- तब एक गोलरक्षक ही पूरा मैच खेलता था, ज्यादा बाहर ‘बेंच’ पर बैठता पड़ता था
- रोलिंग सब्सिटयूशन के कारण आज मैच में दोनों गोलरक्षक को मौका मिल जाता है
- हमारी टीम पाठक व सूरज करकेरा के रूप में गोलरक्षकों में पर्याप्त विकल्प
- भारत के पास हॉकी गोलरक्षकों का बड़ा और मजबूत पूल
- आज की हॉकी में गोलरक्षक का रोल एक तरह से कोच का सा
- कुछ हासिल करने की चाह हमेशा बेहतर प्रदर्शन की सामूहिक प्रेरणा है
- कामयाबी पर बहुत खुश होने और ढीले प्रदर्शन पर हिम्मत हारने की जरूरत नहीं
सत्येन्द्र पाल सिंह
चेन्नै : मस्तमौला, मुस्तैद, धुरंधर गोलरक्षक पीआर श्रीजेश भारतीय हॉकी टीम की ‘मजबूत दीवार’ हैं। अपने जोश और मुस्तैदी से वह खासतौर पर कई बड़े टूर्नामेंट में बेहतरीन बचाव कर भारत की जीत के हीरो रह चुके हैं। खुद बेहतरीन प्रदर्शन करने के साथ वह टीम के साथियों को भी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को प्रेरित करते हैं। वह भारत के लिए लगातार तीनओलंपिक, लगातार चार विश्व कप, लगातार दो एशियाई खेल और तीन राष्ट्रमंडल खेल चुके हैं। श्रीजेश 2021 और 2022 में लगातार दो बार एफआईएच गोलकीपर ऑफ द ईयर तथा 2021 में वल्र्ड गेम्स एथलीट ऑफ द ईयर और देश के सर्वश्रेष्ठ खेल पुरस्कार मेजर ध्यानचंद अवॉर्ड से नवाजे जा चुके हैं। श्रीजेश ने भारत को दो बार चैंपियंस ट्रॉफी में रजत पदक, 2014 में एशियाई खेलों में स्वर्ण और 2020 के तोक्यो ओलंपिक में 41 बरस के बाद ऐतिहासिक रजत पदक जिताने में अहम भूमिका निभाई। वह भारत की 2011, 2016 , 2018 में एशियन चैंपियंस ट्रॉफी में स्वर्ण और 2012 में रजत पदक जीतने वाली टीम के अहम सदस्य रहे। श्रीजेश ने भारत के लिए जापान के खिलाफ मौजूदा एशियन चैंपियंस ट्रॉफी सेमीफाइनल के रूप में अपना 300 अंतर्राष्ट्रीय हॉकी मैच खेलने की अनूठी उपलब्धि हासिल करने के साथ उसे जापान के खिलाफ जीत दिला फइनल में स्थान दिला रिकॉर्ड चौथी बार खिताब जीतने के मुहाने पहुंचा दिया। श्रीजेश को भारत के लिए 300 वां अंतर्राष्ट्रीय खेलने पर हॉकी इंडिया के अध्यक्ष दिलीप टिर्की ने बधाई देते हुए कहा कि यह किसी भी हॉकी खिलाड़ी के लिए खास उपलब्धि है।
भारत के लिए 300 वां अंतर्राष्ट्रीय हॉकी मैच खेलने पर हॉकी इंडिया ने श्रीजेश भारतीय सीनियर हॉकी टीम के लिए पहली बार 2006 के दक्षिण एशियाई खेलों में खेले लेकिन 2010 में दिल्ली में हुए हॉकी विश्व कप से भारतीय हॉकी टीम के सबसे अहम सदस्य है। भारत के लिए डेढ़ दशक से ज्यादा लंबे अंतर्राष्ट्रीय हॉकी करियर में उतार-चढ़ाव को श्रीजेश को और मजबूत बनाया। श्रीजेश ने जापान के खिलाफ एशियन चैंपियंस ट्रॉफी हॉकी सेमीफाइनल के रूप में भारत के लिए अपना 300 वां अंतराष्ट्रीय मैच खेलने पर अपने डेढ़ दशक से ज्यादा लंबे करियर की बाबत इस संवाददाता के सवालों के जवाब में अतीत के पन्नों को भी पलटा। 35 बरस के श्रीजेश ने कहा, ‘ मैं भारत के लिए अपना 300 वां अंतर्राष्ट्रीय मैच खेल उतर कर उसे जापान के खिलाफ जीत दिला फाइनल में पहुंचा कर बहुत खुश हूं। मैं भारतीय हॉकी टीम के लिए अपनी डेढ़ दशक लंबी अंतर्राष्ट्रीय यात्रा में टीम और हॉकी इंडियां, हरेक के सहयोग का आभारी हूं। मैं भारत के लिए अपना 300 वां अंतर्राष्ट्रीय हॉकी मैच खेलने की बाबत यही कहूंगा कि हॉकी में गोलरक्षक पुरानी शराब की तरह हैजितना पुराना यानी ज्यादा अनुभवी उतना बेहतर होता जाएगा। हमारे पास हमारी भारतीय टीम के पास कृष्ण बहादुर पाठक और सूरज करकेरा के रूप में गोलरक्षक के लिए रूप में पर्याप्त विकल्प हैं। भारत के पास हॉकी गोलरक्षकों का बड़ा और मजबूत पूल है। मैंने भारतीय हॉकी के इस बदलते दौर में हम गोलरक्षक आपस में एक दूसरे को ही टक्कर दे रहे है। इससे हमारा खेल बेहतर हो रहा है। इससे हम गोलरक्षक के बीच आपस में अच्छी स्वस्थ प्रतिद्वंद्विता है। भारत की गोलकीपिंगअच्छे हाथों में।’
वह बताते हैं, ‘मैं पलट कर अपने हॉकी सफर की यात्रा पर नजर डालता हूं तो पाता हूं कि बहुत कुछ बदल गया है। हाकी में रोलिंग सब्सिटयूशन के कारण आज मैच में दोनों गोलरक्षक को खेलने मौका मिल जाता है। जब मैंने भारतीय हॉकी टीम के लिए खेलना शुरू किया तो एक ही गोलरक्षक पूरे मैच में खेलता था। मुझे ज्यादातर मैच के लिए मैदान पर उतरने की बजाय बाहर ‘बेंच’ ही ज्यादा बैठना पड़ता था। टीम में गोलरक्षक को छोड़ बाकी सभी खिलाडिय़ों को ज्यादा मौका मिलता था, इस कारण मुझे भारत के लिए 300 अंतर्राष्ट्रीय मैच खेलने में कहीं ज्यादा वक्त लग गया। अब रोलिंग सब्सिटयूशन के नए नियम के कारण टीम में दोनों गोलरक्षकों के लिए मैच में खेलने का बराबर का मौका होता है। मेरा मानना है हॉकी में गोलरक्षक का रोल एक तरह से कोच का सा होता है। वह टीम के लिए बहुत कोचिंग भी करते हैं। टीम की रणनीति को अमली जामा पहनाने में गोलरक्षक का रोल इसलिए अहम हो जाता है क्योंकि वह पीछे गोलपोस्ट में खड़ा मैदान पर हर मूवमेंट और गतिविधि को देख कर अपनी टीम के डिफेंडरों और यहां तक की स्ट्राइकरों का भी मार्गदर्शन कर सकता है। हमारी टीम मैच विशेष के लिए बनाई रणनीति को अमली जामा पहना सके इसलिए बतौर गोलरक्षक मुझे पीछे अपने गोल में खड़ा रहकर हर खिलाड़ी चाहे वह स्ट्राइकर हो या फॉरवर्ड उसकी भूमिका बराबर याद दिलानी पड़ती है। इससे टीम अपने स्ट्रक्चर में खेल सकती है।मुझे टीम में बतौर गोलरक्षक अपने अनुभव के कारण अपने साथी गोलरक्षकों और टीम के बाकी खिलाडिय़ों की भी हौसलाअफजाई करनी पड़ती है। टीम का डिफेंस की पहली कड़ी उसकी अग्रिम पंक्ति है और उसके बाद डीप डिफेंस और गोलरक्षक आता है। हमारी भारतीय टीम की खुशकिस्मती है कि हमारे पास आज कृष्ण बहादुर पाठक और बेंगलुरू में शिविर में सूरज करकेरा के साथ जूनियर टीम में गोलरक्षकों का एक बड़ा और मजबूत ‘पूल’ है। भारतीय टीम अपने किले की मुस्तैदी से हिफाजत करने के लिए हम गोलरक्षक और डिफेडर सहित सभी आपस में बराबर बात कर अपनी टीम को स्ट्रक्चर के मुताबिक खेलने में मदद करते है। जहां जापान के खिलाफ सेमीफाइनल में मेरे 300 वें अंतर्राष्ट्रीय मैच की बात तो मैं इस निजी उपलब्धि की बजाय अपनी टीम को जीत दिला पूरे तीन अंक दिलाने की बाबत सोच रहा और इसमें कामयाब भी रहा। मैंने निजी उपलब्धियों से ज्यादा अहमियत अपनी भारतीय टीम को दी है। हमें कुछ हासिल करने की चाह हमेशा बेहतर प्रदर्शन की सामूहिक प्रेरणा है। मेरा नई पीढ़ी के हॉकी खिलाडिय़ों के संदेश कामयाबी पर बहुत खुश होने और ढीले प्रदर्शन पर हिम्मत हारने की जरूरत नहीं है। मेरा मानना है कि नाकामी से उबरने की क्षमता ही खिलाड़ी को बेहतर प्रदर्शन को प्रेरित करती है।