अभियान’ में लगातार जेसीबी बुलडोज़र का इस्तेमाल किया है और इस परियोजना को ‘बुलडोज़र न्याय’ का नाम दिया गया है, जो बेहद परेशान करने वाला है। लेखकों ने अपने खुले पत्र में यह भी कहा है कि ‘‘हम साहित्यिक समुदाय के समर्थन के ऐसे कपटपूर्ण दावों को बर्दाश्त नहीं करेंगे। यह पुरस्कार जेसीबी के हाथों पर लगे ख़ून को नहीं धो सकता। भारत के उभरते लेखक इससे बेहतर पुरस्कार के हक़दार हैं। कंपनी और पुरस्कार देने वालों की ओर से इस तरह का पाखंड निंदनीय है। इसे भारतीय साहित्य के लिए एक बहुत ही ‘प्रतिष्ठित’ साहित्यिक पुरस्कार के साथ जोड़कर हरगिज़ नहीं देखा जा सकता। न ही इस पुरस्कार का स्वतंत्र अभिव्यक्ति, विविधता और बहुलवाद को बढ़ावा देने से कोई लेना-देना है। मानवीय संवेदनाओं का सम्मान करने वाले लेखकों के लिये यह महत्वपूर्ण व ज़रूरी है कि वे मानवाधिकारों के इस घोर उल्लंघन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएं।’’क्योंकि ‘विध्वंस’ को महिमामंडित करना शर्मनाक है।